
क्या आप किसी को आत्महत्या करने से बचा सकते हैं? मेन्टल हेल्थ सहयोगी बनने के लिए एक विस्तृत गाइड
हर वो सवाल जो आप पूछना चाहते हैं, लेकिन नहीं जानते कि कैसे पूछें
आत्महत्या से सुशांत सिंह राजपूत की दुखद मौत ने जैसे संदेशों के जलद्वार खोल दिए हैं, हर संदेश के पीछे एक ही भावना निहित है – इसे रोकने के लिए हम क्या कर सकते थे? क्या एक मेन्टल हेल्थ सहयोगी की मदद से उस इंसान को बचाया जा सकता था?
कितना ही तर्क-वितर्क कर लें, फिर भी इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ पाना नामुमकिन सा लगता है। हालांकि, ये जवाबदेही और अपराध बोध से भरे भाव, हर उस व्यक्ति की भावनाओं को प्रतिबिंबित करते हैं, जो अपने किसी प्रियजन को आत्महत्या के कारण खो देता है।
कभी-कभी, बहुत देर हो जाने पर भी आप इन सकेतों को देख ही नहीं पाते। या हो सकता है, आपको समझ नहीं आता कि इसे कैसे संभाला जाए और डरते हैं कि कहीं अनजाने में आप इस स्थिति को और बदतर ना बना दें।
एक बेहतर मेन्टल हेल्थ सहयोगी बनने और संभवतः आत्महत्या जैसे दुखद कदम की रोकथाम के लिए, आपके मन में उठने वाले ढेरों सवालों के जवाब पाने के लिए हमने साइकेट्रिस्ट डॉ सैयदा रुखसेदा और साइकोलोजिस्ट प्राची वैश का रुख किया।
किन संकेतों से यह पता लगाया जा सकता है कि कोई व्यक्ति मानसिक बीमारी से पीड़ित है या आत्महत्या करने की सोच सकता है?
मूड में अचानक आए बदलाव, मानसिक बीमारी का संकेत हो सकते हैं। खतरे का संकेत केवल तब नहीं होता, जब बहुत लम्बे समय तक कोई व्यक्ति उदास रहने लगे या दूसरों से कटा-कटा सा रहने लगे, बल्कि तब भी होता है जब वह अस्वाभाविक रूप से अत्यधिक हंसमुख दिखने लगे।
वैश बताती हैं, “उनके मूड में अचानक से हुए पॉज़िटिव बदलाव, इस बात का संकेत हो सकते हैं कि उन्होंने अपने दर्द को खत्म करने का तरीका खोज लिया है, और इसे भी उतनी ही गंभीरता से लिया जाना चाहिए जितना आप उनकी उदासी को लेते हैं।”

अन्य संकेतों की सूची में, सहसा ही बहुत बड़ी संख्या में लोगों से संपर्क करना या एकदम से चुप्पी साध लेना, भी शामिल हैं। सोशल मीडिया एक्टिविटी में अजीबोगरीब परिवर्तन भी कुछ बता सकते हैं।
रुखसेदा कहती हैं, “एक मेन्टल हेल्थ सहयोगी होने के नाते, भावनाओं को सही तरीके से पहचानने की अपनी क्षमता पर काम करना बहुत आवश्यक है क्योंकि बहुत बार, एक ही भावना को बार-बार और विभिन्न रूपों में व्यक्त किया जा सकता है।”
एक मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति कभी भी रोकर या अपनी मनःस्थिति का वर्णन करने के लिए “उदास” शब्द का उपयोग नहीं करेगा। उनके द्वारा कहे गए ऐसे वाक्य जैसे, “मुझे कुछ भी करने का मन नहीं करता है,” “मैं तब भी थका हुआ महसूस करता हूं, जब मुझे थका हुआ नहीं होना चाहिए,” और “मैं सब कुछ कर रहा हूं, लेकिन फिर भी एन्जॉय नहीं कर पा रहा हूं” उनकी मनोदशा दर्शाते हैं।
क्या बच्चों में मानसिक बीमारी के लक्षण वयस्कों के समान होते हैं?
