
बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए अब एक-जोरदार थप्पड़ की नहीं, स्मार्ट पेरेंटिंग की आवश्यकता है
अच्छी बातें सिखाने के लिए सही समय चुनें और छोटी-मोटी बातों को नज़रअंदाज़ करें
टीवी सीरीज़ ‘आर्या’ में एक सीन है जिसमें सुष्मिता सेन अपनी बेटी को उन्हें गाली देने के लिए एक थप्पड़ मारती हैं। मैं तो अपने माता-पिता की मौजूदगी में ऐसे अपशब्दों का इस्तेमाल करने का दुस्साहस भी नहीं कर सकती थी, उन्हें बोलना तो बहुत दूर की बात थी। हम तो थप्पड़ के ख्याल से भी थर-थर कांपते थे। यहां तो थप्पड़ खाने के बाद, ना केवल उसकी बेटी आवेश में और अधिक ताव खाने लगती है, बल्कि मां भी मारने के बाद ग्लानि महसूस करती है। जाहिर है, हमारे बचपन से लेकर अब तक, बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले तरीकों में कुछ प्रबल बदलाव हुए हैं।
पेरेंट्स, टीचर्स, एड्यूकेशनिस्ट और साइकोलोजिस्ट सभी इस बात से सहमत हैं कि एक-जोरदार थप्पड़ वाला पुराना तरीका बच्चों को कुछ नहीं सिखाता है, बल्कि केवल भावनात्मक रूप से आघात पहुंचाता है। यही वास्तविकता है।
बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए, नए तरीके विकसित हो रहे हैं और पेरेंट्स भी अधिक समझदार और प्रैक्टिकल होते जा रहे हैं – अब बाटा चप्पल के बजाय, उचित शब्दों के माध्यम से बच्चों को सही आचरण सिखाने की कोशिश जारी है।
साइकेट्रिस्ट डॉ सईदा रुक्षेदा कहती हैं, “एक सवाल जो मैं हर पेरेंट से पूछती हूं कि आप अपने बच्चे को कैसे सीख देते हैं? मैं ‘सज़ा’ शब्द का उपयोग ही नहीं करती। आप सज़ा इसलिए नहीं देते क्योंकि आप उन पर नाराज़ हैं, बल्कि इसलिए देते है क्योंकि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा सही व्यवहार करना सीखे।”
“आप उन्हें यह कैसे सिखाते हैं कि उन्हें गर्म चूल्हे को नहीं छूना हैं? जब वे आग के पास अपना हाथ ले जाते हैं, तो क्या आप उन पर चिल्लाते हैं, उनकी कलाई पर वार करते हैं? यह सोचने के बजाय कि ‘उन्हें क्या सज़ा दूं?”, खुद से पूछिए, ‘उन्हें कैसे सिखाऊं कि वे दोबारा ऐसा ना करें?’
बस अपने नज़रिए को बदलें, सज़ा और सीख में फर्क करना सीखें, आप खुद-ब-खुद अपने बच्चो को अनुशासन सिखाने के लिए बेहतर तरीके विकसित कर सकेंगे।”
थेरेपिस्ट अम्बिका मल्लाह का मानना है कि सबसे पहले तो हमें बुरे या अनुचित व्यवहार के नतीजों के बारे में अपनी धारणाओं को बदलना चाहिए। “एक पेरेंट बच्चे का सबसे पहला टीचर होता है। चीखने, चिल्लाने और मारने से किसी को कुछ नहीं सिखाया जा सकता, क्योंकि बच्चा यह समझ ही नहीं पाता कि उसकी गलती क्या है या आप उससे क्या चाहते हैं।”
अपने बढ़ती उम्र के बच्चों की ज़रुरतों और व्यक्तित्व के अनुकूल, आपको अपने सिखाने के तरीकों को भी विकसित करना होगा। यहां कुछ सामान्य तकनीकें दी गई हैं जिन्हें ध्यान में रखा जाना चाहिए:
अपने बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए, एक्सपर्ट द्वारा सुझाए कुछ हेल्दी तरीके
आप टीचर हैं, बुली नहीं हैं
