
क्या 'क्लीन' ईटिंग आपको 'डर्टी' महसूस करा रही है?
कहीं #इंस्टाफ्रेंडली फैड डाइट उपयोगी साबित होने की बजाय परेशानी का कारण न बन जाए
रात भर भिगोए हुए ग्लूटन-फ्री ओट्स, जो कि बैरीज, यूनिकॉर्न डस्ट, और वर्जिन ब्लड से तर हों—आपके ‘क्लीन ईटिंग’ मित्रों द्वारा बताई गई ऐसी रेसिपीज़ के इंग्रीडिएंट्स की खोज में अगर आप सुपर मार्केट में भटक रहे हों, तो आप भी मेरी श्रेणी में शामिल हो गए हैं। और जब जी भर के पीज़ा और बीयर खा-पी चुकने के बाद, आप यह सोचकर घबराहट और पसीने से तर हो रहे हों कि अब आपका अगला ‘चीट मील’ 200 प्रकाश-वर्ष दूर है, तो समझ जाइए कि आपको ‘क्लीन ईटिंग’ के कीड़े ने काट लिया है।
इस फैड डाइट का चलन, जो सबसे पहले ब्रिटिश ब्लॉगर एला मिल्स की डिलीशियसली एला, से शुरू हुआ था, 2011 में इसे बहुत नापसंद किया गया, और बाद में वेलनेस एक्सपर्ट्स, रेस्टोरेंट्स और सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स द्वारा प्रसिद्धि पाकर यह #ईटक्लीन की लहर के रूप में फैल गया। ऐसा खाना, जिसका नाम आप सरलता से उच्चारित कर सकते हों, उनके बदले ज़रा फूलगोभी क्रस्ट पीज़ा, डेस्सेर्ट के लिए खजूर, कंबूचा और केफ़िर को उनकी जगह ले लेने की कल्पना कीजिए! तो ऐसी क्या बात है कि डॉक्टर्स इसकी आलोचना कर रहे हैं और क्या क्लीन डाइट वाकई इंस्टाग्राम पर ‘लाइक्स’ आकर्षित करने से बढ़कर भी कुछ है? डॉक्टर विशाखा शिवदासानी, जो न्युट्रिशन विशेषज्ञ हैं और डॉक्टर जैनी सावला जो माइंडसाइट क्लीनिक में मनोचिकित्सक हैं, इस बारे में चर्चा कर रही हैं।
क्लीन ईटिंग क्या है?
शिवदासानी के अनुसार, “क्लीन ईटिंग की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है — इसमें ज़्यादा मात्रा में साबुत भोजन जैसे फल, सब्जियां, लीन-प्रोटीन, साबुत अनाज और हैल्दी फैट्स का सेवन शामिल है और प्रोसेस्ड स्नेक्स, मिठाइयां, अन्य पैकेज्ड फूड के सेवन को सीमित करना। लेकिन क्लीन ईटिंग की परिभाषा, इसे अपनाने वाले व्यक्ति के उद्देश्य के अनुसार और अधिक सीमित हो सकती है।” फैट और वज़न कम करना, एनर्जी लेवल बढ़ाना, बेहतर त्वचा और बाल, मानसिक स्वास्थ्य और अच्छी नींद, आदि लाभों के साथ- आप क्यों नहीं इसे अपनाकर अपना कार्यालाप सुधारते?

खानपान में बदलाव से कहीं अधिक यह आपके लाइफस्टाइल में एक होलिस्टिक बदलाव है, शिवदासानी स्पष्ट करती हैं, इसलिए स्वतः ही यह मान लेना कि ग्लूटन और दूध से बने पदार्थ आपके शत्रु हैं, उचित नहीं है। बिना सोचे-समझे खाने की कुछ चीजों को अपने भोजन में से निकाल देने से आपके शरीर में कुछ पोषक तत्वों की कमी हो सकती है, जिनकी वजह से आपके स्वास्थ्य को ख़तरा हो सकता है। अतः ऐसा किसी चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ही करना चाहिए।
वे आगे कहती हैं, “यदि कोई व्यक्ति कुछ नियम अपनाता है जैसे, प्रोसेस्ड फ़ूड और चीनी छोड़ देना, लेकिन उसे कुछ लाभ नहीं दिखता, तो जब तक अपेक्षित परिणाम नहीं मिलता वह खाने की अन्य चीजें भी एक-एक कर छोड़ता जाता है — तो यह एक तरह से एक फिसलन भरी ढलान है, जिस पर आप बस लुढ़कते चले जाते हैं।”
क्या क्लीन ईटिंग एंग्जाइटी पैदा करती है?
