
यह बहुत जरूरी है कि हम अपने बच्चों को रिजेक्शन हैंडल करना सिखाएं
रिजेक्शन का दर्द काफी लम्बे समय तक बना रहता है, जो हमें भावनात्मक, शारीरिक और दिमागी तौर पर प्रभावित कर सकता है
यह चोट सीधे दिल पर लग सकती है। एक पल, आप अपनी चौथी क्लास की डेस्क पार्टनर के साथ अपने चीज़ सैंडविच शेयर कर रहे हैं, और अगले ही पल, वह सीट बदल कर अनीता के साथ बैठ जाती है, क्योंकि उसकी मम्मी ने टिफ़िन में मिनी समोसा पैक किये थे। तीस साल बाद भी, यदि आपका करीबी वर्क पार्टनर आपके बजाय किसी नए एम्प्लॉई के साथ लंच करने चला जाता है, तो पुरानी यादें फिर से ताज़ा हो जाती हैं। वही डूबता अहसास, पेट में गुड़गुड़ाहट, गुस्सा, एंग्जायटी, दुःख और जलन के भाव जैसे फिर से आपको घेरने चले आते हैं।
डेटिंग, रोमांटिक रिलेशनशिप, स्पोर्ट्स ट्राईआउट, एंट्रेंस एग्जाम, जॉब एप्लीकेशन हो या नए दोस्त बनाने की कोशिश; जिंदगी में किसी ना किसी मोड़ पर, हम सबने रिजेक्शन का सामना जरूर किया होगा। शायद, फर्क केवल इतना होगा, कि हमने कैसे रिएक्ट किया, सहन किया और फिर आगे बढ़ गए। जब हम एक एडल्ट होने के बावजूद भी इस दर्द से आज तक जूझ रहे हैं तो समझ में आता है कि यह कितना जरूरी है कि हम छोटी उम्र से ही अपने बच्चों को रिजेक्शन हैंडल करना सिखाएं।
रिजेक्शन से जो सोशल या इमोशनल चोट पहुंचती है, उसका दर्द लम्बे समय तक बना रहता है। डॉ आरती बख्शी, एक डेवलपमेंटल साइकोलोजिस्ट और एसएएआर एजुकेशन में एसईएल कंसलटेंट हैं, उनका कहना है कि वैज्ञानिकों के अनुसार “दर्द शारीरिक हो या सामाजिक, दोनों में समानता हैं। रिजेक्शन या बहिष्कृत किये जाने की पीड़ा काफी हद तक शारीरिक चोट जैसी ही होती है।”

एमआरआई ब्रेन स्कैन की स्टडीज़ में, रिसर्चर्स ने पाया कि जब हम रिजेक्शन के कारण भावनात्मक दर्द का अनुभव करते हैं, तो हमारा ब्रेन वैसे ही रिएक्ट करता है जैसा वह शारीरिक दर्द का अनुभव करते समय करता है।
एक अन्य स्टडी से पता चला है कि एक रोमांटिक पार्टनर द्वारा रिजेक्ट किए जाने का भावनात्मक दर्द, हड्डी टूटने से भी ज्यादा दर्दनाक है। एक प्लास्टर लगा दो, आराम करो, फिज़ियो के पास जाओ, और हड्डी ठीक हो जाती है। लेकिन रिजेक्शन का दर्द बना रहता है, जो हमें भावनात्मक, शारीरिक और दिमागी तौर पर प्रभावित करता है।
बच्चों को रिजेक्शन हैंडल करना सिखाएं वरना व्यस्क होने पर उन्हें ज्यादा तकलीफ हो सकती है
यदि आप रिजेक्शन का सामना आसानी से नहीं कर पाते या ऐसे दर्दनाक अनुभवों को भुला पाने में असमर्थ हैं, तो यह मानसिक तनाव, डिप्रेशन और एंग्जायटी का कारण बन सकता है। और तो और, यह हमारे आत्मविश्वास को भी बहुत हद तक प्रभवित करता है। हम बार-बार रिजेक्ट होने के डर से खुद को सबसे दूर कर सकते हैं, आक्रामक हो सकते हैं और सामाजिक संबंधों को तोड़ सकते हैं।
यह बेहद आवश्यक है कि आप अपने बच्चों को रिजेक्शन हैंडल करना सिखाएं, लेकिन साथ ही इसके संकेतों को पहचानना भी सिखाएं। वरना ऐसा भी हो सकता है कि वे बेवजह लोगों के बारे में गलत धारणाएं बनाने लगें और उनके लिए समाजीकरण एक चुनौती बन जाए।
