
आपकी भावनाएं आपके शारीरिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करती हैं
ल्यूक कॉटिन्हो के अनुसार – गंभीर बीमारियां भावनात्मक आघातों से जुड़ी होती हैं
अभिव्यक्ति। चाहे वो द सीक्रेट के संस्थापक हों, जो यह प्रचार करते हैं “जो आप सोचते हैं, वही आकर्षित करते हैं” या आपकी मां जो हमेशा आपसे कहती हैं “सकारात्मक सोचो”, विचारों को वास्तविकता में बदलना ही इस मिलेनिअल जेनेरशन का जीवन मंत्र है। और यदि होलिस्टिक लाइफ़स्टाइल और मेडिसिन कोच, ल्यूक कॉटिन्हो की मानें, तो इस बात से बिल्कुल इनकार नहीं किया जा सकता कि हमारी सोच और भावनाएं, हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर डालती हैं।
न्यूटन ने जब मोशन का तीसरा नियम ईजाद किया होगा तब शायद उन्होंने इमोशन के बारे में बिलकुल नहीं सोचा होगा, पर यह निश्चित रूप से इमोशन पर भी लागू होता है। ल्यूक कॉटिन्हो, जो कैंसर के मरीज़ों के साथ काम करते हैं, कई शोध-आधारित अध्ययनों के ज़रिए इन निष्कर्षों पर पहुंचे हैं कि, “हमारी हर सोच या प्रक्रिया, आख़िरकार ऊर्जा ही तो है। सकारात्मक भावनाएं हमारे शरीर की कोशिकाओं को उच्च आवृत्ति का कंपन देती हैं, और नकारात्मक विचार इस कंपन को कम करते हैं, जिससे शारीरिक प्रक्रियाएं प्रभावित होती हैं।”
यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास में, एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर में इंटीग्रेटिव मेडिसिन प्रोग्राम के निदेशक डॉ लोरेंजो कोहेन कहते हैं कि, “स्ट्रेस का आपके शरीर की कार्य प्रणालियों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह आपके शरीर को कैंसर के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है।” आयोवा यूनिवर्सिटी के, होल्डन कॉम्प्रिहेंसिव कैंसर सेंटर के सह-लेखक डॉ सुसान के लुटगॉन्ड्रॉफ़ द्वारा किए गए एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि, “एंजियोजेनेसिस, सेल के माइग्रेशन और हमले की प्रक्रिया, को स्ट्रेस हार्मोन (नोरेपिनफ्रीन और एपिनेफ्रिन) प्रोत्साहित करते हैं, जो ट्यूमर का विकास कर उसे और प्रगतिशील बनाते हैं।” उससे यह निष्कर्ष निकला कि हैप्पी हार्मोन “डोपामाइन, एंजियोजेनेसिस की प्रक्रिया को बाधित कर ट्यूमर के विकास को रोकता है।”