रुखसेदा बताती हैं, “बच्चों में मानसिक बीमारी के संकेत काफी अलग होते हैं क्योंकि अक्सर उनका दिमाग, उनकी भावनाओं को ठीक से समझने और पहचानने के लिए, अभी तक इतना विकसित नहीं हुआ होता। इसलिए उनमें अलग लक्षण नज़र आने लगते हैं।”

बच्चे अपनी उदासी या दुख बोल कर जाहिर नहीं करेंगे, पर वे ऐसे दर्द या तकलीफों की शिकायत कर सकते हैं जिनकी कोई स्पष्ट वजह न हो।
बदमिज़ाजी, नखरे, चिड़चिड़ा व्यवहार, पढ़ाई से दूर भागना या खेल में कम रूचि लेना, ये सभी मानसिक बीमारी के लक्षण हो सकते हैं। अन्य संकेतों में टिक्स (चेहरे की मसल्स में खिंचाव), ट्विच (ऐंठन) या नाखून खाने जैसी आदतें भी शामिल हैं।
हालांकि इनमें से बहुत से संकेत, बच्चों के जीवन में आने वाले उपद्रवी चरण का हिस्सा मानकर नज़रअंदाज़ किये जा सकते हैं, लेकिन फिर भी करीब से ध्यान देना बहुत ज़रूरी है। रुखसेदा कहती हैं, “पांच में से एक व्यक्ति को मानसिक बीमारी है, और 50% का पता 14 साल की उम्र से ही लग जाता है।”
क्या कोई पॉज़िटिव और उत्साहित दिखने वाला व्यक्ति भी डिप्रेशन में हो सकता है?
वैश बताती हैं, “स्माइलिंग डिप्रेशन और हाई-फंक्शन डिप्रेशन, दोनों ही मानसिक बीमारी के रूप हैं जिसमें लोग अपनी तक़लीफ़ किसी के सामने जाहिर किए बिना ही, अपना रेग्युलर जॉब और दैनिक जीवन जीते रहते हैं।”

इसलिए एक मेन्टल हेल्थ सहयोगी के लिए यह पहचान पाना बहुत मुश्किल हो जाता है कि उनके प्रियजन को कब उनकी ज़रुरत है।
रुखसेदा कहती हैं, “लेकिन याद रखें कि लोग चौबीसों घंटे नार्मल होने का नाटक नहीं कर सकते। तो कभी न कभी, प्रियजन निश्चित रूप से यह बता पाएंगे कि कुछ गड़बड़ है, लेकिन ऐसे कई मामले भी सामने आए हैं जिनमें मानसिक बीमारी का पता नहीं लग पाया है।”
एक मेन्टल हेल्थ सहयोगी होने के नाते, आपको सतर्क रहना चाहिए लेकिन यदि समस्या आपसे जानबूझकर छिपाई जा रही हो तो उसका पता लगाने की अपेक्षा में खुद पर अनुचित दबाव ना डालें।
क्या मेन्टल हेल्थ इश्यूज़ पुरुषों और महिलाओं में अलग-अलग तरह से प्रकट होते हैं?
