
मिलिए भारत के कुछ वजाइना एक्टिविस्टस से
पुरातन प्रथाओं से लड़ना, वजाइना-फ्रेंडली उत्पाद बनाना और जानकारी फैलाना, यह वे हीरो हैं जिनकी अब हमारे हू-हा को सख्त जरूरत है
फीमेल जेनिटेलिआ के जटिल कार्यों को समझने की कोशिश करना, गूगल मैप के बिना सहारा की खोज करने जैसा महसूस हो सकता है। मात्र जोर से यह शब्द बोलने तक से लोगो की भौंएं तन जाती है और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। तो दुश्मन के इलाके में छिपे एक रॉ एजेंट की तरह, हमारे वजाइना के भी कई कोड नाम है: सू-सू, पी-पी, फ्लावर, हूहा, वजयजय…
इससे पता चलता है, कि जन्म से वजाइना होने के बावजूद कई महिलाएं उम्र में बढ़ने के बावजूद भी, यह सुनिश्चित नहीं कर पातीं कि उनके पास “वहां नीचे” एक होल है या दो हैं। ऊपर से सामुदायिक मिथकें इस अंतरराष्ट्रीय रहस्य की हवा को बनाए रखने में मदद करती हैं। ब्लीडिंग वजाइना आपके आचार और फसलें ख़राब कर सकतें हैं, भूचाल ला सकतें हैं, एलियंस से संपर्क कर सकतें हैं….. व्हाट्सएप का आविष्कार होने से पहले भी, सदियों से हमारी औरतों के जेनिटेलिआ इन झूठी फ़ालतू बातों का शिकार थे।
हमारा संकेत उन शिक्षकों, मेडिकल प्रोफेशनलस और उद्यमियों की तरफ है, जो इस बातचीत को बदलने के लिए सुर्खियों में हैं। चीजों को पाठ्यपुस्तकों और लंबी कहानियों से पार ले जाते हुए, वे सहानुभूति, अत्याधुनिक तकनीक और रचनात्मक सोच से लैस हैं।
मिलिए भारत के कुछ वजाइना एक्टिविस्टस से
अदिति गुप्ता और तुहिन पॉल | मेंस्ट्रूपीडिआ

हम में से कुछ भाग्यशाली थे, जिनके माता-पिता ने धैर्यपूर्वक हमें पीरियड्स की जटिलताओं के बारे में समझाया (हालांकि कोई भी आपको क्रेविंग्स और हिस्टेरिकल मूड स्विंग के बारे में आगाह नहीं करता), जबकि दूसरों को स्कूल द्वारा उचित संस्करण मिला, जिसमें लड़कों को कक्षा से बाहर निकाल दिया जाता था। शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में मेंस्ट्रूअल जागरूकता के बारे में, अपने साल भर के रिसर्च प्रोजेक्ट के दौरान, अदिति गुप्ता और तुहिन पॉल ने पाया कि ज्यादातर महिलाएं को पूरी जानकारी ही नहीं थीं।
कम्युनिकेशन डिजाइनरों ने इस गलत जानकारी का विरोध करने और इसे मज़ेदार, रचनात्मक तरीके से पेश करके, इस विषय से जुड़ी शर्म को खत्म करने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया। और इस तरह, मेंस्ट्रूपीडिआ कॉमिक का जन्म हुआ। क्राउडसोर्सिंग के माध्यम से शुरू की गई, यह एक स्टेप-बाय-स्टेप गाइड है जो लड़कियों को प्यूबर्टी से लेकर पीरियड्स के दौरान स्वच्छता बनाए रखने तक की जानकारी देती है। इनके भरोसेमंद चित्रण, स्कूल में पीपीटी के माध्यम से दिखाए गए वजाइना के उन डरावने ब्लैक और व्हाइट डायग्राम की तुलना में बहुत सरल हैं, जिनसे हम में से अधिकांश बच्चे आतंकित थे।
