
पुनर्विवाह के बाद अपनी बेटी को अपने एक्स-हस्बैंड के साथ छोड़ने के फैसले ने, समाज की नज़रों में मुझे एक बुरी मां बना दिया
एक नयी शुरुआत की प्रेरणादायक कहानी
आमतौर पर, स्क्रीन पर हैप्पी ब्लेंडेड फैमिलीज़ बहुत ही कम दिखाई देती हैं। जब भी कोई एक्स अचानक से सामने आ जाता है, तो ज़्यादातर ऐसा कॉमेडी या प्लॉट में ट्विस्ट लाने के लिए होता है। या तो गुस्से में तमतमाती हुई एक्स-वाइफ किसी भी तरह अपने पति के नए प्रेम संबंधों में जहर घोलने पर तुली हुई होती है। या फिर अपने पति द्वारा फैमिली को छोड़ कर चले जाने के बाद, अपनी बची-कुची जिंदगी को समेटते हुए दिखाई देती है। शायद ही आपको ऐसी कहानियां सुनने या देखने को मिलती हैं जिनकी हमें वास्तव में जरूरत है, जिनमें औरतें आगे बढ़ती हैं, पुनर्विवाह करती हैं और फिर से एक नयी शुरुआत करती हैं।
अभी तक भी कई लोगों के लिए इस बात को गले उतार पाना बड़ा मुश्किल है कि डेटिंग पूल में सिंगल मदर्स कैसे प्रवेश कर सकती हैं। उन्हें डेट करने के लिए समय कैसे मिल जाता है? वे अपने बच्चों पर क्यों नहीं ध्यान दे रही हैं? हमारे समाज में महिलाओं को मातृत्व की खुशियों से ऊपर अपनी खुशियों को प्राथमिकता देने के लिए हमेशा से दोषी महसूस कराया जाता है।
पुनर्विवाह करना दीप्ति शर्मा के प्लान का हिस्सा नहीं था। एक एब्यूसिव मैरिज से बाहर निकली एक सिंगल मदर, वह अपनी गोद ली हुई बेटी की कस्टडी और एक नवोदित कैरियर के साथ संतुष्ट थी। उन्होंने हमेशा अपने एक्स-हस्बैंड के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे और यह सुनिश्चित किया कि उनकी बेटी का उसके पिता के साथ एक अच्छा रिश्ता हो – “मेरे एक्स कभी भी एक अच्छे पति नहीं बन सके, लेकिन उन्होंने हमारी बेटी की हमेशा बहुत अच्छे से देखभाल की।”
एक दिन दीप्ति की जिंदगी में प्यार ने दोबारा दस्तक दी और सब कुछ बदल गया। जब वह प्रेगनेंट हुई और पुनर्विवाह के बाद, उन्हें अपने पति की नौकरी के लिए अपनी बेटी को अपने एक्स-हस्बैंड के साथ छोड़कर देश से बाहर जाने का फैसला लेना पड़ा, उन्हें हर तरफ से आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, खासकर अन्य महिलाओं से।
वह कहती हैं, “जब एक आदमी अपने बीवी और बच्चों को बिना किसी सहारे के छोड़ देता है, और पुनर्विवाह करता है, तो यह ठीक है। लेकिन एक महिला का फिर से एक नयी शुरुआत करना और जिंदगी में आगे बढ़ना, यह हमारा समाज बड़ी कठिनाई से अपनाता है।”
इन सभी बाधाओं का सामना करने के बावजूद, बॉर्डर पार रहते हुए भी, वह एक हैप्पी ब्लेंडेड फैमिली बनाने में सफल हो गयीं। आइए, उनकी प्रेरक कहानी पढ़ें:
“महिलाओं को यह पता होना चाहिए कि जीवन में अपनी खुशियों को प्राथमिकता देना बिलकुल ठीक है।”
“मैं दस साल से एक एब्यूसिव मैरिज में रह रही थी। मैं प्रेगनेंट नहीं हो पा रही थी और मुझे ऐसा जताया जा रहा था जैसे कि यह मेरी गलती थी।
छह साल तक कोशिश करने के बाद, हमने एक 4 महीने की बच्ची को गोद लिया – ऐसा कुछ जो मैं हमेशा से करना चाहती थी। मैं रातों-रात मां बन गई और मेरी जिंदगी ही बदल गई। मेरे एक्स कभी भी एक अच्छे पति नहीं थे, लेकिन हमारी बेटी का वह हमेशा ख्याल रखते थे।
जब वह दो साल की थी, मैंने घर छोड़ दिया। मेरे लिए अब इससे ज़्यादा अपमान और दर्द सहन कर पाना असंभव हो गया था।