सेक्स एजुकेशन के बारे में बात करते हुए, जो हममें से शायद कुछ भाग्यशाली लोगों को ही स्कूल में मिली होगी, स्टोरीटेलर, सेक्षुअल हेल्थ एडुकेटर और कामसूत्र एक्सपर्ट, सीमा आनंद कहती हैं कि स्कूल पाठ्यक्रम में अभी भी एक बहुत महत्त्वपूर्ण चीज शामिल नहीं है। हम बच्चों को उन भावनाओं के बारे में नहीं सिखाते जिनसे वे आगे जाकर गुजरेंगें। “एक उम्र ऐसी आएगी, जब आपको कोई पसंद आएगा या किसी पर क्रश होगा, और हममें से 99% को रिजेक्शन का सामना करना पड़ेगा। यह जीवन की एक सच्चाई है। तो ऐसा कहने के बजाय, ‘हे भगवान, तुम्हारा दिमाग खराब है क्या? हमें इसे नार्मल बताते हुए, उनसे बात करनी चाहिए। कहें, ‘हां, ऐसा सब के साथ होता है।’ पहली बार से ही बच्चों को रिजेक्शन हैंडल करना सिखाएं।” इससे उन्हें यह समझ आ जाएगा कि भविष्य में भी उन्हें इसका सामना करना पड़ सकता है, ऐसा भी हो सकता है कि एक दिन उन्हें किसी को रिजेक्ट करना पड़े, और ऐसा करने का सबसे सशक्त तरीका क्या है।

सायकोथेरेपिस्ट निशिता खन्ना कहती हैं, “क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि लड़कियों पर एसिड अटैक की संख्या कितनी कम हो जाएगी अगर लोगों को जवाब में ‘ना’ सुनना और छोटी उम्र से रिजेक्शन को स्वस्थ तरीके से हैंडल करना सिखाया जाएगा?”
बख्शी कहती हैं, रिजेक्शन सेंसिटिव डिस्फ़ोरिया (आरएसडी), रिजेक्शन सहन ना कर पाने के कई हानिकारक प्रभावों में से सबसे बुरा है। “डिस्फ़ोरिया का अर्थ है असाधारण और अत्यधिक दर्द।” ऐसी स्थिति में किसी भी डिग्री के रिजेक्शन को स्वीकार करना बहुत मुश्किल हो सकता है, थोड़ी सी असहमति को भी रिजेक्शन का नाम दिया जा सकता है।
रिजेक्शन से निपटने में पेरेंट्स बच्चों की मदद कैसे कर सकते हैं
बख्शी के अनुसार रिजेक्शन का अर्थ है – किसी के द्वारा ठुकरा दिया जाना या कुछ ऐसा खोना जिसे आप तहेदिल से चाहते हैं या जिसके साथ आप रहने की उम्मीद करते हैं। एक पैरेंट होने के नाते, जब आप बच्चों को रिजेक्शन हैंडल करना सिखाएं, तो ध्यान रखें कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप एक सक्रिय श्रोता बनें ताकि वे अपने मन की पूरी भड़ास आपके सामने निकाल सकें। इस तरह, उनकी इस तकलीफ में आप उनका साथ देते हैं।
हम लोगों में और हमारे व्यक्तित्वों में इतनी विविधता है, इसलिए जरूरी नहीं कि जो दस्ताना किसी एक के लिए परफेक्ट फिट हो वो दूसरे के लिए भी उपयुक्त हो। रिजेक्शन को हैंडल करने का सही तरीका कहने के बजाय, बख्शी कहती हैं, इन्हें हेल्थी कोपिंग मैकेनिज्म कहा जा सकता है जो सोशल या प्रोफेशनल रिजेक्शन (किसी भी उम्र में) की चुभन को कम करने में सहायक हैं और हमें हमारे बच्चों को यही सीखने और प्रैक्टिस करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
इन भावनाओं को मह्सूस करने और समझने में उनकी मदद करें
आपके फ्रेंड सर्किल में आपको या आपके बच्चे को पहले जैसा महत्व मिलना बंद हो गया। कई महीनों से तैयारी करने के बावजूद उन्हें मनचाहे कॉलेज में प्रवेश नहीं मिला।
हमें खुद को और अपने बच्चों को रिजेक्शन की पीड़ा सहन करने देनी चाहिए। हो सकता है कि छोटे बच्चे अपने मन के भाव ठीक से व्यक्त ना कर पाएं। बच्चों को रिजेक्शन के बारे में सिखाने से पहले उन्हें हर तरह की भावनाओं को महसूस करने के लिए प्रेरित करें, नाकि ‘भूल जाओ, और आगे बड़ों’, ‘अरे, कुछ नहीं हुआ, अच्छे बच्चे ऐसे नहीं रोते’।

