
40-प्लस और बेफिक्र जिंदगी: ये बिंदास भारतीय महिलाएं अपने परिवारों के बिना छुट्टियां मनाना पसंद करती हैं
“एक औरत हर समय कुछ न कुछ करती ही रहती है। सबका ध्यान रखना और हर चीज़ की देखभाल करना, कभी-कभी मुझे एक ब्रेक की सख्त आवश्यकता महसूस होती है।”
24 साल की उम्र में शादी हुई, और अगले चार साल में कल्पना टंडन के दो बच्चे हो गए। आज वह 57 साल की हैं, और उन्होंने अपना आधे से ज़्यादा जीवन एक होम मेकर के रूप में बिता दिया। उनके अनुसार, “मुझे सिर्फ यही करना आता है।” टंडन का हर दिन ठीक सुबह 5:45 पर शुरू होता है और यह उतना ही अफरातफरी से भरा होता है जितना तब होता जब यह एक मल्टी नेशनल कंपनी चला रही होती। हर दिन एक नया चैलेंज सामने आकर खड़ा हो जाता है। वह कहती हैं, ‘काफी समय तक, मैं यही सोचती रही कि अगर मैं कभी अकेले या अपने दोस्तों के साथ छुट्टियां मनाने चली गई तो मेरा परिवार खुद की देखभाल कैसे कर पाएगा। वे तो केवल मैगी और अंडों के भरोसे अपने दिन गुजारेंगे, क्योंकि मेरे पति और बेटों को तो कुछ और पकाना आता ही नहीं है।”
आखिरकार, उनके 53वें जन्मदिन पर उनकी यह धारणा बदल ही गई। कल्पना की दोस्तों ने, जिन्हें वे प्यार से “गर्ल स्क्वॉड” बुलाती हैं, उनका जन्मदिन एक ब्रंच के साथ मनाया। केक काटने के बाद, उन्हें एक ऐसा सरप्राइज बर्थडे गिफ्ट मिला जिसकी वे कभी कल्पना भी नहीं कर सकती थी – नासिक सुला वाइनयार्ड्स की एक प्री-प्लान्ड ट्रिप और वो भी केवल उनकी महिला दोस्तों के साथ। आमतौर पर, वे सब दोस्त मिलजुलकर एक दूसरे को बर्थडे गिफ्ट के रूप में होम डेकॉर आइटम दिया करते थे, तो यह वुमन ट्रैवेलर्स ट्रिप उनकी अपेक्षा से बिलकुल परे थी, लेकिन यह सरप्राइज गिफ्ट उनके चेहरे पर मुस्कान ले आया। वह कहती हैं, “मैं खुश तो थी पर साथ ही मुझे बहुत चिंता भी हो रही थी, और इसे स्वीकार करने में मुझे कुछ दिन लगे। मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं कैसे अपने पति से पूछूं कि क्या मैं अपनी गर्लफ्रेंड्स के साथ इस हॉलिडे ट्रिप पर जा सकती हूं। जाने का मन तो बहुत था, पर अगर मैं चार दिन के लिए चली गई तो मेरी फैमिली मेरे बिना कैसे मैनेज कर पाएगी? मैं बहुत स्वार्थी महसूस कर रही थी।”
दो दिन सोच-विचार करने के बाद, आखिरकार उन्होंने बड़ी हिम्मत जुटाकर अपने पति से जाकर बात की, लेकिन ऐसा कोई हड़कंप नहीं आया जिसका हव्वा उन्होंने अपने दिमाग में बना रखा था। उनके पति को इस ट्रिप के बारे में पहले से ही पता था और उन्होंने कल्पना को काफी बढ़ावा दिया। वह कहती हैं, “मेरी दोस्तों ने उन्हें पहले से ही फोन करके हमारी सरप्राइज ट्रिप के बारे में बताया और उनसे ही पूछा कि कौन सी तारीखें मेरे लिए सबसे सुविधाजनक होंगी। मैं हैरान हो गई कि इतने दिनों तक उनके पेट में ये बात टिकी कैसे रही।”
न उन्हें और ना ही उनकी दोस्तों को यह एहसास था, कि यह एक नई परंपरा की शुरुआत हो रही थी। वाइन की चुस्कियां लेते और ग्रेप स्टॉम्पिंग करते हुए बिताए उन चार दिनों से लेकर अब तक, ये वुमन ट्रैवेलर्स लगभग पूरे देश का भ्रमण कर चुकी हैं। श्रीनगर में डल झील पर हाउसबोट में रिलैक्स करने से लेकर ऑरोविले में मेडिटेशन करने तक, टंडन और उनकी दोस्त हर उस एडवेंचर में भाग ले रहीं हैं जिन्हें वे अपनी जवानी के दिनों में करने से चूक गयी थी।

