
सभी देवताओं में भगवान शिव ही सबसे 'कूल' क्यों हैं
वह बहुत ही भावुक थे, सामंतवाद में विश्वास नहीं रखते थे और उनका पहनावा तो रणवीर सिंह से भी ज़्यादा अनोखा था
जब आप कम्युनिस्ट परिवार में बड़े होते हो, तो धर्म दूसरे या तीसरे स्थान पर आता है, लेकिन पहले पर तो कतई नहीं। मेरा किस्सा कुछ अलग नहीं था, हालांकि विज्ञान के पेपर से पहले मैं प्रार्थना जरूर करती थी। ये अलग बात है कि कुछ ख़ास फल नहीं मिला। मैं महाभारत और रामायण के नायकों व लेखकों तक को जानती थी। और आज तक मेरी पसंदीदा पौराणिक कहानी काली की हैं, जिसमें उन्हें नरसंहार से रोकने वाले उनके पति-भगवान शिव थे। मेरा झुकाव हमेशा से एक्शन ड्रामा की तरफ रहा है।
सिर्फ मैं ही नहीं हूं, जिसे शिव की कहानियां पसंद है। वह तो सबको ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं। उनके प्रभुदेवा से बेहतर डांस मूव्स, अद्भुत हेयर स्टाइल और चीते की खाल वाला पहनावा सभी को आकर्षित करता है।
साल 2010 में, भगवान शिव ने अपना नया अवतार अमीश त्रिपाठी की पहली सीरीज़ शिवा ट्रायलोजी में पेश किया था। तीन भाग में प्रस्तुत यह प्रेम पत्र विराट स्वरूप शिव को समर्पित था। सच कहूँ तो, शिव के इस फैन को इस विषय में विकिपीडिया से ज़्यादा ज्ञान है जो ज़्यादा विश्वसनीय भी है।

धर्मज्ञान में अनाड़ी होने की वजह से मेरे पास त्रिपाठी के लिये कुछ सवाल थे। माना जाता है कि हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता हैं, तो मैं सोच रही थी कि “सबसे कूल भगवान कौन से हैं?” इस पर त्रिपाठी का उत्तर था, “शायद इस सवाल पर मैं पक्षपाती लगूं। बेशक, शिव सबसे कूल हैं। किसी भी धर्म के देवी-देवताओं का अनादर किए बिना, मेरे अनुसार भगवान शिव की आज के दौर में हमें सख्त ज़रूरत है। भगवान शिव विद्रोही हैं। वह सबको एक समान मानते हैं। वह कला के देवता और योग के प्रवर्तक हैं। उनके नैतिक मूल्य आधुनिक विश्व द्वारा माने जाने वाली हर चीज में प्रतिध्वनित होते हैं।”
मेरे अंधे दावे भी त्रिपाठी की सोच के साथ मेल खाते हैं। यह अनुमान लगाना की सनातन धर्म आज के युवा वर्ग के सामने ‘तुम्हे जो करना है करो’ का प्रचार कर रहा है, ऐसा आपकी कल्पना शक्ति के बाहर नहीं होगा। एक इंसान सांप को दूध (नाग देवता की पूजा के लिए) पिला सकता है, तो कोई पीपल के पेड़ को धागा बांध सकता है, और फिर भी, दोनों हिंदू धर्म में बराबर ही हैं। त्रिपाठी समझाते हैं, ‘सच्चे भगवान’ के नाम पर इतनी हिंसा हो रही है, तो ‘फर्जी भगवान’ को पूजने के लिए तो कत्ल ही हो जाएगा। यह गलत है। सनातन धर्म में, कोई फर्जी भगवान हैं ही नहीं, आपका भगवान आपके लिए सच्चा है, मेरा मेरे लिए। तो, सब पर यही नियम लागू होता है। या, जैसे की मिलेनियल्स कहते हैं, ‘तुम्हे जो करना है करो!’
लेखक का विश्वास है की आजकल के आधुनिक विचार भी बरसों पुराने वेदों से जुड़े हैं। वह शिव और उनकी बारात से जुडी दंतकथा का उल्लेख करते हुये कहते हैं, “समावेश के पाठ, LGBTQIA और महिलाओं के अधिकारों की बातें हमारे ग्रंथों में पाई जा सकती हैं।” शिव की बारात में कोई बिन बुलाया मेहमान नहीं था क्योंकि उनकी कोई गेस्ट-लिस्ट ही नहीं थी। वह समारोह सबके लिए खुला था जिसमे कोई भी शामिल हो सकता था। त्रिपाठी कहते हैं, “वह जाति, रंग या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव नहीं करते थे। बल्कि ऐसी कई दंतकथाएं हैं जो वर्णन करती हैं कि भगवान शिव समृद्ध लोगों की अपेक्षा बेसहारा लोगों के साथ मस्त रहते थे और ज्यादातर शमशान में रहना पसंद करते थे।”

जितना प्रभावशाली यह किस्सा था, उतना ही यह जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्यों मेरी पांचवी क्लास की इतिहास की टीचर ने हमें यह बताया कि महिलाओं को वेद पढ़ना मना है? ऐसा नहीं है कि मेरे पास इन किताबों को पढ़ने का कोई समय था, लेकिन अगर कोई पढ़ना चाहता हो तो? वह कहते हैं, “जो लोग ऐसा कहते है, उन्हें पता ही नहीं वह क्या कह रहे हैं। कई महिला ऋषिका जैसे महाऋषिका लोपमुद्रा, महाऋषिका मैत्री और महाऋषिका इन्द्राणी और कई अन्य ने वेदों में कुछ छंद लिखे थे। अगर महिलाएं इन ग्रंथों को लिख सकती थी, तो उन्हें पढ़ क्यों नहीं सकती?”
अभी तो मैं इस जानकारी को अपने अंदर समा ही रही थी कि त्रिपाठी ने एक और बम गिरा दिया: “हमारे यहां ट्रांसजेंडर शासक भी थे।” क्या? “हां, चंद्रवंशी वंश की स्थापना एक महिला इला ने की थी। कुछ समय बाद वह एक पुरुष में परिवर्तित हो गई। वह ट्रांसजेंडर थी। देखिये, हमने वह सब देखा है, जो आज की आधुनिक दुनिया के लिये महत्वपूर्ण है। बस ज़रूरत है, तो उसे करीब से देखने की।”
बेशक, मैं ऐसा कर सकती हूं। हालांकि हमारे ग्रंथों में 33 करोड़ देवी देवता हैं, और हर किसी को जानने के लिये मुझे कई जन्म लेने पड़ जायेंगे। लेकिन कई दशकों से पंडालों में दुर्गा की मूर्तियों को बहुत करीब से देखने के बाद मैंने एक बात नोट की है। विशाल दुर्गा मूर्तियों के आसपास हमेशा एक छोटी सी शिव की फोटो होती है। मुझे यह हमेशा से ही बहुत आकर्षक लगा है कि दुर्गा पूजा तो बेटी (दुर्गा/पार्वती) का अपने बच्चों के साथ घर वापसी का उत्सव है, तो पति क्यों उनके पीछे छिपे रहते हैं? इस बात पर मेरी दादी और त्रिपाठी की एक ही स्पष्टीकरण है: “वह अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे और उनके बिना नहीं रह सकते थे। तो, कहानी के अनुसार, वह उनके पीछे-पीछे उनके माँ-बाप के घर भी पहुंच जाते थे। वह अपनी भावनाओं को दिखाने में शर्माते नहीं थे। आज के आधुनिक पुरूष को भी यही लक्ष्य रखना चाहिये।”