वैश कहती हैं, “जेंडर डिफ्रेंस के बजाय, इसे कोपिंग स्टाइल या पर्सनॅलिटी डिफ्रेंस के नज़रिए से देखा जाना चाहिए। दो अलग जेंडर के, परंतु समान व्यक्तित्व वाले लोगों में एक जैसा व्यवहार दिखाई दे सकता है।”
यह कहने के बावजूद भी, ऐसे कई ट्रेंड्स हैं जो सामने आए हैं।

वैश के अनुसार, आमतौर पर महिलाएं अपने मन की बातें बोल देती हैं, और अक्सर गुस्से में बड़े से बड़ा कदम उठाने में भी नहीं झिझकती। दूसरी तरह पुरुष, अंदर ही अंदर घुटकर डिप्रेशन का शिकार होने लगते हैं लेकिन वह सबके सामने नार्मल होने का दिखावा करने में महिलाओं से बेहतर होते हैं। वह कहती हैं, “महिलाएं भी अपना डिप्रेशन छिपाती हैं लेकिन वे इसे नियंत्रण में रखने के लिए खुद को व्यस्त रखती हैं।”
रुखसेदा के अनुसार, भारत में, महिलाओं में मूड डिसऑर्डर अधिक पाया जाता है। भावनाओं को जाहिर करने में माहिर, महिलाएं किसी भी तरह की मदद मांगने में पुरुषों से हमेशा आगे रहती हैं, लेकिन पहुंच के बाहर होने के कारण, वे ज़्यादातर किसी जनरल फिजिशियन से ही अपना इलाज कराने लगती हैं।
दूसरी ओर, भारतीय पुरुष आसानी से मेन्टल हेल्थ प्रोफेशनल्स तक पहुंच सकते है, लेकिन उनकी मदद के लिए हाथ फ़ैलाने की संभावना काफी कम होती है। रुखसेदा कहती हैं, “इसी तरह, लड़कियों की तुलना में लड़कों में एडीएचडी (ADHD) ज़्यादा पाया जाता है, हालांकि, इस बात को लेकर अभी भी बहस चल रही है कि कहीं वास्तव में लड़कियों को इसके लिए डायग्नोज़ किया भी जाता है या नहीं।”
मेन्टल हेल्थ के विषय को सामने लाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
एक मेन्टल हेल्थ सहयोगी का, किसी की सहायता के लिए कदम बढ़ाने में, आशंकित होना एक आम बात है। इसकी वजह सही शब्दों और जानकारी की कमी के होने से लेकर, यह डर भी होता है कि कहीं उनकी वजह से स्थिति और बिगड़ ना जाए।
रुखसेदा कहती हैं, “अधिकांश लोगों को लगता है कि किसी से यह पूछना कि वे ठीक हैं, उनके लिए संभवतः एक ट्रिगर का काम कर सकता है। ऐसा बिलकुल नहीं है। यह वैज्ञानिक तौर पर साबित हो चुका है कि खुलकर बातचीत करना अधिक प्रभावशाली है। इससे आत्महत्या जैसा कदम उठाने की संभावना काफी हद तक कम हो सकती हैं।”
वैश का मानना है, “यह एक आम मिथक है कि यदि आप किसी से आत्महत्या के बारे में बात करते हैं, तो आप उनके दिमाग में यह ख्याल डाल रहे हैं। ऐसा नहीं होता है। बल्कि, अगर आप पूछते हैं, तो आप ऐसे विचारों को बाहर निकालने के लिए एक रास्ता खोल रहे हैं। किसी व्यक्ति तक पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप आत्मविश्वास और कोमलता के साथ उससे स्पष्ट रूप से बात करें।”
यहां दिए हुए कुछ सीधे सवालों के साथ, आप इस विषय पर बातचीत की शुरुआत कर सकते हैं:
- आप अच्छे नहीं लग रहे, क्या आप ठीक हैं?
- क्या कोई ऐसी चीज़ है जो आपको परेशान कर रही हैं?
- क्या मैं आपकी किसी तरह मदद कर सकता हूं?
- आपने उस दिन मुझे बताया था कि आप अच्छा महसूस नहीं कर रहे थे, क्या आप अभी भी वैसा ही महसूस कर रहे हैं?