बच्चों को ज़रुरत से ज़्यादा डरा-धमका कर रखने का तरीका, भले ही कुछ समय के लिए काम कर सकता है, लेकिन सोचें कि यह आगे जाकर आपके बच्चे के आत्म-सम्मान और आपके आपसी रिश्ते के लिए कितना हानिकारक हो सकता है।
यदि आपका बच्चा हाथ में कैंची लिए इधर-उधर भाग रहा है, तो केवल डांट-डपटकर, कैंची छीन लेने और बात को नज़रअंदाज़ कर देने से काम नहीं चलता। उन्हें समझाएं कि यह क्यों खतरनाक है, आप इसे उनसे क्यों ले रहे हैं और उनकी छोटी सी गलती के कितने भयानक परिणाम हो सकते हैं।

मल्लाह कहती हैं, “आपको ज़्यादा डिटेल में जाने की आवश्यकता नहीं है, केवल सरल शब्दों में उन्हें यह समझाना है कि आपने उनसे कैंची क्यों ले ली और वे किस तरह इससे खुद को या किसी और को चोट पहुंचा सकते हैं। उन्हें बताएं कि उन्हें सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी आपकी है ताकि वे समझ सकें कि आप उनसे उनकी खुशी छीनने के बजाय उन्हें सुरक्षित रखने की कोशिश कर रहे हैं।”
जब वे आपके अनुरोध की सही वजह जानेंगे, तो पूरी संभावना है कि वे आपकी बात मानेंगे और भविष्य में भी इस बात को ध्यान में रखेंगे।
वास्तविक नतीजों की उम्मीद रखें और अपनी बात पर दृढ़ रहें
आपने भरोसा करते हुए अपने बेटे को 500 रूपए मासिक खर्च के लिए क्रेडिट कार्ड सौंपा और पहले ही महीने में, उसने 1200 रूपए खर्च कर दिए। हो सकता है, वह उत्साह में आकर अपनी सीमा पार कर गया हो, ऐसे में उसे एक दूसरा मौका देने में कोई हर्ज़ नहीं है।
उसे समझाएं कि आपको विश्वास है कि वह ना केवल क्रेडिट कार्ड की जिम्मेदारी उठाने में सक्षम है, बल्कि एक दूसरा मौका पाने के भी योग्य हैं।
लेकिन यदि ऐसा दोबारा होता है, तो उसे उसका परिणाम मिलना चाहिए। उससे वह विशेषाधिकार ले लेना चाहिए। बिना खर्चे के एक या दो महीने गुजारने के बाद दोबारा कार्ड मिलने पर उसे उसकी ज़िम्मेदारी का अहसास होगा, और उसे अपनी लापरवाही का फल भुगतने के बाद, भविष्य के लिए एक सीख मिलेगी ।
आपका दोबारा उस में भरोसा दिखाना उसके आत्म-सम्मान को बढ़ावा देगा और वह खुद को दिए गए दूसरे मौके का हकदार साबित करने का पूरा प्रयत्न करेगा।
सूरत की एड्यूकेशनिस्ट ममता कोठारी कहती हैं, “कुछ अच्छा करने पर बच्चों को प्रोत्साहित करना बहुत अच्छी बात है। लेकिन साथ ही दुर्व्यवहार पर भी लगाम लगाने की जरूरत है, वरना अंजाने में आप इसे बढ़ावा दे सकते हैं।
यदि आप केवल उन्हें संभावित परिणामों की धमकी देते रहते हैं और वास्तव में उस पर अमल नहीं करते, तो आप धीरे-धीरे अपनी साख खोने लगते हैं। आप चाहेंगे कि एक पैरेंट के रूप में आपको गंभीरता से लिया जाए।
“ओह, मम्मी सिर्फ कहती रहती हैं, ऐसा कुछ नहीं होगा। वह वास्तव में कुछ नहीं करेंगी।”
उनके टेम्पर टैंट्रम को नज़रअंदाज़ करें
कल्पना करें कि अपनी बेटी के नाईट कर्फ्यू तोड़ने और दोस्तों के साथ देर रात तक बाहर रहने पर आप दोनों में तनावपूर्ण बहस हो जाती है। उसकी मौज-मस्ती पर हमेशा रोक लगाने के लिए और एक ड्रिल सार्जेंट की तरह पेश आने के लिए वह आप पर चिल्लाएगी। और आप उसके अपमानजनक और असभ्य बर्ताव के लिए उस पर नाराज़ होंगे। बहस के अंत में, सभी हताश महसूस करेंगे और कुछ भी हल नहीं निकलेगा। उसे क्या सीख मिली?
