
क्या सेक्स एजुकेशन मेरे बच्चे से उसकी मासूमियत छीन लेगी?
सफ़ेद झूठ से दूर रहें
मैंने बहुत बार यह महसूस किया है, कि मैं जब भी लोगों को अपने प्रोफेशन के बारे में बताती हूँ, तो मुझे तरह-तरह के रिएक्शन मिलते हैं – “क्या? क्या करती हैं आप?” ‘सेक्स-एजुकेटर’ जैसे शब्द का प्रभाव लोगों पर ऐसा ही पड़ता है – कुछ प्रशंसा करते हैं, कुछ अजीब महसूस करते हैं, कुछ मज़ाक उड़ाते हैं, और बाकी खुद-ब-खुद एक दूरी बना लेते हैं। यही वजह है कि, सेक्स शब्द का जिक्र आते ही, कई मां-बाप सेक्स एजुकेशन के नाम से भी घबराने लगते हैं। दुःख की बात यह है कि उनकी नज़र सिर्फ ‘सेक्स’ शब्द पर पड़ती है, और वह इससे जुड़े सबसे महत्त्वपूर्ण शब्द ‘एजुकेशन’ पर ध्यान भी नहीं देते।
सेक्स एजुकेशन असल में एक तरह की शिक्षा ही तो है, जिसका संबंध हमारे शरीर, उसमें होने वाले बदलाव, भावनाएं, रीप्रोडक्शन, यौन-व्यवहार, रिलेशनशिप्स, सुरक्षा, सहमति, आदि से है। ‘गुड-टच’ और ‘बैड-टच’ भी इसी सेक्स एजुकेशन का एक हिस्सा है, जो सही उम्र के अनुसार समय-समय पर दिया जाता है।
आश्चर्य है, यह जानते हुए भी कि सेक्स एजुकेशन वाकई में क्या है और कितनी आवश्यक है, इसके प्रभाव के बारे में लोगों के मन में इतनी शंकाएं और प्रश्न होते हैं। सबसे आम बात जो मैं कई बार सुन चुकी हूँ, “सेक्स एजुकेशन से बच्चे के मन में वह विचार जाग जाएंगे जो पहले नहीं थे, यह मेरे बच्चे से उसकी मासूमियत छीन लेगी।”
वाकई? चलिए, हम एक सामान्य-सा प्रयोग करते हैं। एक बच्चे का सामना प्रतिदिन किन-किन चीजों से होता है, उन के आधार पर हम उसके मन में क्या चल रहा होता है, यह पता लगाने की कोशिश करते हैं।

कुछ बहुत आम बातें हैं, जैसे – सोसायटी कंपाउंड में यूं ही घूमते-फिरते, दो कुत्तों के बीच चल रहे सेक्शुअल एनकाउंटर पर नज़र पड़ जाना; अख़बार में लेडीज इनरवेअर के ऐड में औरतों को कम कपड़ों में पोज़ करते हुए देखना; स्कूल के रास्ते में ‘किस’ करते हुए कपल के फ़िल्मी-पोस्टर और होर्डिंग्स या टेलीविजन पर कंडोम के ऐड या सेक्स-सीन देखना; न्यूज़ चैनल पर ‘रेप’ और ‘यौन-शोषण’ जैसे शब्द सुन कर उत्सुक होना; अपनी स्कूल बस में आते-जाते, बड़े बच्चों के बीच चल रही गुपचुप सेक्स-चर्चा को अनजाने में सुन लेना।
आपको क्या लगता है, बच्चे इन सब चीजों पर ध्यान नहीं देते होंगे या इसे लेकर उनके मन में तरह-तरह के प्रश्न नहीं उठते होंगे? वास्तविकता यह है कि सभी बच्चे अपनी उत्सुकताओं के बारे में अपने माता-पिता से खुलकर बात नहीं कर पाते, किंतु इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि वे इस सब से अनजान हैं या इस बारे में सोचते ही नहीं होंगे। बच्चे इन प्रश्नों के जवाब ढूंढने के लिए इंटरनेट अथवा अपने मित्रों का सहारा ले सकते हैं – और देखा जाए तो यह दोनों ही तरीके उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए पूरी तरह सही नहीं हैं।
मेरी ‘सेफ़-टच’ पर एक वर्कशॉप के दौरान, एक 8 साल के बच्चे ने कहा कि उसे लगता है उसकी मां ‘मूर्ख’ है (हां, उसने बिल्कुल इसी शब्द का प्रयोग किया), क्योंकि वह यह मानती हैं कि भगवान ने उनके पेट में बच्चा डाला है, जबकि वास्तव में बच्चा तो तब होता है जब आप ‘सेक्स’ करते हैं। यह बात उसके दोस्त के भाई ने उसे बताई और फिर उन्होंने सेक्स पर एक वीडियो भी देखा।
सोचिए, इतने छोटे बच्चे पर उस ‘पोर्न’ वीडियो का क्या असर हुआ होगा? आपको नहीं लगता कि अगर उसे एक पॉजिटिव तरीके से उसकी उम्र के अनुरूप सेक्स एजुकेशन दी जाती, तो यह कहीं ज़्यादा बेहतर होता? सेक्स से संबंधित सारी जानकारी नेगेटिव नहीं होती – उस जानकारी को किस तरीके से दिया गया है – वह पॉजिटिव या नेगेटिव असर डालता है।
सफ़ेद झूठ से दूर रहें। सेक्स एजुकेशन आपके बच्चे के भोलेपन को ख़त्म नहीं करती, बल्कि इसकी उचित जानकारी उन्हें अपनी मासूमियत को बचाए रखने के लिए तैयार करती है। यह उन्हें सकारात्मकता और एक जिम्मेदार दृष्टिकोण के साथ बढ़ने में मदद करेगी।
अंजू किश एक सेक्स एजुकेटर हैं और अनटैबू की फाउंडर भी हैं।
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