
‘‘अपने पार्टनर को अपनी मानसिक बीमारी के बारे में बता कर मैंने बिल्कुल सही किया’’
रिलेशनशिप और मेंटल हेल्थ पर कपल्स और एक्स्पर्ट्स की सलाह
आजकल डेटिंग के लिए भी कई नियम हैं। अगले बन्दे को पहले कॉल करने दो, तीन-चार दिन रूककर उसे मैसेज करो। अपना बेस्ट रूप दिखाने के लिए, कभी खुद को शर्मीला तो कभी रोमांचक और बिंदास प्रदर्शित करो। यदि आप लॉन्ग-टर्म रिलेशनशिप में हैं, तो लोग आपको हर महत्वपूर्ण विषय पर सलाह देते हैं, जैसे- शादी करने से पहले या बच्चे प्लान करने के लिए अपने पार्टनर से किन बातों पर चर्चा करें। लेकिन इन सभी बातों के साथ, अपने पार्टनर को अपनी मानसिक बीमारी के बारे में बताने का सही समय कब है?
बढ़ती उम्र में, अपने भावी पार्टनर को लेकर हम कई सपने संजोते हैं – उसके शाहरुख खान जैसे काले घने बाल, खूबसूरत डिम्पल्स और मोहक मुस्कान हो, लविंग और केयरिंग पर्सनालिटी के साथ-साथ बढ़िया सेंस ऑफ़ ह्यूमर भी हो। शायद ही कभी कोई यह सोचता होगा कि हमारा रिश्ता किसी ऐसे व्यक्ति से भी हो सकता है जो मानसिक बीमारी से ग्रसित हो। लेकिन आंकड़ों के अनुसार, आजकल हर सातवां व्यक्ति अलग-अलग स्तर के मेंटल डिस्ऑर्डर से जूझ रहा है, तो यह बिल्कुल संभव है कि कभी ना कभी आपने भी मानसिक रूप से बीमार किसी व्यक्ति को डेट किया हो या उससे प्यार किया हो। ये आंकड़े इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने वर्ष 2017 में जारी किए थे। ये तो उन लोगों के आंकड़े हैं, जिन्होंने अपनी मानसिक बीमारी को स्वीकारा और मदद मांगी, लेकिन चूंकि हमारे समाज में इसे एक कलंक माना जाता है, ऐसे बहुत सारे केस हैं जो सामने ही नहीं आ पाते।
आमतौर पर हम अपनी पसंद-नापसंद आसानी से ज़ाहिर कर देते हैं, जैसे- मुझे रॉक म्यूज़िक पसंद है, करेला नापसंद है (इस बात पर हम आपका मन बदल सकते हैं) या माउंटेन क्लाइंबिंग करने की इच्छा; लेकिन उतनी ही आसानी से अपनी मेंटल हेल्थ के बारे में किसी को नहीं बता पाते। मैं इस बात को समझ सकती हूं, क्योंकि मैं भी उन लोगों में से एक थी।

मुझे पता है कि कई लोग इस बात से डरते हैं कि कहीं उन्हें कोई मानसिक बीमारी ना निकल जाए। पर मेरे लिए ये किसी रिहाई से कम नहीं था। मेरी उन भावनाओं और व्यवहार को, जिन्हें समझाना मुश्किल था, जैसे मान्यता मिल गई। जिन सवालों को पूछने में हिचकिचाती थी, उनके जवाब मिल गए और दिमागी धुंध को साफ़ करने के लिए दवाइयां मिल गईं।
आजकल के ‘जागरूक’ समय में, यदि आप किसी से पूछें कि क्या वह एक ऐसे व्यक्ति के साथ जुड़ना चाहेंगे जिसे मेंटल डिसऑर्डर हो, तो संभव है कि वे ‘हां’ कह दें। हर किसी के जीवन में ऐसा समय आता है, जब वे ऐंगज़ाइटी, तनाव या पैनिक अटैक्स से गुज़रते हैं। लेकिन उनका क्या, जिन्हें गंभीर मानसिक समस्याएं हैं, जैसे- बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी डिस्ऑर्डर, बाइपोलर डिस्ऑर्डर या स्किट्सफ्रीनिआ, जिसके लक्षण जीवन भर बने रहते हैं और इसका डेली मैनेजमेंट के अलावा कोई ‘इलाज’ भी नहीं है?