भावनाएं अपने अंदर दबा कर रखने से, आप मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य से हाथ धोने के साथ-साथ गंभीर बीमारियों के शिकार हो सकते हैं। कॉटिन्हो समझाते हैं, “जब हम दुनिया भर के कैंसर रोगियों से परामर्श करते हैं, तो हम उनकी स्थिति का निदान करने के साथ, उसका मूल कारण खोजने की भी कोशिश करते हैं। हमारे निदान बताते हैं कि कहीं न कहीं, इस बीमारी की जड़ें किसी भावनात्मक घटना या कोई मजबूत भावना में निहित होती हैं, जो उन्होंने अपने अंदर दबा के रखी है और जिससे वह छुटकारा पाने में सक्षम नही हैं।” उनका तर्क, चीन में डालियान मेडिकल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा भी प्रतिध्वनित किया गया है, जिन्होंने ब्रेस्ट कैंसर कोशिकाओं में वृद्धि और अत्यधिक तनाव एवं अनिश्चित मनोदशा के बीच की कड़ी की जांच की। फरवरी 2019 में, द जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल इंवेस्टिगेशन में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि कैंसर रोगियों में नकारात्मक भावनाएं ट्यूमर के विकास की गति में वृद्धि करती हैं।
भावनात्मक तनाव को, कुछ व्यावहारिक आदतों का गौर से निरीक्षण कर समझा जा सकता है। कॉटिन्हो के अनुसार, “आप पाएंगे कि भावनात्मक आघात से पीड़ित लोग दूसरों को जल्दी माफ़ नहीं कर पाते, किसी के प्रति कृतज्ञता महसूस नहीं करते और बदलाव के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। उन्हें बहुत जल्दी ग़ुस्सा भी आ जाता है, वे बहुत कम या बहुत ज़्यादा बातें करते हैं और उन्हें अक्सर ओवरईटिंग में सुकून मिलता है।”
लेकिन सबसे ज़्यादा ज़रूरी सवाल यह है कि, विचार और भावनाएं हमारे शरीर को इस हद तक कैसे प्रभावित करती हैं? “कैंसर एक इंफ्लेमेटरी बीमारी है, और भावनात्मक तनाव, यदि लंबे समय तक मन में दबा रहे तो शरीर में सूजन ला सकता है,” वह खुलासा करते हैं। गंभीर भावनात्मक तनाव आपके पेट के स्वास्थ्य को भी नुक्सान पहुंचा सकता है और आपकी इम्युनिटी को प्रभावित कर आपके शरीर को कई बीमारियों का घर बना सकता है।
चित्र: पैगी और मार्को लछमन-अंके / पिक्साबे
बच्चों का परीक्षा से पहले के तनाव की वजह से बीमार पड़ जाना इसका सबसे सामान्य उदाहरण है। तनाव का नकारात्मक प्रभाव आपकी नींद पर भी पड़ सकता है। “जब हम सोते हैं, तो हमारा शरीर मेलाटोनिन छोड़ता है जो कैंसर-विरोधी हार्मोन है,” कॉटिन्हो कहते हैं। गहरी नींद की कमी स्पष्ट रूप से आपके बीमारी को ग्रहण करने के जोखिम को बढ़ा सकती है। ऐसा ही नकारात्मक और सकारात्मक भावनाओं के साथ होने वाले हार्मोनल उतार-चढ़ाव से हो सकता है। “हार्मोन में परिवर्तन या कमी, जैसे कोर्टिसोल का बढ़ना या एस्ट्रोजन का स्तर गिरना, अक्सर शरीर को तनाव देते हैं और जो हॉर्मोन्स-आधारित कैंसर को जन्म देते हैं।”
कॉटिन्हो का मानना है कि लगभग हर बीमारी भावनात्मक परेशानी से जुड़ी होती है। उनके मुताबिक़, ग़ुस्से और क्रोध से लोगों को दिल और लिवर से संबंधित बीमारियां होती हैं, वो लोग जो अपने भीतर कड़वाहट और क्रोध को दबाए रखते हैं उन्हें गालब्लैडर से जुड़ी समस्याएं होती हैं और जो लोग स्नेह और असुरक्षा की भावना महसूस करते हैं उनके पेट के आसपास वज़न बढ़ जाता है। इसीलिए यह बहुत ज़रूरी है कि आप अपने शरीर पर काम करें और केवल दवाइयां खाने की बजाय, न्यूट्रिशन युक्त भोजन के साथ-साथ अपनी भावनात्मक सेहत पर भी ध्यान दें।
इसका सबसे पहला क़दम है कि आप अपनी भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक स्थिति को स्वीकारें। चीज़ों को स्वीकारने से सुधार लाने की प्रेरणा और इच्छा जागती है। कॉटिन्हो शांत मन और सकारात्मक नज़रिए के लिए कुछ आसान से उपाय सुझा रहे हैं:
योग में अपना हाथ आजमाएं
“योग अपने आप में एक संपूर्ण साधन है जिसमें आसन, प्राणायाम और ध्यान न सिर्फ़ आपके शरीर को स्वस्थ करते हैं बल्कि आपके दिमाग़ और दिल के साथ तालमेल भी बिठाते हैं।”
गहरी सांस लें
“गहरी सांसें लेना भी बहुत प्रभावी और सौभाग्य से बिल्कुल मुफ़्त प्रक्रिया है, जो तनाव (कॉर्टिसोल) के स्तर को तुरंत कम करती है। गहरी सांस लेने से कोशिकाओं में ज़्यादा मात्रा में ऑक्सिजन पहुंचता है, जिसकी तनाव की स्थिति में शरीर में कमी हो जाती है। यह ऑक्सिजन आपके शरीर को तनाव से निकालकर आराम की स्थिति में पहुंचा देता है।”

सकारात्मक प्रतिज्ञाएं लें
“ख़ुद को लगातार सकारात्मक कथनों के साथ सुझाव देते रहना चाहिए और उसे ऊंची आवाज़ में बोल के या अपने मन में दोहराते रहना चाहिए, ताकि हमारा अवचेतन मन उसके साथ ढल सके। उदाहरण के लिए, रोज़ाना यह दोहराना कि ‘मैं स्वस्थ और प्रसन्न हूं’ आपके मन को इस बात का भरोसा दिला देगा और आपका मन सकारात्मक आवृत्ति पैदा करेगा।”
अपनी भावनाएं मत दबाइयें
“अच्छी हो या बुरी, भावनाएं प्रदर्शित करना ज़रूरी है, उन्हें दबा कर रखने से गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। हम अक्सर भौतिक चीज़ों की ओर आकर्षित हो जाते हैं, जैसे- ड्रग्स और ऐल्कहॉल, ताकि अपनी भावनाओं को सुन्न कर सकें। व्हिस्की का वो ग्लास या सिगरेट का वो पैकेट आदत बनकर आपके सच्चे एहसासों को कुछ समय के लिए छुपा तो सकता है, लेकिन आपकी समस्या की जड़ तक पहुंचकर वह उसे ठीक नहीं कर सकता।”

अपने जैसे लोगों को ढूंढ़ें
ये बात अजीब लग सकती है, पर सच है। “ऐसे लोगों, जगहों और स्थितियों के साथ समय बिताना कम या बंद कर दें, जो आपकी ऊर्जा को चुरा लेते हैं और अपको नकारात्मक महसूस कराते हैं। अपने दोस्तों, परिजनों, क़रीबियों और बच्चों की मदद लें, जो आपकी भावनाओं को अभिव्यक्त करने में आपकी मदद करें – वे लोग, जो सचमुच आपका ख़्याल रखते हैं हमेशा आपकी मदद को तैयार मिलेंगे। कुछ स्थितियों में, जब आघात बहुत गहरा होता है, तो किसी काउंसलर या इमोशनल हीलर की प्रोफ़ेशनल मदद भी लेनी पड़ सकती है।”
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स्टाइलिस्ट: दिव्या गुरसाहनी; मेकअप: रिद्धिमा शर्मा;हेयर: क्रिसन्न फ़िगरेडो; मॉडल: गायत्री हरिहरन/इनेगा; गायत्री पर: ड्रेस, एच ऐंड एम