
सनस्क्रीन के 'हर पहलू पर सोच-विचार कर' तैयार की गई, भारतीय त्वचा के लिए एक गाइड
SPF 100, शायद, थोड़ा ज़्यादा हो जाएगा
भारतीय बच्चों का ज़्यादातर समय अपनी त्वचा को ‘डी-टैन’ करने के लिए दही, हल्दी, चन्दन और बेसन का लेप रगड़ने में ही निकल जाता है, बजाय यह सीखने में कि भारतीय त्वचा के लिए सनस्क्रीन कितनी लाभदायक हैं। 90 के दशक में, सनब्लॉक केवल तब लगाया जाता था जब गर्मी की छुट्टियों में हमें स्विमिंग के लिए जाना होता था। मुझे आज भी याद है, मेरी सांवली त्वचा पर चपोड़ी हुई उस चिपचिपी सफ़ेद क्रीम के कारण मैं बिलकुल ‘लिटिल कैस्पर’ भूत की तरह दिखने लगती थी।
जब भारतीय त्वचा के लिए सनस्क्रीन लेने की बात आती है, तो झिझक का सबसे बड़ा कारण होता है – इसका भयानक ‘वाइट कास्ट’। लेकिन दुनियाभर की मुल्तानी मिट्टी भी, आपकी त्वचा को इन भयंकर अल्ट्रावायलेट किरणों की वजह से होने वाली जलन और सूजन जैसे नुकसान से नहीं बचा सकती। ये यूवी किरणें, त्वचा के नीचे पाए जाने वाली कोलेजन मैट्रिक्स की परत को नष्ट कर देती हैं, जिसके कारण फ़ोटो-एजिंग, बदरंग त्वचा तथा झुर्रियां होने लगती हैं। ऐसे में, इनसे बचने के लिए आपके पास एक सर्वोत्तम हथियार है – जो भले ही बुर्के से थोड़ा कम है – वह है सनस्क्रीन।
SPF अपनाने वालों के समूह में शामिल होने के लिए, यह जानकारी बहुत ज़रूरी है।
भारतीय त्वचा के लिए सही सनस्क्रीन का चयन कैसे करें?
आखिर यह ‘वाइट कास्ट’ है क्या?
यह सफ़ेदी, त्वचा की सुरक्षा करने वाले सबसे महत्वपूर्ण तत्वों, जिंक ऑक्साइड और टाइटेनियम डाइऑक्साइड का परिणाम है। केमिकल सनस्क्रीन के मुकाबले, जिनमें एंडोक्राइन सिस्टम को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थ होते हैं, मिनरल या फिज़िकल सनब्लॉक आपकी त्वचा और वातावरण दोनों के लिए ही बेहतर हैं। लेकिन आपको एक ऐसा सही फार्मूला ढूंढने की जरूरत है जो बहुत ज़्यादा गाढ़ा या भारी न हो, और जिसे लगाने पर जलन न हो।
भारतीय त्वचा के लिए टिंटेड सनस्क्रीन का इस्तेमाल बहुत उपयोगी साबित हो सकता है, जैसे – Eau Thermale Avène High Protection Complexion SPF 50+ Correcting Shield, La Roche-Posay Anthelios 50 Daily Primer या Kiehl’s Actively Correcting & Beautifying BB Cream Broad Spectrum SPF 50। ये महंगी ज़रूर हैं, लेकिन यही आपको अपने सहयोगियों की घूरती हुई चिंतित नज़रों से बचाएंगी।

क्या इसे बार-बार लगाना, नुकसानदेह है?
इस्या एस्थेटिक्स की डर्मेटोलॉजिस्ट डॉक्टर किरन सेठी सलाह देती हैं कि अपने चेहरे और गर्दन के बचाव के लिए हमें एक-दो टेबलस्पून सनस्क्रीन का प्रयोग करना चाहिए। उनका मानना है, “सनस्क्रीन की परत जितनी मजबूत होगी, धूप से बचाव उतना ही बेहतर होगा।”
जापानी और कोरियन स्किन केअर कंपनियों ने अच्छे सनस्क्रीन प्रोडक्ट्स बनाने के क्षेत्र में महारत हासिल कर ली है। Biore, Hada Labo, Etude House, Missha, Dear Klairs and Cosrx जैसी कंपनियों के पास ऐसे कई फार्मूले हैं जो आसानी से त्वचा के साथ ब्लेंड हो जाते हैं और उसे ज़रूरी सुरक्षा प्रदान करते हैं।
एक दिन में सनस्क्रीन कितनी बार लगाई जानी चाहिए? इस प्रश्न पर डॉक्टर सेठी कहती हैं, “चाहे कुछ भी हो, इसे हर 4-6 घंटे में दोबारा लगा लेना चाहिए। आप कहीं भी हों, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। यदि आप स्विमिंग या एक्सरसाइज कर रहे हों, तो उसके बाद इसे फिर से लगा लें।”
क्या SPF 100 सबसे अच्छी है?
ऐसा बिल्कुल नहीं है। वैसे तो मार्केट में SPF 15 से 100 तक की रेंज के कई सनस्क्रीन प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं, लेकिन डॉक्टर सेठी का मानना है कि SPF 30 से 50 के बीच की रेंज के प्रोडक्ट आमतौर पर आपकी त्वचा के लिए काफ़ी होते हैं।
कोई भी सनस्क्रीन पूरी तरह से, आपके शरीर के सेल्स तक पहुंचने वाले नुकसानदायक रेडिएशन को रोक पाने में समर्थ नहीं है। EWG और Skin Cancer Foundation के अनुसार, ज़्यादा SPF वाले प्रोडक्ट्स बस मामूली रूप से ही, आपको थोड़ी अधिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। SPF 30 करीब 97%, SPF 50 करीब 98%, और SPF 100 करीब 99% तक यू वी रेडिएशन को रोकते हैं।