भारत में 355 मिलियन मेंस्ट्रूएटिंग महिलाओं और युवा लड़कियों में से, 71 प्रतिशत को मेंस्ट्रूएशन के बारे में, इसके पहली बार होने से पहले कोई ज्ञान नहीं था। स्वाभाविक रूप से, युवा लड़कियां जानकारी और सहारे के लिए अपनी माओं का रुख करतीं हैं, लेकिन एनजीओ ‘दसरा’ की रिपोर्ट – स्पॉट ऑन ! के अनुसार, मेंस्ट्रूएशन को “गंदा” मानने वाले इस टैबू को इन 70 प्रतिशत महिलाओं से और हवा मिलती है।
गुप्ता और पॉल इस जानकारी की कमी और अस्वस्थ मेन्स्ट्रूअल प्रथाओं से, मेंस्ट्रूपीडिआ के माध्यम से निपट रहे हैं। आज, गुप्ता और पॉल 5 राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं ताकि कॉमिक 6,000 से अधिक स्कूलों तक पहुँच सके, और इसका अनुवाद 16 अलग-अलग भाषाओं में, स्थानीय रूप से 5 अलग-अलग देशों में किया जा रहा है, एक ऑनलाइन ब्लॉग के साथ, जहां लोग अपनी व्यक्तिगत कहानियों और जीवन यात्राओं के माध्यम से भी योगदान कर सकतें हैं। इस शानदार सफलता से मिली प्रेरणा से उनकी जोड़ी अपने अगले कॉमिक – अपने रुख को लड़कों तरफ मोड़ते हुए प्यूबर्टी और सहमति जैसे विषयों को कवर करने के साथ-साथ गर्भावस्था पर एक और प्रोजेक्ट को कवर करने में जुट गयी है।
आरेफा जोहरी | साहियो

हम में से अधिकांश लोग, फीमेल जेनिटल की विकृति या कांट-छांट, को अफ्रीका के दूरदराज गांवों के साथ जोड़ते हैं। मुम्बई-बेस्ड आरेफा जोहरी के लिए यह बहुत दर्दनाक होते हुए भी वास्तविक है – वह उन युवा बोहरी लड़कियों में से एक हैं, जिन्हें इस पुरातन अभ्यास के अधीन किया गया था। यह घटना आज भी दाउदी बोहरा समुदाय में होती है, जिसमें 7 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों को इस ‘फीमेल सरकमसिशन’ (फीमेल जेनिटल की विकृति या कांट-छांट – FGC/M) से गुजरना पड़ता है। और हालाँकि, WHO के तथ्यों के अनुसार, दुनिया भर में 200 मिलियन से अधिक महिलाओं और लड़कियों को FGC/M से गुजरना पड़ा है, यह जरूरी नहीं है कि इस जनसँख्या सम्बन्धी सूचना के अनुसार FGC/M सिर्फ एशियाई और इसके प्रवासी देशों में हो रहा हैं।
जागरूकता फैलाने और बोहरा समुदाय को अंदरूनी तौर से सशक्त करने के लिए, ताकि FGC/M की प्रथा -जिसे ‘खतना’ भी कहा जाता है- को जड़ से उखाड़ा जा सके, इस मुंबई स्थित पत्रकार ने साहियो की सह-स्थापना की। सकारात्मक परिवर्तन के लिए, वह उन महिलाओं (जो खतना की प्रक्रिया से गुजर चुकीं हैं) की आवाज़ को अपना माध्यम बनाती हैं और अपने काम की नींव का ब्यौरा “सशक्त कहानी कहने की वकालत” के रूप में वर्णित करती हैं।
जोहरी का लक्ष्य, जितना हो सके उतनी सटीक जानकारी प्रदान करना है। वह कहती हैं, “आपको तर्क और संवेदनशीलता के साथ जागरूकता बढ़ानी होगी। सुनिश्चित करें कि आप जो जानकारी दे रहे हैं, वह उन सवालों को भी शामिल करे जो लोगों के सभी कोणों – धार्मिक, कानूनी और मानव अधिकारों से जुड़े हैं। आपको ज्ञान की एक ऐसी संस्था बनाने की जरूरत है जो बढ़ती और विकसित होती रहे। सनसनीखेज या लोगों में फूट डालने वाली जानकारी साझा नहीं करना भी बहुत महत्वपूर्ण है।” साहियो सूचनाओं को फैलाने के लिए वर्कशॉप्स, एक्टिविस्ट रिट्रीट और सामुदायिक वीडियो होस्ट करता है और यह आमने-सामने बातचीत के माध्यम से होता है, जहाँ लोग एक दूसरे से बात कर सकें और सुन सकें, और प्रत्येक महिला की कहानी को स्वीकारें और महत्व दें।
