
कैंसर ट्रीटमेंट प्लान, जिससे एक नर्स को चौथी स्टेज के कैंसर को मात देने में मदद मिली
एक मास्टेक्टॉमी, नियमित कच्चे-भोजन का आहार, नींबू-रस के 12 शॉट्स और एक सकारात्मक रवैया
साथ ही, एक कैंसर-विशेषज्ञ का इस बात पर बल, कि कैसे खान-पान द्वारा अपने उपचार को अधिक प्रभावकारी बनाया जाए
जॉनीटा फ़िगरेडो को जब अपने ब्रेस्ट कैंसर की जांच से यह पता चला, कि अब वह केवल छः महीने ही जीवित रह पाएंगी, तब भी उन्होंने कैमोथेरेपी का विकल्प नहीं चुना। ख़ुद एक प्रशिक्षित मेडिकल प्रोफेशनल होने के बावज़ूद भी उनका यह निर्णय लेना, उनके मित्रों और परिवार के लिए एक धक्के की तरह था। वह हंसते हुए कहती हैं कि, “मरते हुए भी मैं अच्छी दिखना चाहती थी।” आज वह न केवल एक 24 वर्षीय बच्चे की मां होने के बावजूद अत्यधिक युवा दिखती हैं, बल्कि पिछले 9 वर्षो से वह कैंसर-मुक्त भी हैं। उनकी रणनीति: एक मास्टेक्टॉमी (शल्य क्रिया से वक्ष को हटाना) और फिर अपने खानपान में प्रभावशाली परिवर्तन लाना।
बीमारी उनके लिए एक धक्के की तरह थी, क्योंकि उस समय वह सदैव की अपेक्षा सर्वाधिक स्वस्थ थी। फ़िगरेडो कहती हैं, “कैंसर का पता लगने के एक साल पहले से ही मैं दूध से बने पदार्थ, चीनी, यहां तक कि मीट खाना भी छोड़ चुकी थी। तो जब मेरा कैंसर जांच में पॉज़िटिव पाया गया, तो न केवल मुझे आश्चर्य हुआ, बल्कि मुझे गुस्सा भी आया।” स्वयं कैमोथेरेपी के पेशेंट्स की देखभाल करते हुए, और इस उपचार के दुष्परिणाम इतने निकट से देखते हुए, उसने अपनी जीवन की उत्तमता को बनाए रखने के लिए, अन्य होलिस्टिक पद्धतियों को अपनाने का निश्चय किया।
फ़िगरेडो खुलकर यह स्वीकारती हैं कि, “मैं कभी भी वैकल्पिक उपचार के हित में नहीं थी। एक ‘आई सी यू’ नर्स होने के नाते, मैं यह मानती थी कि यह सब व्यर्थ है। जब भी मैं लोगों द्वारा वैकल्पिक उपचार अपनाने के बारे में सुनती थी, मुझे बहुत बुरा लगता था। मुझे हर चीज का वैज्ञानिक और तार्किक स्पष्टीकरण चाहिए होता था, जिनका इन पद्धतियों में अभाव था।” फ़िगरेडो का वैकल्पिक उपचार पद्धतियों से परिचय ‘योग’ के द्वारा हुआ। वह कहती हैं, “तब मैंने सही मायने में मन की शक्ति को समझा। इसका मेरे ऊपर इतना गहरा प्रभाव पड़ा, कि अंततः अपना नर्स का काम छोड़कर, मैं पूर्ण-कालिक ‘योग गुरू’ बन गई।”

फ़िगरेडो की अपारम्परिक उपचार पद्धति के अनुसार, भोजन को कच्चे खाने की चीजों से बदलना था (जो कि उनकी न्यूट्रीशनिस्ट द्वारा सुझाया गया था)। वह भौंहे सिकोड़ कर कहती हैं, “मुझ जैसी दक्षिण-भारतीय को, अपने दही-चावल को तिलांजलि देनी पड़ी। मुझे दिन भर में नींबू-रस के 12 शॉट्स भी लेने होते थे, जो पाचन-तंत्र को डिटॉक्स करने में मदद करते हैं। लेकिन उसका महत्व 3 महीने बाद समझ में आया, जब कैंसर का नामोनिशान भी नहीं रहा।”