आप उनकी भावनाओं को समझने के लिए उनसे प्रश्न पूछकर उनकी मदद कर सकते हैं, जटिल भावनाओं को आसान शब्दों में समझा सकते हैं ताकि वे उनका सामना कर सकें: तुम क्या महसूस कर रहे हो? क्या यह तुम्हें शारीरिक रूप से प्रभावित कर रहा है? कोशिश करें और भावना का वर्णन करने का सही तरीका खोजें। तुम्हें क्या लगता है कि X ने ऐसा क्या किया/कहा, जिससे तुम्हें यह महसूस हुआ? क्या तुम्हें वास्तव में लगता है कि उसने तुम्हारे बारे में जो कहा वह सच है? तुम्हारे ऐसा सोचने की वजह क्या है? यदि तुम अच्छे दोस्त नहीं हो, तो क्या यह मायने रखता है कि वह तुम्हारे बारे में ऐसा सोचता है?
यह बच्चों के दिमाग में चल रही उथल-पुथल की इन्वेस्टीगेशन करने के बारे में नहीं है बल्कि धीरे-धीरे उनके युवा दिमाग को आत्मनिरीक्षण की ओर ले जाने के बारे में है। जैसे, यदि आपके बच्चे अपने भावनाओं को शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं कर पाते हैं, तो आप उन्हें आर्ट और क्राफ्ट के माध्यम से स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
हर परिस्थिति से सीख लेने की शिक्षा दें
कहते हैं, यदि मरे नहीं तो मजबूत होके निकलोगे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दर्द नहीं होगा। पेरेंट्स अपने बच्चों को इस परिस्थिति को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर सकते हैं, यदि वे रिजेक्शन को असफलता के रूप में देखने के उनके नजरिये को बदलने के लिए उन्हें प्रेरित करें। केवल नुकसान देखने के बजाय, इसे एक ऐसे अवसर की तरह प्रस्तुत करें जिससे उन्हें अगली बार इसका सामना करने के लिए सीख मिलेगी।
क्या अलग किया जा सकता है? परिस्थिति का आकलन करें और उस कमजोर कड़ी को ढूंढें जिसे उनकी ताकत में बदला जा सकता है, इससे शायद उनके लिए एक और रास्ता खुल जाए। किसी ने आपके बच्चे से कहा कि वे उनके साथ फिल्म देखने नहीं आ सकते क्योंकि वह बहुत ज्यादा बोलता है? हो सकता है कि इस ‘ज्यादा बोलने’ को उनकी कमजोरी समझने के बजाय उनकी ताकत में बदला जा सके। शायद एक डिबेट क्लब या किसी प्रकार की डांस क्लास जहां इसे प्रोत्साहित किया जाता है, और वहां वह अपने साथियों के साथ बेझिझक पनप सकता है।

क्या आपकी बेटी को कहा गया कि उसकी लम्बाई बास्केटबॉल टीम के लिए पर्याप्त नहीं है? ऐसे में, अगले सेलेक्शन से पहले, आप उसके ड्रिब्लिंग और शूटिंग स्किल को सुधारने में उसकी मदद कर सकते हैं ताकि अगली बार जब वह कोर्ट में आए तो कोई भी उसकी लम्बाई पर सवाल न उठा सके।
छोटे लक्ष्य बनाएं जिन्हें हासिल करना आसान हो
एक निंदा या झिड़क आपके आत्मविश्वास को हिला कर रख सकती है। अगली बार आपके बच्चे रिजेक्शन के डर से ऐसी किसी भी परिस्थिति का दोबारा सामना करने में घबराएंगे। उन्हें प्रोत्साहित करने और इससे उबरने में उनकी मदद करने का एक तरीका यह है कि आप उनके लिए छोटे लक्ष्य निर्धारित करें और उन्हें इन लक्ष्यों को हासिल करने का बढ़ावा दें। साथ ही उनके साथ उनकी छोटी-छोटी जीतों का जश्न भी मनाएं।