पहले मुझे लगता था कि ये मेरा ‘बैगेज’ है, जिसे मुझे ही उठाना है, तो मैंने इस बारे में किसी को नहीं बताया। लेकिन जब अपने पार्टनर के साथ मेरा रिश्ता गहरा होने लगा, तो उसे अपने बारे में सभी बातें बताना जरूरी लगने लगा। मैंने फ़ैसला उस पर छोड़ दिया। उसके कहे एक शब्द, ‘‘ओके’’, ने मुझे अपनी मानसिक बीमारी के बारे में खुल कर बात करने का हौसला दिया।

मैंने कई बार उसकी प्रतिक्रिया पर सवाल उठाए, पर मुझे हर बार वही आश्वस्ति मिली, जो मैं पाना चाहती थी। अब सोचती हूं कि यदि अपनी पुरानी रिलेशनशिप्स में, रिजेक्शन के डर से, खुद को इस बारे में बात करने से ना रोका होता तो शायद उन रिश्तों का अंजाम कुछ अलग हो सकता था।
आज, पांच साल बाद भी, मेरी मानसिक बीमारी हमारी ज़िंदगी का एक हिस्सा है। उसे पता है कि कुछ दिन ऐसे भी होंगे, जब मैं खाने की किसी ख़ास चीज़ पर अटक जाउंगी और केवल वही खाउंगी, जब तक मन ना भर जाए। डिप्रेशन के दौरान, कई बार जब मैं एक ममी की तरह जड़वत एक जगह पर बैठकर केवल रोती रहती हूं, उसे पता है मुझे कैसे हैंडल करना है, और वो बिना बोले मेरा ख्याल रखता है।
जिस दिन मैंने अपने पार्टनर को अपनी मानसिक बीमारी के बारे में बताया, उस दिन से हमारा रिश्ता बदल गया। मुझे बिना किसी मुखौटे के खुल कर जीने का मौका मिला और उन्हें भी मेरे व्यवहार में हो रहे उतार-चढ़ाव को समझने में मदद मिली, जो पहले उनकी समझ से परे था।

कुछ महीनों पहले, ट्वीक इंडिया ने राधिका पीरामल और अपर्णा पीरामल राजे के साथ, अपर्णा की किताब केमिकल खिचड़ी: हाउ आई हैक्ड माइ मेंटल हेल्थ, पर एक लाइव सेशन आयोजित किया था। इसमें, अपर्णा ने अपने बाइपोलर डिस्ऑर्डर से जुड़े अनुभवों और इस दौरान, उनकी बहन सहित, पूरे परिवार से मिले सहयोग के बारे में बताया।
अब, जब भी मैं अपनी बहन, पार्टनर या पैरेंट्स से अपनी मेंटल हेल्थ से जुड़ी कोई बात छुपाने की कोशिश करती हूं, राधिका की कही बात मुझे याद आ जाती है, ‘‘अच्छी मेंटल हेल्थ एक कलेक्टिव एक्सपीरियंस है।’’ मेरी मेंटल हेल्थ केवल मुझे प्रभावित नहीं करती, बल्कि मेरे आसपास रहने वाले लोगों को भी करती है। तो फिर क्यों ना मैं उनके साथ अपने अनुभव बांटू और इससे उबरने के लिए उनके सपोर्ट सिस्टम का सहारा लूं?
रिश्ते के इस पड़ाव तक पहुंचने में, जहां हम इशारों में एक दूसरे की बात को समझ लें, और ज़रूरत पड़ने पर मेरे केयरगिवर की भूमिका को वह बेझिझक निभा सके, मुझे और मेरे पार्टनर को भी समय लगा। ऐसी रिलेशनशिप्स – जिनमें कोई एक व्यक्ति मानसिक बीमारी से ग्रसित हो – में रह चुके या रहने वाले जितने भी लोगों से मैंने बात की, उन्होंने भी एक हेल्थी और सप्पोर्टिव रिलेशनशिप बनाए रखने के लिए एक लम्बा सफर तय किया है।
ऐसे लोगों से बात कर के, जिनके पार्टनर्स मानसिक बीमारियों से जूझ रहे हैं, मुझे अपने रिश्ते को समझने में काफ़ी मदद मिली। और यह आपके लिए भी मददगार साबित हो सकता है।
‘‘कई बार आपको मुंह बंद रख कर केवल सुनना होता है’’
ठाणे में रहने वाली, अंजू सिंह और उनके पति अपने बच्चे के जन्म के बाद, नए घर में शिफ़्ट करने वाले थे। लेकिन अपने काम, बच्चे और हाल ही में उनके साथ शिफ्ट हुए उनके रिटायर्ड पेरेंट्स के साथ रहते हुए, पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के दबाव में, उनके पति डिप्रेशन में जाने लगे। उन्होंने प्रोफ़ेशनल हेल्प ली।
