
सिंगल मदर्स की फ़ायनांशियल समस्याएं कम करने में हम आपकी मदद कर सकते हैं
अपने और अपने बच्चों के बेहतर जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित करें
जब हम ‘फैमिली’ शब्द के बारे में सोचते हैं तो हमारे मन में क्या तस्वीर उभरती है? एक औरत, आदमी और उनके साथ एक हंसता-खेलता प्यारा सा बच्चा… है ना? हम शायद ही कभी दो महिलाओं या फिर दो पुरुषों के अपने बच्चों के साथ एक हंसते-खेलते परिवार की कल्पना करते हैं। और शायद ही कभी हम इस बात को स्वीकारते हैं कि एक सिंगल-पैरेंट का घर उतना ही ख़ुशनुमा हो सकता है, जितना कि पति-पत्नी और बच्चों वाला घर। इसकी वजह यह है कि आमतौर पर हम यह मानते हैं कि कोई भी अपनी मर्ज़ी से सिंगल पैरेंट नहीं बनना चाहता – ऐसा या तो दुर्घटनावश होता है या फिर तलाक की वजह से – और सिंगल मदर्स की फ़ायनांशियल समस्याएं झेल पाना एक आम इंसान के लिए मुमकिन नहीं है। हां, यदि आप सुष्मिता सेन जैसे किसी और ही मिट्टी के बने हों तो यह जरूर संभव है, जिन्होंने अपने बच्चों को बतौर सिंगल पैरेंट ही गोद लिया। (यदि आपने अभी तक ट्विंकल खन्ना और सुष्मिता सेन का, इंटरनेट ब्रेकिंग, इंटरव्यू नहीं देखा है तो यहां देखें।)
भले ही हमारे लिए सिंगल पैरेंट वाले घरों का होना आम बात नहीं है, लेकिन वर्ष 2019-20 में आई यूनाइटेड नेशन्स की एक रिपोर्ट कहती है कि सिंगल मदर्स की संख्या में बड़ा इज़ाफ़ा हो रहा है,जो भारतीय घरों का लगभग 4.5% (130 लाख) है। करीब 320 लाख सिंगल मदर्स अपनी एक्सटेंडेड फैमिली के साथ रह रही हैं। ऐसे में अन्य समस्याओं के साथ-साथ, सिंगल मदर्स की फ़ायनांशियल समस्याएं, उनके लिए सबसे ज़्यादा दुखदायी साबित हो सकती हैं।
मेघा वोहरा, 37, कहती हैं कि उनके सोशल सर्कल में कई ऐसी औरतें हैं जिनकी सैलरी कम है और अपनी फ़ायनांशियल समस्याओं के कारण वे अपने पार्टनर्स से अलग होने में हिचकिचाती हैं। यूबीएस ग्लोबल वेल्थ मैनेजमेंट की एक स्टडी में भी यही सामने आया कि 58% महिलाएं फ़ायनांस से जुड़े फ़ैसले अपने पार्टनर्स पर छोड़ देती हैं। और जब वे अपने पार्टनर से अलग होती हैं तो खासकर सिंगल मदर्स की फ़ायनांशियल समस्याएं कई गुना बढ़ जाती हैं।
सिंगल मदर और लेखिका सुजाता पाराशर के अनुसार, “सिंगल मदर्स को ज्यादा तकलीफ होती है, क्योंकि ना सिर्फ़ उनके ऊपर ढेर सारी ज़िम्मेदारियां होती हैं, बल्कि उन्हें सामाजिक और आर्थिक सहयोग भी कम ही मिलता है।” सिंगल मदर्स की फ़ायनांशियल समस्याएं सुलझाने के लिए न तो कोई सरकारी पॉलिसीज़ हैं और ना ही कोई फंड्स। वे टैक्स देती हैं, अपने लोन और ईएमआई पर ब्याज़ देती हैं और साथ ही शादी टूटने के कारण सामाजिक बहिष्कार का बोझ भी उठाती हैं।
स्मार्ट फ़ायनांशियल प्लानिंग की मदद से सिंगल मदर्स अपने बोझ को हल्का कर सकती हैं, और अपने बच्चों को और ख़ुद को एक ऐसा लाइफ़स्टाइल दे सकती हैं , जिसकी आप हक़दार हैं।
ऐसी 9 आर्थिक चुनौतियां जिनका सामना सिंगल मदर्स करती हैं और उनसे निपटने के तरीक़े

‘मैंने कभी भी अपने फ़ायनांस को हैंडल नहीं किया है, मुझे नहीं पता कैसे शुरुआत करूं।’
तन्वी ओज़ा, जो एक सिंगल मदर हैं और फ़िलहाल एचआर में काम करती हैं, ने अपने पति से अलग होने से पहले ख़ुद कभी बैंक अकाउंट भी नहीं खोला था। ‘‘कितनी सारी चीज़ें थी, जो मुझे नहीं आती थीं। बैंक अकाउंट का काम कैसे करना है? मैं अपने बच्चे की फ़ीस कैसे दूंगी? मैंने पहले कभी काम नहीं किया, मैं अपना घर कैसे चलाऊंगी?’’