मैं आपसे एक बात पूछती हूं। जब मैं कहती हूं “ऑल-गर्ल वेकेशन” तो आपके दिमाग में सबसे पहली छवि क्या आती है? किसी समुद्र तट पर रिलैक्स करता, गॉसिप में मगन या संगीत पर थिरकता, सनस्क्रीन में तर 20-22 साल की लड़कियों का एक ग्रुप? हम हमेशा “गर्ल गैंग” को उन लड़कियों के साथ जोड़ते हैं जो अपनी किशोरावस्था या 20 के दशक में हैं। इस तथ्य को पूरी तरह से खारिज करते हुए कि 50 और 60 के दशक में भी कई महिलाएं हैं जो अपने गहरे दोस्तों के साथ जीवन का आनंद लेती हैं।
जैसे वहीदा रहमान, आशा पारेख और हेलेन, जिन्होंने एक साथ तुर्की की यात्रा की और क्रूज पर स्कैंडिनेविया गईं। द आइकॉन विद ट्विंकल खन्ना के अपने एपिसोड में, रहमान ने हमें याद दिलाया कि एक करीबी दोस्तों का ग्रुप कितना महत्वपूर्ण होता है जो हमेशा आपका साथ दें और जिनके साथ समय बिताते हुए आप खुद को पैंपर कर सकें।
मेघा सिंह (57) ने वुमन ट्रैवेलर्स गैंग में शामिल होने का फैसला तब किया जब उन्हें लगा कि उनकी बेटी खुद की देखभाल करने में सक्षम हो गयी थी। “जब वह छोटी थी, तो मेरा फोकस उसकी पढ़ाई, अपने टीचिंग कैरियर और अपने पति की इच्छाओं पर ही केंद्रित रहता था, इसलिए मैंने कभी सोचा ही नहीं कि मेरे पास दोस्तों के साथ वेकेशन पर जाने का कोई ऑप्शन भी है। जब हम बड़े हो रहे थे, मैंने कभी अपनी मां या आंटियों को इस तरह का कुछ करते हुए नहीं देखा था।”
फिर एक दिन, उनके दोस्तों ने एक गोवा ट्रिप प्लान की क्योंकि वे सभी एक ब्रेक चाहती थी। और उसके बाद तो यह जल्द ही एक नियमित रूटीन बन गया। “ये छुट्टियां हमारे लिए एक पलायन हैं। ज्यादातर लोग इसे हल्के में लेते हैं लेकिन एक औरत हर समय कुछ न कुछ करती ही रहती है। अपने परिवार से बेहद प्यार करने के बावजूद, कभी-कभी मुझे सबका ध्यान रखने और हर चीज़ की देखभाल करने से एक ब्रेक लेने की सख्त आवश्यकता महसूस होती है। कुछ दिनों के लिए, हम खुद की देखभाल भी तो कर सकते हैं। तो इसमें दोषी महसूस नहीं करना चाहिए, है ना?
औरतें एक्सपर्ट बाजीगर होती हैं। हममें एकसाथ कई कामों को हैंडल करने की क्षमता है, और ऊपर से यह अपराधबोध नामक राक्षस हमेशा हमारे सर पर सवार रहता है। हम लगातार इससे भी जूझती रहती हैं। एकता कपूर के सीरियल की नायिका की तरह, यदि परिवार की सुख-समृद्धि की बात हो तो हम खुद का बलिदान तक करने को तैयार रहती हैं। लेकिन ‘क्यूंकी सास भी कभी बहू थी’ की तुलसी के अलावा, किसी भी औरत के लिए अपनी देखभाल किए बिना, दूसरों की देखभाल करना मानवीय रूप से संभव नहीं है।

नीतू भंडारी (49) को तो कभी इस बात का एहसास ही नहीं हुआ था, जब तक की उनकी दोनों बेटियों ने – जो अपने शुरूआती 20 साल के दशक में हैं – उनसे पूछा कि उन्होंने इतने सालों में कभी खुद को प्राथमिकता क्यों नहीं दी। अब वे एक सिंगल मॉम होते हुए भी अपने लिए समय निकालती हैं और छुट्टियों का आनंद उठाती हैं।
2019 में हुई एक अमेरिकन स्टडी के अनुसार, सोलो वुमन ट्रैवेलर्स में 71% महिलाएं करीब 55 वर्षीय या उससे अधिक उम्र की थीं क्योंकि अपनी उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचकर ही वे अपने बच्चों, पार्टनर, कैरियर या अन्य जिम्मेदारियों से मुक्त हो पाती हैं, जो कहीं न कहीं पहले उन्हें ट्रैवेलिंग या एडवेंचर में भाग लेने से रोक के रखती थी।
