
"उसने पूछा कि यदि बेबी बदसूरत हुआ तो मैं क्या करूंगी"
क्या होता है जब एक औरत, किसी मजबूरी में नहीं, बल्कि एक सोची-समझी चॉइस के तहत बच्चा गोद लेने का फैसला करती है
मैं 11 साल की थी, जब मेरे पेरेंट्स ने एक अनाथालय में मेरे भाई की बर्थडे पार्टी आयोजित की थी। उस दिन मुझे महसूस हुआ कि “हम उनके साथ अपना बर्थडे मनाने के लिए यहां आ सकते हैं, लेकिन उनका बर्थडे कौन मनाता होगा?” तब से यह विचार मेरे जेहन में अटक सा गया, जिसने मुझे यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि कैसे ये बच्चे इतनी सरल खुशियों से भी महरूम हैं जैसे घर लौट कर अपनी फैमिली के पास जाना, और हमारे पास ये सुख है तो भी हम कभी-कभी इसका आभार नहीं मानते। 13 साल की उम्र में, एक आदर्शवादी टीनेजर के रूप में, मुझे यकीन था कि मैं भविष्य में एक बच्चा गोद लेना चाहूंगी, पर साथ ही मुझे अपना खुद का बच्चा भी चाहिए था।

फिर, 24 साल की उम्र में, मैं अपने हस्बैंड से मिली, उसी साल रोमांस हुआ और फटाफट शादी भी हो गई। हमने इतनी जल्दी शादी कर ली कि हमारे पास उन महत्वपूर्ण बातों के लिए समय ही नहीं था, जो कपल्स को शादी से पहले करनी चाहिए। बच्चा गोद लेना, उनमें से एक था।
पर मैं जानती थी कि वह किस तरह के इंसान हैं, इसलिए मुझे लगा कि जब समय आएगा, तब वह मुझे समझेंगे और मुझसे सहमत होंगें ।
शादी के कुछ समय बाद, मैंने उन्हें बताया कि मैं हमेशा से एक बच्चा गोद लेना चाहती थी। शुरू में, वह थोड़ा आशंकित हो गए क्योंकि उन्हें इसकी उम्मीद नहीं थी। हमें कोई जल्दी नहीं थी, हम अपनी छोटी सी दुनिया में अपने तीन कुत्तों के साथ बेहद खुश थे।
समय के साथ, उन्हें एहसास हुआ कि मैं इस बात को लेकर कितनी संजीदा हूं और धीरे-धीरे वह मेरे इस फैसले को लेकर मुझसे कहीं ज़्यादा उत्साहित दिखने लगे।

अगला कदम था, इस महत्वपूर्ण फैसले को अपने परिवारों के सामने रखना। हालांकि, किसी एडल्ट व्यक्ति का यह बहाना बनाना कि “मेरा परिवार मुझे यह नहीं करने देगा” मेरी समझ से बाहर है, लेकिन परिवार की सहमति हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण थी।
शुरू में, मेरे पेरेंट्स संतुष्ट लग रहे थे। उन्हें लग रहा था कि अंततः हम अपना खुद का बच्चा भी प्लान करेंगे।
लेकिन 2018 में, जब आखिरकार हमने पेपरवर्क करने का फैसला किया, तब जाकर उन्हें एक झटका लगा और हमें सवालों के एक सैलाब का सामना करना पड़ा – “तुम्हें क्या पता कि बच्चे की मेडिकल हिस्ट्री क्या है?” “तुम्हें तो कभी बच्चे पसंद ही नहीं थे, क्या तुम वाकई एक बच्चा गोद लेना चाहते हो?” “क्यों ना पहले अपने खुद के बच्चे के लिए प्रयास करो?”
