
आइए, प्रीमैरिटल सेक्स के बारे में बात करें
क्यों हम अपनी सेक्स लाइफ को पर्दों के पीछे छुपाकर रखते हैं?
135.6 करोड़ की आबादी के साथ, भारतीय निश्चित रूप से कहीं ज़्यादा सेक्शुअली एक्टिव हैं। लेकिन फैमिली के बीच बैठकर, प्रीमैरिटल सेक्स शब्द का जिक्र तक अपनी जुबान पर लाना, ऐसा है जैसे तेल से भरे कुंड में माचिस की तीली फेंकना और वह भी तब, जब आग उगलने को तैयार ड्रैगन वहां पहले से ही मौजूद हो। उस लक्ष्मण रेखा को पार करते ही, आप फैमिली के नाम पर लगे एक बेलिहाज़, बदनुमा दाग में तब्दील हो जाते हैं।
भारत में, हम जैसे शिक्षित एवं मॉडर्न सोच रखने वाले लोग, अपने मित्रों की डिनर पार्टियों और इंस्टाग्राम पोस्ट पर अपनी लव लाइफ के कसीदे पढ़ने में सहज महसूस करते हैं, लेकिन मम्मी-पापा के सामने, हम ऐसे ढोंग करते हैं जैसे कि हमने ब्रह्मचर्य का व्रत ले रखा हो, फिर भले ही हम 30 साल की उम्र पार कर चुके हों, अलग रहते हों और लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप में हों।
भारत में प्रीमैरिटल सेक्स को इतना मार्मिक विषय क्यों माना जाता है?
इसकी शुरुआत घर से होती है
हर वीरे दी वेडिंग और फोर मोर शॉट्स प्लीज़! के साथ, जान लें कि अभी भी ऐसे दर्जनों मैट्रिमोनियल एड्स है जो ‘वर्जिन ब्राइड’ की तलाश में हैं।
ड्रग्स और अल्कोहल की बात आती है तो पेरेंट्स अपने बच्चों के समक्ष पहले से ही ‘खबरदार मत करो ‘ का नारा लगाने लगते हैं, लेकिन प्रीमैरिटल सेक्स का तो नाम भी जुबान पर लाना किसी गुनाह से कम नहीं है।
हमने अपनी समान विचारधारा वाली महिलाओं की एक प्राइवेट कम्युनिटी, ट्वीक कनेक्ट मेंबर्स (जॉइन करने के लिए,यहां क्लिक करें), के सामने यह सवाल रखा। लगभग हर कोई इस बात से सहमत था कि आजकल पेरेंट्स बायोलॉजिकल जेंडर डिफरेंस को लेकर जागरूक हो रहे हैं, और सेक्स के बारे में भी बात करते हैं जब अचानक कोई ऐसा वाकिया (खासकर जब उनके पोर्न मैटेरियल का भांडा फूट जाता है) सामने आ जाता है, लेकिन प्रीमैरिटल सेक्स जैसा महत्वपूर्ण विषय कभी नहीं उठाया गया।
अनटैबू एजुकेशन की फाउंडर और एड्यूकेटर, अंजू किश कहती हैं, “क्योंकि पेरेंट्स खुद भी इन सब बातों पर चर्चा किये बिना ही बड़े हुए हैं, इसलिए इस विषय को लेकर उनके मन में काफी संशय होते हैं। वे डरते हैं कि बच्चों से इस बारे में बात करने पर, कहीं बच्चों का रुझान इन सब बातों की तरफ न बढ़ने लगे या वह इसे पेरेंट्स की अनुमति न समझने लग जाएं।”

उनका मानना है कि यह हमारी सामाजिक धारणाओं का नतीजा है, “भारत में, महिलाओं की सेक्स सम्बंधित ज़रूरतों को पहले कभी भी संबोधित नहीं किया गया है। इसलिए पेरेंट्स के लिए, सबसे पहले तो सेक्स अपनेआप में एक टैबू है, और दूसरी बात यह है कि एक महिला द्वारा सेक्स की शुरुआत करना उससे भी बड़ा टैबू माना जाता है।”
“हमेशा औरतों पर ही उंगली उठाई जाती है। पुरुषों को हमेशा माफ़ कर दिया जाता है। देश भर में हमारे सेक्स एजुकेशन प्रोग्राम यह दर्शाते हैं कि यह पुरातन रवैया अभी भी मौजूद है।”
अंजली शेयरन कहती हैं, “हम पीरियड्स के बारे में बात नहीं करते, इंटिमेसी के बारे में बात नहीं करते, रिलेशनशिप्स के बारे में बात नहीं करते, हम किसी भी बारे में बात नहीं करते। आज भी (जबकि मैं 32 साल की हो चुकी हूं), मेरी मॉम टीवी पर किसी इंटिमेट सीन के आते ही तुरंत चैनल बदल देती हैं।”
छोटी उम्र से सही नींव डालें