कोई भी आर्थिक योजना बनाने से पहले यह समझें कि पैसा कैसे हैंडल किया जाता है और आपको इसे कहां लगाना चाहिए। आप यूडेमी या क्लेवर गर्ल फ़ायनांस जैसी वेबसाइट्स पर मौजूद फ्री ऑनलाइन कोर्स कर सकती हैं। यूडेमी पर मौजूद यह पर्सनल फ़ायनांस कोर्स शुरुआत करने के लिए अच्छा है।
यदि आप ऑनलाइन कोर्स पसंद नहीं करती तो आप अपने शहर में नैशनल सेंटर फ़ॉर फ़ायनांशियल एजुकेशन का फ़ायनांशियल एजुकेशन प्रोग्राम फ़ॉर अडल्ट्स (एफ़ईपीए) अटेंड कर सकती हैं। आप महीने के अनुसार उनकी सारी क्लासेस की योजना के बारे में जान सकती हैं। यदि आपके शहर में एफ़ईपीए की क्लास नहीं होती है तो आप उनसे अपने शहर में क्लास आयोजित करने की गुज़ारिश भी कर सकती हैं।
‘चाइल्ड सपोर्ट के लिए कितना पैसा मिलना चाहिए, इसका सही अनुमान कैसे लगाया जाए?’
एक वर्किंग वूमेन होने के बावजूद भी, यदि आपकी और आपके एक्स-हस्बैंड की आय में काफी अंतर है तो आप ऐलमोनी की हकदार हैं।
एलएक्सएमई महिलाओं के लिए एक फ़ायनांशियल प्लैटफ़ॉर्म है। उसकी सीईओ और को-फाउंडर, जैस्मिन गुप्ता का कहना है, ‘‘ऐलमोनी का अंदाज़ा लगाते समय कुछ प्रैक्टिकल बातों का ध्यान रखें, जैसे बढ़ती महंगाई, जो आपकी आर्थिक स्थिति पर सीधा असर डालेगी।” हमारी सलाह है कि आप डीएसपी इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स की ऐलमोनी कैल्कुलेटर वेबसाइट का इस्तेमाल करें, ताकि आपकी सभी ज़रूरतें कवर हो जाएं।
तलाक़ के केस में आप बच्चे की देखभाल यानी चाइल्ड सपोर्ट के लिए ऐलमोनी से अलग ख़र्च पाने की हक़दार हैं। पीक अल्फ़ा इन्वेस्टमेंट की पोर्टफ़ोलिओ मैनेजर अपर्णा मंडानी के मुताबिक़, सिंगल मदर्स को हमेशा फ़ायनांशियल प्लानर्स की मदद लेनी चाहिए, ‘‘क्योंकि वह आपकी आय, मेडिकल से जुड़े ख़र्च, इन्श्योरेंस, चाइल्ड सपोर्ट, विरासत की संपत्ति जैसी बड़ी बातों से लेकर महीने के राशन और तोहफ़े देने के ख़र्च जैसी छोटी-छोटी चीज़ों का ध्यान रखते हुए, आपको ऐलमोनी की सही राशि बताने में मदद करेंगे।’’
साथ ही, वह सलाह देती हैं कि चाइल्ड सपोर्ट और ऐलमोनी को एकसाथ मांगिए। ‘‘जब ये चीज़ें किश्तों में दी जाती हैं तो आपके एक्स-हस्बैंड की नौकरी जाने या उनकी मृत्यु की वजह से हो सकता है कि यह राशि आपको मिलना बंद ही हो जाए।’’
‘क्या बतौर सिंगल मदर मेरे कोई आर्थिक अधिकार हैं?’
