
करियर की उड़ान भरने से पहले ही बर्नआउट होने से कैसे बचें
26 साल की कम उम्र में सीखा एक बड़ा सबक
इस भागम-भाग से भरी दुनिया में, हमें हमेशा यह सिखाया जाता है कि सिर्फ कड़ी मेहनत, सबसे शीघ्र और सबसे अच्छा काम करके ही करियर में सफलता पाई जा सकती है। हम इस नए युग की पीड़ा को बिलकुल विक्रम और बेताल के जैसे अपने कंधो पर लादे घूम रहे हैं – जहां तनाव का स्तर इंगित करता है कि आप अपने करियर में कितने सफल हैं।
मानसिक तौर पर, हम हमेशा काम में ही उलझे रहते हैं। नहाते वक़्त नई योजनाएं बनाना, ऑफिस जाते समय रिक्शा पर ईमेल चेक कर लेना और यहां तक कि रात को भी ऑफिस के कामों की लिस्ट बनाते हुये ही सो जाना। बढ़ती थकान और काम के प्रति अलगाव, धीरे-धीरे हमें एक ऐसी कगार पर लाकर खड़ा कर देता है, जहां सब थम जाता है। अगर आप भी इस स्थिति में हैं, तो बधाई हो आप बर्नआउट से रूबरू हो चुके हैं।
कई एक्सपर्ट्स – फिर चाहे वो आपकी कालोनी की आंटियां हों या मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स हों, बर्नआउट को मेडिकल कंडीशन नहीं मानते। सच कहूं तो, मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि 26 साल की उम्र में, इस दिमागी उलझन से बचने के लिये मैं देर रात ऑफिस से निकलकर घर जाने के लिये कोई लंबा रास्ता तय करूंगी और बेवज़ह राह चलते लोगों को तकती रहूंगी।
मई 2019 में, वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने उनकी डायग्नोसिस गाइड बुक ‘द इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ़ डिसीसेस’ में बर्नआउट सिंड्रोम को आधिकारिक तौर पर एक मेडिकल डिसऑर्डर के रूप में वर्गीकृत किया था।
व्यापक रूप से, बर्नआउट या बर्नआउट सिंड्रोम एक दुर्बल पैमाने पर नौकरी से संबंधित तनाव है, जो आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है।। इस स्थिति को मैंने खुद अनुभव किया है, जब मैं अपने काम में रूचि खोने लगी और उसके प्रति गैर ज़िम्मेदार हो गई थी। मेरा काम जो कभी मुझे बहुत उत्साहित करता था, उसे मैं उपेक्षित करने लगी थी। बीमारी का बहाना कर घर से काम करना, लेट लतीफी दिखाना, परिणाम की चिंता किये बिना बेवक्त काम पर पहुंचना, जैसे मेरी आदत बन गया था। मेरा शरीर मैकडोनाल्ड के आलू टिक्की बर्गर और कैफीन पर चल रहा था, जिसने मेरे डाइजेशन पर कहर ढाया। साथ ही मुझे अपनी फेवरेट जींस से भी हाथ धोना पड़ा, सो अलग।
बर्नआउट के संकेतों की भी एक रेंज है और मुंबई के माइंडसाइट क्लिनिक की संस्थापक और मनोचिकित्सक, जेनी साल्वा इन्हें तीन कैटेगरी में बांटती हैं –
बर्नआउट का पैमाना

→ थकावट– आप हर समय भावनात्मक रूप से कमज़ोर महसूस करते हैं। थके-मांदे जैसे अभी पांच हज़ार कदम चलकर आये हों और सीधे ही काम पर लग गये। फिर चाहे, आप कितने ही घंटे सो लें या कॉफी के कितने ही कप गटक लें, आपको हमेशा बदन टूटने जैसा एहसास होता रहता है।
→निराशा– अपने सहकर्मियों का तिरस्कार करना और उनसे अलग-थलग रहना, हमें अकेलेपन का शिकार बना देता है। मुझे अयोग्य टीम मेंबर्स से चिढ़ होने लगती थी और जरा भी अपने अनुकूल काम नहीं होने पर बहुत जल्द आग-बबूला हो जाती थी।
→ प्रदर्शन में गिरावट– थकान और निराशा के परिणामस्वरूप आप एक ग़ैरदिलचस्प, हताश और असक्षम कर्मचारी में तब्दील होने लगते हैं।
कई बार मुझे बहुत हैरानी होती है कि करियर की शुरूआत में ही मुझे कैसे बर्नआउट फील हो सकता है। सिर्फ चार सालों में, कैसे मेरे जैसी लड़की जिसकी आंखों में सितारे और पैरों तले सारी ज़मीन होनी चाहिये थी, खुद को इस निराशावाद के दलदल में धंसा हुआ पा सकती है?
मनोचिकित्सक और मेंटल हेल्थ काउंसलर, उर्वशी भाटिया विकसित हो रहे वर्क कल्चर को दोष देती हैं जिसमें अत्यधिक डिजिटलीकरण और तीव्र प्रतिस्पर्धा आपस में टकराते हैं। काम हमेशा आपके दिलोदिमाग पर छाया रहता है, फिर चाहे आप घर पर हो या ऑफिस में। अमेरिका में 615 एच आर प्रोफेशनल्स पर सर्वे किया गया, तो पता चला कि इस वजह से संगठनों की अपने कर्मचारियों पर पकड़ ढ़ीली हो रही है।
हाल ही में, 7500 फुल टाइम कर्मचारियों पर की गई एक गॉलअप स्टडी की रिपोर्ट के अनुसार, 23% कर्मचारी ‘हमेशा’ ही बर्नआउट महसूस करते हैं और 44% को यह ‘कभी-कभी’ महसूस होता है। अगर समय रहते इस समस्या पर काम नहीं किया गया, तो वे कर्मचारी भी ‘कभी-कभी’ से ‘हमेशा’ वाली कैटेगरी में शामिल हो सकते हैं।
सोशल मीडिया ने इसे और मुश्किल कर दिया है। #ब्लेस्ड, खूब मेहनत-खूब मौज करें और खुद को निरंतर श्रेष्ठ दिखाने वाली तस्वीरों से भरे फीड्स ने हमारी स्थिति को और बदतर बना दिया है।
हालांकि बर्नआउट का कोई इलाज नहीं है और सावला ज़ोर देती हैं कि हर व्यक्ति के लिये इसकी रिकवरी प्रक्रिया बिल्कुल अनोखी है। फिर भी कुछ महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखा जा सकता है।
बर्नआउट से बचाव के उपाय

