
ये युवा पावरलिफ्टर आपको भी बेंचप्रेस कर सकती हैं
11 वर्षीय नोआ और 13 वर्षीय काशा ने नेशनल चैंपियनशिप में कई गोल्ड जीते
जब मैं 13 साल की थी, मुझे सही समय बताने के लिए घड़ी की सुइयां पढ़ने में भी घोर संघर्ष करना पड़ता था। स्कूल के बाद एक घंटे तक हैंड राइटिंग की प्रैक्टिस करनी पड़ती थी क्योंकि मेरी घसीटमार लिखावट टीचर्स की समझ से बाहर थी। तो हालांकि मुझे थोड़ी सी जलन महसूस होती है लेकिन साथ ही इन दोनों युवा लड़कियों का इतनी छोटी उम्र में पावरलिफ्टिंग की दुनिया में एक अविश्वसनीय मुकाम हासिल करना, मुझे विस्मित कर देता है, वो भी ऐसी उम्र में जिसमें मेरे लिए टाइम बता पाना भी बड़ा मुश्किल था।
नोआ सारा एपेन 11 साल की है और काशा निआ सचदेव 13 की, और वे दोनों कई जीतों और गोल्ड मैडल के साथ नेशनल चैंपियनशिप में पावरलिफ्टिंग कर रहीं हैं।
बिलकुल असंभव सा लगता है।
जहां तक मुझे याद है, मेरे प्रीटीन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी मेरे पीरियड का होना।
आज 28 साल की उम्र में, मुझ में केवल उबली हुई स्पैगेटी जितनी ताकत है, इसलिए अपने से आधी उम्र की लड़कियों को मेरे बॉडी वेट से अधिक के डेडलिफ्ट करता देख अविश्वसनीय सा प्रतीत होता है।
यहां तक कि मेरी मां, जो मुझे प्रोत्साहित करने के लिए किसी भी हद तक चली जाती हैं, और तो और यह विश्वास दिलाने से भी पीछे नहीं हटती हैं कि एक दिन मेरी फार्ट भी चैनल नंबर 5 जैसे महकने लगेगी, वे तक इस बात से सहमत हैं कि यह कार्य मेरी क्षमताओं से परे है।

ट्रेलिस फैमिली सेंटर की कंसल्टेंट साइकेट्रिस्ट, डॉ सईदा रुक्षेदा का कहना है कि बच्चे छोटी उम्र से ही अपने माता-पिता के व्यवहार और लक्षणों की नकल करते हैं। “यदि आप अपने बच्चे से चीखने-चिल्लाने जैसा व्यवहार बंद करने की उम्मीद करते हैं तो आपको भी उन पर चिल्लाना बंद करना पड़ेगा।” मेरे केस में, अपने पेरेंट्स के सिगरेट के स्टॉक में से बारी-बारी से चोरी छिपे सिगरेट निकालने की आदत ताकि वे नोटिस ना कर पाएं। हालांकि मैं जानती हूं कि यह एक अस्वस्थ आदत है जिससे पीछा छुड़ाने की मेरी कोशिश जारी है लेकिन इस बात को लेकर वे मुझ पर नाराज़ नहीं हो सकते क्योंकि मैंने बचपन से उन्हें सिगरेट पीते हुए देखा है।
8 साल की उम्र से ही, काशा अपने पिता निकोलाई सचदेव को जिम में अपनी लिफ्ट पर वजन शिफ्ट करते हुए देखती आ रही थी। बारबेल के साथ खेलते-खेलते, उसने उन्हें उठाना शुरू कर दिया। ऐसा करते हुए उसे पांच साल हो गए और हाल ही में नेशनल लेवल पर तीन गोल्ड मैडल जीतने के बाद तो पॉवरलिफ्टिंग के प्रति उसका प्यार और मजबूत हो गया है। वे कहती हैं, “जब मैं बार के नीचे होती हूं तो एक अलग ही एड्रेनालाईन रश सा महसूस होता है।”
नोआ का पाला पावरलिफ्टिंग से तब पड़ा जब उन्होंने अपनी बेस्ट फ्रेंड काशा के साथ शौकिया ही जिम जाना शुरू किया। वे कहती हैं, “मैं लॉकडाउन के दौरान कुछ फिज़िकल एक्टिविटी करना चाहती थी, और मुझे काशा और उसके पिता के साथ ट्रेनिंग करने में बहुत मज़ा आता था।” निकोलाई के मार्गदर्शन और पांच महीने पूरी लगन के साथ ट्रेनिंग ने उन्हें पूरी तरह बदल दिया। वह 6 इंच लम्बी हो गईं, और आज 4’8″ पर गर्व के साथ खड़ी हैं। काशा 5’10” की हो चुकी हैं।