हमारी जानकारी के मूल स्त्रोत हमारे पेरेंट्स होते हैं, इसलिए प्रीमैरिटल सेक्स पर अपने बच्चों से चर्चा ना करने का मतलब है कि आप उन्हें सम्पूर्ण ज्ञान से वंचित रख रहे हैं।
उन्हें उनके हाल पर छोड़ देने से, हो सकता है कि वे गलत धारणाओं और जानकारियों के शिकार बन जाएं। यह उन सभी युवा वयस्कों के लिए एक बड़ी समस्या है, जो अपनी सेक्शुएलिटी से जूझ रहे, फिर चाहे वे सिस्जेंडर हों या क्वीर हों।
“सेक्स शादीशुदा कपल्स के लिए है” जैसी पुरानी धारणाओं और पॉप कल्चर के मिले जुले संदेशों के बीच, हमारे मैच्योर अडल्ट्स भी कभी-कभी फंसा हुआ महसूस करते हैं – तो कल्पना करें कि यंग अडल्ट्स की मनोस्थिति क्या होगी।
दमनजीत ग्रेवाल कहती हैं, “मुझे लगता है कि इस विषय पर बात न करके, हमने बेवजह इसे इतनी बड़ी बात बना दिया है। ये वर्जिन ब्राइड का कॉन्सेप्ट मुझे कभी हजम नहीं हुआ क्योंकि आदमियों पर तो ऐसा कोई नियम लागू नहीं होता।
मैं अपनी मां के बहुत करीब हूं और भले ही मैंने कभी खुलकर उनसे इस बारे में बात नहीं की, लेकिन वह मुझे समझती हैं। एक पुरानी जेनेरेशन के होने से, ताउम्र एक ही आदमी के साथ रहते हुए, हमारे पेरेंट्स के लिए यह डेटिंग और ब्रेक अप और फिर से डेटिंग के कॉन्सेप्ट को समझ पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।

अब मैं शादीशुदा हूं, और मैं चाहती हूं कि आने वाले समय में हम बच्चों को इस तरह बड़ा करें कि वे अपने शरीर पर अपना हक़ समझें और पेरेंट्स होने के नाते हम हमेशा उनके हर निर्णय को सपोर्ट करें।”
इसी वजह से किश का यह मानना है कि जितना जल्दी हो सके इस टैबू को तोड़ देना चाहिए, जैसा कि उन्होंने हमारे साथ शेयर किए गए उनके वीडियो ‘सेक्स के विषय में अपने बच्चों से कैसे बात करें‘ में भी बताया है। छोटे बच्चों की स्वाभाविक जिज्ञासाएं आपको ऐसे कई मौके देती हैं, जब आप उनके साथ बातचीत शुरू कर सकते हैं।
लेकिन जब बात सेक्स की हो तो पेरेंट्स को यह समझना चाहिए कि उनके बच्चे बड़े हो रहे हैं।
वह कहती हैं, “सबसे पहली चीज़ जो हर पैरेंट के लिए समझना बहुत आवश्यक है, वह यह है कि प्यूबर्टी में कदम रखते ही आपके बच्चे भी सेक्शुअल जीवों की श्रेणी में शामिल हो जाते हैं।”
“सेक्स सम्बंधित वार्तालाप तो बिलकुल होते ही नहीं हैं। मैं अक्सर मजाक में यह सच कह जाती हूं कि सेक्स हमारा नेशनल सीक्रेट है। हालांकि, आजकल पेरेंट्स अपने बच्चों से बात करने के महत्व को समझने लगे हैं, लेकिन ऐसा अभी भी बहुत कम प्रतिशत में हो रहा है।”
बातों के साथ बढ़ते चलें
आधिकारिक तौर पर, भारत में सहमति और विवाह की कानूनी उम्र 18 वर्ष है। इस उम्र में पहुंचने तक, हमें सहमति, सेक्शुअल हेल्थ, आनंद और जोखिमों की अच्छी समझ हो जानी चाहिए।
सेक्स सम्बंधित ज्ञान की कमी वास्तव में हमारे यंग अडल्ट्स को ज़्यादा नुक्सान पहुंचा सकती है।
लता किशोर कहती हैं, “मेरी बढ़ती उम्र में, हमारे घर में सेक्स पर कभी कोई वार्तालाप नहीं हुआ, लेकिन आज मेरी 18 साल की बेटी है और उसके खुले विचारों और स्कूल से मिल रही सेक्स एजुकेशन को देखकर मुझे बहुत हैरानी होती है। एक रात बातचीत के दौरान, उसने एक बात कही – सेक्स तो एक प्राकृतिक घटना है। तो सेक्स किस उम्र में और कब करना चाहिए, इस बात को हम इतना महत्व क्यों देते हैं, ज़्यादा ज़रूरी है कि हम सेफ सेक्स को महत्व दें। और वैसे भी, आप चाहे कभी भी करें, इसे एन्जॉय करना ज़्यादा महत्वपूर्ण है।”