जब बदलाव की बात आती है, तो जोहरी इस बात से सहमत हैं कि यह धीमा है, क्योंकि जब बात एक समुदाय में गहराई तक घुसे, पीढ़ियों-पुराने सामाजिक नियम से निपटने की हो, तो परिवर्तन केवल स्वयं के लिए ही आ सकता है। “इसे बाहर से धकेला नहीं जा सकता। उदाहरण के लिए, एक कानून के रूप में यह मौजूद हो सकता है, लेकिन इसे आसानी से नजर अंदाज भी किया जा सकता है।”
साहियो ने 385 महिलाओं का सर्वेक्षण किया, जिनमें से 80 प्रतिशत ‘खतना’ की इस प्रक्रिया और इसे जारी रखने के लिए अलग-अलग दिए गए तर्क – धर्म और विश्वास के लिए (56 फीसदी), यौन उत्तेजना को कम करने के लिए (45 फीसदी), परंपराओं को जारी रखने के हक़ में (42 फीसदी) और शारीरिक स्वच्छता के लिए (27 प्रतिशत) से गुजरी चुकीं हैं। एक भी सकारात्मक है? सर्वेक्षण में शामिल 82 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वे अपनी बेटियों पर FGC नहीं होने देंगी, यह दर्शाता है कि भावी दाऊदी बोहरा समुदाय में वास्तव में एक बदलाव आने की संभावना है।
वह कहती हैं, “यह अति सूक्ष्म और जटिल अनुभव हैं। बदलाव तभी आ सकता है जब हम एक ऐसा माहौल तैयार करें, जो एक दूसरे में फूट डालने की बजाय सहानुभूतिपूर्ण वार्तालाप के योग्य हो, और यह एक वास्तविक चुनौती है।”
विकास बागरिया | पी सेफ

अपने देश में सार्वजनिक शौचालयों पर अजीबोग़रीब तरीके से उकड़ूँ बैठ-बैठ कर मेरी पिंडलियाँ स्टील की बन गयी हैं। मैं कोई जर्मोफोब नहीं हूं लेकिन भयानक यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (यूटीआई) के डर ने मुझे सचमुच टॉयलेट सीट से दूर रहने के लिए प्रेरित किया है। श्रीजना बागरिया इस अनुभव से गुजर चुकीं हैं, क्योंकि 2013 में अपने पति विकास के साथ सड़क यात्रा के दौरान, उन्हें एक गंभीर यूटीआई हो गया और उन्हें तत्काल इलाज के लिए दिल्ली वापस जाना पड़ा।
बागरिया और बाकी हम सभी बेचारे उकड़ूँ बैठने वाले लोगों की अच्छी किस्मत, कि उनके पति, एक अनुभवी व्यवसायी और उद्यमी ने यह महसूस किया कि अनहेल्दी पब्लिक टॉयलेट महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा हैं और दोनों ने साथ में, इस ज्वलंत मुद्दे को हल करने के लिए एक टॉयलेट सीट सैनिटेशन स्प्रे पी सेफ बनाया। अलविदा, अजीबोग़रीब स्क्वाटिंग।
