
तब क्या करें - जब ऑफिस में ज़ोर की पॉटी आए?
कभी-कभी सच बदबूदार भी होता है
आपका बॉस करता है, आपके बग़ल में बैठी कलीग करती है, हौली पैपल ऑफ़िस में बैठे पोप फ्रांसिस भी करते हैं। चाहे कितना ही प्लान करके चलो या खाने पर कंट्रोल कर लो, पेट में गुड़गुड़ कभी भी शुरू हो जाती है और ऑफ़िस में पॉटी जाना ही पड़ता है। ऐसे समय में, स्कूल में सीखा मेंटल मैथ ज़रूर काम आता है। यदि ‘एक बंदा’ दोपहर में वॉशरूम जाता है और ‘दूसरा’ हर रोज़ ठीक तीन बजे लंच के बाद ख़ूब सारा पानी पीने के बाद सूसू जाता है – तो ‘तीसरा’ किस समय चुपके से अपनी, साइक्लॉन से भी बदतर, गैस के गोले छोड़ने के लिए वॉशरूम का इस्तेमाल कर सकता है?
हर किसी का इस शर्मनाक स्थिति को हैंडल करने का अपना तरीका होता है। कुछ के लिए, तो यह फैसला मानो करो या मरो के स्तर का होता है। कई इंडस्ट्रीज में, अलग-अलग उम्र के लोगों से बात करने पर और उनके ऑफ़िस में बाथरूम एटिकेट्स के क़िस्से सुनकर एक बात बिलकुल साफ़ हो गई है – जब जोर की लगती है, तो बस जाना ही पड़ता है।
इसे छुपाए कैसे?
हर किसी के इसे छुपाने के अपने तरीकें होते हैं, जैसे कभी भी आ जाने वाली डकार या पाद को लोग खांसकर या छींककर छुपाते हैं। एक लॉ फ़र्म में दो सीनियर पार्टनर्स के साथ मीटिंग कर रहीं नताशा ने बताया, “एक छोटे से प्रेसेंटेशंन के दौरान, मुझे बोलते-बोलते डकार आ गई। अब आ गई तो आ गई, मैंने फटाफट इसे छुपाने के लिए खाँसने का नाटक शुरू कर दिया। मैं इतना खांसी कि भगवान की दया से लोगों का ध्यान डकार से हटकर मेरे प्रति चिंता में बदल गया और मेरी जान बची।” इसको तो वह चाहकर भी नहीं रोक पाई, पर हाँ, कभी काम के बीच में पॉटी आ जाए तो वह पेट हल्का करने के बाद दे-धनाधन पूरे वाशरूम में अपना बॉडी मिस्ट छिड़कना बिलकुल नहीं भूलतीं।

“मैं तो ऑफिस में हो रहे हंगामे का पूरा फायदा उठाता हूँ। एडवरटाइजिंग के लोगों से भरे पूरे फ्लोर पर चाय पे चर्चा और शोर-गुल के दौरान मिले वह अनमोल पल अपनी भड़ास निकालने के लिए परफेक्ट होते हैं।” यह आमिर का स्टाइल है, जिसकी मदद से वह आसपास के माहौल के अनुसार अपनी जरूरतों को पूरा कर लेते हैं। बॉस का किसी पर चिल्लाना भी एक बहुत अच्छा अवसर है, जब आप एक बदबूदार पाद मार कर पुराना हिसाब-किताब बराबर कर सकते हैं।
सुरक्षित जगह
देखा जाए तो, बाथरूम ही वह जगह है जहां आप अपने डर और संकोच को छोड़ सकते हैं। लेकिन ऑफ़िस के बाथरूम में तो यह भी इतना आसान नहीं होता।
एक एमएनसी में काम कर रहीं, सोनिया और उनकी कुछ दोस्तों ने एक ऐसी सुरक्षित जगह जुगाड़ी जहाँ वह बेफिक्र हो आराम से जा सकें – एक ऐसा बाथरूम जो अलग, दूसरे फ़्लोर पर था। “नीचे वाले फ़्लोर पर कुछ कंस्ट्रक्शन के चलते उनका ऑफ़िस बंद था, पर उनका बाथरूम चालू था। दिन में वहां कोई नहीं होता (मज़दूर अपना काम हमारे घर जाने के बाद ही शुरू करते थे), यह पूरी तरह से ख़ाली पड़ा रहता था। हमने चुपके-चुपके इस बाथरूम का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। ये इतना साफ़ और शांत था कि शायद पहली बार मैं ऑफिस में इतनी बेफिक्री से पॉटी कर पाई थी।”