उस व्यक्ति द्वारा शेयर की गई जानकारी पर आपका रिएक्शन एक अन्य महत्वपूर्ण फैक्टर है। एक मेन्टल हेल्थ सहयोगी के रूप में, उसकी परिस्थिति को लेकर कोई भी अनुमान लगाने से या निर्णय लेने से खुद को रोकें। आपका निर्णय आपकी अस्वीकृति की और इशारा करता है, जो आपके प्रियजन को पीछे हटने के लिए मजबूर कर सकता है।
सदमे और निराशा जैसे इमोशनल रिएक्शन से दूर रहना चाहिए। प्यार और कोमलता के साथ अपनी प्रतिक्रिया दें जैसे “मैं समझ सकता हूं कि तुम कैसा महसूस कर रहे हो। क्या तुम इस बारे में बात करना चाहते हो?”
निश्चित रूप से, कम से कम उनकी भावनाओं का निरादर करते हुए यह न कहें “इसमें दुखी होने वाली क्या बात है?” या “आपके पास जो कुछ भी है उसके लिए आपको आभारी होना चाहिए”।
किसी की समस्याओं को सुनकर आपको कैसे रिएक्ट करना चाहिए और किस तरह आप एक सक्रिय श्रोता बन सकते हैं?

सबसे पहला स्टेप है कि किसी भी तरह का अनुमान लगाने या निर्णय देने से से खुद को रोकें। मानसिक बीमारी के पीछे छिपी बायोलॉजी को समझकर अपने आप को किसी भी तरह के पक्षपात से मुक्त करें।
रुखसेदा बताती हैं, “यह बहुत सरल है, माइंड के बेहतर फंक्शन के लिए आपके ब्रेन का ठीक से फंक्शन करना ज़रूरी है। आपके विचार और इमोशनल रिएक्शन तब तक नहीं बदलेंगे, जब तक आपके ब्रेन की फंक्शनिंग में बदलाव नहीं आएगा, ठीक वैसे ही जैसे किसी फिजिकल स्टिम्युलस के बिना आपके दिल की धड़कन में कोई बदलाव नहीं आता।”
यह समझते ही आप खुद-ब-खुद कम्फर्टेबल महसूस करने लगेंगे, और क्योंकि अब आप इस परिस्थिति से अवगत हैं, दूसरे की भावनाओं को समझना और स्वीकार करना ज़्यादा आसान हो जाएगा।
वैश हमें सप्पोर्टिव भावों का प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं जैसे “हम्म”, “हां”, “इसके बारे में मुझे और बताओ”। या फिर ऐसे रेस्पोंस जो समस्या के समाधान की तरफ इशारा करते हों जैसे “मैं कैसे मदद कर हूं?” और “मैं आपके लिए इसे कैसे आसान बना सकता हूं?”
एक अच्छे श्रोता के लिए यह सीखना बहुत ज़रूरी है कि ज़रुरत पड़ने पर वह बिना कुछ कहे शांति से भी बैठ सकें। वैश कहती हैं, “कभी-कभी लोग खुद को बातों के माध्यम से अच्छी तरह व्यक्त नहीं कर पाते, लेकिन किसी का साथ उन्हें सुकून पहुंचाता है।”
वह यह भी कहती हैं, “अगर वे आपसे बात करने के लिए तैयार नहीं है, तो उनके साथ ज़बरदस्ती ना करें। यदि वे रोने लगें तो शांत रहें, पर उनके साथ बने रहें। ऐसा कुछ ना कहें जैसे ‘रो मत, सब ठीक हो जाएगा’।”
कभी भी तुलना न करें। इस तरह की चुनौतियों को पार कर चुके लोगों की कहानियां या उनकी कही बातों का उदाहरण ना दें, इससे स्थिति और बदतर हो सकती है।
ऐसे कथन जिनमें टॉक्सिक पॉज़िटिविटी झलकती है, जैसे “जो आपके पास है उसके लिए आपको आभारी होना चाहिए” या “दूसरे लोग तो इससे भी बुरे हालातों से गुजर रहे हैं”, उन्हें ऐसा महसूस करा सकते हैं जैसे कि वे कृतघ्न हैं, और यह अहसास उनके इमोशनल बर्डन को और बढ़ा सकता है।
आप स्थिति की गंभीरता को कैसे नाप सकते हैं?
