
बिना नखरे, जो सबकुछ खा ले - ऐसे बच्चे की कैसे करें परवरिश
करेला भी…
“आप फूड राइटर हैं, खाना बनाने की शौकीन हैं, तो आपके बच्चे बहुत अच्छे से खाते होंगे। ऐसी बातें मुझे अक्सर सुनने को मिलती हैं। मुझे समझ नहीं आता कि “बहुत अच्छे से खाते होंगे” का क्या मतलब है। शायद वे सोचते होंगे कि मेरे बच्चे बिना नखरे किए, सभी चीज़ें आसानी से खा लेते हैं और उन्हें सलाद, लॉबस्टर फ्रिटाटा, 12 घंटे में तैयार किया गया टोनकोटू रेमन से भरपूर मल्टी-कोर्स भोजन मिलता होगा जो होममेड फ्रूट जेली, आर्टेसेनल चीज़, और ऑर्गेनिक डार्क चॉकलेट की एक प्लेट के साथ समाप्त होता होगा। शायद वे मानते हैं कि मेरे बच्चे बहुत कुछ खाते हैं क्योंकि मैं एक पाककला स्कूल से ग्रेजुएट हूं, मेरे पास घर में हमेशा कई तरह की मजेदार सामग्री होती हैं और मेरा काफी समय भोजन के आसपास व्यतीत होता है। या, वह यह मानते हैं कि मेरे बच्चे बड़े सीधे हैं जो हर समय खुशी-खुशी सब कुछ खा लेते होंगे। यकीन मानिये, इसमें से कुछ भी सच नहीं है।
मेरे सीमित अनुभव ने मुझे यह सिखाया है: खाने-पीने में नखरे दिखाने वाले, किसी भी उम्र के लोग अच्छे से खायें, इसके लिए उन्हें खुद से खिलाना बंद कर दें। हां, उन्हें कई वैरायटी के भोजन से रूबरू ज़रूर कराएं, अगर उन्हें मदद की जरूरत है तो उन्हें पहचानने में मदद करें, और फिर प्रत्यक्ष और स्पष्ट रूप से खुद खाने का आनंद लेने पर अपना ध्यान केंद्रित करें। ‘बाकि लोगो से पीछे छूट जाने का भय’ इस कथन में विश्वास रखें। यह सभी को होता है, बच्चों को भी। जब सबकुछ विफल हो जाए, तो यह बात याद रखें – जब भूख लगती है तो सब स्वादिष्ट लगने लगता है।
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जब आप व्यस्क-हो-रहे-बच्चों को, क्या और कैसे खाना है, यह सिखाने में प्रयासरत होते हैं तो इसमें कई बारीकियां शामिल होती है। जैसे कि: हम उन्हें क्या पेश करते हैं, कब पेश करते हैं और कैसे पेश करते हैं, और हम तब क्या करते हैं जब यह तेजी से फर्श पर आ जाता है।
‘मेरे बच्चे कभी भी खाने में नखरे नहीं करेंगे’
मैं अपने पहले बच्चे के साथ एक टिपिकल आदर्शवादी माँ बन गई थी, जो ढृढ़तापूर्वक अपने बच्चे को दुनिया का बेस्ट खाता-पीता बच्चा साबित करने पर तुली थी। इसके लिये मैंने अपने बेटे को शुरू के ढाई साल तक प्रोसेस्ड फूड, रिफाइंड अनाज, नमक और चीनी से दूर रखने का निर्णय लिया। ठीक है, डेढ़ साल, और फिर हम समय-समय पर थोड़ा सा फ्लेक्सिबल हो जाएंगे। और हाँ, वह ज्यादातर खुद खाना खाएगा, प्लांट-बेस्ड फ़ूड खाएगा, दिन में तीन बार पूरी मील्स और दो स्नैक्स, प्रत्येक दिन लगभग एक ही समय पर खाएगा। बेशक, जैसा सोचा था वैसा कुछ नहीं हुआ और सब योजनाएं धरी की धरी रह गईं।
शुरुआती छुट्टी के दौरान ही उसे प्यूरी का चस्का लग गया, फिर असली सब्जियां तो कई महीनों बाद तक मानों जैसे अजनबी हो गईं। घर पर, जब वह भोजन के दौरान अपनी कुर्सी से निकल भागता, तो हम उसे बोर न हो, इसलिए चारों ओर घुमाने लगे – बिस्तर, बालकनी, स्ट्रॉलर, कहीं भी – बस वह कैसे भी खाता रहे। मैं खाना खिलाने के लिए किताबें, संगीत और खिलौने लाई, तो खाने से उसका ध्यान पूरी तरह हट गया। मैंने मल्टी-कोर्स भोजन की पेशकश की, सब्जियां पहले, बाकि सब उसके बाद, तो नतीजा यह निकला कि अपनी घंटो की खाना बनाने में लगी मेहनत को फर्श से घिसने में भी कई घंटे लगाने पड़े।