मेरे मेकअप में SPF है, क्या यह पर्याप्त है?
मेकअप में SPF का होना अच्छा है, लेकिन वह त्वचा की सुरक्षा के लिए पर्याप्त नहीं है।
जब कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स में SPF को भी शामिल करने की शुरुआत की गई, तो ऐसा लगा कि यह एक ‘विन-विन’ डील है। लेकिन दूसरे 2-इन-1 प्रोडक्ट्स की तरह, यह कॉम्बिनेशन भी उतना काम नहीं आया जितना हम चाहते थे। SPF फाउंडेशन और प्राइमर एक अच्छी सनस्क्रीन की जगह नहीं ले सकते। सनस्क्रीन के लेबल पर जितनी मात्रा में उसे इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है, वह हमें एक सामान्य रूटीन के मेकअप से प्राप्त नहीं हो सकती।
यह ज़्यादा सुरक्षित होगा, यदि पहले आप सनस्क्रीन लगाएं और फिर उसके कुछ मिनट ‘सेट’ होने के बाद ही मेकअप लगाएं।
त्वचा को विटामिन डी कैसे मिलेगा?
विटामिन डी हमारी हड्डियों और इम्यून-सिस्टम के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। लोग इस डर से ‘बहुत ज़्यादा’ सनस्क्रीन लगाने से घबराते हैं कि कहीं इसकी वजह से विटामिन डी की कमी न हो जाए। लेकिन क्लीनिकल स्टडीज भी अभी तक यह सिद्ध नहीं कर पाई हैं कि सनस्क्रीन के रोज़ाना इस्तेमाल से शरीर में विटामिन डी की कमी हो सकती है। इसका स्पष्टीकरण यही है कि धूप के रेडिएशन को 100% प्रतिशत रोक पाना किसी भी तरह संभव नहीं है, उसका कुछ-न-कुछ भाग आपकी त्वचा तक अवश्य पहुंचता है। केवल 10-15 मिनट की सीधी धूप की किरणें आपकी त्वचा में विटामिन डी के उत्पादन की शुरुआत करने के लिए काफ़ी हैं।
अपने भोजन में मशरुम और टूना, सैलमन व मैकरेल जैसी फैटी फ़िश शामिल करने से भी विटामिन डी मिलता है। तो सिर्फ विटामिन डी के स्तर में मामूली कमी होना, कोई बहुत बड़ा कारण नहीं कि हम सनस्क्रीन का उपयोग ना करें, बल्कि सनस्क्रीन तो कैंसर और सूरज की किरणों से होने वाली अन्य बीमारियों से हमारा बचाव ही करती है।

क्या मैं इसे स्वयं बना सकती हूं?
वैसे तो इंटरनेट पर आपको कई DIY रेसिपीज़ मिल जाएंगी, पर होममेड सनस्क्रीन एक बहुत अच्छा आईडिया नहीं है। इन कम्पनियों का अपने SPF प्रॉडक्ट्स को तैयार करने में लाखों रुपए लगाने के पीछे कुछ कारण हैं – घर पर तैयार की गई सनस्क्रीन ब्रॉड स्पेक्ट्रम (UVA और UVB सेफ) नहीं होती, और न ही यह पता लगाया जा सकता है कि वह कितनी सुरक्षित होगी। इन होममेड रेसिपीज़ में कुछ तेल भी हो सकते हैं, जो गर्मी और धूप के संपर्क में आने पर आपकी त्वचा को फायदा पहुंचाने के बजाय, उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं।
भले ही ‘एडिबल सनस्क्रीन’ जैसे Heliocare और Oscreen हो, या कैरेट सीड ऑयल या कोकोनट ऑयल जैसे इंग्रीडिएंट हों – कोई भी टॉपिकल सनस्क्रीन के गुणों का मुकाबला नहीं कर सकता। हाँ, ये सब एक साथ में ज़रूर प्रयोग किए जा सकते हैं, पर अपने आप में अकेले कभी भी काफी नहीं होते।
डॉ सेठी कहती हैं, “ये घरेलू प्रोडक्ट्स तो टेस्टेड भी नहीं होते, तो आपको क्या पता कि ये ठीक से काम करेंगे या नहीं?”
स्टाइलिस्ट: दिव्या गुरसाहनी; हेयर: क्रिसन्न फ़िगरेडो; मेकअप: रिद्धिमा शर्मा; मॉडल: असू लोंगकुमेर / अ लिटिल फ्लाई
ड्रेस: हेमंत एंड नंदिता