
घरेलू हिंसा: कैसे इस ख़तरे को पहचानें और विक्टिम की मदद करें
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“यह पूरी तरह संभव है कि दो लोग जो बेइंतहा प्यार में डूबे हुए हों, एक-दूसरे के साथ कभी-कभी थोड़ी बहुत मारपीट करें, और इसे अपने प्यार का हिस्सा मानें। फिर भी, एक-दूसरे से प्यार करते रहें।” ऐसा फ़िल्म अर्जुन रेड्डी में अभिनेता विजय देवराकोन्डा ने अपने किरदार द्वारा दर्शाया है, इस फिल्म में घरेलू हिंसा का, रोमांस के एक पहलू की तरह गुणगान किया है (और इसी फ़िल्म को हिंदी में कबीर सिंह के नाम से बनाया गया)।
और इसी स्पेक्ट्रम के दूसरे छोर पर हैं, डायरेक्टर अनुभव सिन्हा और उनकी फ़िल्म थप्पड़ । इस फ़िल्म में, नायिका तापसी पन्नू अपने पति, जो दिखने में एक प्यार करने वाला पति है, से सिर्फ इस आधार पर तलाक़ की मांग करती हैं कि उसने केवल एक बार उसे थप्पड़ मारा।
यह फ़िल्म दिखाती है कि कैसे नायिका अपनी लड़ाई अकेली लड़ती है, जब उसके नज़दीकी लोग, यहां तक की खुद उसकी मां, उसे यह मनवाने पर तुली है कि केवल एक थप्पड़ के लिए शादी जैसे रिश्ते को ख़त्म नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे भुलाकर आगे बढ़ जाना चाहिए।
इस केस में, तो मानना होगा कि सिनेमा ने हमारे समाज का हूबहू चित्रण किया है। भारत में महिलाओं के प्रति हिंसा पर रोक लगाने के लिए काम कर रही एक एनजीओ, ब्रेकथ्रू इंडिया का दावा है, “भारत में हर 3 में से 1 महिला, घरेलू हिंसा के साथ जी रही है।”
नेशनल फैमिली हेल्थ मिनिस्ट्री के प्रकाशित डेटा के अनुसार, 31% विवाहित महिलाएं अपने पति के हाथों शारीरिक, मानसिक और सेक्शुअल हिंसा का शिकार होती हैं।
पति-पत्नी के बीच घरेलू हिंसा का सबसे आम स्वरुप है – शारीरिक हिंसा (27%), इसके बाद आती है मानसिक या भावनात्मक हिंसा (13%)।
ब्रेकथ्रू इंडिया के साथ काम कर चुकी, साइकोलॉजिस्ट प्राची वैश बताती हैं, “मैंने अपने जीवन में घरेलू हिंसा को ख़ुद अनुभव किया है। मेरी मां को पीटा जाता था।”
वैश के अनुसार, अक्सर विक्टिम इस दुर्व्यवहार को समझ ही नहीं पाते और नहीं जानते कि ऐसा होने पर उन्हें क्या करना चाहिए। पराये लोग और दोस्त, भी कभी-कभी इस समस्या का समाधान नहीं सुझा पाते और बिना कुछ सोचे-समझे, वे विक्टिम को रिश्ता तोड़ देने की सलाह दे देते हैं।
परिस्थितियों में बदलाव के लिए कोई भी कदम उठाने से पहले, भावनात्मक सूझबूझ और प्रॉब्लम की सही समझ होना बहुत ज़रूरी है।
वैश ने घरेलू हिंसा की पीड़िताओं के साथ काफ़ी काम किया है। वे उन सभी खतरे के संकेतों के बारे में बता रही हैं, जो हिंसक पार्टनर देता है और जिनका पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है।
घरेलू हिंसा आख़िर है क्या?

