
क्या आपको लॉकडाउन के बाद ऑफिस लौटने का डर सता रहा है?
एक साइकोलोजिस्ट इस भय को संबोधित करते हुए अपने मन को शांत रखने के लिए कुछ सरल एक्सरसाइज़ेस शेयर कर रही हैं
मार्च में, कोविड-19 ने हमें वर्क फ्रॉम होम कल्चर को अपनाने के लिए मजबूर कर दिया। इस दौरान हमने अपने बिस्तर पर आराम से बैठकर तकियों के किले को एक डेस्क की तरह इस्तेमाल किया, ऊपर फॉर्मल और नीचे पायजामें पहनकर वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग का आनंद उठाया और नापसंद सहकर्मियों के साथ बेमन हंसी-मजाक करने से छुटकारा पाया।
लेकिन यह प्रोफेशनल पैराडाइस हमेशा के लिए तो ऐसे ही नहीं बने रहने वाला था।
जैसे-जैसे देश के कई क्षेत्रों में लॉकडाउन में छूट मिलनी शुरू हो गई है, वैसे-वैसे एंग्जायटी और पेचीदा विचारों ने हमारे दिलो-दिमाग पर हावी होना शुरू कर दिया है। लॉकडाउन के बाद ऑफिस लौटना और अपनी पुरानी नार्मल ज़िंदगी में फिर से कदम रखना, शायद कुछ के लिए रोमांचक हो लेकिन अधिकांश लोगों को हतोत्साहित कर रहा है।
ह्यूमन रिसोर्सेज़ कंसल्टिंग फर्म मर्सर द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, 45% से ज़्यादा एम्प्लॉयर्स ने बताया कि वे अभी से ही ऐसे वर्कर्स के साथ जूझ रहे हैं जो बीमार होने के डर से अपनी वर्कप्लेस पर वापस नहीं लौटना चाहते।
एक सोफ्रोलॉजिस्ट (सोफ्रोलॉजी एक थेरेपी है जो शरीर और दिमाग की एक्सरसाइज़ेस का उपयोग करके लोगों को रिलैक्स करने में मदद करती है) और ‘द लाइफ-चेंजिंग पावर ऑफ सोफ्रोलॉजी’ के लेखक, डॉमिनिक एंटीग्लियो बताते हैं, “री-एंट्री एंग्जायटी एक तरह का तनाव है जो असमर्थ होने के डर, या पुरानी दिनचर्या और वातावरण को फिर से अपनाने में हो रही झिझक से जुड़ा है, यानी ‘नार्मल’ की तरफ वापस बढ़ना – यह वापसी काम के लिए या जीवन जीने के तरीके, दोनों के संबंध में हो सकती है।”

अब, इस पुन: परिवर्तन की कगार पर, हमारे तनाव का स्तर चरम सीमा पर पहुंच सकता है।
साइकोलोजिस्ट प्राची वैश कहती हैं, “कम्यूटिंग का स्ट्रेस, अत्यधिक काम के बोझ की आशंका और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर दोबारा जाने से स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का डर, यह सभी आपके तनाव को बढ़ाने लगते हैं। लेकिन तनाव को नियंत्रित करके, आप अपनी मेंटल हेल्थ और प्रोडक्टिविटी को प्रभावित होने से रोक सकते हैं।”
लॉकडाउन के बाद ऑफिस लौटना: आम चिंताएं
हेल्थ और सेफ्टी
मेरी एक दोस्त तो करेंसी नोटों को भी सैनिटाइज़ कर रही है। वह उन्हें धोकर, बाहर धूप में सुखा देती है। अपने रोज़मर्रा के कामों में एक काम और बढ़ा लेने की इस बात पर हम उसका बहुत मजाक बनाते हैं, लेकिन देखा जाए तो यह हाइपर-विजिलेंस (अत्यधिक सतर्क) नामक आइसबर्ग की टिप है।
पिछले कुछ महीनों में, मानव संपर्क संबंधी हमारे विचारों के साथ-साथ, सतहों को लेकर भी हमारी धारणाएं बदल गई हैं।
मुंबई-बेस्ड फाइनेंशियल एनालिस्ट, शुभ्रा जोशी जिन्हें अगले हफ्ते लॉकडाउन के बाद ऑफिस लौटना है, कहती हैं, “मैं बिना हाइजीन का ख्याल रखे, अपनी बिल्डिंग तक में तीन माला उतरकर नीचे नहीं जाती हूं। सबसे ऊपरी फ्लोर पर रहने के कारण, हर मानसून, हमारे घर में लीकेज होने लगती है, पर इस साल, मैं रिपेयर करने के लिए किसी को बुलाने में भी डर रही हूं। मैं उन दिनों में होने वाली अपनी घबराहट की कल्पना भी नहीं कर सकती जब मुझे वास्तव में ऑटो से ऑफिस जाना पड़ेगा।”
हर समय न्यूज़ के सामने बने रहना भी हमारे इस डर को और सशक्त कर रहा है। “क्या मैं किसी को भी अपना सैनिटाइज़र इस्तेमाल करने के लिए दे सकती हूं?”, “क्या वे मेरी डेस्क को नियमित रूप से सैनिटाइज़ करेंगे?”, “क्या मेरे कलीग के असिम्पटोमैटिक होने पर भी मुझे उससे वायरस मिल सकता है?”