मेरे एक्स-हस्बैंड ने शुरू में मुझे थोड़ा परेशान किया लेकिन अंत में वे एक म्युचुअल डाइवोर्स के लिए तैयार हो गए क्योंकि मैंने उनके सामने कोई एलीमोनी की मांग नहीं रखी। मैंने केवल शांति से इस रिश्ते को ख़त्म करने का अनुरोध किया। मुझे हमारी बेटी की कस्टडी मिली और हमने अपनी अलग जिंदगी की शुरुआत की।
मैंने कभी हमारी बेटी को उसके पिता से मिलने से नहीं रोका। कई मामलों में मैंने देखा है कि डाइवोर्स के बाद, पेरेंट्स अपने एक्स-पार्टनर्स के प्रति अपनी भड़ास निकालने के लिए, अपने बच्चे के मन में नेगेटिव बातें भरने लगते हैं, लेकिन पेरेंट्स को नफरत के यह बीज नहीं बोने चाहिए।
इसलिए हमारी बेटी हमेशा से एक खुशमिजाज़ बच्ची थी। हां, उसके पिता एक अलग घर में रहते थे, लेकिन भावनात्मक रूप से, हम उसे बहुत सुरक्षित महसूस कराते थे। हम उसके स्कूल फंक्शन में एकसाथ शामिल होते थे, बाहर खाना खाने के लिए साथ में जाते थे। हमने एक फैमिली की तरह एक साथ कई छुट्टियां भी बितायी। मेरे एक्स और मैंने सरल शर्तें रखीं और समय के साथ, वह भी समझ गए कि यही तरीका बेहतर है।

पांच साल तक सिंगल रहने के बाद, मैं सिद्धार्थ से मिली। वह मेरे जीवन में पाजिटिविटी और खुशियां लेकर आए। एक अकेली वर्किंग पैरेंट होने का तनाव मुझ पर हावी होने लगा था, ऐसे समय में यह व्यक्ति मेरी ज़िन्दगी में आया जिसने मुझे प्यार और सम्मान दिया।
मैं पुनर्विवाह के लिए बहुत उत्सुक नहीं थी – यह हम दोनों के लिए ही एक दूसरी शादी होती। सिद्धार्थ ने मेरे सामने कई बार एक बच्चा पैदा करने की इच्छा जाहिर की – उनकी बेटी की कस्टडी उनकी एक्स-वाइफ के पास थी और उन्हें उसकी कमी बहुत खलती थी। लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मुझे पूरा यकीन था कि मैं कभी प्रेगनेंट नहीं हो सकती थी, इसलिए मैंने उनसे मजाक में कह दिया, ‘अगर मैं कभी प्रेगनेंट हो गयी, तो मैं तुमसे शादी कर लूंगी।’
एक साल की डेटिंग के बाद, जब हमें पता चला कि मैं प्रेगनेंट हूं, मैं अपने आंसू ही नहीं रोक पा रही थी। मुझे यकीन नहीं हुआ और मैंने चार बार प्रेगनेंसी टेस्ट दोहराया, तब जाकर मुझे विश्वास हुआ कि मैं मां बनने वाली हूं। हमारे परिवार बेहद खुश थे। 20 दिनों के अंदर हमने शादी कर ली।
सिद्धार्थ से मिलने के कुछ समय पहले ही, मैंने अपनी बेटी का दाखिला एक बोर्डिंग स्कूल में कराया था। गुरुग्राम जैसे शहर में एक सिंगल वर्किंग मदर के रूप में, अकेले सब कुछ मैनेज कर पाना बहुत कठिन था। वह मेरे जीवन में सिद्धार्थ की उपस्थिति के बारे में जानती थी, लेकिन मैंने उस पर कभी भी उन्हें एक पिता के रूप में देखने के लिए जोर नहीं डाला। उसके अपने पापा थे और उनका रिश्ता काफी मजबूत था। इसलिए पारिवारिक प्रेम की उसके जीवन में कोई कमी नहीं थी।
मैंने उसके साथ अपनी दोबारा शादी करने और दूसरे बच्चे के बारे में बात की। उसकी खुशी का तो जैसे कोई ठिकाना ही नहीं था क्योंकि वह हमेशा से एक भाई या बहन चाहती थी।
मैं नहीं चाहती थी कि मैं उसके लिए यह तय करूं कि उसे किसके साथ रहना चाहिए। तो, मैंने उससे पूछा, “तुम किसके साथ रहना चाहती हो?” उसने जवाब दिया, “पापा”।
मैंने उसके फैसले को अपनाया। मेरे एक्स-हस्बैंड ने भी कहा, “अब तुम्हारा अपना एक और परिवार है, इसलिए उसे मेरे साथ रहने दो।” सिद्धार्थ को अपनी बेटी की कमी का अहसास था, इसलिए वह समझते थे और उन्होंने मुझे इससे उबरने और तालमेल बिठाने में काफी मदद की। हर कोई खुश रहने का हकदार है और मेरे एक्स ने हमारी बेटी की ज़िम्मेदारी खुशी-खुशी उठायी। अब, मेरे जीवन की एक नयी शुरुआत हो गयी थी। मैं और मेरी बेटी दोनों अपनी जगह पर खुश थे।