नोआ के अभी तक के इस सफर में, हाल ही में बैंगलोर में हुए वर्ल्ड पावरलिफ्टिंग कांग्रेस इंडिया नेशनल चैंपियनशिप में जीते तीन गोल्ड मैडल शामिल हैं और अब उनकी नज़रें डेडलिफ्ट और एशियाई और वर्ल्ड चैंपियनशिप में विश्व रिकॉर्ड तोड़ने पर टिकी हुई हैं।
वे कहती हैं, “जब मैंने पावरलिफ्टिंग करना शुरू किया था, बार पर कोई भारी वजन देखते ही, मैं पहले से ही सोच लेती थी कि मैं यह नहीं कर सकूंगी, जबकि मैं कर सकती थी। मेरी बाधाएं शारीरिक से ज्यादा मानसिक रही हैं, और हालांकि इन पर काबू पाने में थोड़ा समय लगा, लेकिन मैं उनसे उबरने में कामयाब हो गई।”

पावरलिफ्टिंग में केवल ताकत का प्रदर्शन उसका सबसे आकर्षक हिस्सा नहीं होता है। इसमें तीन बेसिक लिफ्ट हैं – लो-बार स्क्वाट, डेडलिफ्ट और बेंच प्रेस। यह बहुत दक्षता, परीक्षण और श्रम मांगते हैं – मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से। अपने वजन पर हावी हो रही ग्रेविटी को चुनौती देते हुए ये पावरलिफ्टर्स इन बारबेल्स को उठाने में अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं।
काफी लंबे समय तक, पावरलिफ्टिंग और वेट ट्रेनिंग जैसे खेलों में युवाओं (बच्चों और किशोरों) की भागीदारी को लेकर वैज्ञानिक समुदाय में काफी बहस चल रही थी। कुछ लोगों का मानना था कि इस तरह के खेलों का उनके बढ़ते हुए विकासशील शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। एक्सपर्ट्स के बीच चल रही इस बहस ने इस बात की ओर ध्यान केंद्रित किया कि क्या वाकई ये गतिविधियां युवाओं की विकास प्लेट, लंबी हड्डियों के सिरों पर स्थित विकासशील टिश्यू जो बढ़ती उम्र के साथ हमारी हड्डियों की लंबाई और चौड़ाई को नियंत्रित करते हैं और जिन्हें एपिफिसियल प्लेट भी कहा जाता है, को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं।
लेकिन जैसे-जैसे और लोग इस चर्चा में शामिल हुए और बच्चों पर इसके प्रभाव का अध्ययन किया गया, नज़रिया बदलने लगा। उचित निरीक्षण के बिना तो कोई भी खेल या गतिविधि आपको घायल कर सकती है।
2000 में हुई एक स्टडी में, न्यू जर्सी के कॉलेज में प्रोफेसर और एक पीडियाट्रिक एक्सरसाइज़ साइंटिस्ट, एवरी फैगेनबॉम ने बताया, “यदि उचित ट्रेनिंग गाइडलाइन्स का पालन किया जाए और नियमित रूप से अभ्यास किया जाए तो यूथ स्ट्रेंथ-ट्रेनिंग प्रोग्राम में बोन मिनरल डेंसिटी बढ़ाने की क्षमता है। इससे मोटर स्किल और खेल प्रदर्शन में सुधार होता है और ये युवा एथलीटों को प्रैक्टिस और प्रतियोगिताओं की बढ़ती मांगों के लिए बेहतर तरीके से तैयार करते हैं।”
एल ए टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में, उन्होंने फिटनेस और मेडिकल कम्युनिटी में ज्यादातर लोगों के नज़रिए में आए 180-डिग्री बदलाव के बारे में बताया। फैगेनबॉम का कहना है, “अब हम बच्चों को बोन, टेंडन और लिगामेंट स्ट्रेंथ बढ़ाने के लिए स्ट्रेंथ ट्रेनिंग लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिससे उनके खेल के प्रदर्शन में सुधार होता है और साथ ही चोट लगने का जोखिम भी कम होता है।” इस बात पर अमेरिकन अकादमी ऑफ़ पीडियाट्रिक्स भी उनसे सहमत है।