पहला स्टेप यह समझना है कि मेन्टल हेल्थ, मेन्टल हेल्थ इश्यूज़ और मेन्टल इलनेस बीच अंतर कैसे किया जाए।
सरल भाषा में, मेन्टल हेल्थ को आप फिज़िकली हेल्दी होने के बराबर मान सकते हैं, मेन्टल हेल्थ इशू की तुलना आप हल्की खांसी से कर सकते हैं, जबकि मानसिक बीमारी उतनी ही गंभीर है जितनी किसी व्यक्ति में ट्यूबरक्लोसिस की बीमारी।
वैश कहती हैं, “किसी व्यक्ति की मंशा और योजना का आकलन करके आप इस बीमारी की गंभीरता को नाप सकते हैं।”

जैसे, अगर कोई कहे “कभी-कभी लगता है, मर जाना ही बेहतर है।” तो आपको उन्हें पूछना चाहिए “क्या आपने ऐसा कदम उठाने के बारे में कभी सोचा है?” अगर जवाब हां में हो, तो उनसे पूछें कि वह इसे कैसे करना चाहते हैं।
और अगर उस व्यक्ति ने मन में कोई तरीका सोच रखा है, या वह कोई तरीका ढूंढ रहा है, तो यह एक तत्काल परिस्थिति है और हो सकता है कि उस व्यक्ति ने मन में आत्महत्या का विचार बना लिया हो।
यदि आप किसी प्रियजन के बारे में चिंतित हैं, तो आप अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ द्वारा विकसित ASQ नामक इस स्यूसाइड स्क्रीनिंग टूल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। वैश के अनुसार, “इस टेस्ट में शामिल चार सरल प्रश्नों की मदद से किसी भी व्यक्ति की आत्महत्या संबंधित मंशा और योजना की गंभीरता का पता लगाया जा सकता है।” प्रश्न इस प्रकार हैं:
- पिछले कुछ हफ़्तों में, क्या आपने ऐसा चाहा कि आप मर जाएं?
- पिछले कुछ हफ़्तों में, क्या आपको ऐसा लगा है कि आपके मरने के बाद आप और आपकी फैमिली ज़्यादा बेहतर महसूस करेंगे?
- पिछले कुछ हफ़्तों से, क्या आपके मन में आत्महत्या करने के विचार उठ रहे हैं?
- क्या आपने पहले कभी आत्महत्या की कोशिश की है? अगर हां, तो कैसे? कब? (यह जानने के लिए की उसका प्लान क्या था और यह कितनी पुरानी बात है)
एक मेन्टल हेल्थ सहयोगी के रूप में, आपको स्थिति की गंभीरता का आकलन करने के बाद एक प्रोफेशनल से कंसल्ट करना चाहिए। आप सहायता कर सकते हैं, लेकिन डॉयग्नोसिस करना आपका काम नहीं हैं और खुद पर इस तरह का दबाव डालना अनुचित है।
किसी से उसकी मेन्टल हेल्थ पर बातचीत शुरू करने पर, उसकी बुरी प्रतिक्रिया को कैसे हैंडल करें?
सबसे महत्वपूर्ण बात, एक मेन्टल हेल्थ सहयोगी के रूप में, आपको किसी के नेगेटिव रिएक्शन को कभी भी पर्सनली नहीं लेना चाहिए।
इसके अलावा, आप केवल बार-बार उनसे मिलते रहें, उनका साथ दें और उनके खुलने का इंतजार करें। आपके निरंतर ऐसा करते रहने से, आपके साथ उनका कम्फर्ट लेवल बढ़ेगा।
एक बार यह पता लग जाए कि व्यक्ति मानसिक बीमारी से पीड़ित है, आप उसे मदद लेने के लिए कैसे प्रोत्साहित कर सकते हैं?