यदि वे अपनी नई क्लास में बहुत सारे दोस्त नहीं बना पा रहे हैं, तो उनके लिए एक आसान लक्ष्य निर्धारित करें जैसे कि वे किसी एक व्यक्ति से अपने पसंदीदा खेल या शौक के बारे में बात करें, और साथ ही, उसके बारे में भी जानकारी हासिल करें। इस तरह आप उनकी समान दिलचस्पियों को सामने लाकर नए दोस्त बनाने में मदद करते हैं। और जब वे इस टास्क को बखूबी निभाएं तो उनके साथ जश्न जरूर मनाएं।
जब हमें पुरस्कार मिलते हैं तो हम और ज्यादा प्रोत्साहित होते हैं। हार्वर्ड बिजनेस प्रोफेसर टेरेसा अमाबिले, पीएचडी और ऐकडेमिक रिसर्चर स्टीवन जे क्रेमर ने उनके अध्ययन में बताया कि हमें अपनी उपलब्धियों पर गर्व करना चाहिए। छोटे उपलब्धियों का जश्न मनाने से उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और उन्हें अगले बड़े लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रेरणा मिलती है।
उन्हें आश्वस्त करें कि रिजेक्शन हमेशा उनके बारे में नहीं है
रिजेक्शन सीधे दिल पर चोट करता है, इसे अनदेखा करना बहुत मुश्किल है लेकिन हर बार यह जरूरी नहीं कि वह हमसे सम्बंधित हो। अपने बच्चो को आश्वासन दिलाएं कि हो सकता है रिजेक्शन उनके बारे में हो ही ना। हर किसी के फैसलों, पसंद-नापसंद, चाहत और इच्छाओं के पीछे उनके अपने कारण होते हैं। उन्हें समझाएं कि हो सकता है वे दूसरे व्यक्ति की चाहत के अनुसार पूरी तरह फिट न हों, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उनमें कोई कमी है। यदि वे एक व्यक्ति के लिए परफेक्ट नहीं हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वे किसी अन्य के लिए भी परफेक्ट नहीं होंगे।

रिजेक्शन का आकलन थोड़ी हमदर्दी के साथ करना बहुत महत्वपूर्ण है। यदि हम दूसरों के अलग-अलग दृष्टिकोणों को देखने की कोशिश करेंगे तो हमारे दिल पर लगी चोट थोड़ी हल्की हो सकती है और हमें दूसरे व्यक्ति के नजरिये को समझने में मदद मिलती है।
दूसरे के फैसले का सम्मान करें
बच्चों को रिजेक्शन हैंडल करना सिखाएं लेकिन साथ ही किसी के रिजेक्शन का मान रखना भी सिखाएं। ‘नहीं’ का मतलब है ‘नहीं’, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, किसी और के द्वारा स्वीकारे जाने के लिए आपको कभी भी अपनी नैतिकता या व्यक्तिगत विश्वासों से समझौता नहीं करना चाहिए। इससे आपका कोई भला नहीं होगा, यह आपके संबंधों और आत्म-सम्मान के लिए अच्छा नहीं है।
ऐसा कई बार होगा जब आपका बच्चा उस परिस्थिति में होगा जब वह किसी और को ‘नहीं’ कहेगा, इसलिए समझें कि रिजेक्शन जैसा भी हो, उसे स्वीकार करना आना चाहिए।
चाहे यह कितना ही तकलीफ़देह क्यों न हो,उसे स्वीकार करने की आवश्यकता है। अपने बच्चों को गले लगाएं, उन्हें खुलकर बोलने दें, रूठना, उदास होना, वो जो भी महसूस करना चाहें उन्हें करने दें। ऐसे समय में उनका साथ दें, और उन्हें प्रोत्साहित करें कि वे इस खोए हुए अवसर में भी एक बेहतर उपयुक्त अवसर खोजने की कोशिश करें। आप किसी को केवल यह नहीं कह सकते कि वे जो महसूस कर रहे हैं, उससे उबरने की कोशिश करे या उससे प्रभावित ना हों।
आपके बच्चों के लिए, यह जानते हुए कि वे इस ऊबड़-खाबड़ रास्ते में अकेले नहीं हैं, इसे पार करना थोड़ा आसान हो सकता है। और यह आखिरकार उन्हें उनकी सही मंजिल तक पहुंचाने में सहायक होगा।