शारीरिक उत्पीड़न, घरेलू हिंसा का सबसे आसानी से पहचान में आने वाला रूप है। ये हिंसा अक्सर मन के भीतर दबे हुए ग़ुस्से का परिणाम होती है।
उत्पीड़क अपनी हरकतों को सही ठहराने के लिए, अपने पार्टनर को ही दोष देता है और उसे ही अपराधी महसूस कराने की कोशिश करता है। वह ऐसे कई तर्क देते हैं, “देखा, तुमने मुझे क्या करने पर मजबूर कर दिया। ऐसा करने के लिए तुमने ही मुझे उकसाया था।”
मानसिक और भावनात्मक उत्पीड़न अक्सर किसी को अलग-थलग कर देने से जुड़ा होता है। ऐसा करने वाले, अक्सर विक्टिम को उनके सोशल सर्कल से दूर कर देते हैं; उन्हें पूरी तरह ख़ुद पर निर्भर बना देते हैं।
उनमें हमेशा अपने पार्टनर पर नियंत्रण रखने की चाह होती है। उत्पीड़क को लगता है कि यदि वे अपने पार्टनर को कंट्रोल नहीं करेंगे तो वे उसे खो देंगे।
वे अक्सर अपने पार्टनर के फाइनेंसेस पर नज़र रखते हैं और उन्हें आत्मनिर्भर होने से रोकते हैं। इस तरह के व्यवहार, भावनात्मक निर्दयता की कैटेगरी में आते हैं।
प्राची बताती हैं, “मेरी एक क्लाइंट एक ऐसे आदमी को डेट कर रही थी, जो उसके अपने दोस्तों के साथ बाहर जाने पर बहुत नाराज़ होता था। बात इतनी बिगड़ गई कि एक दिन उसने मेरी क्लाइंट को थप्पड़ मार दिया। वो अंदर तक हिल गई। लेकिन फिर भी सारा दोष ख़ुद पर लेते हुए, उसने अपने बॉयफ्रेंड के व्यवहार को यह कहते हुए सही ठहराया कि उसने ही उसे गुस्सा दिलाया था। आमतौर पर, विक्टिम को यह अहसास ही नहीं होता कि उनका शोषण हो रहा है और हमारा समाज तो वैसे भी, महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा को बहुत नार्मल मानता है।”
प्राची कहती हैं कि उत्पीड़न सिर्फ महिलाओं का ही नहीं, पुरुषों का भी होता है और दहेज के झूठे केस में फंसाने की धमकियां और शारीरिक हिंसा उनके लिए भी आम है।
पुरुषों के मानसिक उत्पीड़न में भावनात्मक निर्दयता और उन्हें सेक्स से वंचित रखना भी शामिल है।
हमारी ज्यूडिशरी में इस तरह के सभी उत्पीड़न घरेलू हिंसा के तहत आते हैं, और कोई भी व्यक्ति इनमें से किसी भी प्रकार की हिंसा से पीड़ित हो तो वह तलाक़ की अर्जी दे सकता है।

ख़तरे के संकेत:
- बिना बात प्यार की बरसात: उत्पीड़क अपने पार्टनर पर, ख़ासतौर पर रिश्ते के शुरुआती दिनों में, चौबीसों घंटे प्यार की बरसात करेंगे। बड़ी-बड़ी बातें और शानदार हाव-भाव होंगे, और वो पूरा समय आपके साथ ही बिताना चाहेंगे। वो दावे करेंगे कि वे आपके बिना नहीं रह सकते। वो ऐसा अपने पार्टनर को अपनी संपत्ति बनाने के लिए और उन्हें हर किसी से अलग-थलग कर देने के लिए करते हैं।
- एक तरह के पैटर्न में बंधा अतीत: ऐसे उत्पीड़क का अतीत देखेंगी तो पता चलेगा कि वो कई शॉर्ट-टर्म रिश्तों में रहा होगा। वो अपने ब्रेकअप की वजह कभी नहीं बताएंगे, बल्कि ऐसा जाहिर करेंगे कि उनके पूर्व-पार्टनर ने उनको सही तरीके से नहीं समझा।