वैश कहती हैं, “प्रोफेशनल हेल्प लेने के बाद स्वस्थ हो चुके, अपने आसपास के लोगों का उदाहरण उनके समक्ष रखें। उन्हें सलाह दें कि अपने रवैये और रूटीन को ठीक कर लेने से या अच्छे खानपान से, वह इससे बाहर निकल सकते हैं।”
छोटे से छोटा भाव भी मायने रखता है – थेरेपिस्ट ढूंढने में उन्हें मदद की पेशकश करें, अपॉइंटमेंट फिक्स कर दें और यदि वे चाहे तो उनके साथ चले भी जाएं।
अगर कोई व्यक्ति मदद लेने के लिए तैयार ना हो तो ऐसे में क्या करना चाहिए?
ऐसे में आप केवल एक ही चीज कर सकते हैं, उन्हें तब तक सपोर्ट करते रहें जब तक वे मदद के लिए तैयार ना हो जाएं।
उन्हें अहसास दिलाएं कि इस बारे में निर्णय लेने के लिए वह जितना चाहें उतना समय ले सकते हैं। उनके कामकाज में मदद करने की पेशकश करें ताकि उनका भार कम हो, और वह इस बारे में सोचने के लिए समय निकाल सकें।
उन्हें बताएं कि आप उनका ध्यान रखेंगे, और थेरेपी का सुझाव भी देते रहेंगे – लेकिन पहले, उनसे पूछें कि क्या आपके ऐसा करने से वह सहमत हैं।
उनकी प्रोग्रेस को कैसे मॉनिटर करें?
किसी भी तरह का बदलाव स्पष्ट रूप से दिखाई देगा। स्वयं की देखभाल करना, एक रूटीन फॉलो करना जैसी नहाना, साफ़ सफाई करना, टीवी के सामने बैठे रहने के बजाय फिज़िकल एक्टिविटी में खुद को बिज़ी रखना, और अच्छे से खाना-पीना, यह सभी सुधार के संकेत हैं।
हर कदम पर उनकी प्रशंसा करें और उनकी प्रगति को प्रोत्साहित करें, लेकिन तारीफों की झड़ी लगाते हुए यह जिक्र ना करें कि पहले की तुलना में अब मदद लेने के बाद वे कितने बेहतर हैं।
अपने प्रियजन के मेन्टल हेल्थ प्रोफेशनल से नियमित रूप से उनके बारे में अपडेट लेना बहुत आवश्यक है ताकि आपको उनकी वास्तविक प्रोग्रेस का पता चलता रहें।
एक अच्छा थेरेपिस्ट ढूंढने में उनकी मदद कैसे करें?
आपका पहला फ़िल्टर थेरेपिस्ट की शैक्षिक योग्यता होना चाहिए। एक ऐसा साइकोलोजिस्ट चुनें जो कम से कम किसी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी से क्लीनिकल साइकोलॉजी में एम.फिल हो, केवल पीएचडी नहीं। क्लीनिकल साइकोलॉजी में एम.फिल होने का मतलब है कि वह व्यक्ति प्रशिक्षित है, जबकि पीएचडी केवल अकादमिक होती है।

किसी स्पेशलिस्ट को कंसल्ट करना हमेशा एक बेहतर आईडिया है। वैश कहती हैं, “इस मुद्दे के लिए एक स्पेशलिस्ट खोजने की कोशिश करें। कई प्रोफेशनल्स हैं जो सब कुछ देखते हैं, उन्हें कंसल्ट करना एक अच्छा आईडिया नहीं है।”
प्रोफेशनल के साथ पेशेंट का तालमेल बैठना बहुत ज़रूरी है, इस फैक्टर को ध्यान में रखना बहुत महत्वपूर्ण है।
यदि किसी की आर्थिक परिस्थिति उसके मदद लेने के आड़े आती है तो क्या करना चाहिए?