भारत में भी यह संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। एसओटीसी द्वारा 2020 के एक सर्वे से, यह निष्कर्ष निकला कि चाहे ग्रुप में हों या सोलो हॉलिडे पर, अधिकांश वुमन ट्रैवेलर्स अपनी वैलनेस, शॉपिंग और एडवेंचर को प्राथमिकता दे रही थीं। निष्कर्षों ने “स्पा विज़िट, गाइडेड लोकल शॉपिंग टूर और वोकेशनल वर्कशॉप्स” की मांग में वृद्धि का जिक्र किया। भंडारी और टंडन के अनुसार, ये ‘आल-गर्ल एडवेंचर’ में उछाल, महिलाओं में उभर रही स्वतंत्रता और आत्मविश्वास का नतीजा है।
जैसे-जैसे मांग बढ़ रही है, वैसे-वैसे मैच्योर वुमन ट्रैवेलर्स के लिए ट्रैवेलिंग को एक अनूठा अनुभव बनाने वाली कंपनियों की संख्या भी बढ़ रही है। सुमित्रा सेनापति (58) ने 2005 में ‘वीमेन ऑन वंडरलस्ट’ की स्थापना की, ताकि हमारी बहनों को “एक उबाऊ और व्यस्त जीवन से कुछ समय के लिए मुक्ति पाने में” मदद मिल सके। ‘लाइफ बियॉन्ड नंबर्स’ के साथ एक इंटरव्यू में, वे जेंडर-स्पेसिफिक ट्रेवल ग्रुप की जरूरत की ओर इशारा करती हैं। “महिलाओं को गाइडेंस की बहुत आवश्यकता पड़ती है और जब वे हमसे जुड़ती हैं तो हम यात्रा संबंधी सभी प्रक्रियाओं को पूरा करने में उनकी मदद करते हैं। कई महिलाएं तो कभी हवाईअड्डे पर गई ही नहीं हैं या इमीग्रेशन पॉलिसी से अवगत नहीं होती हैं। मैं उनसे काफी बात करती हूं, इसलिए वे जानती हैं कि हमारे यहां कोई भी उनका फोन नहीं काटेगा और ना ही उनके सवालों से परेशान होगा।”
सेनापति का मानना है कि उनकी वुमन ट्रैवेलर्स को इन अनुभवों से हौंसला मिलता हैं, और “ये उन्हें उनके परिवार के सदस्यों और सहकर्मियों के अलावा भी एक सोशल सर्कल का हिस्सा बनने का मौका देते हैं।”
लवलीना ज़टाकिया (60) इस बात का एक आदर्श उदहारण हैं, जो यह स्वीकार करती है कि अपने दोस्तों के साथ ट्रैवेलिंग और एडवेंचर ने जीवन के प्रति उनका नजरिया ही बदल दिया है। “इसने मुझे और अधिक निडर, और बिंदास बना दिया है। मुझे हमेशा ऐसा लगता था कि मैं अपने पति के बिना कुछ नहीं कर सकती। लेकिन अब मुझे यह सोचने की ज़रूरत नहीं है कि वह क्या खाएंगें या वह कहां जाना चाहते हैं। मैं बस अपनी दोस्तों से कह देती हूं, ‘मैं ये सब चीजें करना चाहती हूं’। यह वास्तव में एक वरदान है।” पिछले साल, उन्होंने और उनके गर्ल गैंग ने देश भर में छह यात्राएं कीं।

इस पैंडेमिक ने लोगों के ट्रैवल प्लान्स पर पानी फेर दिया था, लेकिन जैसे-जैसे जीवन वापस कोविड-पूर्व सामान्य स्थिति की ओर अग्रसर है, इन वुमन ट्रैवेलर्स को दुनिया पार करने से कोई नहीं रोक सकता और वो भी उनके परिवारों के साथ के बगैर। यहां तक कि कई महिलाएं इस बात से सहमत हैं कि अब महिला सहयात्रियों के साथ उनकी ट्रिप्स में काफी वृद्धि होने लगी है, वे ज्यादा से ज्यादा अपने साथी महिलाओं के साथ ट्रैवल करना पसंद करती हैं। भंडारी कहती हैं, “इस पैंडेमिक के दौरान, हम पूरी तरह से अपने घर में कैद हो गए थे। इसलिए दोस्तों के साथ वेकेशन पर जाना एक अच्छा ब्रेक था और बेहद जरूरी भी था।”
जैसे-जैसे जीवन व्यस्त होने लगता है, हम अक्सर भूल जाते हैं कि हमारे पास एक ऑफ-स्विच भी है। इसे इस्तेमाल करने और अपने दोस्तों के साथ निकल जाने में कोई शर्म की बात नहीं है। अपने परिवार के बिना, घर से बाहर निकलकर जिंदगी का लुत्फ़ उठाने के लिए दोषी महसूस ना करें। आखिरकार, अपने गर्ल गैंग के साथ ट्रैवल करना भी किसी थेरपी से कम नहीं है और काफी लाभकारी साबित हो सकता है। हां, वास्तविक थेरेपी की तो बात ही कुछ और है, वह तो एक अलग ही कहानी है।