- दोगला व्यवहार: परिस्थितियों के अनुसार उनकी सोच और व्यवहार में बदलाव आ जाता है। वे खुद को लोगों के सामने बड़े शिष्ट और सेंसिटिव आचरण के साथ पेश करते हैं, लेकिन अकेले में बहुत ही गंदी और बेहूदा बातें करते हैं। वे एक ही पल में दिलकश से बहुत बेदर्द इंसान बन जाते हैं।
- कंट्रोल करने वाला व्यवहार: वो ये कभी खुलकर नहीं कहेंगे कि वे अपने पार्टनर को बदलना चाहते हैं, लेकिन धीरे-धीरे उसे बदलाव की ओर धकेलेंगे। उनका हर बात में दख़ल होता है, जैसे- उनका पार्टनर कैसी ड्रेस पहने और लोगों के बीच कैसा व्यवहार रखे। शुरुआत छोटी-छोटी बातों से होती है, लेकिन अंत अपने साथी का व्यक्तित्व और पहचान पूरी तरह से बदल देने पर होता है।
घरेलू हिंसा के विक्टिम की मदद कैसे करें
अक्सर विक्टिम के दोस्त और कलीग्स, उसे इन खतरों के बारे में आगाह कर सकते हैं। लेकिन इतने करीबी रिश्तों के बीच में अपनी टांग अड़ाना बहुत मुश्क़िल काम है। यह एक तरह से अपनी सीमाएं लांघना हुआ और इससे आपकी दोस्ती टूट भी सकती है।
प्राची कहती हैं, “बहुत से विक्टिम इन टॉक्सिक रिलेशनशिप्स में सिर्फ अपनी आर्थिक स्थिति की वजह से भी बने रहते हैं। कुछ के पास, जाने के लिए और कोई जगह नहीं होती। हर केस अलग होता है। बाहरी व्यक्ति होने के नाते, आप केवल धीरज रखने का काम कर सकते हैं।”

कुछ कहने की बजाए, उनकी सुनिए: : यह पूछना छोड़ दीजिए कि वो ऐसे पार्टनर से अलग क्यों नहीं हो रही हैं। इसकी जगह, उन्हें उम्मीद दीजिए, थोड़ा सा सुरक्षित माहौल दीजिए, ताकि उन्हें अपनी बात कहने का मौक़ा मिले। ऐसे उदाहरण दीजिए, जिन्हें आप जानते हैं, ताकि उन्हें पता चले कि दुनिया में वे पहली या अकेली इन्सान नहीं हैं, जो ऐसी समस्या का सामना कर रही हैं।
सपोर्ट एक लॉन्ग-टर्म कमिटमेंट है: हर स्थिति में उनके साथ खड़े रहें। धीरज रखें। उनका विश्वास जीतें ताकि वह आपसे अपने मन की बात कह सकें और यह समझें कि कोई भी निर्णय लेने में वे अपना पूरा समय लेंगे। सबसे ज़रूरी बात, ऐसा बिलकुल न करें कि महीनाभर उनकी बातें सुनने के बाद, उन्हें उनके हाल पर छोड़ दें।
शुरुआत कहां से करें:
डीवीएच इंडिया (डोमेस्टिक वाइलेंस हेल्पलाइन) लीगल ऐड्वाइज़री: ये संस्था लीगल प्रोफ़ेशनल्स की एक टीम के नेतृत्व में काम करती है, जो घरेलू हिंसा अधिनियम की एक्स्पर्ट है। संपर्क: 9423827818
ब्रेकथ्रू: महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली संस्था, जो हमारे समाज में महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार में बदलाव लाने का प्रयास कर रही है। संपर्क: 4166610106
मजलिस: यह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने वाली संस्था है, जो उनके न्यायिक और सांस्कृतिक अधिकार दिलाने से जुड़े काम करती है। संपर्क: 022-26662394