→ नीरसता को तोड़िये- जब आपको ब्रेक की आवश्यकता महसूस होती है, डेस्क पर बैठे-बैठे यूट्यूब पर फ्लिप करना ज्यादा आसान लगता है। पर सावला कहती हैं, कि इसके बजाय थोड़े समय के लिये अपने वातावरण में बदलाव लाएं। आप चाहे तो अपने ऑफिस की बिल्डिंग में घूम आयें या चाय ब्रेक पर जाकर आएं और तरो-ताज़ा महसूस करके वापस डेस्क पर आएं।

→ अपने टाइम मैनेजमेंट स्किल्स को बेहतर बनाइये- भाटिया सलाह देती हैं, कि आप अपने हर काम की खुद ही मैनेजेबल डेडलाइन्स बनाइये। ऑफिस में आकर सबसे पहले 10 मिनट खुद को दें। अपने उस दिन के कार्यों की सूची बनाएं, इससे आपको अपनी प्रगति को ट्रैक करने में आसानी होगी। जैसे-जैसे आपके कामों की सूची घटती जायेगी, आपको संतुष्टि महसूस होगी।
→ नींद और स्वस्थ आहार को महत्व दें- बेशक आप तीन घंटे सोकर, सारा दिन एनर्जी के साथ काम कर सकते हैं, लेकिन यह हानिकारक है। भाटिया के अनुसार दिमागी सेहत के लिये के लिए कम से कम 6 घंटे की अच्छी नींद अतिआवश्यक है। और अगर सुबह आपके पास सेहतमंद नाश्ते के लिए समय नहीं है, तो आपके लिये नरिश ऑरगेनिक्स (Nourish Organics) , द निब्बल बॉक्स (The Nibble Box) और द ग्रीन स्नेक्स (The Green Snack Co) अच्छे विकल्प हो सकते हैं।
→ तनाव दूर करने के लिये अपने खुद के उपाय ढ़ूंढ़े- अगर आप ऑफिस में तनाव महसूस कर रहे हैं, तो आप भी मेरी तरह बाथरूम में रिलेक्सेशन एक्सरसाइज़ करते हुये कुछ टाइम बिताइये। 4-7-10 ब्रीथिंग टेक्नीक से भी तनाव को कम किया जा सकता है। सबसे पहले नाक से सांस लेते हुये दिमाग में 4 तक गिनिये और फिर 4 से 7 तक गिनते हुये सांस को रोककर रखिये और फिर 7 से 10 तक गिनते हुये सांस को छोड़ दीजिये। इससे आप शांत महसूस करेंगे। कुछ लोगों को अपनी जगह से उठकर टहलने से आराम मिलता है, तो कुछ लोग यूट्यूब पर वाइट नोयस लूप वीडियो सुनकर भी मानसिक शांति पा सकते हैं।
अपनी रिकवरी के दौरान, मैं खुद को याद दिलाती रहती हूं कि हालांकि मुझे अपने काम से बहुत लगाव है, पर कभी-कभी लड़खड़ाना भी ठीक है। मैंने परफेक्ट वर्क-लाइफ बैलेंस के बारे में सोचना छोड़ दिया है, क्योंकि ऐसा कुछ नहीं होता। यह तो रोज़ाना की प्रैक्टिस है। मैं तनाव को अपना दोस्त बनाना सीख रही हूं ताकि मैं अपनी सुविधा अनुसार जब चाहे इसे अपना सकूं, आखिर इसका साथ कभी-कभी हमारे लिये उपयोगी भी साबित होता है। फिर शायद एक दिन यह मेरे लिए महत्वहीन हो जाएगा और मैं इसे उतनी ही सहजता से दूर कर सकूंगी, जिस सहजता के साथ मैं फेसबुक के फ्रेंडशिप रोमियोज़ को अपने इनबॉक्स से बाहर निकाल फेंकती हूं।