‘‘मैं समझ ही नहीं पाई कि क्या करूं। यदि मैं कुछ पूछती तो वे चिढ़ जाते थे और अगर मैं उन्हें अच्छा महसूस कराने के लिए कुछ अलग करती तो वे यह कहकर झिड़क देते कि इसकी कोई जरूरत नहीं है।” अंजू ने महसूस किया कि ऐसे में उनका शांत रहना ज़्यादा असरदार था। जब कोई अपनी आपबीती शेयर करता है, तो आप तुरंत ही उसे अपने अनुभवो से जोड़कर, सलाह देने लगते हैं। लेकिन शायद उस समय, वो व्यक्ति सिर्फ यह चाहता है कि कोई उसकी बात सुने।

साइकोथेरैपिस्ट नेहा कक्कड़ कहती हैं कि जो लोग गंभीर मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हैं, वे संकट के समय में ख़ुद को बहुत कम आंकते हैं। ‘‘वे लगातार अपनी क्षमताओं पर सवाल उठाते हैं, अपनी भावनाओं को दबाते हैं और शायद ऐसे समय में उनका आत्मविश्वास सबसे कम होता है।’’ इसलिए केवल उनकी बात को सुनकर भी आप उनकी काफी मदद कर सकते हैं।
आप उनके चक्रवाती विचारों के लिए एक साउंड बोर्ड बन सकते हैं, जो कभी-कभी तर्कहीन, आलोचनापूर्ण और बेतुके भी हो सकते हैं।
‘‘उन्हें ऑक्सीजन मास्क लगाने में मदद करने से पहले, खुद का लगाना ना भूलें’’
अंजू कहती हैं, ‘‘काश मैंने खुद पर थोड़ा ज्यादा ध्यान दिया होता।’’ यही बात मंजीत* ने भी कही। रिलेशनशिप के चौथे महीने में, जब उनके पार्टनर ने उन्हें अपने पीटीएसडी और ऐंगज़ाइटी के बारे में बताया, वो इसके लिए बिलकुल तैयार नहीं थे। ‘‘उसके बताने के बाद, मुझे उसके अजीब व्यवहार का सही कारण समझ में आया। हालांकि मैं उसे प्यार करता था, उसकी चिंता थी और उसकी तकलीफ को समझता था, लेकिन मैं उसका केयरगिवर बनने के लिए तैयार नहीं था।’’
मंजीत ने अपने पैरेंट्स और दोस्तों को अपनी सेक्शुऐलिटी के बारे में नहीं बताया था। तो जब उनके पार्टनर की मेंटल हेल्थ ने उनकी सेहत पर असर डालना शुरू किया तो उन्हें समझ ही नहीं आया कि वे किसकी मदद लें।
वो अपने पार्टनर से इस बारे में खुल कर बात करते थे, लेकिन फिर भी, हमेशा अपने पार्टनर की ज़रूरतों और इच्छाओं को अपनी सेहत से ज़्यादा प्राथमिकता देना, उनके ऊपर भारी पड़ने लगा। मंजीत बताते हैं, “उसकी इच्छाओं और ज़रूरतों का ख्याल रखते हुए, उसकी ऐंगज़ाइटी को ट्रिगर करने वाली बातों को पहले से ही संभालने की कोशिश में, मेरी ऐंगज़ाइटी बढ़ने लगी थी।”
नेहा का कहना है, ‘‘आप किसी और की मदद कैसे करेंगे, जब आप ख़ुद का ही ख़्याल न रख पा रहे हों?’’ केयरगिवर्स का, खासतौर से नर्सों में, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर बर्नआउट होना बहुत आम बात है। पार्टनर्स भी ऐसा ही बर्नआउट अनुभव कर सकते हैं।
सेल्फ़ केयर के लिए, आप चाहें तो सलून जाकर खुद को पैंपर करें, सप्ताह में एक बार अपने बेस्ट फ्रेंड्स के साथ लंच पर जाएं, नियमित रूप से वर्कआउट के लिए समय निकालें या फिर कुछ समय के लिए ही सही, लेकिन खुद को ऐसी तकलीफदेह परिस्थिति में पड़ने से रोकें।
‘‘आप उनकी थेरैपी का एक हिस्सा हैं’’
