
‘‘मैं समझ नहीं पाई कि जो मेरे साथ हुआ वह मैरिटल रेप था’’
सहमति के उल्लंघन और अविश्वास की ऐसी निजी कहानी जिसमें अंतत: एक कठोर निर्णय लेना पड़ा
शादी के बाद, अपने पति के साथ रिश्ते में ऐसे बदलाव आने लगेंगे, इसकी तो कभी आभा* ने कल्पना भी नहीं की थी। शुरुआत असुरक्षा की भावना के साथ हुई। छोटी-मोटी बहसें जल्दी ही बड़े झगड़ों में बदलने लगी और शादी के कुछ ही महीनों बाद उन्हें अपनी मां के घर लौटना पड़ा। जब उन्हें अपनी शादी को एक और मौक़ा देने के लिए मनाया गया तो वे लौट गईं, लेकिन हालात और ख़राब होने लगे। वो बताती हैं, ‘‘मैं हैरान थी, मुझे आभास था कि कुछ गलत हो रहा है। पर मैं यह नहीं समझ पाई कि जो मेरे साथ हो रहा था वह मैरिटल रेप था। क्योंकि मुझे लगा, ये तो मेरे पति हैं।’’
आइए उनकी इमोशनल कहानी पढ़ें।
चेतावनी: आगे दुर्व्यवहार और यौन उत्पीड़न का जिक्र किया गया है।
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मैं अपने एक्स-हस्बैंड से कॉलेज में मिली थी। हमने कुछ सालों तक डेट किया और करीब 10 साल की शादी के बाद पिछले साल हमारा तलाक़ हुआ। हमारा एक बच्चा भी है। शादी के तुरंत बाद ही हमारे रिश्ते में बदलाव आने शुरू हो गए थे। इसके लिए मैं किसी एक व्यक्ति को दोष नहीं दूंगी। पर मुझे लगता है कि शादी के बाद महिलाओं पर अपेक्षाओं का इतना दबाव पड़ने लगता है, ख़ासतौर पर जॉइंट फ़ैमिलीज़ में, कि इस दबाव के तहत शादी को लेकर उनके जो सपने और अपेक्षाएं होती हैं, वे टूटने लगती हैं। उनकी धारणाएं बदलने लगती हैं।
मैं सुबह 7-7.30 तक उठती थी, ताकि परिवार के साथ बैठकर थोड़ा समय बिता सकूं। ऑफ़िस जाने से पहले अपनी सास की लंच बनाने में मदद करती थी। मुझे घर के कामों से कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन आख़िर सारी अपेक्षाएं – घरेलू काम, लोगों का ख़्याल रखना और इंटिमेसी – बहू पर ही क्यों लाद दी जाती हैं? जबकि बेटा देर तक सो सकता है, अपनी मर्जी से कभी भी आ-जा सकता है, दोस्तों के साथ शाम बिताने और देर रात डिनर करने के बाद मुझसे यह उम्मीद करता है कि मैं उसके साथ समय बिताऊं। मेरे पास अपने लिए थोड़ा भी समय नहीं बचता था।
हमारे बीच चीज़ें तब बदलना शुरू हुईं, जब असुरक्षा की भावनाएं पनपीं। मैं मीडिया प्रोफ़ेशनल थी। वे हमेशा सवाल पूछते थे- मैं कहां जा रही हूं, किससे मिल रही हूं, मैंने उनका फ़ोन क्यों नहीं उठाया। संदेह और कलह इतना बढ़ गया कि शुरूआती कुछ महीनों में ही मैं अपनी मां के घर चली गई। मुझे तभी अहसास हो गया था कि यह शादी मेरे लिए सही नहीं है, मैं शादी तोड़ देना चाहती थी। लेकिन आपको पता है ना हमारा समाज कैसा है, इसलिए मैंने हार मान ली। मैंने सोचा मुझे एक और कोशिश करनी चाहिए, हो सकता है कि शायद मैं ही गलत हूं? मैं वापस लौट गई, लेकिन अगले नौ सालों में भी कुछ नहीं बदला, बल्कि परिस्थितियां और भी बदतर होती गईं।