किरण*, एक 39 वर्षीय सिंगल मदर हैं, जो ऐड्वर्टाइज़िंग इंडस्ट्री में काम करती हैं। जब उनके बॉस को पता चला कि वे प्रेग्नेंट हैं तो उसने उन्हें नौकरी छोड़ने को कह दिया। ‘‘मैं पहले से ही वैवाहिक परेशानियों से घिरी थी और मुझे यह भी पता नहीं था कि कोई भी कंपनी क़ानूनी रूप से एक प्रेग्नेंट महिला को नौकरी से बाहर नहीं कर सकती।’’
मैटर्निटी बेनेफ़िट ऐक्ट ऑफ़ इंडिया के तहत, महिलाओं को अपनी मैटर्निटी लीव के दौरान पूरी तनख़्वाह मिलनी चाहिए। क़ानून के मुताबिक़ आप 26 हफ़्तों की मैटर्निटी लीव ले सकती हैं। लेकिन यह तभी लागू होता है, यदि महिला ने उस कंपनी में, अपनी डेलिवरी की तारीख से पहले के 12 महीनों में, कम से कम 80 दिन काम किया हो। इन 26 हफ़्तों में से, आठ हफ़्तों की छुट्टी आप डेलिवरी से पहले ले सकती हैं।
आपके काम के तरीक़े और आपके एम्प्लॉयर की सहमति के मुताबिक़ आप वर्क फ्रॉम होम का विकल्प भी चुन सकती हैं। यह नियम किसी कंपनी में काम कर रही या कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रही महिला दोनों के लिए ही मान्य है। एक नए अमेंडमेंट के तहत, एम्प्लॉयर्स के लिए यह अनिवार्य है कि वे महिलाओं को उनकी नियुक्ति के समय कंपनी के मैटर्निटी बेनेफ़िट्स के बारे में जानकारी दें।
ओजस्वी कपूर, 34, सिंगल मदर, जिन्हें उनकी मां ने अकेले ही पाला था, ने हमें बताया कि उनके पिता की मृत्यु के बाद, कई लेनदार सामने आ खड़े हुए। ऐसी स्थिति में, ये लेनदार आपके पति के लाइफ़ इन्श्योरेंस के पैसों में से अपने पैसों की मांग कर सकते हैं। आप यह चेक करें कि आपके पति ने मैरिड विमेन्स प्रापर्टी ऐक्ट (एमडब्ल्यूपीए) के तहत इन्श्योरेंस लिया है कि नहीं। यह ऐक्ट सुनिश्चित करता है कि पति की मृत्यु के बाद लाइफ़ इन्श्योरेंस का पैसा केवल उसकी पत्नी को ही मिलेगा। इस पर कोई लेनदार या कोई और दावा नहीं कर सकता। यदि लाइफ़ इन्श्योरेंस पॉलिसी को एमडब्ल्यूपीए के अंतर्गत नहीं लिया गया है तो लेनदार अपने कर्ज़ को इससे चुकाने की मांग कर सकते है।
‘यदि मुझे चाइल्ड सपोर्ट नहीं मिलता तो मैं अपने बच्चे की शिक्षा का खर्चा कैसे उठाऊं?’
बिज़नेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, भारतीय पेरेंट्स अपने बच्चों की एजुकेशन के लिए लगभग 12.22 लाख रुपए ख़र्च करते हैं, जो कि दुनियाभर के औसत 44,221 अमेरिकी डॉलर (33 लाख रुपए) से काफ़ी कम है। लेकिन 12.22 लाख रुपए की यह राशि भी एक भारतीय घर की औसत आय से कहीं ज़्यादा है। और तब तो और भी ज़्यादा है, जब बात ऐसे घरों की हो, जहां एक अकेला व्यक्ति ही कमाने वाला हो। ऐसे में यदि आपके पास चाइल्ड सपोर्ट नहीं है तो यह समस्या जल्दी ही बहुत बड़ा रूप ले सकती है।
