
क्या इस क्वॉरंटीन में आप हॉन्टेड महसूस कर रहे हैं?
एक पैरानॉर्मल एक्सपर्ट और साइकोलोजिस्ट के विचार
“हो सकता है, एक तुम्हारे पीछे ही खड़ा हो, और तुम्हें पता भी ना चले।” मैं 14 साल की थी, जब एक दिन शाम को वॉक करते समय, मेरी नानी ने मुझे अलग-अलग प्लेन्स से परिचित कराया – रियल प्लेन (जहां मनुष्य निवास करते हैं), एस्ट्रल प्लेन (आत्माओं की वह दुनिया जहां मरने के बाद भी वे पृथ्वी पर अपने गैर-भौतिक अस्तित्व में जीती हैं) और कॉसल प्लेन (जहां शरीर से मुक्त होने के बाद आत्माएं पहुंचना चाहती हैं)।
अविश्वास की कगार पर खड़ी, मैं उनकी बात सुनती रही, भाग कर कहीं छिप जाने की अपनी इच्छा को रोकती रही (अगर जो उन्होंने कहा वो सच था, तो भाग कर जाती भी कहां?)।
जो लोग पैरानॉर्मल में विश्वास करते हैं, उनका यकीन अटूट होता है, जैसे आपके पापा का आत्मविश्वास कि वो एक टपकते हुए नल को, प्लंबर की तरह ही, ठीक कर सकते हैं। जो विश्वास नहीं करते, अच्छा है… ना करें।
जैसा कि इस समय दुनिया पेंडेमिक के दौर में फंसी हुई है, आए दिन नए चक्रवात उभर रहे हैं और जाने कहां से ये टिड्डियों के दल अचानक फसलों पर टूट पड़े हैं, इन हालातों में, बढ़ती संख्या में बहुत से लोगों का ये मानना कि वे हॉन्टेड महसूस कर रहे हैं, कोई अचरज की बात नहीं है। हर कोई दुनिया को एक ही नज़र से नहीं देख सकता, सबकी अपनी-अपनी कहानी होती है, और इसलिए कई लोग अपनी मान्यताओं की पुष्टि के लिए पैरानॉर्मल एक्सपर्ट्स, लेजेंड्स और अन्य लोगों का दरवाज़ा खटखटाते हैं।
हमारे रेज़ीड़ेंट घोस्टबस्टर और PAIRS के को-फाउंडर, सरबजीत मोहंती ने मुझे बताया, “जब से ये लॉकडाउन शुरू हुआ है, पैरानॉर्मल गतिविधियों में अचानक एक उछाल सा आ गया है। हमें लगता है कि उनके घर में पहले से ही होता था, पर क्योंकि अब वे घर पर ज़्यादा समय बिता रहे हैं, वे इन्हें महसूस कर पा रहे हैं।”
उनका ये भी कहना है, “लोग हैल्युसीनेट भी करने लगे हैं। आजकल हमारे सामने दो तरह के मामले आ रहे हैं – पहला जहां वाकई में किसी आत्मा या एनर्जी का निवास है, और दूसरा जो मुख्यतः साइकोलोजिकल है।”
क्या आप वास्तव में हॉन्टेड हैं या आपका दिमाग आपके साथ खेल रहा है?
पैरानॉर्मल गतिविधियों में वृद्धि
क्या एक पेंडेमिक, जिसमें अचानक और दुखद रूप से लोग अपने जीवन से हाथ धो रहे हैं, किसी तरह के सुपरनैचुरल उछाल को ट्रिगर कर सकता है? क्या घर में बंद रहने से, वो भी ज़्यादार अकेले, ऐसा हो सकता है कि हम उन चीज़ों की कल्पना करने लगें, जो वास्तव में हैं ही नहीं – या उन्हें नोटिस करने लगें, जो हैं?
