
अपने रिश्तों को बनाए रखने के लिए, प्रभावी रूप से तर्क करने की कला अपनाएं
“तर्क-वितर्क एक रिलेशनशिप के लिए हेल्दी है”
बचपन में, अपने कजिन की ऊंची आवाज में कही एक मजाकिया टिप्पणी भी मेरी आंखों में आंसू ले आती थी और मैं कमरे से बाहर चली जाती थी। मुझ में तब भी तर्क करने की कला नहीं थी और आज भी बहुत कुछ नहीं बदला है। आक्रामकता के प्रति मेरा रिएक्शन बिलकुल वैसा ही होता है, जैसा शादियों में अपने कुछ रिश्तेदारों से मिलने पर, जो मिलते ही पहली बात यह कहते हैं “अगला नंबर तुम्हारा है, बेटा। तैयार हो जाओ” – मैं जितना तेज़ी से हो सके, उनसे उतना दूर भाग खड़ी होती हूं।
जब लोग मेरे ऊपर हावी होने लगते हैं तो मेरा दिमाग काम करना बंद कर देता है। मेरी ज़ुबान लड़खड़ाने लगती है, और मैं समझ नहीं पाती हूं कि मेरी हथेलियां अचानक इतनी जल्दी, इतनी गीली कैसे हो जाती हैं।
न्यूरोसाइकेट्रिस्ट कंसलटेंट डॉ ईरा दत्ता बताती हैं, “अलग-थलग रहने वाले और एंग्जायटी से ग्रस्त लोग आमतौर पर कंफ्रंटेशन (आमना-सामना) करने से भागते हैं। यह स्वाभाविक है।”
बहस से बचने के लिए या सबको खुश रखने के लिए ताकि हर कोई आपको पसंद करें, आप कई बार ऐसी बातों से सहमत हो जाते हैं जो आपके विचारों और धारणाओं के विरुद्ध होती हैं। किसी फ्रेंड ने कहा, “आजकल शादी कौन करता है, यह तो पुराने जमाने की बात हैं” और आप उसकी हां में हां मिलाते हैं, भले ही आप व्यक्तिगत रूप से शादी के बंधन में विश्वास रखते हों और इसमें बंधना चाहते हों। इस तरह अपने सेल्फ-एक्सप्रेशन पर अंकुश लगाने से आप असंतुष्ट महसूस करने लगेंगे, और यदि ऐसा ही चलता रहा, तो यह अंततः आपके जीवन में बाधाएं खड़ी करने लगेगा।
जैसा की ‘बहस’ शब्द का नाम लेते ही मन में विचार आता है, एक्सपर्ट्स इस बात पर जोर देते हैं कि यह बिलकुल ज़रूरी नहीं है कि आपको अपनी बात मनवाने के लिए लड़ाई-झगड़ा और मार-कुटाई का सहारा लेना पड़ेगा।
दत्ता कहती हैं, “जब लोग दूसरे व्यक्ति को गलत साबित करने के इरादे से तर्क करना शुरू करते हैं, तो खुद का बचाव करने के लिए उनकी शुरुआत ही एक आक्रामक रवैये से होती है।” जबकि तर्क करने के पीछे हमारा लक्ष्य समस्या का समाधान होना चाहिए नाकि समस्याओं को और बढ़ाना।
यदि मानवीय संपर्क को एक स्पेक्ट्रम पर देखें, तो इसके एक छोर पर पैसिव कम्युनिकेशन और दूसरे पर एग्रेसिव कम्युनिकेशन होता है। पैसिव या निष्क्रिय होने का मतलब है कि आप कभी भी किसी मुद्दे को संबोधित नहीं करेंगे, लेकिन एग्रेशन या आक्रामकता ऐसी बहस का कारण बनते हैं जिनसे कभी कोई समाधान नहीं निकलता। इन दोनों के बीच में निहित है – अस्सेर्टिव कम्युनिकेशन (स्पष्टता और ढृढ़ता के साथ अपनी बात रखना), जो कि हमारा अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
तर्क को एक डाइट की तरह समझें
यदि आप कभी भी डाइट पर रहे हों, तो आपको पता होगा कि यदि आपके पास एक फिक्स्ड मील प्लान है तो उस पर टिके रहना आसान होता है। वरना अपनी लालसाओं के आगे संयम खोकर, आप कभी भी चॉकलेट चिप आइसक्रीम के उस टब तक पहुंच सकते हैं।
साइकोलोजिस्ट डॉ श्वेतांबरा सभरवाल का मानना है कि यदि समाधान सुनिश्चित करना है तो तर्कों को भी एक उचित क्रम में ढालने की आवश्यकता है।
एक लक्ष्य निर्धारित करें: दो सवालों के जवाब देते हुए शुरुआत करें – हम यह बातचीत क्यों कर रहे हैं? हम इससे क्या हासिल करना चाहते हैं?