किशोर ने बताया, “मैंने कभी अपने माता-पिता से इस विषय पर बात करने की हिम्मत नहीं की लेकिन मैं खुश हूं कि मेरी बेटी के साथ मेरा रिश्ता इतना खुला हुआ है। मुझे तो ऐसा लगता है जैसे मैं उससे कहीं ज़्यादा सीख रही हूं, जितना शायद वह मुझसे नहीं सीख पा रही होगी।”
अगली जेनेरेशन के बारे में किश कहती हैं, “हम टीनेजर्स और यंग अडल्ट्स (सभी जेंडर्स के) से बात करते हैं, वे सभी एक व्यक्ति के जीवन में सेक्स के महत्व को बखूबी समझते हैं और इस बारें में बात करने से शर्माते नहीं हैं – वह इमोशनल, मेन्टल और सेक्शुअल कम्पैटिबिलिटी में विश्वास रखते हैं।”
ट्वीक कनेक्ट के माध्यम से और रियल-लाइफ इंटरव्यूज के दौरान, मॉडर्न इंडिया के एक छोटे से प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते, हमारे रेस्पोंडेंट्स के विचारों को सुनकर ऐसा लगता है कि आजकल हम बिलकुल उसी फुर्ती और आत्मविश्वास के साथ अपनी पुरातन धारणाओं को उतार कर फेंक रहे हैं, जिस फुर्ती के साथ हम किसी ऐसे के साथ सेक्स संबंध बनाने को तैयार हो जाते हैं जिसे हम अपने लायक समझते हैं।
अडल्ट हो रहे बच्चों से, प्रीमैरिटल सेक्स के विषय पर बात करने के लिए, अंजू किश की गाइडलाइन्स
अनुभव के संदर्भ में: “एक छोटे बच्चे के साथ, यह बातचीत प्रीमैरिटल सेक्स से सम्बंधित ना होकर, अनुभवों के बारे में होनी चाहिए। अगर आप 17 से 18 साल के बच्चे से बात कर रहे हैं, आप उसे यह नहीं कह सकते कि ‘अपने पार्टनर के लिए या शादी होने तक खुद को बचा कर रखों’। बेशक, उनके साथ आप अपने सामाजिक और नैतिक मूल्य शेयर कर सकते हैं, लेकिन एक बार उनके साथ हर संदर्भ में जानकारी (बायोलॉजी, सेफ्टी, प्रोटेक्शन, कानूनी पहलू) बांटने के बाद, आपको उनके निर्णय और पसंद पर भरोसा करना होगा।”
सेफ्टी के संदर्भ में: “हर पैरेंट के लिए यह समझना बहुत आवश्यक है कि प्यूबर्टी में कदम रखते ही उनके बच्चे सेक्शुअल जीवों की श्रेणी में शामिल हो जाते हैं। एक बार जब वे यह स्वीकार कर लेते हैं, तो बच्चों से बात करना आसान हो जाता है और सेफ्टी के बारे में बात करना महत्वपूर्ण है – उनकी सेफ्टी और उस व्यक्ति की भी जो उनके साथ रिश्ते में हैं।” इसमें कॉन्ट्रासेप्शन और अन्य विषयों के बारे में बात करना शामिल है।
सहमति के संदर्भ में: “सेक्शुअल एक्ट के बारे में बात करने के साथ ही, आपको सहमति के कॉन्सेप्ट से भी अपने बच्चों का परिचय कराना चाहिए। आमतौर पर पेरेंट्स सबसे बड़ी गलती यह करते हैं कि वे अपने बच्चों को शोषण से सुरक्षित रहने की सीख तो दे देते हैं लेकिन यह नहीं सिखा पाते कि किसी और का शोषण भी नहीं करना चाहिए – क्योंकि हम सोचते हैं, हमने नहीं किया, हमारे बच्चे भी नहीं करेंगे।”
सहमति के बदलते स्वरुपों के संदर्भ में: “यह एक पार्टनर के साथ होने वाली बातचीत है, जैसे ‘अगर मैंने पेनिट्रेटिव वैजाइनल सेक्स की सहमति दी है, तो क्या मैं एनल सेक्स के लिए भी सहमत हूं?’ से लेकर ‘अगर मैं सेक्स के लिए अपनी सहमति दे चुकी हूं, तो क्या अपना यह निर्णय वापस लेना उचित होगा? मेरी सीमाएं क्या हैं?’ और अन्य कई सवाल। यह वार्तालाप पार्टनर्स के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके लिए आत्मविश्वास और आत्म-जागरूकता का होना बहुत ज़रूरी है जो केवल सेक्स सम्बंधित टैबू को तोड़कर ही पैदा किया जा सकता है।”