किसी का टॉयलेट डोर हैंडल को घूमाना, वह भी तब जब आप बिलकुल मझधार में हों, एक अजीब सी सिहरन पैदा करने के लिए काफी है। इससे तो हर ऑफिस में काम करने वाला सौ प्रतिशत वाकिफ होगा, फिर चाहे उसका बाथरूम स्टाइल कैसा भी हो। शेयर्ड वॉशरूम्स में, अक्सर यह पता होता है कि कौन किसमें घुसा है, ऐसे में यह ख्याल आना कि, ‘हाय! ना जाने वह मेरे बारे में क्या सोचेगा,’ तो नेचुरल है। हाँ, यदि आप पॉट पर बैठे-बैठे अपने घुटनों को अपने सीने से चिपकाकर अपना काम करने में माहिर हैं तो बात और है! “हम कॉलेज में यही करते थे, यूनिवर्सिटी बिल्डिंग के शेयर्ड वॉशरूम्स से बच-बचाकर, सामने के बाज़ार में एक रेस्तरां का बाथरूम इस्तेमाल करते जहाँ उस वक़्त कोई आता जाता नहीं था,” नेहा ने बताया।
अब इनकी समस्या है, बहुत कम कलीग्स वाला छोटा सा ऑफ़िस। ‘‘हमारी टीम तो छोटी है ही पर ऑफ़िस उससे भी छोटा है। आप सोच रहे होंगे, कितना अच्छा, दोस्ताना भरा माहौल होगा, पर कुछ भी कहो, है तो आखिर वर्कप्लेस। पादने के लिये, मेरा जान बचाने का रास्ता सीधा सीढ़ियों पर जा कर ही ख़त्म होता था। सातवां फ्लोर, यानि किसी आदमी का कोई नामोनिशान नहीं।” फिर भी, उनकी सलाह यह है, कि हो सके तो कोई भी बूम-भड़ाम करने से पहले ऊपर-नीचे एक नज़र जरूर मार लेना, क्या पता कोई हेल्थ-प्रेमी हरमन अपने दिन का 10,000 स्टेप्स का टारगेट पूरा कर रहा हो।
बाथरूम एटिकेट्स का सच
अब पर्दा उठाने का समय आ गया है। सवाल यह है कि ऑफ़िस के फॉर्मल माहौल में अपनी शरीर की जरूरतों के अनुसार रिएक्ट करना, आखिर सही है या गलत? पर सच यह है कि चाहे आप एक 10 लोगों के स्टार्ट-अप में काम कर रही हों या फिर किसी बड़े कॉरपोरेट ऑफ़िस में, इन सब बातों से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।

ऑफिस के एक इकलौते टॉयलेट में 10 मिनट तक कब्ज़ा कर लेने के बाद जब आप बाहर निकलते हैं तो ऐसा लगता है मानो हर कोई आपको ही घूर रहा हो, आपके ऑफिस में चुपके-चुपके पॉटी जाने का राज़ सब पर खुल गया हो। पर शायद उन्हें इतना फर्क नहीं पड़ता, जितना हम सोच-सोच के मरे जाते हैं। वह तो इस इंतज़ार में होते है की कब बदबू कम हो और वह भी उसी काम के लिए अपना नंबर लगा सकें।
हां, हमें अपना काम करने के बाद, हायजीन के बेसिक रूल्स का ध्यान रख वर्कप्लेस पर टॉयलेट्स को साफ़ ज़रूर रखना चाहिए (और यदि आप ऐसा नहीं करते, तो आपके लिए घर से ही काम करना बेहतर है)। ज़रूरत पड़ने पर ऑफ़िस में पॉटी रोकने से पाइल्स, कॉन्स्टिपेशन और आँतों की तकलीफ भी हो सकती है। हो सकता है, लम्बे समय तक इसे रोकने के बाद जब आप घर जाकर हल्का होना चाहें, तो ना हो पाएं। क्या रोकने से आप मर जाएंगे? शायद नहीं, पर सारा मज़ा जरूर किरकिरा हो जाएगा।
पढ़े-लिखे समझदार लोगों को, सिर्फ मेडिकल कंडीशन के तहत ही, पब्लिक स्पेसेस में गैस छोड़ने के लिए माफ़ किया जा सकता है। प्लीज, कम से कम, आप तो वह न बनें जो चलते-फिरते कहीं भी धुस्की मारने में अपनी शान समझते हैं, जिनसे फ्लश का एक बटन दबाने जितनी भी मेहनत नहीं होती या खासकर के वो जो लिफ़्ट से बाहर निकलते ही गैस छोड़ देते है। आप और हम, सब अच्छी तरह जानते हैं कि कौन कितने पानी में है। बस इतना याद रखिये कि हमारे कर्म बिलकुल उस खराब पेट वाले कुत्ते के गुड़गुड़ाते गैस बम की तरह हैं जो कभी भी फट सकते हैं।