
मैंने शक्कर खाना छोड़ दिया... और वो भी किसी दूसरे का सिर फोड़े बिना!
क्या आपको पता है कि फ़ूड इंडस्ट्री में हमें नुक़सान पहुंचाने वाले इस मीठे ड्रग यानी शक्कर के लिए 56 नाम मौजूद हैं?
लोग चाहते हैं कि मैं हमेशा मज़ेदार बातें करती रहूं। पर लोगों की मांग पर ऐसा होता है क्या? मैं कोई कमीडियन तो हूं नहीं, लेखिका हूं। ऐसी बातों से सिर दुख जाता है। मुझे याद ही नहीं आता कि ऐसे में मैं कब उस सफ़ेद पाउडर के बारे में सोचने लगती हूं, जिसे सूंघते ही, पलभर में मैं मज़ेदार बन जाऊं। यदि आपको मैं किसी ऐडिक्ट की तरह लग रही हूं- तो ऐसा इसलिए है कि मैं हूं। दरअसल, मैं थी। जब तक मैंने उस ड्रग को खाना नहीं छोड़ा था, जिसे आप रिफ़ाइंड शुगर यानी शक्कर के नाम से जानते हैं। ये मेरा पसंदीदा ड्रग था-चाय में डूबे हुए बिस्किट से लेकर कॉफ़ी के साथ बिस्कोटी खाने तक। जब कभी मैं तनाव में होती थी तो वो चीज़ें भी खा लेती थी, जो कैंडी से थोड़ी-बहुत भी मिलती-जुलती दिखाई दें। काम की डेडलाइन से उपजे ग़ुस्से के समय मीठा खाना किसी ऐंटिडोट की तरह होता, चिंता से भरे लम्हों में ये किसी आरामदेह रज़ाई-सा लगता और कुछ पा लेने की ख़ुशी में किसी पुरस्कार जैसा।
जब मैंने शक्कर खाना छोड़ दिया, तब मैंने हर चीज के लिए इस बदलाव को जिम्मेदार ठहराया, जैसे- सिरदर्द, कमज़ोरी, जी मिचलाना, काम की उत्पादकता का कम होना, चिड़चिड़ापन… (सोचो कहीं इसका कारण तुम ख़ुद ही तो नहीं हो, मेरे बॉयफ्रेंड ने भी मेरी टांग खींची)। पर जो भी हो मुझे शक्कर के साथ अपना यह ज़हरीला रिश्ता और निर्भरता दोनों तोड़ना ही था।
जब भी हम कोई मीठी चीज़ खाते हैं, हमें तुरंत ही बेहतर महसूस होने लगता है। मीठा खाते ही हमें अच्छा महसूस कराने वाले केमिकल ‘डोपामाइन’ में तुरंत बढ़ोतरी होती है और ऊर्जावान महसूस होता है, हमारे ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है और अंतत: कुछ समय बाद शक्कर की कमी फिर से महसूस होने लगती हैं। Healthline, के अनुसार नियमित रूप से शक्कर का सेवन, दिमाग में बदलाव लाता हैं ताकि ये शक्कर के प्रति सहनशील हो जाए। फिर उसी अनुभव के लिए आपको और शक्कर की तलब लगती है – बिल्कुल कोकीन की तरह।
हम ऐसी संस्कृति में रहते हैं, जहां हर भोजन के बाद आपको मीठा खिलाने का रिवाज़ है (यहां तक कि आपका डब्बावाला भी, बहुत थोड़ा-सा ही सही, पर कुछ मीठा ज़रूर देता है) और आपकी नानी यह समझ ही नहीं पातीं कि आप मीठा खाना बंद क्यों कर रही हैं? क्योंकि रिफ़ाइंड शक्कर से परहेज तो ब्रह्मचारी होने से भी ज़्यादा कठिन काम है।