स्पाइस गर्ल्स ने अपने गाने में इसे बहुत अच्छी तरह से व्यक्त किया है ‘टू मच’.. (ऑफ समथिंग इस बैड), अति किसी भी चीज की बुरी होती है। चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े लोगों के अनुसार किसी भी प्रकार के खाने को बुरा कहना, और खाने के मामले में मिलिट्री जैसे कड़े अनुशासन का पालन करना, व्यक्ति में तनाव, एंग्जाइटी और सामाजिक अलगाव को बढ़ाने के साथ ही जीवन की सर्वाधिक आनंददायक वस्तुओं में से एक – भोजन के साथ हमारे संबंध को पूरी तरह नकारात्मक बना सकता है।
डॉक्टर सावला कहती हैं, “जब हम बिना कुछ सोचे-समझे, दूसरों की देखा-देखी खान-पान की वस्तुओं को सीमित कर देते हैं, तो हम खुद को एक भय में जकड़ लेते हैं। भोजन से हमारा एक घनिष्ठ संबंध होता है, तो जब हम किसी वस्तु को ‘अच्छा’ और किसी को ‘बुरा’ नाम देते हैं, तो हमारे भीतर का घृणा-भाव बहुत मजबूती से प्रतिक्रिया करता है और वह हमारे ऊपर एक नकारात्मक प्रभाव डालता है। खाने को अलग-अलग श्रेणी में विभाजित करने की अपेक्षा हमें उसे अपने ग्रहण करने योग्य प्रोटीन्स, कार्ब्स और फैट्स की संतुलित मात्रा में बांटना चाहिए।” एक संतुलित भोजन, जैसा कि हर एक को उसकी नानी सालों से सिखाती आई हैं।
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सावला समझाती हैं कि क्यों थोड़े से डोरिटोस खाने के बाद तुम अपनी चीज़ से सनी उंगलियों को शर्म से देखते हुए, ऐसी ग्लानि से भर जाते हो जैसे तुमने कोई ख़ून कर दिया हो। “क्लीन ईटिंग का चलन इतना बढ़ गया है कि लोगों ने, जो वह खाते हैं, उसके स्वाद का आनंद लेना ही छोड़ दिया है, जो कभी-कभी अनियंत्रित खाने की समस्या को बढ़ावा देता है। जिस डर के साथ वह भोजन का सेवन करते हैं, वह उनके भीतर इतनी एंग्जाइटी पैदा कर देता है कि उनका पाचन-तंत्र अधिक मात्रा में ऐसे पाचन रसों का स्राव करता है जिनकी वजह से पाचन और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं और अधिक बढ़ जाती हैं।”
एसिडिटी, बदबूदार गैस और डायरिया की समस्या के साथ-साथ क्लीन ईटिंग संबंधों में भी बदलाव पैदा कर सकती है। अपने मित्रों के साथ बाहर जाते समय, उनके द्वारा बार-बार मज़ाक उड़ाए जाने और टीका-टिप्पणी झेलने की अपेक्षा, कुछ लोग घर में रहना ही उचित समझते हैं।
सावला कहती हैं, “लोग सामाजिक समारोहों में जाना छोड़ देते हैं, जिनकी वजह से वे सामाजिक अलगाव का शिकार हो जाते हैं। और कुछ अन्य हर कैलोरी का सूक्ष्म-विश्लेषण करने जैसे ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर से ग्रस्त हो जाते हैं, जिसके कारण एनोरेक्सिया, बुलिमिया और ऑर्थोरेक्सिया नर्वोसा (एक ऐसी टर्म जो अभी तक सत्यापित नहीं है, किसी व्यक्ति के उसके हैल्दी खाने से जुड़ा ऑब्सेशन) जैसी बीमारियों से ग्रसित हो जाता है।”

बीच का रास्ता
कोई भी भोजन ‘डर्टी’ नहीं है (जब तक कि हम एफ्रोडीसीएक्स-संभोग की इच्छा बढ़ाने वाले भोजन-की बात ना कर रहे हों)। स्वस्थ आदतों को अपनाने में कोई बुराई नहीं है जैसे ट्रेंडी कॉम्बूचा का एक बड़ा घूँट भर लेना, या मीठे से तौबा कर लेना। जब तक कि आप खुद को हिसाब-किताब, चेक लिस्ट्स, दम घोंटने वाले नियमों, और ऐसे हैल्दी विकल्प जो आप को ठग रहे हों, इनमें जकड़ना न शुरू कर दें। जैसा कि फ़ूड गॉड एंथोनी बॉर्डन ने कहा भी है, “तुम्हारा शरीर एक मंदिर नहीं है, यह एक आमोद-प्रमोद का स्थान है, इसकी सवारी का आनंद उठाएं।”