इस सफलता के बाद मिली अपने जीवन की दूसरी पारी में, सदैव आशावादी, फ़िगरेडो अब अपना समय समाज को वापस लौटाने में लगा रही हैं। उन्होंने मेट्टा रिफ्लेक्सोलॉजी (Mettaa Reflexology) की स्थापना की है, जहां वह अंधे व्यक्तियों को ‘मसाज थैरेपिस्ट’ की तरह प्रशिक्षित और नियुक्त करती हैं। वह संजीवनी, नामक एक अलाभकारी संस्था में न्यूट्रीशन के बारे में सत्र आयोजित करती हैं। यह संस्था मुंबई के ‘टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल’ सहित पूरे देश में कैंसर के मरीजों की सहायता करती है।
फ़िगरेडो द्वारा सुझाये सात आसान चरण, जिनसे उन्हें कैंसर के साथ उनकी लड़ाई के दौरान मदद मिली

– दिन में चार बार भोजन करें, दो बार पूरी तरह पके हुए भोजन और दो बार कच्चा भोजन जैसे फल और नट्स का सेवन करें।
– साथ ही, आपके दिन के पहले और पिछले दिन के आखरी भोजन में कम से कम बारह घंटे का अंतराल होना चाहिए। जैसे, अगर आप ज्यादातर रात के आठ बजे खाना खाते हैं, तो अगले दिन का नाश्ता सुबह आठ बजे से पहले नहीं करना चाहिए। इस तरह से किया गया भोजन ‘इंटरमिटेंट फास्टिंग’ के नाम से जाना जाता है जो हमारी पाचन क्रिया को आराम पहुंचाता है और यह सुनिश्चित करता है की यह अच्छे से कार्य करे।
– अपने पाचन तंत्र के साथ-साथ यह बहुत आवश्यक है, कि आप अपने दिमाग और शरीर को भी पर्याप्त आराम दें। छह से आठ घंटे की बाधारहित नींद, दोपहर में नींद की झपकियां और पंद्रह मिनट का शवासन आपके शरीर के लिए करामाती साबित होगा। दिमाग के लिए, फ़िगरेडो की सलाह है, की हर एक घंटे में कम से कम एक मिनट का ध्यान करें। “मेरे फ़ोन में हर एक घंटे में अलार्म बजता है, और उसके बजते ही मैं अपनी आँखें बंद कर के मन में दोहराती हूँ, ‘मैं स्वस्थ और बलवान हूँ, मैं एक दिव्य पवित्र आत्मा हूँ,’ और ऐसा करते ही मैं तुरंत तरोताजा महसूस करती हूँ।”
– मुख्य भोजन के साथ, दूसरा भोजन भी उतना ही मायने रखता है। हरी पत्तेदार सब्ज़ियों और अंकुरित अनाज से बने सलाद, एवं टमाटर, गाजर और चुकंदर से बने ज्यूस, आपके हर भोजन का हिस्सा होने चाहिए।
– माइक्रोवेव और नॉन स्टिक बर्तनों को मिटटी और लोहे के बर्तनों से बदल दें।
– अपने आहार में से गेंहू, चीनी और दूध से बने उत्पाद पूरी तरह से निकाल दें। गेंहू की जगह- ज्वार और बाजरा, दूध की जगह- बादाम/ मूंगफली या नारियल का दूध, चीनी की जगह- नारियल या ताड़ का गुड़, शहद या खजूर इस्तेमाल करना चाहिए।
– घर में से फ़ालतू सामान हटा देने से आप पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
– “आज के लिए जीयें,” फ़िगरेडो का कहना है। एक सकारात्मक रवैया बहुत मददगार साबित होता है।
यद्यपि उन्होंने ‘हिप्नोथेरेपी’, ‘रेकी’ और ‘रिफ्लेक्सोलॉजी’ जैसी अन्य वैकल्पिक पद्धतियों को आजमाया है, पर वह इस बात के लिए पूरी तरह सतर्क हैं कि लोग उनके अनुभव को वैद्यकीय सलाह और कैमोथेरेपी का विकल्प न समझ लें। वह कहती हैं कि, “हालांकि, मैंने उपचार के साथ आगे नहीं बढ़ना चाहा, पर हर व्यक्ति अपना खुद का निर्णय लेने को स्वतंत्र है।” आगे स्पष्ट करते हुए वह बताती हैं कि ‘संजीवनी’ में वह इस बात पर बल देती हैं कि, “खानपान में बदलाव कैसे आपको कैमोथेरेपी के साइड इफेक्ट से बचने में सहायता करता है।”