जैस्मिन की सलाह है कि ऐसे चाइल्ड एजुकेशन पोर्टफ़ोलिओ में इन्वेस्ट कीजिए, जो आपकी मौजूदा और भविष्य दोनों ही ज़रूरतों को पूरा करे। यदि आप इस बात को ले कर चिंतित हैं कि आपके पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं तो आप अपने बच्चे के नाम पर ग्रांट्स या स्कॉलर्शिप के लिए अप्लाई करें। ओजस्वी ने अपनी बेटी के लिए सुकन्या समृद्धि योजना में इन्वेस्ट किया था, जब उनकी बेटी केवल छह महीने की थी। इस योजना के अंतर्गत, एक सिंगल मदर अपनी 10 वर्ष से छोटी बेटी के लिए बैंक अकाउंट खोल सकती है। पैरेंट या लीगल गार्जियन होने के नाते, वह इसमें सालाना 1,50,000 रुपए का इन्वेस्टमेंट कर सकती है, जिस पर उसे 8.5% का फ़िक्स्ड ब्याज तब तक मिलता रहेगा, जब तक कि बच्ची 21 वर्ष की नहीं हो जाती। इस योजना के तहत मिलने वाली ब्याज और मैच्योरिटी दोनों ही राशियां टैक्स-फ्री होती हैं।
आप सीबीएसई उड़ान स्कीम का भी लाभ ले सकती हैं, जो ख़ासतौर पर हाई स्कूल में पढ़ने वाली उन लड़कियों के लिए है जो एसटीईएम (STEM) में रुचि रखती हैं। इसके अलावा अलग-अलग राज्यों में भी इसके लिए कई योजनाएं हैं, जिनके लिए आप अप्लाई कर सकती हैं, जैसे- महाराष्ट्र की माझी कन्या भाग्यश्री योजना, राजस्थान की मुख्यमंत्री राजश्री योजना और बिहार की मुख्यमंत्री कन्या सुरक्षा योजना।
‘चाइल्डकेयर बहुत महंगा है और मेरे पास इसके लिए फ़ंड नहीं है। मुझे क्या करना चाहिए?’
सिंगल मदर्स की फ़ायनांशियल समस्याएं तो कभी ख़त्म ही नहीं होती लेकिन उस लिस्ट में सबसे प्राथमिक समस्या है – चाइल्ड केयर।
इसका एक समाधान ये है कि आप वर्क फ्रॉम होम करें। जब आप मैटर्निटी लीव पर हैं तब आपके पास वर्क फ्रॉम होम का विकल्प होता है। मैटर्निटी बेनेफ़िट ऐक्ट में तो यह भी कहा गया है कि यदि किसी कंपनी में 50 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं तो उनके परिसर में बच्चों के लिए क्रेश भी होना चाहिए, ताकि काम के दौरान सिंगल मदर्स अपने बच्चे के क़रीब रह सकें।
जब काम पर जाने लगें तो आप अपने पेरेंट्स या परिवार के सदस्य को भी बच्चे की देखभाल के लिए कह सकती हैं। आप उन्हें उनकी इस सेवा के लिए कुछ भुगतान भी कर सकती हैं और यह उतना महंगा भी नहीं पड़ेगा, जितना कि बच्चे को किसी प्रोफ़ेशनल क्रेश में रखना पड़ सकता है।
आप दूसरी मांओं के साथ ऐसे ग्रुप्स भी बना सकती हैं, जहां आप बच्चों की देखभाल बारी-बारी से कर सकें।
‘यदि मेरी आय कम है तो मुझे लॉन्ग-टर्म फ़ायनांशियल प्लानिंग कैसे करनी चाहिए?’