कई मेन्टल हेल्थ प्रोफेशनल्स व्यक्ति की आर्थिक परिस्थिति को देखते हुए फीस में कमी करते हैं और डिस्काउंट भी देते हैं। इसके अलावा, ग्रुप थेरेपी भी एक अच्छा विकल्प है।
आजकल ट्रीटमेंट के लिए ऑनलाइन थेरेपी भी एक किफायती और सुलभ माध्यम है।
वैश कहती हैं, “वैसे तो अस्थायी राहत के लिए कई फ्री सेंटर हैं जैसे हेल्पलाइन्स और मामूली शुल्क लेकर इलाज करने वाले लोग, लेकिन अगर आप वास्तव में परमानेंट इलाज कराना चाहते हैं, तो एक अच्छा योग्य और अनुभवी थेरेपिस्ट ढूंढें। आखिर यह आपकी ज़िन्दगी का सवाल है।”
यदि आपके प्रियजन की मेन्टल हेल्थ आप पर भारी पड़ने लगे, तो खुद के लिए थोड़ी स्पेस मांगने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
रुखसेदा कहती हैं, “किसी को तकलीफ से गुजरते हुए देखना आसान नहीं है, हर समय किसी के सपोर्ट में खड़े रहना आसान नहीं है, और हर वक़्त सबकुछ सही करते हुए लोगों को प्रोत्साहित करते रहना तो वास्तव में आसान नहीं है।”
सेल्फ केयर बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि एक मेन्टल हेल्थ सहयोगी के रूप में, आप खुद बर्न आउट होना बर्दाश्त नहीं कर सकते।
हफ्ते में एक दिन छुट्टी लें, रेग्युलर ब्रेक लेते रहें, अपनी देखभाल करें, और खुद को यह याद दिलाते रहें कि आपकी ज़िन्दगी केवल इस एक व्यक्ति के आसपास नहीं घूम सकती।
यह भी बहुत ज़रूरी है कि आप अपने पेशेंट की बीमारी की वजह से उसके व्यवहार को ज्यादा सर ना चढ़ाएं, क्योंकि वह उसकी वास्तविक बीमारी से अलग है।
रुखसेदा समझाती हैं, “इसका मतलब है कि जब तक कोई इमरजेंसी न हो, उनकी सुविधानुसार उनके सवालों से खुद को परेशान करने से रोकें। दिन में बातचीत के लिए एक समय फिक्स कर दें, ताकि उन्हें आपसे जो भी पूछना हो, वह इस समय में ही पूछ सकते हैं।”
ठीक वैसे, जैसे मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों को एक से ज़्यादा सहयोगी बनाने की सलाह दे जाती है, उसी तरह एक मेन्टल हेल्थ सहयोगी को भी अपने कुछ बैक-अप रखने चाहिए जो उनकी अनुपस्थिति में उनके केस को संभाल सकें।
क्या कोई ऐसी सीमा है जो एक मेन्टल हेल्थ सहयोगी को पार नहीं करनी चाहिए?
याद रखें कि आप एक प्रोफेशनल नहीं है। अगर आप स्थिति को नहीं संभाल पा रहे हैं, तो अपने प्रियजन को किसी प्रोफेशनल की मदद लेने के लिए प्रोत्साहित करें, जो निष्पक्ष हो और जिसका यही उदेश्य हो। एक मेन्टल हेल्थ सहयोगी एक सपोर्ट करने वाला दोस्त होता है, आपको इसके साथ कोई अन्य जॉब टाइटल जोड़ने की आवश्यकता नहीं है।
वैश कहती हैं कि एक और सीमा है जिसका उल्लंघन कभी नहीं करना चाहिए, वह है विश्वास। वह कहती हैं, “पीड़ित ने मदद या सलाह के लिए, आप पर विश्वास करके, आपके साथ जो भी जानकारी शेयर की है, उसे किसी और के साथ शेयर करना बिलकुल गलत है।”
अपने प्रियजन द्वारा लिए जा रहे मेडिकेशन पर आप कैसे नज़र रख सकते हैं?