फ़िगरेडो की सलाह, डॉक्टर अनुश्री पूनिया की बातों में भी प्रतिध्वनित होती है, जो जयपुर के महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में कैंसर-विशेषज्ञ हैं। उनके अनुसार, “शाकाहारी भोजन सामान्यतः एक स्वस्थ विकल्प तो हो सकता है, लेकिन इसके कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि वह कैंसर से बचने के लिए अधिक सुरक्षात्मक उपाय है।” वे समझाती हैं कि कच्चा भोजन किसी भी व्यक्ति के इम्यून-सिस्टम की प्रतिरक्षा करने वाले पदार्थों के गुणों को नष्ट भी कर सकता है, क्योंकि कच्चे फल और सब्ज़ी में विद्यमान जीवाणु शरीर में इंफेक्शन के खतरे को बढ़ा सकते हैं। वे आगे कहती हैं, “एक आदर्श शाकाहारी डाइट-प्लान में सब्जियां, फल, साबुत अनाज और मीट के लिए प्रोटीन विकल्प, जैसे बींस, टोफ़ू और थोड़ी मात्रा में कम वसा वाले चीज़ शामिल होने चाहियें।”

जो कोई भी कैंसर से पीड़ित हैं, डॉक्टर पूनिया उनके लिए एक प्रमुख-आहार और जीवन-शैली में बदलाव पर जोर देती हैं, जो कि उनकी मेडिकल केयर की प्रभावशीलता को बढ़ाने और उसके साइड-इफेक्ट्स का सामना करने में मदद कर सकता है।
क्या करें
– अधिक मात्रा में पानी पीयें। अगर इसका स्वाद अच्छा न लगे तो सूप पीयें, तरबूज खाएं और चाय, दूध और दूध के अन्य विकल्प पीयें। ताज़ा कटे हुए फल पानी में डालकर, आप उसका स्वाद बढ़ा सकते हैं।
– अगर खाना फीका लगता हो तो इसका स्वाद बढ़ाने वाले मसाले, जैसे नींबू, लहसुन, लाल मिर्च, सोया या रोज़मैरी का प्रयोग कर सकते हैं। अगर आपके मुंह में छाले हों, तो जब तक वे ठीक न हो जायें, गैर-अम्लीय (Non acidic) और बिना मिर्च वाला खाना खाएं।
– दिन भर में 3 बार भरपेट खाने के बजाय, 6 बार थोड़ी मात्रा में खाएं। इस बात का ध्यान रखें, कि इन कम मात्रा वाले भोजन से भी आपको उचित मात्रा में कैलोरी प्राप्त हों।
– मुंह के धातुई स्वाद को दूर करने के लिए मिंट चूसें, गम चबाएं या ताज़े, खट्टे रस वाले, फल खाएं। धातु से बने बर्तनों या पैन में खाना न पकायें। खाने के लिए प्लास्टिक के बर्तन इस्तेमाल करें, साथ ही खाने से पहले दांत भी ब्रश करें।
– अपने भोजन में अधिक प्रोटीन वाले पदार्थ, जैसे फ़िश, अंडे, चीज़, बींस, नट, नट-बटर, टोफ़ू या ज्यादा प्रोटीन वाली स्मूदीज और शेक्स को शामिल करें।
क्या न करें
– अल्कोहल के सेवन से बचें, यह लिवर पर अवांछित दबाव डालता है, जिसके फलस्वरूप कैमोथेरेपी के लिए दी जाने वाली दवाओं को पचने में कठिनाई होती है।
– अधपका अंडा, कच्ची मछली और शेलफिश का सेवन न करें।
– अनपाश्चुराइज्ड भोजन जैसे- अनपाश्चुराइज्ड साइडर, कच्चा दूध, फ्रूट जूसेस और अनपाश्चुराइज्ड चीज़ जैसा खाना न खाएं-पीयें।