जिस परिवार में एक ही व्यक्ति कमा रहा हो, वहां सीमित आय में इन्वेस्ट करना सबसे बड़ी समस्या है। जब सारा पैसा ज़रूरतों को पूरा करने में ही ख़र्च हो जाता है तो आड़े वक़्त के लिए कुछ बचा पाना बहुत मुश्क़िल होता है। ऐसे में, बेसिस की को-फ़ाउंडर दीपिका जयकिशन का कहना है कि सबसे पहले अपना उधार चुकाएं। बेसिस एक ऐसी संस्था है, जो महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता के लिए काम करती है। ‘‘यदि आप इन्वेस्ट करने में सक्षम नहीं हैं तो ज़ाहिर है कि आप ईएमआई चुकाने में भी सक्षम नहीं होंगी। यदि आप ऐसेट्स नहीं बना सकतीं तो कम से कम अपने ऊपर लाइबिलिटीज़ भी न बढ़ाएं।’’
अपर्णा भी इस बात से सहमत हैं, ‘‘ऐसी स्थिति में लोन लेना सिंगल मदर्स की फ़ायनांशियल समस्याएं बढ़ाने जैसा है।’’ साथ ही वे बजट बनाने की शुरुआत करने की सलाह देते हुए कहती हैं, ‘‘अपने बजट को कई श्रेणियों में बांटें। कौन-से ख़र्चे ज़रूरी हैं, और किन से बचा जा सकता है। इससे धीरे-धीरे इन्वेस्ट करने के तरीक़े बन जाएंगे।’’ जब बात इन्श्योरेंस की आती है तो वे हेल्थ इन्श्योरेंस को सबसे पहली प्राथमिकता देने की सलाह देती हैं।
कुछ कंपनियां आपको पूरा इन्श्योरेंस कवर करती हैं तो कुछ थोड़ा, अत: हेल्थ या लाइफ़ इन्श्योरेंस पॉलिसी लेने से पहले अपने एचआर से बात करें।
‘‘जब बात हेल्थ या लाइफ़ इन्श्योरेंस की हो तो ज़रूरी नहीं कि यह पॉलिसी एक करोड़ रुपए की हो, एक वाजिब सा कवर लेना पर्याप्त होगा।” दीपिका के अनुसार, “कहते हैं ना, नहीं मामा से काना मामा ज्यादा अच्छे हैं।’’

अपर्णा इस बात पर ज़ोर देती हैं कि यदि आपका बच्चा पूरी तरह आप पर ही निर्भर है तो आपको लाइफ़ इन्श्योरेंस ज़रूर लेना चाहिए। ‘‘आप भले ही अभी कुछ नहीं कमा रही हों, लेकिन जैसे ही आप कमाना शुरू करें, सबसे पहले एक लाइफ़ इन्श्योरेंस पॉलिसी में इन्वेस्ट करें।’’
सिंगल मदर्स सपोर्ट ग्रुप में बात करते हुए तन्वी ने पाया कि उनमें से कई महिलाएं लॉन्ग टर्म फ़ायनांशियल प्लानिंग को ले कर चिंतित थीं। ‘‘चूंकि मुझे ज़्यादा आर्थिक जानकारी नहीं थी, मैंने अपनी लॉन्ग टर्म ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए सालाना रेकरिंग डिपॉज़िट में पैसा डालना शुरू किया , फिर चाहे मेरे बच्चे की शिक्षा की बात हो या फिर हमारे छुट्टियां बिताने जाने की।’’
इसी तरह, ओजस्वी भी अपने पास 50,000 रुपए तक की राशि इकट्ठा होते ही उसे फ़िक्स्ड डिपॉज़िट में डाल देती थीं। जब सिंगल मदर्स की आर्थिक समस्याओं की बात हो तो अपर्णा इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि आड़े वक़्त के लिए फंड बनाना बहुत ज़रूरी है और उसे सही जगह ख़र्च करना भी। ‘‘एक बार आपने श्रेणियां बना लीं तो उस पैसे को उसी श्रेणी में ख़र्च कीजिए।’’
‘अपनी ज़रूरतों के लिए पैसे ख़र्च करने में मुझे ग्लानि होती है।’
आर्या, 36, एक सिंगल मदर होने के साथ एक एचआर प्रोफ़ेशनल भी हैं। उनके भीतर तब गिल्ट पनपने लगा, जब वे अपने बेटे के लिए डेकेयर तलाश रही थीं।
एलएक्सएमई के एक सर्वे के मुताबिक़, केवल 12% महिलाएं अपने रिटायरमेंट के लिए इन्वेस्ट करना चाहती हैं। वे अपने बच्चों की ख़ातिर अपनी आवश्यकताओं को नज़रअंदाज़ कर जाती हैं। जैस्मिन इसके सख्त खिलाफ हैं। ‘‘अपने बच्चे की शिक्षा के लिए अपने रिटायरमेंट की प्लानिंग को कुर्बान न करें।’’ ऐसी बहुत सी योजनाएं हैं, जैसे सुकन्या योजना, जिसमें ओजस्वी ने भी निवेश किया है। ये योजनाएं आपकी दोनों ज़रूरतों को पूरा करने का काम करेंगी।
दीपिका भी इस बात से सहमत हैं। ‘‘महिलाएं इसी तरह सोचती हैं।’’ उनकी सलाह है कि किसी फ़ायनांशियल ऐड्वाइज़र के साथ प्लानिंग करें, वे आपकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए समाधान देंगे। ‘‘फिर चाहे रिटायरमेंट की प्लानिंग हो या सोलो ट्रिप की, या फिर तेजी से बदलते हुए इस जमाने के साथ खुद को अपडेट करने के लिए नए स्किल सीखने हो, आप इससे क़दम ज़रूर मिलाना चाहेंगी।’’
अपने बारे में यूं सोचिए, जैसे आप एक ऐसेट हैं, जिस में आप इन्वेस्ट कर रही हैं। आप उन सिंगल मदर्स का ग्रुप भी जॉइन कर सकती हैं, जो आपके ही जैसी परिस्थितियों से गुज़र रही हैं। इससे आपको आगे बढ़ने की हिम्मत मिलेगी।
‘मेरे सारे पैसे तो ज़रूरी कामों में और आड़े वक़्त के लिए बचत करने में ख़त्म हो जाते हैं। मैं अपने बच्चों को ट्रीट कैसे दूं?’