अपनी पत्नी के डिप्रेशन का पता लगने के बाद, 29 वर्षीय अर्नब बोस को लगा कि इससे निपटने के लिए उन दोनों ने जो शेड्यूल फॉलो करना शुरू किया, वह उनके लिए परफेक्ट है। वे अपनी पत्नी गीतिका से तब मिले थे, जब वे दोनों पुणे के डिज़ाइन स्कूल में साथ पढ़ते थे। अपने रिश्ते के शुरुआती दौर में ही गीतिका ने उन्हें अपने डिप्रेशन के बारे में बता दिया था और कैसे वे दवाइयों के साथ इसका सामना कर रही हैं। वो कहते हैं, ‘‘मैं यह जानकर परेशान नहीं हुआ, क्योंकि यह उसके व्यक्तित्व का एक हिस्सा था। कुछ दिन जब वो ‘लो’ महसूस करती, हम दोनों इस समय को मिल कर गुज़ार देते थे।’’
लॉकडाउन के दौरान गीतिका डिप्रेशन के बड़े दौर से गुज़रीं, जब कोविड-19 के कारण उसके दो क़रीबी दोस्तों की मौत हो गई। अर्नब को लगा कि वही रूटीन फ़ॉलो करते हुए वे अपनी पत्नी की मेन्टल हेल्थ को ठीक रख सकेंगे। ‘‘वह हमेशा अच्छा लाइफ़स्टाइल जीती है, अपनी डाइट, एक्सरसाइज़ और दवाइयों का ध्यान रखती है तो मुझे लगा उन्हीं चीज़ों की ओर उसका ध्यान दिला कर मैं उसकी मदद कर सकता हूं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।”
बाहर घूमने और बातें करने के शौक़ीन अर्नब, लॉकडाउन के बाद गीतिका को हाइकिंग और शॉर्ट ट्रिप्स पर ले जाते, पर वह और गुमसुम रहने लगीं। ‘‘कोविड-19 से जुड़ी उसकी ऐंगज़ाइटी कम ही नहीं हो रही थी। इस बीमारी से लोगों को इतना नुक़सान पहुंचते देख उसे डर था कि यदि हम दोनों घर से बाहर निकले तो यह हमें भी हो सकती है।’’

अर्नब ने गीतिका की थेरैपिस्ट के साथ कपल थेरेपी सेशन्स लेने शुरू किए। गीतिका ने भी थोड़ी हिम्मत जुटाकर साथ में बाहर निकलना शुरू किया। शुरू में, वे चाय ब्रेक के दौरान, बिल्डिंग कंपाउंड में ही टहलते। फिर ड्राइव पर जाना शुरू किया और उसके बाद उसकी बहन घर आई।
नेहा इसे एक्स्पोज़र थेरैपी कहती हैं, जहां पेशेंट का धीरे-धीरे उसके डर से सामना करवाया जाता है, ताकि जब वे ऐसी स्थिति का सामना करे तो पैनिक न करे। और यदि इस दौरान आपका पार्टनर आपके साथ हो तो इससे ज़्यादा मदद मिलती है।
‘‘आप उनके थेरैपिस्ट नहीं हैं’’
यह सुनने में पहले कही गई बात से अलग लगता है, लेकिन इनका अंतर समझाना जरूरी है। पीटीएसडी के लक्षण चरम पर होने के बावजूद, रोहन प्रोफ़ेशनल हेल्प लेने से कतरा रहा था। उसे अपने पार्टनर का साथ ज़्यादा अच्छा लगता था। ‘‘मुझे मंजीत से बात करना अच्छा लगता था। होमटाउन छोड़ने के बाद, मैंने अपने थेरैपिस्ट से बात करना बंद कर दिया था। इस बीच मैं एकाध साइकियाट्रिस्ट से मिला भी, लेकिन नए सिरे से, नए व्यक्ति के साथ टॉक थेरैपी की बात मुझे डराती थी।’’
उसने मंजीत से अपनी तकलीफ बांटना शुरू किया, लेकिन मंजीत ऐसे मेंटल ट्रॉमा को हैंडल करने में सक्षम नहीं था। नेहा समझाती हैं, ‘‘किसी को सपोर्ट करने और उसका थेरैपिस्ट होने में फ़र्क़ होता है, क्योंकि आपके पास वो स्किल और अनुभव नहीं होता, जो एक थेरैपिस्ट के पास होता है।’’

जब मंजीत और रोहन ने अपनी-अपनी मेंटल हेल्थ पर ध्यान देने के लिए अपनी रिलेशनशिप में एक महीने का ब्रेक लिया, रोहन ने एक दोस्त की मदद से एक प्रोफ़ेशनल को कंसल्ट किया।
रोहन बताते हैं, ‘‘फिर हम दोनों ने एक नए नज़रिए, बेहतर मेंटल हेल्थ और ढेर सारे प्यार के साथ दोबारा शुरुआत की।”
‘‘हमने एक दूसरे की पर्सनैलिटी को बदलने की कोशिश नहीं की, यह सबसे अच्छी बात थी’’