मोहंती कहते हैं, “अक्सर, असमय हुई मौतों को हॉन्टिंग का एक मुख्य कारण माना जाता रहा है, लेकिन ऐसा लगता है कि कोविड-19 ने सुपरनैचुरल दुनिया को और ज़्यादा सक्रिय बना दिया है। भारत और दुनिया भर से हमारे पास बढ़ती संख्या में ऐसे मामले आ रहे हैं। जब आप काम कर रहे होते हैं, आपके पास इतना समय ही नहीं होता कि एक बर्तन के अचानक अपने आप गिरने जैसी अजीबोगरीब बात पर ध्यान दें। लेकिन अगर आप घर में बिलकुल अकेले हों, बर्तनों पर नज़र हों, और अचानक बिना किसी हवा के या किसी हलचल के एक रैक गिर जाए, तो आप खुदबखुद आश्चर्य करने लगेंगे।”
साइकोलोजिस्ट प्राची वैश कहती हैं, “जेलों में सबसे अलग-थलग करके एकांत कारावास में रखना, एक तरह की इंटेरोगेशन तकनीक है। यह व्यक्ति को साइकोलोजिकली तोड़ देता है। इसी तरह, लॉकडाउन भी आपके मानस के लिए बहुत तनावपूर्ण है क्योंकि यह भी अचानक से लागू किया हुआ कारावास ही है।”
उनका कहना है, “बहुत से लोगों को इसकी उम्मीद नहीं थी, इस सदमे और असुविधा के साथ, अपने प्रियजनों से दूरी और सामान्य दिनचर्या पर लगे प्रतिबंधों के कारण इसने लोगों की साइकोलोजिकल हेल्थ पर बहुत गहरा और नेगेटिव असर डाला है।”
वे बताती हैं कि भय और चिंता, खासकर उन लोगों में जो साइकोलोजिकल तौर से कमजोर हों, एन्वॉयरमेंटल स्टिम्युलि या “हाइपरविजिलेंस” की गलत धारणा का कारण बन सकते हैं, और इसलिए इस समय हम बिलकुल कगार पर खड़े हैं।

अतीत के अवशिष्टों से निकले भूत
मोहंती, हाल ही में हुए अपने एक केस का ब्यौरा देते हुए, तीस साल की मुंबई में रहने वाली एक महिला जिसकी रूममेट ने लॉकडाउन लागू होने से पहले ही शहर छोड़ दिया था, उसके बारे में बताते हैं। वह खुद को ‘सेंसिटिव’ (जो आत्माओं को महसूस कर सकता है) मानती है, और उसे यकीन है कि चार साल पहले जब वह इस अपार्टमेंट में शिफ्ट हुई थी, तबसे उसे इस घर में किसी के होने का आभास होता रहा है लेकिन उसने कभी इन्हें कोई नुक्सान नहीं पहुंचाया। लेकिन जबसे लॉकडाउन शुरू हुआ है, वे साये ‘आक्रामक’ हो गए हैं।
रात के 2 बजे की एक डिस्ट्रेस कॉल के दौरान, मोहंती और उनकी पार्टनर पूजा विजय ने इस महिला को हिस्टीरिया की स्थिति में पाया। वह सो नहीं पा रही थी, उसे बार-बार ऐसा महसूस हो रहा था कि कोई उसके पीछे से कान में कुछ फुसफुसा रहा है, बेवजह बर्तन गिर रहे थे और वह इतना डरी हुई थी कि इतनी रात को भी घर से निकल भागने के लिए तैयार बैठी थी। विजय ने, जो एक साइकिक हैं, उसे रात में ही एक काउंसलिंग सेशन दिया और अपनी जांच शुरू की।
जिस तरह से इस लॉकडाउन ने हमारे काम करने के तरीके को बदल दिया है, घोस्ट हन्टर्स पर भी इसका काफी असर पड़ा है।
लॉकडाउन से पहले, अपने क्लाइंट्स से मिलकर, उनके वातावरण और मेन्टल स्टेट को चेक करना, उनकी इन्वेस्टीगेशन का पहला स्टेप हुआ करता था।
अब, वे फोटोज़ की साइकिक रीडिंग करके पैरानॉर्मल एनर्जी की जांच करना शुरू करते है। अगर उन्हें कोई संकेत मिलते हैं, तब वे अपने क्लाइंट्स के साथ ज़ूम मीटिंग्स रखते हैं, जिसके बाद क्लींजिंग की जाती है, और अक्सर, बहुत से काउंसलिंग सेशन देते हैं।