किरण की आमदनी सीमित है तो उनका सारा पैसा या तो ज़रूरी चीज़ें ख़रीदने में चला जाता है या फिर बचत में। इस वजह से उनके पास अपने बेटे के मनोरंजन के लिए कुछ बच ही नहीं पाता। ‘‘वह 10 वर्ष का है, तो जब कभी हमें एंजॉय करने का मन होता है, हम या तो साथ में कुकिंग कर लेते हैं या फिर बारिश में बेहिचक डांस करने का लुत्फ़ उठाते हैं।’’
जब बात आपके बच्चे के साथ एंजॉय करने की हो तो बजट-फ्रेंडली या फ्री सुविधाओं का रुख़ करें। पैसों की कमी को अपने बच्चे के साथ समय बिताने के बीच न आने दें, क्योंकि इससे बच्चे यह सीखेंगे कि ख़ुश रहने के लिए पैसों का होना बहुत ज़रूरी है, जो सही नहीं है।
छोटे बच्चों के लिए, खिलौने और किताबें ख़रीदने की बजाए उन्हें किराए पर लिया जा सकता है। खिलौनेवाला जैसे कई प्लैटफ़ॉर्म्स अपने खिलौनों को देशभर में किराए पर देते हैं।
‘अपने बच्चे को अपनी सही आर्थिक स्थिति न बता पाने के कारण, हम अक्सर ज़्यादा ख़र्च कर देते हैं। इस समस्या को सुलाझाने का कोई तरीक़ा है?’
सिंगल मदर्स की फ़ायनांशियल समस्याएं का हर दिन सामना करतीं, आर्या ने अपने बेटे के साथ यह पारदर्शिता रखी। ‘‘उसे पता है कि हमें पैसे समझदारी से ख़र्च करने चाहिए और बचत करना कितना ज़रूरी है, क्योंकि मम्मी हमारे लिए बहुत मेहनत करती है।’’
जब बच्चे इन बातों को समझने लायक हो जाएं तो उन्हें बतौर सिंगल पैरेंट अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में बताना महत्वपूर्ण हैं। इससे उन्हें फ़ायनांस के बारे में बुनियादी जानकारी मिलेगी, और वे किसी भी तरह की फ़ायनांशियल समस्या से निपटने के लिए अच्छी तरह तैयार हो सकेंगे।
अपर्णा का सुझाव है कि महीने का बजट बनाते समय अपने बच्चे को उसमें शामिल करें, इससे आपका बच्चा छोटी उम्र से ही फाइनांसेस को हैंडल करना सीखेगा।
मेघा की 12 वर्षीय बेटी ने लॉकडाउन के दौरान अपना होम बिज़नेस शुरू किया। हालांकि मेघा ने ही उसे इसकी शुरुआत के लिए पैसे दिए थे, लेकिन उसे आगे बढ़ाने के लिए, उसने अपनी बेटी को खुद ही हाथ-पैर मारने के लिए प्रेरित किया। ‘‘मैंने अपने दोनों बच्चों को हमारी आर्थिक स्थिति के बारे में बता रखा है। मैंने अपनी बेटी को समझाया, ‘मम्मा हर बार तुम्हारे लिए सामान नहीं ख़रीद सकती, अपने बिज़नेस में हुए प्रॉफ़िट से तुम ही इसके लिए सामान ख़रीदो’।’’
सिंगल मदर्स की फ़ायनांशियल समस्याएं देखकर ऐसा महसूस होता है जैसे वे किसी प्रोफ़ेशनल सर्कस में जगलर हों। लेकिन अपने पैसों को चतुराई से इस्तेमाल करने से यदि जगलिंग के लिए एक बॉल कम हो जाए तो इससे अच्छी बात भला क्या हो सकती है?