
स्किनकेयर प्रोडक्ट्स में मौजूद पैराबेन्स क्या वाकई इतने बुरे हैं?
क्या इन्हें स्किनकेयर का सबसे बड़ा ख़तरा बताना सही है
जैसे ही ‘क्लीन ग्रीन ब्यूटी’ अभियान ने दुनियाभर की ब्यूटी इंडस्ट्री को लपेटे में लिया, लोग ‘केमिकल’ इन्ग्रीडिएंट्स से किनारा करने लगे। ‘प्राकृतिक चीज़ें ही बेहतरीन हैं’ ये भावना हमारे दिमाग़ों में घर कर गई। दूसरी ओर, डर्मेटोलॉजिस्ट्स को, पुनः लोगों को त्वचा के लिए जांचे-परखे सुरक्षित प्रोडक्ट्स की ओर लौटा लाने में ख़ासी मशक़्क़त करनी पड़ी। साथ ही, स्किनकेयर में, पैराबेन्स सबसे बड़ा ख़तरा बन गए।
प्राकृतिक प्रोडक्ट्स के प्रचार के कारण कॉस्मेटिक्स की दुनिया में ‘पैराबेन-मुक्त’ प्रोडक्ट्स की जैसे बाढ़ आ गई। इससे क्या झलकता है? प्राकृतिक अच्छा है, पैराबेन बुरा। चाहे आपको पैराबेन के बारे में पूरी जानकारी थी या नहीं थी, पर इसकी नकारात्मक छवि आपके दिमाग़ में बस गई।
क्या केवल नकारात्मक प्रचार-प्रसार के चलते ही पूरी दुनिया पैराबेन्स से दूर हो गई, या यह आशंकाएं विज्ञान पर आधारित हैं? आखिर, यह पैराबेन्स हैं क्या? आइवी-लीग से शिक्षित फ़ार्मासिस्ट और डॉ शेठ्स स्किनकेयर (Dr Sheth’s skincare) के सी.ई.ओ. डॉ अनीश शेठ समझाते हैं, कि पैराबेन्स कुछ यौगिकों का समूह हैं, जो बैक्टीरिया को पनपने से रोकते हैं – कुछ अच्छे, कुछ बुरे। इन्हें सामान्यत: कॉस्मेटिक्स, फ़ूड और फ़ार्मासूटिकल प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल किया जाता है। समान्यत: आपको लेबल्स पर पैराबेन्स के ये नाम दिखतें हैं – इथाइलपैराबेन, प्रोपाइलपैराबेन, ब्यूटाइलपैराबेन और हेप्टाइलपैराबेन।
प्रेज़रवेटिव महत्वपूर्ण होते हैं। ये शरीर पर इस्तेमाल की जाने वाली स्किन क्रीम की बैक्टीरिया, फफूंद और फ़ंगस से सुरक्षा करते हैं। ये आपको सुरक्षित रखते हैं और प्रोडक्ट की शेल्फ़ लाइफ़ बढ़ाते हैं।
यदि पैराबेन्स का नहीं तो किसी और प्रेज़रवेटिव का इस्तेमाल किया जाएगा, जिसके बारे में आपको पता भी नहीं होगा। कुछ नया और अनजाना, जो संभवत: ज़्यादा खतरनाक हो, त्वचा में ज़्यादा जलन पैदा करे।
तो, पैराबेन्स आख़िर लोगों की नजरों में इतने बुरे कैसे बन गए? वर्ष 2004 में, ब्रिटेन में 20 महिलाओं को लेकर एक स्टडी की गई। “20 में से 19 महिलाओं के ब्रेस्ट ट्यूमर्स की जांच में पांच तरह के पैराबेन्स के संकेत मिले।” और मीडिया में हो-हल्ला शुरू हो गया, हालाँकि इस स्टडी में पैराबेन्स और कैंसर होने की वजहों के बीच कोई निश्चित संबंध स्थापित नहीं हो पाया था। एक और स्टडी वर्ष 2005 में हुई, जिसमें कहा गया, “जैविक रूप से यह असंभव है कि पैराबेन्स से… ब्रेस्ट कैंसर का ख़तरा हो सकता है।” दूसरी ओर 2017 में, यू सी बार्क्ले द्वारा की गई एक स्टडी के अनुसार, पैराबेन्स आपकी सोच से भी कहीं ज़्यादा कार्सिनोजेनिक हो सकतें हैं।
सार ये है, हालाँकि अब भी पैराबेन्स और स्किनकेयर को लेकर कई अध्ययन किए जा रहे हैं, इस बात के अभी तक कोई पुख़्ता सबूत नहीं मिले हैं कि पैराबेन्स का लंबे समय तक इस्तेमाल हमारी सेहत को कोई नुक़सान पहुंचाता है। ख़ासतौर पर तब, जबकि उसका इस्तेमाल स्किनकेयर प्रोडक्ट्स में बहुत ही कम मात्रा में होता है। तो यदि आप हर दिन एक लोशन से भरा टब नहीं खा रहें, तो आपको किसी भी चीज की चिंता करने की जरूरत नहीं – कम से कम स्किनकेयर के मामले में तो नहीं।
ज़्यादातर डर्मेटोलॉजिस्ट्स इस बात से सहमत हैं, कि पैराबेन्स को कॉस्मेटिक्स और स्किनकेयर के लिए सुरक्षित माना गया है। डॉ शेठ समझाते हैं कि इन्ग्रीडिएंट्स किस मात्रा में हैं, उससे फर्क पड़ता है, “यह कहना सही नहीं है कि सभी पैराबेन्स ख़राब हैं। उन्हें कम मात्रा में इस्तेमाल करना सुरक्षित है। हमारी सरकार इनके इस्तेमाल की अनुमति देती है, और न सिर्फ हमारी सरकार, बल्कि कई संस्थाएं जैसे अमेरिका का एफ़.डी.ए. भी इसके इस्तेमाल की अनुमति देता है। वे जांचे-परखे प्रेज़रवेटिव के तौर पर इसके इस्तेमाल को प्रेरित करते हैं।” डॉ शेठ ख़ुद भी इसके पक्ष में हैं, हालांकि, वह डॉ शेठ्स लाइन ऑफ़ प्रोडक्ट्स में इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं। “ग्राहकों को पैराबेन्स के उपयोग के बारे में समझाने से ज्यादा आसान है कि उसके मौजूदा विकल्पों का इस्तेमाल कर लिया जाए।”
यदि, आप अब भी सही चुनाव के असमंजस में हैं, आपकी त्वचा बहुत संवेदनशील है या आपको पैराबेन्स से ऐलर्जी है तो बाज़ार में डॉ शेठ्स के प्रोडक्ट्स के साथ और भी कई वैकल्पिक प्रोडक्ट्स मौजूद हैं जिन्हें आप प्रयोग में लेकर देख सकतें हैं।