लेकिन कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। सवाल उठने लगे, ‘आपकी बेटी कहां है?’ ‘क्या वह अब तुम्हारे साथ नहीं है?’ ‘क्या तुमने उसे त्याग दिया है?’ ‘तुम उसे ऐसे कैसे छोड़ सकती हो?’ इन बेतुके सवालों का कोई अंत ही नहीं था।
मैं प्रेगनेंट थी और ऐसे में यह तनाव बेहद तकलीफदेह था। सिद्धार्थ ने बहुत सहारा दिया और मुझे केवल इस बात पर फोकस करने के लिए कहा कि मेरी बेटी की खुशी किसमें है। और वह अपने पिता के साथ खुश थी। पहले जब वह मेरे साथ रहती थी, तब वह उनके पास जाकर उनके साथ कुछ समय बिताती थी। अब वह वीकेंड्स या छुट्टियों में मेरे पास आती है। लेकिन हमारे इस फैसले ने, समाज की नज़रों में मुझे एक बुरी मां बना दिया।
जब भी मैं सोशल मीडिया पर उसकी तस्वीरें पोस्ट करती, मेरे तथाकथित दोस्त कमेंट करते – “अरे, वह कहां है? अब तुम्हारे साथ नहीं है? हमें उसकी बहुत चिंता रहती है। वह बहुत छोटी है। यकीनन उसे तुम्हारी कमी बहुत खलती होगी।”
ये सब वही लोग हैं जिन्होंने कभी भी हमारे हालचाल पूछने के लिए एक फ़ोन तक नहीं किया था। मैं इतना तंग आ गयी थी कि मैंने तस्वीरें शेयर करना बंद कर दिया।
तानों का सिलसिला जारी रहा और मैं सुनती रही। किसी ने कहा, “बच्चा सड़क पर ही छोड़ना था तो हमको ही दे देती।” मैं हैरान थी। वह अपने पिता के साथ रह रही थी नाकि सड़क पर। अन्य टिप्पणियां आईं, जैसे, “अपना बच्चा नहीं है ना, अपना खून नहीं है इसीलिए छोड़ दिया।”
हमारे बेटे के जन्म के तुरंत बाद, सिद्धार्थ को सिंगापुर जाने का मौका मिला और हम चले गए। लोगों को बातें बनाने के लिए और मसाला मिल गया। पहले, मैंने अपनी बेटी को अपने एक्स-हस्बैंड के साथ छोड़ दिया और अब मैं देश ही छोड़ कर जा रही हूं।
जब कोई पुरुष अपने बीवी और बच्चों को छोड़कर पुनर्विवाह करता है, तो यह ठीक है। लेकिन एक महिला का फिर से एक नयी शुरुआत करना और जिंदगी में आगे बढ़ना, यह हमारा समाज बड़ी कठिनाई से अपनाता है।

एक मां यदि अपने बच्चे को उसके पिता के साथ रहने के लिए छोड़ देती है तो यह कैसे गलत है? एक पिता की ज़िम्मेदारी एक मां से कम तो नहीं होती है। लेकिन अगर एक औरत अपनी खुशी चुनती है तो वह गलत माना जाता है।
मेरी बेटी मेरी पहली संतान है। वह खास है, मैं उसे बहुत प्यार करती हूं और मुझे यह किसी को भी साबित करने की जरूरत नहीं है। वह भी अपने भाई से बेहद प्यार करती है, जो अभी केवल चार साल का है इसलिए ज्यादा समझता नहीं है। जब हम भारत जाते हैं, तो मेरे दोनों बच्चे एक साथ समय बिताते हैं। कोविड-19 के कारण, इस साल हम इंडिया नहीं जा सके, लेकिन हम लगभग हर दिन वीडियो कॉल करते हैं।
मुझे यह समझने में काफी समय लगा कि खुश रहना कोई अपराध नहीं है। मैं और मेरी बेटी भले ही एक दूसरे से बहुत दूर हैं लेकिन हम दोनों एक दूसरे के लिए हमेशा मौजूद रहते हैं। जिन दो लोगों को यह सबसे ज़्यादा जानने और समझने की जरूरत है और जिनकी स्वीकृति सबसे अहम है, वह केवल हम दोनों हैं।
मैं अपनी कहानी शेयर करना चाहती हूं ताकि ज़्यादा से ज़्यादा महिलाएं यह समझें कि जीवन में अपनी खुशियों को प्राथमिकता देना ठीक है, इसके लिए खुद को दोषी ठहराने की कोई आवश्यकता नहीं है। जब तक आप और आपके बच्चे खुश, सुरक्षित और स्वस्थ हैं, आप दोनों बिना किसी अपराध बोध के अपना जीवन बिता सकते हैं।”
– सारा हुसैन को दिए गए विवरण के अनुसार