मैंने अपने पार्टनर से हाल ही में पूछा, ‘‘तुम मेरे साथ इतना लंबा समय कैसे बिता पाए?’’ पहले तो उसने भौंहें चढ़ाईं, फिर मखमली जवाब आया कि तुमने भी तो मेरे साथ इतना लंबा समय बिताया है। थोड़ा और उकसाने पर मुझे सही जवाब मिला (हमें पता है पुरुषों से कोई बात निकलवाना कितना मुश्क़िल है)। ‘‘सबसे अच्छी बात है कि हमने एक-दूसरे के जैसा बनने की कोशिश नहीं की, एक-दूसरे के व्यक्तित्व को नहीं बदला। और इसलिए हमारे इश्यूज़ हमारी रिलेशनशिप पर हावी नहीं हो पाए।’’
फ़िल्म ‘चलते चलते’ के राज और प्रिया की कहानी से यह सीख ली जा सकती है। हालांकि, कभी-कभी मैं बहुत नाराज़ या चिड़चिड़ी हो जाती हूं, लेकिन फिर भी इतने सालों से हमारा रिश्ता सही-सलामत है।
मुझसे लोग अनगिनत बार पूछ चुके हैं कि इतनी अलग पर्सनालिटी होने के बावजूद, हम इतने लंबे समय तक साथ कैसे हैं। कुछ लोग कह सकते हैं कि विपरीत स्वभाव वाले लोग आकर्षित करते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि ये एक-दूसरे के व्यक्तित्व और स्वतंत्रता को सम्मान देने के कारण ही संभव हुआ है। दूसरे कपल्स की तरह हनीमून वाले दौर में, अलग-अलग व्यक्तित्व होने के बावजूद भी, हम सबकुछ साथ में करते, चाहे वह हमें पसंद हो या न हो। एक दूसरे की ख़ुशी के लिए, खुद को बदलने की इतनी कोशिश में हम दोनों ही दुखी थे। मेरे लिए भीड़ भरे पब में अपने पैनिक अटैक्स रोकना असंभव हो गया था और उसके लिए घर पर दिन भर खाली बैठना।
और जब आप मानसिक रूप से बीमार किसी व्यक्ति के साथ रिलेशनशिप में होते हैं, तो यह बहुत जल्द निर्भरता में बदल सकता है। कक्कड़ कहती हैं, “मानसिक बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के लिए एक सपोर्ट सिस्टम होना बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन दूसरे व्यक्ति पर पूरी तरह से निर्भर होना ठीक नहीं है।”
अब जब भी मेरे पार्टनर को नाइट आउट का मन हो या काम के लिए ट्रैवल करना हो, वह अपने दोस्तों के साथ चला जाता है। और इस दौरान, मुझे अपनी बहन के साथ घर पर अलसाने का मौका मिलता है। या फिर मैं पॉडकास्ट सुनते हुए एक शांत वॉक पर निकल जाती हूं, जहां न तो किसी से बातचीत करनी पड़े और ना ही अपनी ऐंगज़ाइटी को छुपाने का दबाव हो।
कक्कड़ कहती हैं, “एक पार्टनर की मानसिक बीमारी के लिए दोनों को मेहनत करनी पड़ सकती है, लेकिन इसे आपकी रिलेशनशिप का एकमात्र फोकस नहीं होना चाहिए। यह सही नहीं है, और न ही यह साथ में रहने का एकमात्र कारण होना चाहिए।”
मानसिक बीमारी होने का मतलब यह नहीं कि आपको डेटिंग से या एक प्यार भरे रिश्ते से खुद को वंचित रखना चाहिए। अपने पार्टनर को इस बारे में सभी आवश्यक जानकारी दें और समझने का समय दें। सवालों के लिए तैयार रहें और अपनी जरूरतों को खुल कर जाहिर करें, साथ ही अपने पार्टनर से उनकी जरूरतों के बारे में भी पूछें। आप दोनों के अनुकूल बैलेंस के बिना इस रिश्ते को आसानी से निभा पाना नामुमकिन हो सकता है।
* अनुरोध पर नाम बदल दिए गए हैं।
सावधानी: इस लेख में एक्सपर्ट्स के व्यक्तिगत अनुभव शामिल हैं। यदि आप या आपके कोई प्रियजन मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं, तो कृपया एक प्रोफेशनल को कंसल्ट करें। iCALL ने देश भर के मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स की एक लिस्ट जारी की है, जिसे आप यहां देख सकते हैं।