कोरोनावायरस से दिन-ब-दिन मरीज़ों की बढ़ती संख्या, मौतें और सुविधाओं में हो रही कमी की खबरें हमारे दिमाग पर हावी होती चली जा रही हैं और हमें नेगेटिव सोच की ओर धकेल रही हैं।
मानव सम्पर्क
अपने सक्युलेन्ट श्याम के साथ करीब 90 दिन से क्वॉरंटीन में रहते हुए, और इंसानों को सिर्फ स्क्रीन पर देखने के बाद, किसे याद होगा कि फॉर्मल कपड़ों में सजे-धजे लोगों से भरे एक कमरे में जाकर कैसा महसूस होगा?
कुछ लोग इस बात से घबरा रहे हैं कि शिफ्ट में काम करना पड़ सकता है, और रैंडम शिफ्ट बांटने का मतलब हो सकता है कि सबसे नापसंद सहयोगियों के ग्रुप में काम करना पड़े।

तो कुछ लोग अभी तक अपनी टीम में हुई कांट-छांट के सदमे से उबरने की कोशिश कर रहे हैं। एक मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट, श्यामक पूनावाला का कहना है, “हाल ही में, ले-ऑफ की एक लहर सी उठी थी और अपने आसपास बैठने वाले कई लोगों की अनुपस्थिति के बारे में जानते हुए, लॉकडाउन के बाद ऑफिस लौटना, कोई बहुत अच्छा अहसास नहीं है।”
वैश के अनुसार, जो लोग पहले से ही टॉक्सिक वर्कप्लेस में काम कर रहे थे, उनकी हालत तो और भी खराब है। वह बताती हैं, “ऐसे कलीग्स से दोबारा मिलने का अहसास भी उनके बढ़ते तनाव के लिए एक ट्रिगर का काम करता है।”
नार्मल क्या है?

वैश कहती हैं, “अधिकांश ऑफिसेस भूतिया शहरों के जैसे दिखेंगे। जब लॉकडाउन पहली बार लगाया गया था, तब हमने बहुत एंग्जायटी का सामना किया था, और अब जब हम इस कार्यशैली के आदी हो रहे थे, तो हमें फिर उसी पुराने पैटर्न पर लौटने के लिए कहा जा रहा है। भावनात्मक और मानसिक तौर पर इसे हैंडल कर पाना बहुत चुनौतीपूर्ण है।”
पुनः प्रवेश करने के तनाव से कैसे निपटें:
अपनी चिंताओं को स्वीकार करें
एंग्जायटी अक्सर पैनिक अटैक्स, ब्लड प्रेशर और शुगर लेवल में उतार-चढ़ाव और इम्युनिटी में तेज गिरावट के रूप में प्रकट होती है।
लगातार तनाव में रहने से ब्लड में कोर्टिसोल की मात्रा बढ़ने लगती है। यदि आप अपनी भावनाओं को दबाने की कोशिश करते हैं, तो आपका शरीर बेवजह सिरदर्द और पीठ दर्द की शिकायत करने लगता है।
अपना सहारा ढूंढें
इसका मतलब यह नहीं है कि यदि आपका मन डूबते हुए टाइटैनिक के जैसा प्रतीत हो रहा है तो आप अपनी रोज़ के लिए जैक की तलाश करना शुरू कर दें। बल्कि, खासकर पुन: परिवर्तन के इस दौर में, अपने मौजूदा वर्क शेड्यूल में से कुछ परिचित आदतों को अपने ऑफिस लौटने के बाद के रूटीन में शामिल करें।
जैसे, आपकी सुबह 10 बजे की कड़क अदरक वाली चाय जो आपके ‘वर्क फ्रॉम होम शेड्यूल’ का एक अहम हिस्सा थी, उसे ऑफिस लौटने के बाद भी जारी रखें। जिस तरह आप घर पर लंच में चार-पांच तरह की चीज़े खाते थे, वैसे ही ऑफिस में भी खाएं। ऑफिस लौटने के बाद भी, थोड़ा परिचित सा वातावरण बनाए रखने से आपको बहुत ज़्यादा परिवर्तन का अहसास नहीं होगा।
अपनी गति को निर्धारित करें
जब एंग्जायटी हमला करती है, तो आपके पास इससे निपटने के दो तरीके होते हैं: प्रॉब्लम-फोकस्ड कोपिंग मैकेनिज्म और इमोशन-फोकस्ड कोपिंग मैकेनिज्म। प्रॉब्लम-फोकस्ड कोपिंग मैकेनिज्म में आपके पास वातावरण को बदलने का ऑप्शन होता है।