शुरुआत में मित्रों और परिवार द्वारा किये गए परीक्षण में, इसे काफी सकारात्मक समीक्षा मिली। सैंपल की बोतलों से लेकर उत्पादों की एक श्रृंखला (टैम्पोन, हैंड सैनिटाइज़र, वैजाइनल वॉश, आदि) के साथ, आज पी सेफ स्वास्थ्य और स्वच्छता के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण ब्रांड बन गया है। वह कहते हैं, “यूटीआई जैसी रोगों के लिए महिलाएं अतिसंवेदनशील हैं और हम अपने उत्पादों के माध्यम से आराम और सुविधा प्रदान करना चाहते हैं। हमारे उत्पादों का निर्माण यह ध्यान में रखते हुए किया जाता है कि यह महिलाओं के शरीर के सबसे संवेदनशील हिस्से (जो आसानी से रोगों के चपेट में आ सकते हैं) के सीधे संपर्क में होंगे। धीरे-धीरे, महिलाओं की मदद के साथ-साथ, पी सेफ अब पर्यावरण के अनुकूल बायोडिग्रेडेबल और इको-फ्रेंडली उत्पाद बनाना चाहती है।” प्रो-वजाइना एक्टिविस्टस, अब छोटी बोतलों में।
शुरुआती कुछ वर्षों से लेकर साल 2017 में कंपनी की स्थापना तक, देश में एक ‘टॉयलेट सीट सैनिटाइसर स्प्रे’ अनसुना था, और इस उत्पाद के उपयोग और आवश्यकता के बारे में जागरूकता पैदा करना काफी चुनौतीपूर्ण था।“सालों से, लोग पॉट के अंदर की सफाई के बारे में चिंतित रहे हैं, लेकिन टॉयलेट सीट पर मौजूद बैक्टीरिया / कीटाणुओं के बारे में कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया। हर कोई यह समझने में विफल रहा; साफ़ होने का मतलब स्वच्छ होना नहीं है।” सौभाग्य से, गलत जानकारियों से भरे महासागर का प्रवाह बदल रहा है – एक बार में एक बूंद।
मेघा कपूर गौतम

14 मई, 2019 को, मेघा कपूर गौतम को हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय में अक्टूबर में दायर उनकी एक PIL के बारे में एक स्टेटस अपडेट मिला। इसने सभी पब्लिक ऑफिस में सेनेटरी पैड डिस्पेंसर और इंसीनरेटर लगाने का आह्वान किया।
इसमें सभी कोर्ट, होटल, बस-स्टैंड, कॉलेज और स्कूल शामिल हैं। लोकल एक्टिविस्ट प्रेम मोहिनी गुप्ता की ओर से दायर, गौतम के अनुरोध पर अमल करना राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण होगा, जिसमें बुनियादी स्वच्छता, युवा लड़कियों और महिलाओं की आसान पहुंच में होगी।
वह कहती हैं, “जब आप पूरे दिन अदालत में काम कर रहे होते हैं और आपको अचानक लगता है कि कुछ सही नहीं है, और आप कुछ ख़ास नहीं कर सकते। बाजार इतना करीब नहीं है कि, आप काम-काजी मामलों को बीच में रोक कर, जल्दी से वहां जाकर आ सकें। अदालतें इंतजार नहीं करती हैं।” खुद को ऐसी स्थिति में पाकर, उन्होंने महसूस किया कि यह उन सभी कामकाजी महिलाओं के लिए एक मुद्दा है जिनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे हमेशा अपने साथ सैनिटरी पैड लेकर चलें और बिना प्रावधानों वाले सार्वजनिक स्थानों पर, किसी भी तरह से इनका डिस्पोजल करें।

हालाँकि चंडीगढ़ में रहते हुए उन्होंने देखा कि म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने अपने स्तर पर धन जुटाकर वॉशरूम और पब्लिक वाहनों में इस तरह के इंस्टॉलेशन किए थे। मद्रास उच्च न्यायालय ने 2016 में एक आदेश जारी किया कि सभी स्कूलों में वेंडर और इंसीनरेटर होना आवश्यक है। हिमाचल प्रदेश लौटने पर, गौतम ने उसी उपाय को दायरा बढाकर अपने राज्य में शुरू करने का फैसला किया।