जिन तीन मुख्य विषयों पर आप चर्चा करना चाहते हैं, उन्हें लिखकर रखें, इस तरह जब भी आप में से कोई एक मुद्दे से भटकने लगे, तो दूसरा धीरे से उसका ध्यान फिर से मुद्दे पर केंद्रित कर सकता है – “यह एक अच्छी बात है। हम इस बातचीत के बाद इस पर दोबारा चर्चा करेंगे।”
सीमाएं निर्धारित करें: जैसे आपकी डाइट प्रोसेस्ड शुगर और डीप-फ्राइड फूड पर प्रतिबंध लगाती है, वैसे ही आपकी बातचीत में भी कुछ गाइडलाइन्स होनी चाहिए। सभरवाल कहती हैं, “पहले से साफ़ कह दें कि आप किसी खास विषय, लहजे या बर्ताव से दूर रहना चाहते हैं।”
इस तरह आपसी मतभेदों को एक साथ सामने लाने का मौका मिलता है, जहां लोग सीख सकते हैं कि बिना एक-दूसरे को नीचा दिखाए तर्क कैसे करें।
मान लीजिए कि आप बच्चे नहीं चाहते हैं। लेकिन आपकी मां इस बात पर जोर दे रही हैं कि बच्चे के बिना एक महिला अधूरी होती है। ऐसे में कड़वी बातों का तनावपूर्ण द्वंद्वयुद्ध छेड़ने के बजाय, एक ऐसा वातावरण बनाने की कोशिश करें जहां बिना अपनी इच्छाओं को दबाते हुए, आप दोनों ही एक दूसरे की पसंद और नापसंद का सम्मान कर सकें – “बच्चे का होना आपके लिए महत्वपूर्ण है, इससे आपको बहुत ख़ुशी मिलेगी, इस बात को मैं समझती हूं और इसका आदर भी करती हूं। लेकिन मैं ऐसा महसूस नहीं करती। इस मुद्दे के सभी पक्षों को अच्छे से तौलने के बाद, मैंने सोच-समझकर यह निर्णय लिया है, और मैं चाहती हूं कि आप भी इसे स्वीकार करें।”
ऐसी कोई भी आक्रामक या निर्णयात्मक बात कहने से पहले ही खुद को रोक लें – “आपकी धारणाएं पुराने जमाने की हैं। और जो आप कह रही हैं उसमें कोई समझदारी नहीं है।”
अच्छी बातों को हाइलाइट करें: पॉज़िटिव नोट से शुरुआत करें। किसी की अच्छी बातों या ताकतों को इंगित करना, उसमें वांछित व्यवहार को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकता है, और इससे आपको उस व्यक्ति के सकारात्मक गुण देखने में भी मदद मिलती है जिसके साथ आप संभावित रूप से बहस करने वाले हैं।
“यह बहुत अच्छी बात है कि आप हमेशा अपनी टीम की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। लेकिन कई बार ज़रुरत पड़ने पर, आप खुद सही समय पर मदद नहीं लेते हैं, और यह आपकी परफॉरमेंस के साथ-साथ कंपनी की परफॉरमेंस को भी प्रभावित करता है। जब भी आपको आवश्यकता हो, कृपया मदद मांगें।”
सुधार क्षेत्रों का वर्णन करें: सुनिश्चित करें कि जिन क्षेत्रों में आप सुधार देखना चाहते हैं, वे आपकी बातचीत के मुख्य लक्ष्य से सम्बंधित हैं। यह किस तरह आपकी समस्या के समाधान से जुड़े हैं, आपको इसकी व्याख्या करना आना चाहिए। यदि आप कम्युनिकेशन की कमी के बारे में बहस कर रहे हैं, तो आप उसे यह नहीं बता सकते कि उसे हेल्दी भोजन करना चाहिए। लेकिन अगर आपकी चर्चा एक हेल्दी लाइफस्टाइल के बारे में है, तो यह सुधार क्षेत्र ठीक है।
आश्वस्त करें, मनुहार ना करें
तर्क-वितर्क करने के दो तरीके हैं – बरसों से देखते आ रहे बॉलीवुड ड्रामा का इस्तेमाल करते हुए, अपनी भावनाओं को उजागर करना या तथ्यों के साथ अपने नज़रिए को दूसरे के सामने रखना।
उद्यमी और लेखक सेठ गोडिन लिखते हैं, “मनुहार से दूसरे के मन में भावनाएं, भय और कल्पना की उत्पत्ति होती है। समझाने के लिए एक स्प्रेडशीट या किसी अन्य तर्कसंगत उपकरण की आवश्यकता होती है। किसी ऐसे व्यक्ति को जो पहले से ही तथ्यों से वाकिफ हो और आश्वस्त हो, उसे मनाना बहुत आसान होता है।” दत्ता भी इस बात से सहमत हैं – उनकी सलाह है कि आप इमोशनल एक्सप्लनेशन से बचें, और इसके बजाय तर्कसंगत आर्ग्युमेंट चुनें।”