जब आप दोनों ही तनावग्रस्त और भावुक हों, तो ऐसे समय में उनके साथ बात करने की कोशिश व्यर्थ है। कोठारी कहती हैं, “आप फ्लाइट या फाइट मोड में आ जाते हैं। बच्चे का मस्तिष्क उस समय अपनी ईगो और सेल्फ-प्रिज़र्वेशन के अलावा और कुछ समझने की स्थिति में नहीं होता है।”

एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि बच्चों को जितना मर्ज़ी चीखने-चिल्लाने दें। यदि आपका बच्चा छोटा है, तो टेम्पर टैंट्रम को पूरी तरह से खत्म होने दें। एक बार जब आप उस कूल-ऑफ पीरियड में पहुंच जाते हैं, तो आप प्रभावी रूप से एक-दूसरे के साथ बातचीत कर सकते हैं।
हिंसा ही हिंसक व्यवहार को जन्म देती है
आपके बच्चे आपके व्यवहार का अनुसरण करते हैं। उनके अनुभव में, आप उन्हें तब मारते हैं जब वे कुछ गलत करते हैं या आप उनसे कुछ जबरदस्ती कराना चाहते हैं। वे भी यही सीखते हैं।
मल्लाह कहती हैं, “वे भी इसी पैटर्न को अपनाते हैं। कुछ समय में, आपको स्कूल से शिकायतें आने लगेंगी कि आपका बच्चा दूसरे बच्चे को मार रहा है क्योंकि वह उसे अपनी चॉकलेट नहीं दे रहा है। उन्हें लगने लगता है कि हिंसा का सहारा लेकर वे किसी से भी अपनी इच्छानुसार काम करा सकते हैं।”
यदि आपको लग रहा है कि बच्चे का अनुचित व्यवहार तुरंत नियंत्रण में लाना ज़रूरी है, तो कोठारी उसे शांत करने के लिए, थोड़ी देर उसे किसी शांत कोने में सबसे अलग कर देने का सुझाव देती हैं। इसे एक टाइम-आउट की तरह सोचें, लेकिन इसमें कम्युनिकेशन शामिल होना चाहिए।
“आप कह सकती हैं, ‘मैं चाहती हूं कि तुम यहां बैठो और सोचो कि मम्मी तुमसे क्यों नाराज़ हैं। तुम क्या अलग तरीका अपना सकते थे?” फिर पांच या दस मिनट के बाद, उनसे इस बारे में बात करें। अगर वे अभी भी नहीं समझे कि उन्हें क्यों सज़ा मिल रही है, तो आपको उन्हें समझाने के लिए कोई अन्य तरीका अपनाना चाहिए।”
लोग अलग-अलग तरीकों से सीखते हैं। कुछ दृश्यों के माध्यम से, तो अन्य बातचीत के दौरान और कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें सिखाने के लिए एक्शन का सहारा लेना पड़ता है। उनकी सीखने की शैली का पता लगाएं और फिर उसे इस्तेमाल करें। उनकी समझ के अनुकूल अपनी बात को उन तक पहुंचाना ज़्यादा आसान हो जाता है।
आप उनके पहले और सबसे महत्वपूर्ण रोल मॉडल हैं
अपने बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए आप चाहे कोई भी तकनीक अपनाएं, कितने ही अच्छे से उसे लागू करें, यदि आप खुद अपने उपदेश पर अमल नहीं कर रहे हैं, तो निश्चित ही आप अपने प्रयास में असफल होंगे। रुक्षेदा कहती हैं, “आपके बच्चे हर समय आपको देख रहे होते हैं, आपके अनुमान से भी कहीं ज़्यादा, खासकर इस लॉकडाउन के दौरान।”
जिस तरह के आत्म-अनुशासन की उम्मीद आप अपने बच्चों से करते हैं, सबसे पहले खुद उसे फॉलो करें। जैसे, यदि आप अपनी बेटी को गीला टॉवल हमेशा लॉड्री बास्केट में डालने की सीख देते हैं, तो आपको भी अपना टॉवल कमरे में इधर-उधर नहीं छोड़ना चाहिए।

बच्चे अकसर अपने माता-पिता के आपसी व्यवहार और उनके आचरण को देखकर और सुनकर सबसे ज्यादा सीखते हैं, खासकर जब वे छोटे होते हैं। यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनें एवं आत्म-अनुशासन से परिपूर्ण हों, तो हमें भी समान नियमों और दिशानिर्देशों का पालन करने की आवश्यकता है।
एक लिस्ट तैयार कर लें जिसमें समझौते की कोई गुंजाइश न हो
आखिरकार, आप माता-पिता हैं और वे बच्चे हैं। आपसे ढिलाई, समझदारी, सहानुभूति और सम्मान की उम्मीद रखी जाती है, लेकिन हर मुद्दे पर फाइनल फैसला करने का अधिकार भी आपका होता है।
आपको ऐसी चीजों की एक लिस्ट बनाने का पूरा अधिकार है, जिसमें समझौते की कोई गुंजाइश न हो। कोठारी कहती हैं, “यह उन बातों की लिस्ट है जिनसे बच्चा छोटी उम्र से ही वाकिफ होना चाहिए। जैसे – घर में अपशब्दों का उपयोग न करना, खाने के बाद अपनी प्लेट खुद उठाना, घर के नौकरों का सम्मान करना, हमेशा सच बोलना। वह सब जो आपके लिए एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है।”
यदि इन नियमों को तोड़ा जाए या इनपर सवाल उठाया जाए, तो आप अपने बच्चे को अनुशासित करने के लिए और अधिक कठोर कदम उठा सकते हैं। तीन दिन तक कोई फोन या टीवी नहीं देखने दें, या कोई अन्य विशेषाधिकार उनसे वापस ले लें। उनके अच्छे या बुरे व्यवहार के ये छोटे-बड़े परिणाम उन्हें जीवन में सही नैतिक मूल्य सिखाते हैं और आपके बच्चों को ऐसे वयस्कों में विकसित होने में मदद करते हैं जिन पर आगे जाकर आपको गर्व होगा।