मेरे एक्स-इन-लॉज़ शुरू से ही हमारी शादी से ख़ुश नहीं थे। हम अलग-अलग बैक्ग्राउंड और कम्युनिटीज़ से थे। वे चाहते थे कि मैं उनकी भाषा बोलूं, जो मेरे लिए बेहद मुश्किल था, और इससे वे चिढ़ जाते थे। उनका मुझे पसंद ना करना भी हमारे रिश्ते में पनप रही दरार का एक बहुत बड़ा कारण था।
मेरे और मेरे पति के बीच में, कई बार अपने रिश्ते में आ रहीं दूरियों को लेकर बात हुई। लेकिन जब तक आप अपनी गलतियों को स्वीकारनें के लिए तैयार ना हों, इन बातों का कोई फ़ायदा नहीं होता, और यह बात मुझ पर भी लागू होती है।
हमारे बच्चे के जन्म के बाद मैंने काम छोड़ दिया। पर मैं बहुत बेचैन रहने लगी, क्योंकि पिछले 14-15 सालों से मैं लगातार काम कर रही थी। एक ही घर में अपने इन-लॉज़ के साथ रहना, जिनके साथ मेरी पटती भी नहीं थी, और ऊपर से पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजरना, असहनीय हो रहा था। उस समय, ना तो इस विषय पर ज्यादा जानकारी उपलब्ध थी और ना ही इस बारे में कोई खुलकर बात करता था। लोग मुझे पागल कहने लगे, यहां तक कि मुझे भी ऐसा ही लगने लगा जैसे मैं अपना मानसिक संतुलन खोने लगी हूं। ऐसा शायद इसलिए हो रहा था क्योंकि मेरे पास अपने बच्चे की देखभाल करने के अलावा कोई दूसरा काम ही नहीं था। बस, यही जैसे मेरा प्रोजेक्ट था, मैं किसी से अपने मन की बात नहीं कह सकती थी। मेरे एक्स-हस्बैंड तो इन बातों में ज़्यादा ध्यान ही नहीं देते थे।
सुबह काम पर निकलने के बाद वे देर रात लौटते थे। हम दोनों के बीच कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं था, लेकिन वे सेक्स की मांग करते थे। पुरुषों को लगता है कि ये उनका हक़ है। उन्होंने एक बार मुझसे कहा, ‘‘ये तुम्हारा फ़र्ज़ है’’। मैंने साफ़ इंकार कर दिया।

सब कहते हैं कि सेक्स और इंटिमेसी रिश्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। मेरा कहना था, हमारे बीच फ़िज़िकल इंटिमेसी तो है, लेकिन इमोशनल इंटिमेसी का क्या? यदि मैं आपके साथ भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ी हूं तो मैं आपके लिए यह नहीं करूंगी। उनके लिए, उनकी बुनियादी ज़रूरत पूरी नहीं हो रही थी, लेकिन वे इस मुद्दे के दूसरे पहलू को देखने के लिए तैयार ही नहीं थे, जो उतना ही महत्वपूर्ण है। उनके लिए फ़िज़िकल रिश्ता ज्यादा ज़रूरी था। यह साफ़ था कि इस बारे में मेरे और उनके विचार बिलकुल अलग-अलग थे।