गौतम ने बताया कि उच्च न्यायालय के साथ-साथ, हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के तहत आने वाले होटलों ने भी इन मशीनों को स्थापित कर दिया है। राज्य द्वारा इस पर आगे और अमल की प्रतीक्षारत, वह उन्हें सभी सार्वजनिक स्थानों पर देखने की उम्मीद करती है।
हिमाचल प्रदेश रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (HRTC) ने पालिसी बना दी है, कि सभी बस स्टैंडों के लिए वेंडिंग मशीन और इंसीनरेटर रखना अनिवार्य है। पर्यटन विभाग ने उन्हें शिमला के सभी पर्यटन होटल / रेस्तरां में स्थापित किया है और पूरे राज्य में ऐसा ही करेंगे।
वह लिखती है: “टैबू और चर्चा के विषय पर वापस आए, तो ज्यादातर राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट, पुरुष हैं। और मुझे उन्हें यह समझाने में एक साल लग गया है कि कैसे यह समय की जरूरत है। हालाँकि, मैं अक्सर उन्हें सेनेटरी नैपकिन, मेंस्ट्रूअल हायजीन और मेंस्ट्रूएशन जैसे शब्दों का उपयोग करते हुए अदालत में बड़बड़ाते हुए देखती हूँ। मुझे उम्मीद है कि जब तक इस मामले को अंतिम रूप मिलेगा, तब तक हमारे पास सभी पब्लिक ऑफिसेस में मशीनें होंगी और एक दिन अदालत इन जैसे मामलों को संबोधित करने के लिए एक आसान स्थान बन जायेगी।”
डॉ मुंजाल कपाडिया | शी सेस शी इस फाइन

जब आपके पैरों के बीच एक डॉक्टर का सिर होता है, आखिरी चीज जो आप सुनना चाहते हैं, वह यह है कि, “ओह, आप तो सेक्सुअली एक्टिव हैं।” यदि आप सिंगल हैं, तो चाहे आप कितने भी लिबरेटेड क्यों न हों, यह थोड़ा चुभता है। विवाहित? हो सकता है आप पूरी तरह से रिश्ते से बाहर नहीं हों। मुश्किल सेक्स और दर्दनाक पीरियड्स का जिम्मेदार आपकी खराब लाइफस्टाइल चॉइस (आप धूम्रपान करतें हैं, शैतान?) को ठहराया जा सकता है – या जब आप जन्म देंगे तो यह जादुई रूप से गायब हो जाएंगे।
ऑरेंज इज़ द न्यू ब्लैक के सीजन 2 में, सोफिया बर्सेट से हमने अपने वजाइना और होल्स के बारे में ‘सेक्स-एड’ से कहीं ज्यादा सीखा। गायनाइकोलॉजिस्ट डॉ मुंजाल कपाडिया, महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली गलत जानकारियों और रहस्य को बदलने के लिए एक मिशन पर हैं। पॉडकास्ट शी सेस शी इस फाइन , उनके गायनाइकोलॉजिकल एक्सपर्टाइज़ और इस माध्यम के लिए उनके प्यार की पराकाष्ठा है। उन्होंने Mae Mariyam Thomas और Maed in India के Shaun Fanthome के साथ मिलकर काम किया। यह एक ऐसा सुरक्षित स्थान है जहाँ कोई एकांत में उन मुद्दों को सुन सकता है जिसे खुद अनुभव किया हों, जहाँ वे वर्णन कर सकें, सहानुभूति जता सकें या सिर्फ खुल कर हंस सकें (हाँ पर शायद रिक्शे वाले चाचा को छोड़कर, जो आपको हैडफ़ोन लगा कर हँसता हुआ देख न जाने क्या सोच रहें हों)।
ये वास्तविक लोगों के वास्तविक अनुभव हैं जिन्हें आप सुन रहे हैं, और यही इस पॉडकास्ट को अविश्वसनीय रूप से इतना भरोसेमंद बनाता है। दर्द, PCOS और मातृत्व के खतरे, हमारी डिनर टेबल बातचीत में शामिल नहीं होते हैं। पॉडकास्ट उन विषयों को कवर करता है जो महिलाओं को रोजाना परेशान करते हैं। यह विषय कपाड़िया के रोगियों के साथ बातचीत के दौरान निकलते हैं या जिनका सामना खुद टीम के लोगों को व्यक्तिगत रूप से मित्रों और परिवार के माध्यम से करना पड़ा हो।
