
खुद अपने हाथों से मेंस्ट्रूअल पैड बना कर मैंने पीरियड्स के विषय में क्या सीखा?
नई शुरुआत करने वाले ध्यान रखें कि कभी भी गर्म पानी में एक खून से सने कपड़े को न भिगोएँ
मुंबई के उपनगर की एक हरी-भरी गली में ‘कैट कैफे स्टूडियो’ है। अच्छी बात यह है कि इस कैफ़े में रोयेंदार जानवर खाने की मेज पर नहीं, बल्कि आसपास बिखरे कुशन्स पर दिखते हैं जो बहुत आकर्षक लगते हैं। कैफ़े से लगा हुआ एक छोटा-सा स्टूडियो है जहां मैं एक वर्कशॉप में भाग लेने आई हूं, जिसमे कपडे के पैड्स बनाना सिखाया जाता है। इस वर्कशॉप का सन्चालन ‘इकोफेम’ नामक एक सामाजिक उद्यम द्वारा किया जाता है, जो की ऑरोविल की कुछ महिलाओं के नेतृत्व में कार्यरत है। इसका मुख्य उद्देश्य मेंस्ट्रूअल (मासिक धर्म) प्रथाओं को समग्र रूप से अपनाते हुए हमारे पर्यावरण और समाज में एक बदलाव लाना है।
वहां कुछ महिलाएं पहले से ही प्रतीक्षारत थीं, और उनके बीच थे एक पुरुष, जो कि ‘इकोफेम’ की दूत राजसी दिवाकर के पति हैं। राजसी एक हंसमुख एवं मुखर महिला हैं, जो इस पीरियड्स की शाश्वत प्रक्रिया के विषय में जागरूकता फैलाने वाले कार्यक्रम हेतु लगातार मुंबई और छत्तीसगढ़ के बीच चक्कर लगाती रहती हैं। अपनी ‘टैडेक्स टॉक्स’ में, वह कहती हैं कि उन्होंने केवल 10 भाषाओं में ही ‘पीरियड्स’ के लिए 5000 कोड शब्द खोजे हैं। यह वाकई एक चौंका देने वाली बात है। लेकिन इस कैट कैफ़े स्टूडियो में, हालांकि, कोई भी शब्द या विषय वर्जित नहीं है।
हम सभी को मेंस्ट्रूअल पैड बनाने के लिए, एक ही तरह के आकर और नाप में कटे हुए कपड़े के आठ टुकड़े, और साथ में सुई-धागा दिया गया। त्वचा के संपर्क में आने वाली कॉटन की सबसे ऊपरी गुलाबी परत को आर्गेनिक रूप से डाई किया जाता है। पैड की गद्दी, रुई की छः पतली परतों से बनाई जाती है, जो भारी मात्रा में होने वाले प्रवाह को सोखती है, और अंतिम परत पॉलीयूरेथेन से लैमिनेट किए हुए सूती कपड़े से बनाई जाती है जो कि रिसाव को बाहर आने से रोकती है।

पहली सिलाई काफी सीधी-सादी-सी ‘रनिंग स्टिच’ होते हुए भी, उसे सफ़ाई से करना इतना सरल नहीं था। जल्दी ही, सिलाई की जटिलता से परेशान होकर लोगों का बड़बड़ाना शुरू होने लगा (“यह क्या कोई सिलाई की कक्षा है?” कोई धीमे से बोला), लेकिन कुछ कोशिशों के बाद हमारा हाथ सिलाई पर बैठ गया। अब हमने मेंस्ट्रूअल पैड को अंदर से बाहर की ओर पलट दिया ताकि काम में सफ़ाई दिखे। पैड को उसके मूल रूप में लाने के लिए एक बार फिर से उसे पलटने से पहले, हमने उसके अंतिम सिरे को छोड़कर, बाकी तीनो तरफ सिलाई कर दी। कुछ छोटी-मोटी गलतियाँ भी हुई, जैसे किसी ने पैड को अंदर-बाहर पूरा ही सिल दिया और फिर उसे काफ़ी सिलाई उधेड़नी पड़ी। अब अंतिम काम, पैड पर टिच-बटन लगाने का है, और अह्हा! अब हमारे पास अपना खून-पसीना बहा कर बनाया हुआ, सूती कपड़े का मेंस्ट्रूअल पैड इस्तेमाल के लिए तैयार है।
“ग्रामीणों को एक पूरा पैड सिलने में मुश्किल से 15 मिनट लगते हैं,” राजसी ने ठंडी सांस भरते हुए हम लोगों को कहा, जोकि घंटे भर से एक पैड सिलने के लिए जूझ रहे थे। राजसी की सलाह हैं कि लोग कपड़े के मेंस्ट्रूअल पैड को धीरे-धीरे अपनाए। डिस्पोजेबल पैड को कपड़े के पैड से बदलने का सही तरीका है, कि कपड़े के पैड को ‘पीरियड्स’ के तीसरे या चौथे दिन से काम में लेना शुरू किया जाए। एक पैड को कभी भी 6 घंटे से अधिक नहीं पहनना चाहिए। उपयोग किए हुए पैड्स को वह