इन युवा पावरलिफ्टर्स के पेरेंट्स ने अपनी बेटियों को पावरलिफ्टिंग की दुनिया में कदम रखने की अनुमति देने से पहले पूरी रिसर्च की।
नोआ के पिता रिज एपेन कहते हैं, “यह एक गलत धारणा है कि छोटी उम्र में वेट लिफ्टिंग करने से बच्चों के शारीरिक विकास में अड़चन आती है, या यह हानिकारक हो सकता है। वैज्ञानिक सबूत इस धारणा के बिलकुल विपरीत तथ्य प्रस्तुत करते हैं। पावरलिफ्टिंग प्रशिक्षित विशेषज्ञों के सख्त निरीक्षण में की जाती है और इसके परिणाम अविश्वसनीय हैं।”

प्यूबर्टी के दौरान हमारे शरीर में अचानक बड़े परिवर्तन आने लगते हैं। हार्मोन के एक प्रवाह ने मुझे इतना लंबा बना दिया, कि मैं अपने सारे क्लासमेट में सबसे ऊंची दिखने लगी, जगह-जगह पर बाल नज़र आने लगे। मुझे अंदाजा ही नहीं था कि मेरे शरीर के साथ क्या हो रहा था, खुद में हो रहे बदलावों को छिपाने के लिए मैं हमेशा कंधे झुका कर रहती थी।
पावरलिफ्टिंग ने नोआ और काशा को जिस तरह का आत्मविश्वास और आत्म-जागरूकता दी है, काश उस उम्र में मेरे पास होता। काशा की मां कविता सचदेवा कहती हैं, “वह (काशा) खुद का ख्याल रखती है, खासकर अपने खाने-पीने की आदतों का। वह खुद तय करती है कि उसके लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं। जीवन के प्रति उसकी सोच और दृष्टिकोण में यह बदलाव आगे जाकर उसके बहुत काम आएगा।”
हमने अपने सोशल मीडिया बायो पर साइज़ जीरो कल्चर को त्याग कर, इस मंत्र का प्रचार शुरू किया है कि ‘सभी शरीर खूबसूरत होते हैं’। हमने बॉडी पाज़िटिविटी को अपनाया और हम सबसे आग्रह करते हैं कि वे अपने शरीर को हर रूप में अपनाएं।
लेकिन फिर भी, ऐसी तगड़ी, मांसल और फिट दिखने वाली महिलाएं ज़्यादातर अपनी और ध्यान आकर्षित करती हैं क्योंकि उनके शरीर को पारंपरिक रूप से मर्दानगी के साथ जोड़ा जाता है।
रूसी टेनिस फेडरेशन के हेड ने रिकॉर्ड-ब्रेकिंग विलियम सिस्टर्स सेरेना और वीनस का उल्लेख ‘विलियम ब्रदर्स‘ के रूप में किया। बानी जे को उनकी मस्क्युलर बॉडी के लिए ट्रोल किया गया और अपमानजनक कार्टून्स में मिशेल ओबामा की बाहों पर काफी फोकस किया जाता है।
काशा बड़ी चतुराई से इस बात का जवाब देती हैं, “एक 13 साल की लड़की के रूप में, मैं अपनी मसल्स और पावरलिफ्टिंग में मिले हर एक निशान या खरोंच से बेहद प्यार करती हूं। जैसे मेरी मसल्स हैं, वैसे और औरतों की मसल्स क्यों नहीं हो सकतीं? और उन पुरुषों का क्या जिनके पास मसल्स नहीं है? क्या उन्हें औरतों की संज्ञा दी जाने लगेगी?”
कविता जोर देते हुए कहती हैं, “हर माता-पिता को अपनी रिसर्च खुद करनी चाहिए। लेकिन मेरा सुझाव है कि आप अपने बच्चों को एक मौका अवश्य दें। लड़कियों के लिए इतना मजबूत, स्वतंत्र और अपनी क्षमताओं का उचित ज्ञान होना बहुत अच्छा है।”
रिज भी इस बात से सहमत हैं, और सभी पेरेंट्स से आग्रह करते हैं कि वे अपने युवा बच्चों को कुछ अलग हटकर, असाधारण स्पोर्ट्स और एथेलेटिक एक्टिविटीज़ को एक्स्प्लोर करने का पूरा मौका दें। क्या पता, अगला वर्ल्ड चैंपियन अगले कमरे में मौजूद हो।