कपाडिया अपने अनुभवों के माध्यम से लोगों के साथ जुड़ते है, बिना मेडिकल शब्दजाल के, बिना किसी डांट-डपट या अच्छे स्त्री व्यवहार के उपदेशों के जो एक डॉक्टर से आमतौर पर अपेक्षित होते हैं। व्यक्तिगत कहानियां को विशेषज्ञों, समुदाय के नेताओं, शिक्षाविदों और कई अन्य लोगों द्वारा समर्थन किया जाता है, जो बातचीत में अपने ज्ञान और अंतर्दृष्टि को लाते हैं। एक ऐसे समाज में जहाँ महिला का रूप रहस्यों के लबादे से ढका रहता है और जिसे समझ पाना बहुत कठिन है, यह पॉडकास्ट, ताज़ी हवा के झोंके के समान है।
अरुणाचलम मुरुगनांथम

भारत के पैड-मैन अरुणाचलम मुरुगनांथम द्वारा किए गए, फेमिनिन हायजीन और हेल्थ के क्षेत्र में जबरदस्त काम का जिक्र किए बिना कोई भी बातचीत पूरी नहीं होगी। उनकी कहानी अब हम सभी जानते हैं। अब, वह देश के सबसे प्रसिद्ध सामाजिक उद्यमी, टाइम पत्रिका के दुनिया के सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक हैं और पद्म श्री विजेता हैं। 1998 में, जब मुरुगनांथम ने मेंस्ट्रूएशन के दौरान अपनी पत्नी के इस्तेमाल के लिए एक सुरक्षित विकल्प बनाने के लिए इस यात्रा की शुरुआत की, तो उन्हें ‘महिलाओं के मुद्दों’ में ‘रुचि’ लेने के लिए समाज से बाहर कर दिया गया।
बाधाओं से अप्रभावित, वह अपनी रचना के साथ प्रयोग करता रहा। लोग इस अजीब शख्स से परेशान हो गए थे, जो अपने शरीर पर एक बकरी के खून से भरा रबर ब्लैडर बाँध कर घूमता रहता, और अपने द्वारा बनाए गए सैनिटरी पैड का आत्म-परीक्षण करने के लिए रक्त पंप करता था। उनकी खून से सनी पैंट काफी भयावह दिखती थी। कुछ ने सोचा कि वह पागल है और उस पर कोई प्रेतात्मा का वास है, तो दूसरों ने उसे एक विकृत सोच वाला आदमी समझा जो अध्ययन करने के लिए पैड की चीरफाड़ करता था।
जैसे-जैसे उन्होंने जाना, कि ग्रामीण क्षेत्रों में मेंस्ट्रूअल हायजीन (या इसके अभाव) और सैनिटरी पैड का युवा लड़कियों और महिलाओं की पहुँच के बाहर होने का उन पर कितना असर पड़ता है, उनका मिशन और स्पष्ट होता गया।
जब मुरुगनांथम को एहसास हुआ कि पैड बनाने वाली यह मशीन कितनी महंगी थी, उनका ध्यान नैपकिन बनाने के लिए लो-कॉस्ट मशीनों पर चला गया। वह न केवल इस मशीन को बनाने में, बल्कि उत्पादन प्रक्रिया में महिलाओं को भी शामिल करने में सफल रहे। साथ ही, उन्होंने ग्रामीण महिलाओं के लिए सुलभ सैनिटरी पैड, मेंस्ट्रूअल हायजीन के प्रति जागरूकता और रोजगार का भी सृजन किया।
उनकी कहानी ट्विंकल खन्ना की किताब द लीजेंड ऑफ लक्ष्मी प्रसाद के साथ मुख्यधारा की बातचीत में आई, जिसे अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक प्रशंसा भी मिली। इसका फिल्म रूपांतरण, खन्ना द्वारा निर्मित राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता पैडमैन , उनकी कहानी को दुनिया भर के सिनेमाघरों में ले गया।