जब मुझे बच्चे के साथ यह संघर्ष नहीं करना पड़ता था, उस समय मुझे दादा-दादी और परिवार से निपटना पड़ रहा था। पैक्ड चिक्की से लेकर असीमित दूध तक, सब कुछ उसे उपलब्ध था, क्योंकि “कोई बात नहीं, उसे चाहिये, तो उसे लेने दो।” भोजन और स्नैक्स जो मैं उसे देना नहीं चाहती थी, वही उसे परिवारजनों द्वारा खिलाया जा रहा था, कभी दुलार में तो कभी-कभी सिर्फ इसलिए की वह बस जल्दी से खा ले। वयस्कों की थोड़ी सी मदद की वजह से, बच्चे को यह समझने में जरा भी देर नहीं लगती की उसे खुद से खाने की कोई जरूरत ही नहीं है।
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यह ठीक उसी वक़्त की बात है, जब मैं अपने बच्चे को खिलाने-पिलाने की रोज़ की जद्दोजहद में पूरी तरह हताश महसूस करने लगी थी, कि मैं जुड़वां बच्चियों की माँ बन गई। परिवार में तीन बच्चों का होना, अब कुछ पहले जैसा नया नहीं रहा था और ना ही पहले पोता-पोती के जैसा उत्साह बचा था। हम चीजों को सरल करने के लिए मजबूर हो गए क्योंकि अब हम सभी बहुत अधिक व्यस्त हो गए थे।
अपनी बेटियों (जो अब 18 महीने की है) के साथ, मुझे आखिरकार यह समझ आ गया कि भलाई इसी में है कि मैं खाने को लेकर बहुत चिंता न करूं, फिर चाहे वह बच्चों को खिलाना हो या वह कितना कम या ज़्यादा खा रहे हैं। इसकी मुख्य वजह थी, कि अब मेरे पास इसके लिए बहुत समय नहीं था।
जब से हमने रणनीति बदली है, तब से मेरे तीनों बच्चे लगभग सभी कुछ खाते हैं जो मैं उन्हें देती हूं – हालांकि रोज़ नहीं पर ज़्यादातर। वह खुद खाते हैं, अक्सर किसी और द्वारा खिलाए जाने से इनकार करते हैं क्योंकि उन्हें अपनी पसंद अनुसार खाने की स्वतंत्रता में आनंद आता है। वह खुद सुनिश्चित करते हैं कि कब, क्या और कैसे खाना है और कभी-कभी तो उनके फ्लेवर कॉम्बिनेशन मेरी भी जिज्ञासा को उकसाते हैं। हाल ही में, उनकी नकल करते हुये, मैंने भी कच्ची गाजर को आलमंड बटर में डिप करके, चीज़ के साथ केला और इमली की चटनी में इडली डुबोकर खाने की कोशिश की। इसका मुझे कोई पछतावा नहीं है।
एक फूड राइटर होने के नाते, मैंने महसूस किया कि यह मेरे परिवार के लिए एक सिस्टम बनाने में मदद कर सकता है। यह हमारा सिस्टम है।
खाने में नखरे करने वालों को भोजन प्रेमियों में कैसे बदला जाए
- हम बच्चों के लिये कम मात्रा में कई तरह का भोजन तैयार करते हैं, जिसमें दो-तीन चीज़ें उनकी जानी-पहचानी होती हैं, और दो-तीन चीज़ों को वह भले ही अभी ना पहचाने पर जल्द ही पहचान जायेंगे। इसलिए आजकल, भोजन के दौरान, मेरे बच्चे भांपे हुए अंकुरित दाल, किसी हुई गाजर और नींबू के रस के साथ चुकंदर, मिर्च वाला ऑमलेट, सिकी हुई पनीर स्टिक्स, हरी पत्तेदार सब्जियों के आटे से बनी बाजरे की रोटी भी खा लेते हैं … यह सब उन्हें अब पसंद आने लगा है क्योंकि मैंने पिछले साल में उन्हें कई बार यह सब दिया। हर मील में, हम दो-तीन नई चीजें तैयार करेंगे, जो कुछ महीनों के बाद, हमारे रोजमर्रा के भोजन का हिस्सा बन जाएंगी।
- खाना खाने में नखरे करने वाले लोगों को भी कुछ हेल्दी चीज़ें पसंद होती है, लेकिन ये ट्रायल करके ही पता चलता है। यह रिजेक्टेड भोजन को पुन: पेश करने का एक तरीका खोजने में भी मदद करता है। शुरूआत में बच्चों द्वारा रिजेक्टेड अंकुरित दाल हमारे अदरक और धनिये से भरे पुडला में इस्तेमाल हो गए; सब्जियां सूप में; ऑमलेट के टुकड़े ऑमलेट की तरी में चले गए।
- जो बच्चे प्रोसेस्ड शुगर नहीं खाते हैं, संतरे की फांकें और अनार के रसीले दानें, उनके लिए कैंडी के समान हैं। जब बाकी सब फेल हो जाता है, तो हम भरपूर फल खाते हैं।
देखिए – फ़ूड फाइट
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Geplaatst door Tweak India op Dinsdag 1 oktober 2019