और फिर, यह हर जगह मौजूद भी तो है। प्राकृतिक शक्कर आपको फलों, सब्ज़ियों, डेरी उत्पादों और कार्बोहाइड्रेट की अधिकता वाले खाने से मिल जाती है। रिफ़ाइंड शक्कर न सिर्फ – मिठाई, कैंडी, एरेटेड ड्रिंक्स, मैदा और बहुत सारे प्रोसेस्ड फ़ूड में बल्कि विभिन्न स्वादिष्ठ चीज़ों, जैसे- टोमैटो सॉस (ऐसा विश्वासघात!), सलाद की ड्रेसिंग्स, फ्रूट जूसेस वगैरह में भी मौजूद होती है।
“शक्कर के 56 अलग-अलग नाम हैं,” विशाखा शिवदासानी बताती हैं, जो एक डॉक्टर हैं और ‘न्यूट्रिशन’ में स्पेशलाइज़ेशन कर रही हैं। ये तो हमारे देश के राज्यों की संख्या, दीपिका पादुकोन की फ़िल्मों की संख्या से भी कहीं ज़्यादा नाम हैं। इतने कि इन्हें याद रखना नामुमकिन है।
शिवदासानी आगे कहती हैं, “इनमें से कुछ सामान्य नाम हैं, फ्रक्टोज़, हाइ फ्रक्टोज़ कॉर्न सिरप, लैक्टोज़, पाम शुगर, कोकोनट शुगर, अगावी, माल्ट शुगर, हनी और मेपल सिरप। इन्हें प्राकृतिक शक्कर से बदला जा सकता है, जैसे- खजूर, किशमिश, बेरीज़ वगैरह से, लेकिन केवल उन्हीं लोगों के लिए, जिन्हें इंसुलिन रेसिस्टेंस नहीं है और जो वज़न कम करने के बारे में नहीं सोच रहे हैं। अन्यथा, आप शक्कर के दूसरे विकल्प चुन सकते हैं, जैसे स्टेविया या स्प्लेन्डा, एरिथ्रिटॉल या मॉन्क फ्रूट शुगर।”
आपको क्या आशाएं रखनी चाहिए जब आप शक्कर खाना छोड़ें
मेरा पूरा ध्यान रिफ़ाइंड शुगर न खाने पर था। इसकी शुरुआत मैंने चाय में शक्कर बंद करने और रोज़ाना के वर्क आउट से पहले या बाद में प्रोटीन बार की जगह एक फल खाने से की। ऐल्कहॉल में भी शक्कर होती है, तो मैंने अपना ग़म ग़लत करने के लिए कभी-कभार बर्फ़ के ठंडे-ठंडे टुकड़ों वाले जिन से भरे ग्लास का सहारा लिया।

सिर्फ पानी, ब्लैक कॉफ़ी और चाय पीना तो फिर भी आसान होता है। पर मीठा खाने की अपनी इच्छा पर क़ाबू पाने के लिए मैंने ब्राउनी बॉक्सेस को सूंघा और आइस-क्रीम को देखकर गहरी-गहरी सांसे भी लीं। और जब हर चीज़ की सामग्री जानने के लिए, मैंने माइक्रोस्कोप लगाकर लेबल को पढ़ना शुरू कर दिया, तब पता चला कि बहुत से पैकेज्ड फ़ूड में दूध के यौगिक होते हैं और उन सब में भी शक्कर होती है। ‘सिरिअल’ और ‘फ़्लेवर्ड योगर्ट’ से लेकर ‘मेयोनीज़’ और नमकीन स्नैक्स, जैसे- ‘प्रेट्ज़ेल’, ‘किस्प्स’ और चिवड़ा तक में शक्कर होती है। मैंने हर ऐसी चीज़ पर पाबंदी लगा दी। शक्कर से मेरे इस तलाक के बीच, मैं बार-बार ख़ुद को यह याद दिलाती रहती थी कि रिफ़ाइंड शुगर से ली गई कैलरीज़ हमारे शरीर के आवश्यक मिनरल्स को चुरा लेती हैं, जिससे वज़न बढ़ता है, लिवर को नुक़सान पहुंचता है और भी कई सारी समस्याएं होती हैं।