बैंगलोर में एक टेड टॉक में उन्होंने कहा, “मैंने अपनी पत्नी के लिए एक छोटी सी अच्छी बात करने की कोशिश की। मेरा मिशन क्या है? मैं अपने जीवनकाल में भारत को 100% सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करने वाला देश बनाने जा रहा हूं … मैं इसे एक कॉर्पोरेट इकाई नहीं बनाना चाहता हूं। मैं इसे दुनिया भर में एक लोकल सैनिटरी पैड आंदोलन बनाना चाहता हूं।” आज, उनके स्टार्ट-अप, जयश्री इंडस्ट्रीज ने भारत के 27 राज्यों और सात अन्य देशों में, 1300 से अधिक मशीनें स्थापित की हैं।
डॉ नोज़ेर शेरिअर

कुछ चंद लोगों की सोच के विपरीत, कोई भी महिला एबॉर्शन (गर्भपात) को हल्के में नहीं लेती है। यह मेंटोस या पोलो मिंट के बीच चुनने जैसा निर्णय नहीं है। यह कुछ महिलाओं के लिए जीवन या मृत्यु की स्थिति हो सकती है, हालाँकि कुछ के लिए, यह चयन की बात है। उनका अपना चयन। इसे ‘ना यूटरस, ना राय’ पर छोड़ना आसान होता, यदि जीवन क्रम ऐसे चल सकता। डॉ नोज़ेर शेरिअर, एक गायनाइकोलॉजिस्ट और ओब्स्टेट्रिशन, महिलाओं के रिप्रोडक्टिव राइट्स की लड़ाई में मात्र एक सहयोगी से कहीं अधिक रह चुकें हैं। वह गर्व के साथ, सुरक्षित एबॉर्शन की पुरजोर वकालत करतें हैं और इसके लिए पालिसी को बनाने में सक्रिय रूप से शामिल हैं।
“अनुमानित 70,000 युवा महिलाओं की हर साल असुरक्षित एबॉर्शन से मृत्यु हो जाती है। और यह मूक सुनामी दिन-प्रतिदिन, साल-दर-साल, युवा महिलाओं, बेटियों, बहनों, पत्नियों और माताओं के जीवन का दावा करते हुए दरवाजे तक पहुंचती है। एक सुरक्षित एबॉर्शन लगभग सभी के जीवन को बचा सकता है। तो विवाद कहां है – नैतिक, राजनीतिक या धार्मिक – एक जीवन-रक्षक, स्वास्थ्य-रक्षा टेक्नोलॉजी में या विकल्प में?”, द हिंदू में शेरियार लिखते हैं।
संख्या हर स्टडी के साथ बढ़ती जा रही है। भारत में हुए एक अन्य सर्वे के अनुसार, असुरक्षित एबॉर्शन और एबॉर्शन से संबंधित मौतों की संख्या करीब 1.8 मिलियन है। यह आश्चर्यजनक है, और फिर भी, ग्लोबल बहस अभी भी ‘नैतिकता’ पर केंद्रित है। एबॉर्शन महिलाओं द्वारा लिया गया एक कठिन निर्णय है। बाकि हम सब की तरह, शेरिअर समझते हैं कि चाहे कानूनी हो या न हो – एबॉर्शन होता रहेगा। उचित रूप से सुपरवाइज़ किए गए एबॉर्शन सबसे सुरक्षित मेडिकल प्रक्रियाओं में से एक हैं। वह इस बात पर जोर देते हैं।
शेरिअर महिलाओं के लिए लड़तें हैं, ताकि उनके शरीर के साथ क्या होता है, यह महिलाओं का निर्णय हो। एक चिकित्सक और एक इंसान के रूप में उनका कहना है, “मैं प्रो-लाइफ और प्रो-चॉइस हूं – एक अनचाहे गर्भ के हानिकारक परिणाम, जोखिम और खतरों से बचाने के लिए, मैं एक महिला के जीवन के लिए ‘प्रो’ हूं। साथ ही मैं ‘प्रो’ हूं एक औरत के चयन के लिए कि वह अपने मन, अपने शरीर और अपने जीवन के साथ क्या करना चाहती है।”