इस महिला के साथ वीडियो कॉल के दौरान, उनका मानना है कि उन्होंने बैकग्राउंड में एक साया देखा लेकिन उसे तनाव से बचाने के लिए, उन्होंने यह बात अपने तक ही सीमित रखी।
उन्होंने उसे कुछ दिन के लिए घर से बाहर रहने की सलाह दी और उनका दावा है कि उसके घर में उन्हें तीन-चार आत्माओं की उपस्थिति और अपार्टमेंट के सेकंड-हैंड फर्नीचर में रेसिड्युअल (अवशिष्ट) एनर्जी का आभास हुआ।
मोहंती बताते हैं, “रेसिड्युअल एनर्जी अपनेआप में कोई एंटिटी नहीं है, वह आपकी भावनाओं से बनती है – जब हम कुछ सोचते हैं, हम उस इमोशन को वातावरण में प्रसारित करते हैं। जब हम दुखी होते हैं, हम वैसी ही एनर्जी फैलाते हैं – आपने नोटिस किया होगा कि जब कोई व्यक्ति दुखी होता है, उसके कमरे में जाने पर, वहां का माहौल भी ग़मगीन महसूस होता है और कुछ अच्छा नहीं लगता। इस अपार्टमेंट के फर्नीचर ने पिछले मकान मालिक की भावनाओं को जकड़ रखा था और इसलिए वर्तमान और रेसिड्युअल दोनों एनर्जी मिलकर हमारे क्लाइंट पर बहुत भारी पड़ रही थी।”
हमें उसे वापस घर भेजने के लिए चार काउंसलिंग सेशन रखने पड़े, एक ऐसा पैटर्न जो आजकल वह अपने कई क्लाइंट्स के साथ नोटिस कर रहे हैं।
पहले, क्लाइंट्स उन्हें आमने-सामने एक्शन में देखा करते थे, लेकिन अब इन अनुभवों का आघात इतनी आसानी से नहीं जाता। चीज़ों को फिर से नार्मल करने के लिए कई काउंसलिंग सेशन लेने पड़ते हैं। क्लींजिंग का फिज़िकल प्रूफ न होने के कारण, क्लाइंट्स उनके तरीकों पर सवाल उठाते हैं, और उनके लिए भी वर्क फ्रॉम होम उतना ही दुखदाई बन जाता है जितना हमारे लिए है।
क्लींजिंग करने के साथ-साथ, वे अपने क्लाइंट्स को घर में धूप और दीए जलाने (ताकि वे शांत महसूस कर सकें) और रॉ साल्ट की क्लींजिंग करने की सलाह देते हैं, “रॉ साल्ट आपकी औरा और स्पेस को क्लैंस करने के लिए एक बहुत प्रभावी टूल है। वैज्ञानिक दृष्टि से, ये साल्ट नेगेटिव आयन को हटाकर पॉज़िटिव आयन को आकर्षित करता है, और नेगेटिव एनर्जी से लड़ता है।”
फॉल्स अलार्म
मोहंती कहते हैं कि उनके पास आने वाले मामलों में से 50% केस साइकोलोजिकल या साइंटिफिक होते हैं। एक 28 वर्षीय, पुणे में रहने वाला आदमी, हैल्युसिनेट करता था और उसे लगता था कि उसके घर में चौबीसों घंटे एक तीखी गंध आती रहती थी, उसे पूरा यकीन था कि वह घर हॉन्टेड है।
लेकिन, बुरी आत्माओं को तीखी गंध से जोड़ना थोड़ा असामान्य है और कड़ी जांच करने के बाद मोहंती और उनकी पार्टनर को पता चला कि घर में रखे एलपीजी सिलिंडर में लीकेज था, और उस गंध और हैल्युसिनेशन का असली कारण उसमें से निकल रही गैस थी।
नागपुर में टीनेजर्स के एक ग्रुप को (कुछ कजिन साथ में क्वॉरंटीन कर रहे थे) ओईजा बोर्ड के साथ प्रयोग करते हुए, ऐसा लगा की उन्होंने अपने मरे हुए ग्रैंडफादर की आत्मा को बुला लिया है और वो अब उन्हें मारने पर तुली है – धीरे-धीरे पूरी फैमिली हॉन्टेड महसूस करने लगी।
मोहंती कहते हैं, “उनके दिमाग में ओईजा बोर्ड (Ouija board) से खेलने के खुराफाती आईडिया आ रहे थे। एक लकड़ी का तख्ता ऐसा कुछ नहीं कर सकता, वह एक माध्यम नहीं है, लेकिन यह दुनिया आत्माओं से भरी हुई है, जब आप किसी को बुलाने की कोशिश करते हैं तो आप अपने लिए सिर्फ मुसीबत मोल ले रहे है। उनके केस में, यह संभवतः इडिओमीटर फिनोमेनन (ideomotor phenomenon) था।”