पर क्योंकि इस स्थिति में लॉकडाउन के बाद ऑफिस लौटना ऑप्शनल नहीं है, इसलिए इमोशन-फोकस्ड कोपिंग मैकेनिज्म का रुख करना चाहिए।
एक समय में एक ही दिन पर ध्यान दें। अपने दिनभर की एक्टिविटीज़ को शेड्यूल करें, लिस्ट बनाएं और केवल 24 घंटो के अनुसार उसकी संरचना करें। एंग्जायटी या तो आपको अतीत में ले जाती है या आपको अनिश्चित भविष्य की तरफ धकेलती है, इसलिए एक-एक दिन करके हैंडल करें और अपनी गति को निर्धारित करें।
वे लोग जिनकी टीम छोटी हो गई है और काम का भार बढ़ने की वजह से वे ओवरवर्क महसूस कर रहे हैं, खुद को समझाएं कि अगर आप एकदम से पूरा काम डिलीवर नहीं भी कर पाएंगे तो दुनिया ख़त्म नहीं हो जाएगी। अपनी हेल्थ को प्राथमिकता दें और ऐसे लक्ष्य निर्धारित करें जो आसानी से प्राप्त हो सकें।
स्वास्थ्य-संबंधी उपाय
आपका ब्रेन भले ही आपको एक दर्जन पीपीई किट्स जमा करने का सिग्नल दे, लेकिन यदि आप एक एसेंशियल वर्कर नहीं हैं तो आपको इनकी कोई आवश्यकता नहीं है।
अपने आपको मास्क्स से लैस करें – फिर चाहे वे मैचिंग मास्क हों, नियोन हों या डिज़ाइनर मास्क हों – और साथ में ग्लव्स का इस्तेमाल ज़रूर करें। हमें पता है कि आपके बैग में सैनिटाइज़र का ढेर तो पहले से ही मौजूद होगा।
जो लोग लॉकडाउन के बाद ऑफिस लौटना चाह रहे हैं, उन्हें हेल्थकेयर आर्गेनाईजेशन द्वारा दी गई बेसिक गाइडलाइन्स का पालन करना चाहिए, यह आपको सुरक्षित रखने में मदद करेंगी।

ऑफिस लौटने के तनाव से राहत पाने के लिए कुछ टिप्स
वैश कहती हैं, “ये एक्सरसाइज़ेस तनाव की स्थिति में बेहद प्रभावशाली हैं और इन्हें बिना किसी उपकरण के किसी भी जगह पर किया जा सकता है।”
ग्राउंडिंग एक्सरसाइज़: 5,4,3,2,1
यह एक्सरसाइज़ आपके पांचों सेंस ऑर्गन्स को काम में लगाती है और जब भी कोई सेंस ऑर्गन कार्यरत होता है, आपका ब्रेन ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम को स्विच ऑफ कर देता है, और उसका ध्यान आपकी सेंसेस पर केंद्रित हो जाता है।
अपने आसपास दिख रही कोई भी पांच चीज़ों पर ध्यान दें – यह दीवार पर बैठी हुई कोई मक्खी, आपका पेन या छत में कोई क्रैक भी हो सकता है।
अपने आसपास सुनाई दे रही कोई भी चार आवाज़ों पर अपना ध्यान केंद्रित करें।
अपने आसपास कोई भी तीन चीज़ों को छूकर महसूस करें।
अपने आसपास कोई भी दो चीज़ों पर ध्यान दें जिन्हें आप सूंघ सकते हैं।
कोई भी एक चीज़ का ध्यान करें जिसे आप चख सकते हैं – या तो ऐसा कुछ याद करें जो आपने दिनभर में खाया हो या फिर किसी चीज़ का एक घूंट लें या एक कैंडी खा लें।
डायाफ्रामिक (Diaphragmatic) ब्रीथिंग एक्सरसाइज़:
एक कुर्सी पर बैठकर, अपने हाथों को अपनी कुर्सी के हत्थों पर या अपनी गोद में आराम से रख लें। गहरी सांसें लें। तब तक सांस अंदर लें जब तक आपके पेट की मसल्स काम करने लगें, फिर सांस छोड़ दें। ऐसा चार-पांच बार दोहराएं।
अपनी बॉडी केमिस्ट्री बदलें:
ठंडे पानी का एक गिलास लें और अपने चेहरे, पैरों, हाथों और गर्दन के पीछे ठंडे पानी के छीटें मारें। यह अभ्यास आपकी बॉडी केमिस्ट्री में तुरंत बदलाव लाता है और आपके दिमाग और विचारों को शांत करता है।