
अपने बच्चे को बुली होने से कैसे बचाएं?
फिर अगला कदम क्या हो
इंटरनेट के बहुत से फायदे हैं। जैसे, अगर आप चाहें तो सुबह के 3 बजे उठकर भी केचप के बारे में कई जानकारियां ले सकते हैं। या आप अपनी ‘इंस्टास्टोरीज़’ पर अपने ऑनलाइन फ्रेंड्स के साथ, चलती हुई कार में से खुद खींची चांद की एक धुंधली तस्वीर शेयर कर सकते हैं। लेकिन अच्छी चीजों के साथ-साथ ‘सोशल मीडिया’ के कुछ डरावने पहलू भी हैं। जैसे कि ‘वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन’ द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट बताती है, कि सोशल मीडिया पर अत्यधिक खोजबीन और साइबर बुलींग के कारण, बच्चों और किशोरों में अत्यधिक मानसिक संकट पैदा हो गया है, जो उनमें डिप्रेशन और अपने चेहरे या शरीर की बनावट को लेकर असंतोष का प्रमुख कारण है।
साल के शुरुआत में, यूनेस्को (UNESCO) ने चौंकाने वाली एक रिपोर्ट जारी की जो यह दावा करती है, कि हर महीने, कम से कम हर तीन बच्चो में से एक बच्चा सताया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, शारीरिक और यौन-यातना सबसे आम हैं, जिसमें से अधिकतर लड़के शारीरिक-यातना का, और लड़कियां यौन-यातना का शिकार बनती हैं।
मेन्टल हेल्थ पर बुलींग के प्रभाव के बारे में बढ़ती जागरूकता पर, बेंगलुरु की मनोवैज्ञानिक और कला चिकित्सक हंसा मोहन का कहना है, “माता-पिता और स्कूल, बुलींग के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए हैं और इसे नियंत्रित करने के लिए कई तरीके लागू कर रहे हैं। लेकिन तमाम सुरक्षा उपायों के बावजूद, बच्चे इसकी चपेट में आते रहते हैं।”
‘मेरा बच्चा ‘बुलींग’ का शिकार हो ही नहीं सकता, अगर ऐसा होता तो मुझे ज्ञात हो जाता’

जरूरी नहीं कि आपका बच्चा हमेशा आपसे अपने आप खुल कर बात करे, इसलिए यह पता लगाना और समझना जरूरी है कि यह बुलींग शारीरिक है, शाब्दिक है, सामाजिक है, अथवा सोशल मीडिया द्वारा।
शारीरिक बुलींग का तात्पर्य आपके बच्चे के शरीर अथवा उसकी चीजों को नुक़सान पहुँचाना है। शाब्दिक बुलींग में बच्चे को अलग-अलग नामों से बुलाया जाना, उसे उसकी आर्थिक पृष्ठभूमि, उसका पहनावा, या वह कैसा दिखता है और उसकी जाति, इत्यादि के आधार पर नीचा दिखाना, यह सब शामिल है। यह सब प्रारंभ में ‘बुली’ द्वारा मज़े लेने के लिए शुरू की जाती है, लेकिन शीघ्र ही यह बढ़कर उस सीमा तक पहुंच सकती है जहां वह आपके बच्चे के आत्म-विश्वास पर असर डाल सकती है। सामाजिक रूप से बुलींग करने में इस तरह की अफवाहें उड़ाना शामिल होता है, जो किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकतीं हैं, उसे सामाजिक अवमानना अथवा अपने लोगों के समुदाय से निष्कासित अनुभव करवा सकती हैं, जिसके कारण व्यक्ति एकदम अकेला अनुभव करता है। फिर है, साइबर बुलींग जो सर्वाधिक प्रचलित है।
comparitech.com में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय बच्चे ‘साइबर बुलींग’ का अत्यधिक शिकार होते हैं। आपके बच्चे के सोशल मीडिया प्रोफाइल के माध्यम से, अनजान लोगों द्वारा, उसे तंग और ट्रोल करने की काफी संभावना रहती है। जैसे ही बच्चे अपने ऑनलाइन फ्रेंड से मान्यता चाहते हैं, उनकी बुलींग की आशंका और अधिक बढ़ जाती है।
हंसा कहती हैं, “जिन बच्चों को इन सब चीजों के बारे में, छोटी उम्र से ही ठीक से तैयार नहीं किया गया हो, वे यौवन में प्रवेश करते समय, इस वास्तविक जगत के साथ एक स्वस्थ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते। उनमें मानसिक अस्थिरता, डिप्रेशन, अनिश्चितता और उत्तेजना का भाव दिखाई देता है, जिसके फलस्वरूप उनमें स्वयं को नुकसान पहुंचाने की संभावना भी बहुत अधिक बढ़ जाती है।”
कैसे ज्ञात हो कि मेरे बच्चे को सताया जा रहा है?