इस फिनोमेनन के अनुसार बोर्ड पर जो कुछ भी चल रहा होता है, उसे वो ही इंसान कर रहा होता है, जो इसे चला रहा होता है। इंसान को इस बात का सही अंदाजा इसलिए नहीं होता क्योंकि उस समय वह ख़ुद ही अपने सबकॉन्शियस माइंड से इसे रेग्युलेट कर रहा होता है।
जैसे कमरे की लाइट्स बंद कर देना और पांच सेकंड बाद खुद को ये विश्वास दिलाना कि आप हॉन्टेड हैं, तो जो आपने किया वो आपको याद ही नहीं रहता।
मोहंती और उनकी टीम ने अपनी साइकिक रीडिंग्स के आधार पर ये निष्कर्ष निकाला कि वह घर हॉन्टेड नहीं था – ये मास हिस्टीरिया और इडिओमीटर फिनोमेनन का मिला जुला प्रभाव था जिससे वह प्लेंचेट हिलता हुआ लग रहा था।
वैश कहती हैं, “हालांकि, मैं पैरानॉर्मल के अस्तित्व से इंकार नहीं करती, अगर पूरी फैमिली हॉन्टेड महसूस कर रही हो तो बेहतर होगा कि किसी अच्छे पैरासाइकोलोजिस्ट या पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर की मदद ली जाए। लेकिन अगर आप इसका साइकोलोजिकल एक्सप्लनेशन चाहते हैं, तो भय और चिंता किसी संक्रामक बीमारी से कम नहीं है।”
वह बताती हैं कि ‘शेयर डिल्युशन्स’ एक तरह का साइकियाट्रिक डिसऑर्डर है, जो यह समझाने के लिए काफी है कि पूरी फैमिली एक झूठे भ्रम में थी क्योंकि वे सब इसे बहुत दृढ़ता के साथ महसूस कर रहे थे।
साइकोलोजिकल या पैरानॉर्मल
चूंकि आत्माओं की दुनिया का एक बड़ा हिस्सा अनदेखा है, और तनावपूर्ण ज़िन्दगी और जेनेटिक फैक्टर्स के कारण साइकोलोजिकल इश्यूज बढ़ने लगे हैं, आजकल ये निर्धारित करना थोड़ा मुश्किल हो गया है कि वास्तविक कारण पैरानॉर्मल है या साइकोलोजिकल है।
वैश सहमति देते हुए कहती हैं, “तथ्यों को बराबर से चेक करना, सबूत इकट्ठे करना और मिथकों का पर्दाफाश करना प्राथमिक है। जैसे, तेज इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फ़ील्ड्स के कारण शरीर में रोंगटे खड़े हो सकते हैं, गर्दन के बाल खड़े हो सकते हैं, जी मिचलाना और खूंखार सनसनी सी महसूस हो सकती है।”
उनकी सलाह है कि घर को हॉन्टेड मान लेने से पहले, ऐसी जगहों को चेक करें जहां से अत्यधिक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एमिशन होने की सम्भावना हो जैसे पुराने इलेक्ट्रिकल तारों का कोई झुंड।
“भले ही हम आज दुनिया के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, लेकिन अभी भी हम अन्य मौजूदा आयामों के बारे में काफी कुछ नहीं जानते; यही कारण है कि पैरासाइकोलोजी की एक पूरी शाखा मौजूद है। इसलिए जब भी कहीं कोई हॉन्टिंग रिपोर्ट की जाती है, यह सुनिश्चित करना बहुत ज़रूरी है कि हर नज़रिए से उसे स्टडी किया जाए – साइकियाट्रिक, पैरासाइकोलोजिकल और सुपरनैचुरल।”
दुनिया में कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्हें समझाया नहीं जा सकता – और हर किसी का दुनिया को देखने का अपना एक नजरिया है। अगर आपको लगता है कि आप हॉन्टेड हैं या अपने ही फैसले पर सवाल उठा रहे हैं, तो पैरानॉर्मल या साइकोलोजिकल एक्सपर्ट्स की मदद लेना एक बेहतर उपाय है।
बस, अपनी छत पर लटके हुए, आपको घूर रहे व्यक्ति पर बिलकुल भरोसा ना करें।