मेरे हस्बैंड के पेरेंट्स का भी यही मानना था।
वह मेरा सबसे कठिन समय था। जैसे-जैसे हम वेटिंग लिस्ट में ऊपर बढ़ते गए, मेरी उत्तेजना बढ़ती गई – लेकिन साथ ही मेरी उदासी भी। मैं केवल यह चाहती थी कि मैं उन लोगों के साथ अपनी खुशी बांट सकूं जिन्हें मैं सबसे ज़्यादा प्यार करती थी।
जब सलाह देने की बात हो तो केवल आपका सगा परिवार ही नहीं, बल्कि दूर के रिश्तेदार भी भर-भर के अनचाही सलाह लिए आपके राह में खड़े हो जाते हैं।
वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि बच्चा गोद लेना मेरा आखिरी ऑप्शन नहीं है बल्कि एक सोची-समझी चॉइस है। मैं अपना बच्चा पैदा करने की कोशिश किए बिना ही बच्चा गोद लेना चाहती थी।
कुछ लोगों ने यह मान लिया कि मुझे फर्टिलिटी इश्यूज हैं और मुझे अनुचित सलाहों से सराबोर कर दिया गया कि मुझे क्या खाना चाहिए, क्या पीना चाहिए और प्रेगनेंसी की संभावना बढ़ाने के लिए मुझे क्या करना चाहिए।
दोस्त तरस दिखाते हुए दबे स्वर में कहते कि “मेरा परिवार कभी भी इस बात की अनुमति नहीं देगा”।
एक दोस्त तो इतनी असंवेदनशील थी कि पूछ बैठी, अगर बच्चा बदसूरत हुआ तो मैं क्या करूंगी। अब तो मैं उससे बात ही नहीं करती, लेकिन उस क्षण में, मैंने शांति से उसे जवाब दिया, “लुक्स वास्तव में कोई मायने नहीं रखते, मैं केवल इतना चाहती हूं कि बेबी हेल्दी हो। और यह संभावना तो तब भी हो सकती है अगर मैं अपना खुद का बच्चा पैदा करती हूं।”
ज्यादातर लोगों को लगता है कि बच्चा गोद लेना मतलब ढेर सारा दुखदायी पेपरवर्क, लेकिन वह तो एक केकवॉक है। असंवेदनशील टिप्पणियों के प्रति एक मोटी खाल धारण करना और उनसे प्रभावित हुए बिना अपने जीवन के निर्णायक फैसले पर अडिग बने रहना ज्यादा मेहनत का काम है।
एक बच्चे को गोद लेने के बाद एक माँ के रूप में मेरा सफर
शादी हो जाने के बाद और उम्र के ऐसे पड़ाव पर पहुंचने के बाद भी, जब औरतों में मातृत्व के भाव अपने आप विकसित होने लगते हैं, मैं उन लोगों में से एक थी जिन्हें अंदाज़ा ही नहीं था कि शिशुओं को कैसे हैंडल किया जाता है।
जब मुझे मैसेज मिला कि हम कुछ ही दिनों में अपने बच्चे से मिलने वाले हैं, मैं काफी उत्साहित हो गई, लेकिन ऐसा नहीं था कि मैं अत्यधिक भावविह्वल हो रही थी जैसा कि अक्सर लोग बताते हैं।
जब हम उससे मिलने के लिए पटना गए, वह इतनी छोटी सी थी कि मुझे उसे गोद में उठाने में भी डर लग रह था। मेरे पति ने उसे पूरे समय अपने पास रखा।
मुझे लगता था कि जब मैं पहली बार अपनी बेटी को देखूंगी, तो बिलकुल किसी नाटकीय बॉलीवुड सीन की तरह, फूट-फूट कर रोने लगूंगी। लेकिन उसके बाद ऐसे कई छोटे-छोटे पल थे जिन्होंने मुझे यह एहसास दिलाया कि यह मेरे जीवन का सबसे अच्छा निर्णय था।
पहली बार मेरी माँ को देखते ही मेरी बेटी के चेहरे पर आई एक प्यारी सी मुस्कान। एक समय पर आशंकित हो रहे दादा दादी जो अब पूरी तरह से उसके प्यार में डूब रहे थे। उसे और मेरे गोल्डन रिट्रीवर को बेस्ट फ्रेंड्स बनते हुए देखना।
जब भी मैं उसे देखती हूं, मेरा दिल ख़ुशी से फूला नहीं समाता। मैं उसके हर भाव को समझ सकती हूं, ऐसा लगता है जैसे हमारी एक गुप्त भाषा है, और वह भी यह जानती है कि अपनी मम्मा की तरफ उसकी एक नज़र, मुझे उसकी हर ज़रुरत का आभास करा देती है।
स्टीरियोटाइपिकल ‘नई मॉम’ के रोल में मुझे सिर्फ एक बॉक्स में टिक मिला है, क्योंकि मुझे लगता है कि मेरी बेटी पूरी दुनिया में सबसे प्यारी बेटी है। नहीं, सच में, वह एकदम परफेक्ट है। वह बेवजह रोती नहीं है, हमें रात भर सोने देती है और उसकी अनमोल मुस्कान सब कुछ बेहतर बना देती है।
मैं अब उसके बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती।
(अंकिता कतुरी, 33, द स्मार्केटर्स नामक एक मार्केटिंग फर्म की को-फाउंडर हैं, और यह हैदराबाद में स्थित है।)
– निकिता अरोरा को दिए गए विवरण के अनुसार
भारत में बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी पाने के लिए सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी की वेबसाइट देखें।