मतभेद हो सकते हैं क्योंकि कई बार दोनों पक्षों को समान तथ्यों का ज्ञान नहीं होता, इसलिए किसी को अज्ञानी या इग्नोरैंट कहने से पहले, अपनी राय का समर्थन करने वाले तथ्यों को उसके सामने प्रस्तुत करें।
लेकिन गरमागरम बहस के दौरान, किसी को अपना रुख बदलने के लिए आश्वस्त करना बहुत मुश्किल काम है। इसे आसान बनाने के लिए, उस व्यक्ति के व्यक्तित्व के उन पहलुओं पर दस्तक दें, जो आपको लगता है उसे आपकी बात के प्रति और अधिक ग्रहणशील बना देंगे।
यदि आप किसी को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वीगन लोगों को बेवजह गुस्सैल लोगों की श्रेणी में डाला जाता है, तो उन्हें यह कहने के बजाय कि वे गलत हैं, उनसे किसी ऐसी चीज़ के बारे में बात करें, जिसे लेकर वे बहुत भावुक हों, और उनसे पूछें कि अगर कोई उनके जुनून को गलत ठहराए तो उन्हें कैसा महसूस होगा। इस तरह, आप उन्हें अपने नज़रिए के प्रति संवेदनशील बनाते हैं।
प्रोसेस को जांचें, पर्सनालिटी को नहीं
डॉ एंजेला डकवर्थ ने अपने पॉडकास्ट, ‘नो स्टूपिड क्वेश्चन्स’ पर कहा, “प्रोसेस पर फोकस करें, पर्सनालिटी पर नहीं।” ऐसा कहना कि “आप इतने लापरवाह हैं,” व्यक्ति को तुरंत डिफेंसिव मोड में ले जाता है, इसकी बजाय कहें, “मुझे बुरा लगा कि आपने मुझे आमंत्रित करने के बारे में नहीं सोचा। क्या आप अगली बार मुझसे पूछ सकते हैं?”
यह तरीका आपको समस्या के मूल कारण से जोड़े रखेगा, बजाय इसके कि कोई अन्य गड़े मुर्दे उखड़ने लग जाएं जिनका इस समय दबा रहना ही बेहतर है।
ऐसा करने का एक और आसान तरीका है ‘तुम’ के बजाय ‘मैं’ शब्द का चयन करना। सभरवाल बताती हैं, “भले ही आपकी मंशा गलत नहीं हो, ‘तुम’ शब्दों वाले कथन आमतौर पर अटैक जैसे प्रतीत होते हैं। ‘मैं’ शब्द वाले कथन से शुरूआत करना एक बेहतर आईडिया है। अपने बारे में बात करें, आपको कैसा महसूस हो रहा है, और दूसरे व्यक्ति को भी अपनी बात समझाने का मौका दें।
“कैसे?” यह सवाल ज़रूर करें
हम अक्सर अपने बचाव में और अपनी बात को साबित करने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हम दूसरे व्यक्ति के तर्क पर गौर करना भूल जाते हैं।
दूसरे व्यक्ति ने सोच-समझकर उसका प्रस्ताव रखा भी है या नहीं, यह जानने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप उनसे पूछे कि यह कैसे काम करेगा?
अगर वे अपनी बात समझा सकते हैं, तो आप भी कुछ सीखेंगे। या हो सकता है कि आप नरमी के साथ उन्हें अपने रुख की ओर मोड़ लें।
अपने रिश्ते को खतरे में न डालें
बाल झटककर, पलटकर, अपने पीछे दरवाज़ा पटककर, दूर चले जाने के बारे में आपने भले ही ना जाने कितनी बार सोचा होगा, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं है।
तर्क को भावनाओं से ऊपर रखें, और बातचीत के दौरान ड्रामा को बाहर ही रहने दें। “सब खत्म हो चुका है”, “अब तो तुमसे बात करना भी मुश्किल है”।
साइकोथेरेपिस्ट बार्टन गोल्डस्मिथ बताते हैं, “इस प्रकार का इमोशनल ब्लैकमेल दूसरे व्यक्ति को फाइट मोड में ले जाता है।” ऐसे में यह भी हो सकता है कि वे आपकी बात पूरी होने से पहले ही दरवाजे से बाहर निकल लें, और एक नए लंच बडी की तलाश में लग जाएं।
आपके रिश्ते के भाग्य का फैसला एक तर्क पर नहीं टिका होना चाहिए। प्रभावी ढंग से तर्क करने की कला आपको कुछ नया कंस्ट्रक्टिव सिखाती है, एक नया दृष्टिकोण अपनाने में मदद करती है और क्या पता यह शायद आपको असहमति के साथ भी सहमत होना सिखा दे।