#अपना ख़्याल रखें
ये सुनने में जितना मुश्क़िल लगता है, उतना ही मुश्क़िल है। क्योंकि रिफ़ाइंड शक्कर ने बहुत सारे ऐसे पैकेज्ड खाद्य पदार्थों में भी घुसपैठ कर ली है, जहां इसे बिल्कुल नहीं होना चाहिए – तो यदि आप रिफ़ाइंड शक्कर को अलविदा कहना चाहती हैं तो सबसे पहले आपको प्रोसेस्ड फ़ूड को अपने जीवन से बाहर निकालना होगा। इस प्रक्रिया में, गहरे दुख के पांच पड़ाव पार कर लेने के बाद, अब जाकर मुझे रिफ़ाइंड शक्कर को अपने जीवन से बाहर का रास्ता दिखाने का असर दिखाई दे रहा है। शुरुआत में तो मैं इतनी चिड़चिड़ी हो गई थी, जैसे कोई चेन स्मोकर रिहैब सेंटर में जाने पर होता है। हालांकि प्राकृतिक स्त्रोतों और स्टार्च युक्त खाने से मुझे काफी मात्रा में शक्कर प्राप्त हो रही थी, फिर भी मुझे रिफ़ाइंड शक्कर युक्त चीज़ें खाने का बहुत मन होता था (जैसे- कार्ब्स और केक)। मैंने रिफ़ाइंड शुगर डीटॉक्स के सभी सामान्य लक्षण महसूस किए, जैसे- हल्की उदासी, थकान, जी मिचलाना।
मीठा खाने की इच्छा को रोकने के लिए ‘निकोटिन पैचेस’ या ‘वेप’-जैसी कोई चीज़ ईजाद नहीं हुई है। तो मैं ऐसे दिनों से भी गुज़री जब मैंने ख़ुद से नफ़रत की, रोई, ग़ुस्सा हुई और फ्रोज़न मैंगो के टुकड़े को इस तरह खाया, जैसे वो पॉप्सिकल हो। मुझे शक्कर छोड़ने में बहुत महीने लगे और इस बीच इसके बारे में लगातार सचेत रहते हुए कई बार गर्व से और कई बार चिढ़कर, जानते-बूझते मैंने कहा, “मैंने शक्कर खाना छोड़ दिया है।”

अब मैं ख़ुशी-ख़ुशी स्वास्थ्यवर्धक चीज़ें खाने की कोशिश करती हूं- नाश्ते में नटीज़ की जगह पोहे ने ले ली है, पास्ता सॉस घर पर ही बना लेती हूं, जब मुझे बहुत मन होता है तो शहद लगा आंवला खा लेती हूं। अब मैंने वो ज़हरीली आदत छोड़ दी है, तो मैं कभी-कभी होनेवाली केक पार्टीज़ में भी बिंदास जाती हूं, क्योंकि मुझे इस बात का डर नहीं है कि मुझे केक खाने की इच्छा होगी। क्योंकि बच्चों, संतुलन साधना सबसे बड़ी बात है।
अब ऊर्जा के आकस्मिक उतार-चढ़ाव की जगह सतत बनी रहने वाली ऊर्जा ने ले ली है। मेरी सूजी हुई त्वचा धीरे-धीरे सामान्य होती जा रही है और रिफ़ाइंड शक्कर को अलविदा कहने के थोड़े समय में ही मैंने कुछ किलो वज़न भी कम कर लिया है। हालांकि मैं अपने ‘ऐब्स’ के लिए अब भी इंतज़ार कर रही हूं और मुझे ये भी बताया गया है कि इससे मेरे दिल को भी बहुत फ़ायदा पहुंचेगा। ख़ैर, इस बात की सच्चाई को तो मैं तभी परख पाऊंगी, जब मैं पैंसठ बरस की हो जाऊंगी।
हां, मेरा बॉयफ्रेंड बिल्कुल सही था। चिड़चिड़ापन? वो तो मेरी अपनी ख़ासियत है!