जब तक आप उस व्यक्ति के साथ रह नहीं रहे हों, यह काफी मुश्किल हो सकता है। लेकिन यदि आप रह रहे हैं, तो पिलबॉक्स ला कर रखें जो रोज़ की दवाओं का ट्रैक रख सकता है, ट्रैकिंग चार्ट बनाएं, दिन में एक या दो बार उनसे पूछें कि क्या उन्होंने अपनी दवाइयां ले ली हैं।
उनके डॉक्टरों से पूछें कि उनकी दवाएं किस तरह से काम करती हैं – दवाइयों की खुराक और साइड-इफेक्ट्स के बारे में जानकारी लें, पता करें कि क्या इसका सेवन शराब के साथ किया जा सकता है, अगर एक खुराक मिस हो जाए तो क्या हो सकता है।
अगर पेशेंट को कोई साइड इफ़ेक्ट हो जाता है, तो खुराक के साथ स्वयं छेड़छाड़ करने के बजाय उसे अपने साथ डॉक्टर के पास ले कर जाएं।
अगर आपको उनके मूड में बदलाव दिखाई दे या उनकी स्थिति खराब होती दिखे, तो हो सकता है कि वह ठीक से दवाइयां न ले रहे हों। ऐसे में आपको इस मुद्दे पर उनसे खुलकर बात करनी चाहिए।
यदि आपको आभास होने लगे कि आपके प्रियजन आत्महत्या पर विचार कर रहे हैं तो आपको क्या करना चाहिए?
प्रोफेशनल हेल्प लें – याद रखें कि आप ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए सही व्यक्ति नहीं हैं।
फिर भी, वैश हमारे साथ इस संकट की स्थिति को संभालने के लिए कुछ टिप्स शेयर कर रही हैं, जिन्हें आप किसी एक्सपर्ट को कंसल्ट करने के बाद भी उपयोग में ले सकते हैं।
- जब तक आप या कोई और उनकी लोकेशन तक न पहुंच जाए, उनसे बातचीत करते रहें।
- उन्हें अपने चेहरे, हाथ और पैर और गर्दन के पीछे के हिस्से पर ठंडे पानी के छींटे मारने के लिए प्रोत्साहित करें ताकि उनकी बॉडी केमिस्ट्री में थोड़ा बदलाव आए।
- उनके साथ ब्रीथिंग एक्सरसाइजेज करें लेकिन मेडिटेशन ना करें।
- जितना जल्दी हो सके, दूसरे लोगों के पास जाने के लिए, उन्हें प्रोत्साहित करें। आत्महत्या एक आवेग में उठाया जाने वाला कदम है, और भले ही यह लंबे समय से सोच रखा हो, आमतौर पर इस तरह का कदम उठाने की संभावना अकेलेपन में अधिक होती है।
किसी प्रियजन की आत्महत्या से हुई मौत के बाद, खुद को संभालने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
इसे एक नियम मानते हुए, अपने लिए थेरेपी लें।
अपने किसी प्रियजन की आत्महत्या से मौत हो जाने के बाद, ऐसा बहुत कुछ है जो एक मेन्टल हेल्थ सहयोगी महसूस करता है – आघात, उनके जाने के बाद ज़िंदा रह जाने का अपराधबोध, खेद, शोक और बहुत सारे सवाल। और इस इमोशनल बैगेज से निपटने का एकमात्र तरीका है कि आप खुद को ग्रीफ कॉउंसलिंग के लिए एनरोल करा लें।
मदद के लिए, आप इन 24-घंटे आत्महत्या रोकथाम हॉटलाइन्स पर कॉल कर सकते हैं
जीवन आस्था टोल-फ्री हेल्पलाइन: 1800 233 3330
HITGUJ हेल्पलाइन: 022 24131212
आसरा हेल्पलाइन: 9820466726