बुलिंग के प्रकार और तरीके, तथा आपके बच्चे के व्यक्तित्व के आधार पर बुलिंग के संकेत भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। विस्तृत रूप में ध्यान देने के लिए बहुत से चिन्ह हैं।
1. अस्पष्ट नील अथवा चोट के निशान: “आप इस बात पर ध्यान दें की आपका बच्चा किसी तरह के चोट या नील के निशान तो नहीं छुपा रहा, या उनके लिए ऐसे कारण बता रहा है जो अविश्वसनीय लगते हों।”
2. वस्तुओं को नुकसान: “उनके कपड़े, किताबें या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, अचानक से गायब हो जाते हों अथवा टूट-फूट जाते हों।”
3. झूठी बीमारी: “आपका बच्चा अवास्तविक पेट दर्द की शिकायत कर रहा हो, अथवा स्कूल जाने से बचने के लिए बनावटी बीमारी का बहाना बना रहा हो।”
4. प्रदर्शन में गिरावट: “बुलींग के परिणामस्वरूप आपके बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य इस हद तक गिर सकता है कि उसके शैक्षिक प्रदर्शन में गिरावट, स्कूल के काम को न करने की इच्छा, यहाँ तक की उसे स्कूल जाने में भी हिचकिचाहट होने लगती है।”
5. सामाजिक मेलजोल का अभाव: “उसमें क्रियाकलापों में भाग लेने की, या सामाजिक मेलजोल वाले आयोजनों में शामिल होने की अनिच्छा दिखाई देती है। ख़ास दोस्तों के साथ मनमुटाव या दोस्ती का टूटना भी एक प्रचलित संकेत है।”
6. स्वयं को नुक़सान पहुंचाने का आचरण: “कुछ गंभीर मामलों में, बच्चे खुद को नुक़सान पहुंचाते हुए भी पाए गए हैं। कभी-कभी बच्चे- घर से भाग जाना, स्कूल से गायब हो जाना अथवा आत्महत्या के बारे में बात करना, इस तरह का आचरण भी करते हैं।”
7. खान-पान की आदतों में बदलाव: “आपके बच्चे में पहले से कुछ अलग खान-पान की आदतें दिखाई देती हैं, जैसे या तो जरूरत से ज्यादा खाना या बिल्कुल ही न खाना।”
मेरा बच्चा मुझसे इस बारे में बात क्यों नहीं करता?

अधिकतर मामलों में, बच्चे गुमसुम हो जाते हैं अथवा सत्यता छुपाते हैं, क्योंकि वे समझते हैं कि इससे वे और अधिक मुश्किल में पड़ जाएंगे। हंसा समझाती हैं, “माता-पिता द्वारा सही न समझा जाना, बुली द्वारा बदले में और अधिक सताया जाना, सामाजिक अलगाव और साथियों द्वारा अस्वीकार कर दिया जाना, यह सारे भय बच्चे को आपसे खुल पाने में कठिनाई अनुभव करने का कारण हो सकते हैं।”
हंसा बच्चे से करीबी बढ़ाने के लिए, उनके लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने और उनकी समस्याओं को समझने की सलाह देती हैं। जो भी वे बताएं, उन पर अत्यधिक प्रतिक्रिया देने या नाराज होने से बचना चाहिए। “उन्हें आपकी मदद लेने का भरोसा दिलाएं और साथ ही उन्हें किसी भी बात को बढ़ा-चढ़ाकर बताने के बजाए, स्पष्ट रूप से बताने का फ़र्क भी समझाएं,” हंसा कहती हैं।
“अगर आपके लड़कपन में, आपके साथ भी कोई इसी तरह की घटना हुई हो तो आप इस बारे में उनसे खुलकर बात करें, तो यह बेहद सहायक हो सकता है। यह न केवल आपको उनसे जुड़ने में, बल्कि उन तक पहुंच बनाने में भी मदद करता है। उन्हें अहसास कराता है कि अपनी परेशानियों से जूझने के लिए वे अकेले नहीं हैं।”