अच्छे से लपेटकर, एक अलग कैनवस के थैले में रख लेती हैं। उनके अनुसार, इनमें से दुर्गंध नहीं आती है। घर पहुंच कर आप इसे एक मग में, सामान्य तापमान वाले पानी में (गर्म पानी में रक्त जम जाता है), करीब 30 मिनट भिगोने के बाद हल्के डिटर्जेंट से धो लें। उनके मानना है कि सबसे अच्छा कीटाणु-नाशक तो धूप ही है, लेकिन अगर आपको सीधे धूप न मिलती हो, तो वॉशिंग मशीन में ड्राई करना उत्तम उपाय है। राजसी सावधान करती हैं, कि कभी भी सीला हुआ पैड इस्तेमाल न करें। वह अपने प्रत्येक मेंस्ट्रूअल-साइकिल के लिए कम से कम 6 पैड तैयार रखने की सलाह देतीं हैं।
राजसी ‘हाइजीन एंड यू’ का बहुत प्रचार करती हैं। यह सेनेटरी वियर के बारे में विभिन्न भाषाओं में जानकारी प्राप्त करने के लिए एक उचित संसाधन है। इसे प्रियंका नागपाल जैन द्वारा शुरू किया गया, जो खुद एक उद्यमी हैं और ‘सोच ग्रीन’ का भी संचालन करती हैं। यह संस्था पर्यावरण के अनुकूल मेंस्ट्रुअल प्रोडक्ट्स बनाती है। वर्कशॉप के अंतिम चरण में हमारी चर्चा अन्य ‘सस्टेनेबल मेंस्ट्रुएशन मेथड्स’ की ओर उन्मुख हो गई, जैसे कि ‘पीरियड पेंटी’ (कोई जोर से बोला कि “यह गर्मी के मौसम में पहनने के हिसाब से बहुत गर्म है”), ‘मेंस्ट्रूअल कप’ (“इसको इस्तेमाल सीखना थोड़ा मुश्किल है और इसे बहुत अच्छी तरह संक्रमण रहित किया जाना जरूरी है,” राजसी कहती हैं) और ‘सी स्पॉन्जेस’ (“जो कि विदेश में अधिक लोकप्रिय हैं”) और ‘फ्रीफ्लो’ (“जिसे सहजता से ग्रहण किया जा सकता है”)।
काम समाप्त होने पर, हम सब खुद से बनाए त्रुटियों से भरपूर, पर खूबसूरत पैड्स, हाथों में लेकर स्टेज पर चढ़ गए। अब यहां एक दर्जन से भी कम लोग ही बचे थे जो कि एक उत्तरदाई जीवन-शैली की ओर बढ़ रहे थे। केवल मुझे और एक अन्य को छोड़कर, बाकी सभी पहले ही ‘सस्टेनेबल मेंस्ट्रुएशन मेथड्स’ अपना चुके थे।

इस बारे में अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। ‘डाउन टू अर्थ’ नामक एक पर्यावरण पत्रिका के अनुसार, ‘द मेंस्ट्रुअल हाइजीन अलाइन्स ऑफ़ इंडिया’ (MHAI) का अनुमान है, कि भारत में लगभग 336 मिलियन स्त्रियां हैं जिन्हें मेंस्ट्रूएशन होता है, और जिनमें से 36 प्रतिशत यानि कि करीब 121 मिलियन, डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिंस का उपयोग करती हैं। अगर प्रत्येक मेंस्ट्रूअल-साइकिल में एक महिला यदि केवल आठ डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिंस भी इस्तेमाल करे, तो भी इस हिसाब से हर साल अंदाज़न 12.3 बिलियन डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिंस का कचरा धरती पर फेंका जाता है, जिसका अधिकांश हिस्सा बायोडिग्रेडेबल (प्राकृतिक तरीके से सड़नशील) नहीं है।
पर क्या यह बदलाव प्रत्येक के लिए संभव है? कमरे में उपस्थित कुछ लोगों ने कहा, कि कपड़ा उन्हें उनकी त्वचा के लिए कोमल लगता है, और यह त्वचा को चकत्तों और संक्रमण से भी बचाए रखता है। जिन लोगों ने कभी भी इसे इस्तेमाल नहीं किया था, उन्हें जरूर इसे लेकर कुछ आशंका हो सकती हैं। मैंने भी कभी कपड़ा इस्तेमाल नहीं किया, और इसे पूरी तरह से अपनाने से पहले मुझे इसके साइड-बटन ठीक से सिलना सीखना होगा।
आप तीन DIY (डू इट योरसेल्फ) मेंस्ट्रूअल पैड्स का एक किट इकोफेम से खरीद सकते हैं। यह ₹ 400 में मिलता है जिसमें कि निर्देश-पत्र, साइकिल ट्रैकिंग चार्ट, और एक सिलाई-किट शामिल है। आप यहां पूरा सेट भी खरीद सकते हैं।