पहले तो मुझे यह समझ ही नहीं आया कि जो मेरे साथ हुआ है, वो मैरिटल रेप है। मैं कुछ समय के लिए अपनी मां के यहां गई हुई थी, लेकिन जब मुझ पर दबाव बनाया गया तो मैं लौट आई। एक रात, लगभग दो बजे, आंख खुली तो पाया कि मेरे पति मेरे ऊपर चढ़े हुए थे। मेरे मना करने के बावजूद भी वे नहीं रुके। गहरी नींद से अचानक जागने के बाद, थोड़ी देर तक तो मुझे कुछ समझ ही नहीं आया। वे मेरे साथ जबरदस्ती करते रहे, और मैं इतने शॉक में थी कि बस चुपचाप लेटी रही। मुझे पता था कि मेरे साथ जबरदस्ती हुई है, लेकिन असल में यह मैरिटल रेप था, मैं समझ ही नहीं पाई। आप सोचते हैं, ओह… वो मेरे पति हैं, लेकिन सच यह भी है कि उसमें आपकी सहमति शामिल नहीं है।
उसके बाद, तो उनके स्पर्श से भी मुझे घिन्न आने लगी। ऐसा दोबारा हुआ। तब मैंने उन्हें साफ़ कह दिया कि अब तुम मेरे साथ ऐसा कभी नहीं करोगे। हां, मैंने रेप जैसे कड़े शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया क्योंकि जब आप किसी की परवाह करते हो तो आप उन्हें बुरा महसूस नहीं कराना चाहते। उसके बाद तो मुझे उनका हाथ लगाना भी पसंद नहीं था। जब भी उन्होंने सेक्स की मांग की, मैंने मना कर दिया। यदि कभी किया भी तो, बिलकुल बिना मन के, मैं कभी पूरी तरह शामिल नहीं हो पाई।

मुझे लगता है कि ऐसे अनुभवों से गुज़रने वाली ज्यादातर महिलाओं को इसमें कुछ गलत नहीं लगता। केवल समाज ही नहीं, परिवार के लोग भी यही मानते हैं। हमारे पैरेंट्स कहते हैं कि इस व्यक्ति से तुमने शादी की है, उसकी शारीरिक जरूरतों को पूरा करना तुम्हारा फ़र्ज़ है। वे कहते हैं, ‘तो क्या हुआ? वो तुम्हारा पति है।’ मुझे आज भी याद है, घर छोड़ने के बाद जब वे मुझे मिलने आए, मेरी फ़ैमिली ने मुझे उनके साथ एक ही कमरे में सुलाने की पूरी कोशिश की। सबने कहा, ‘तुम अपनी शादी तबाह कर रही हो’। ‘यदि तुम नहीं करोगी तो वह सेक्स के लिए कहीं और जाएगा’। मैंने कहा, जाने दो। मेरे पति ने भी मुझे धमकाया कि वह घर के बाहर इंटिमेसी ढूंढेंगे, मैंने कहा ठीक है। यदि तुम केवल यही चाहते हो तो प्लीज़ जाओ, अपने मन की कर लो।
जब हमने तलाक़ के लिए फाइल किया तब तक हमारे रिश्ते में कुछ नहीं बचा था। हम एक-दूसरे के साथ बेहद नाख़ुश थे और हमारा बच्चा हमारे बीच की कड़वाहट को महसूस कर रहा था। वह उसके लिए इस शादी को बनाए रखना चाहते थे, और मैं उसके लिए ही इस शादी से छुटकारा चाहती थी। उसका अपने पैरेंट्स को इतना नाख़ुश, हमेशा झगड़ते हुए, एक-दूसरे से बातचीत ना करते हुए देखना – मैं अपने बच्चे के सामने ऐसा उदाहरण नहीं रखना चाहती थी। उसका अपने पिता से अलग रहकर, मुश्किलों का सामना करते हुए, बड़ा होना मुझे मंजूर था लेकिन इस मिसाल के साथ नहीं कि हर रिलेशनशिप हमारी जैसी होती है।
हम अब साथ नहीं रहते, हमारा तलाक़ हो चुका है, लेकिन कम से कम अब हमारा बच्चा हमें ख़ुश तो देखता है। और अपने पिता के साथ उसकी रिलेशनशिप काफी अच्छी है, वे अक्सर मिलते हैं और काफी समय साथ में बिताते हैं।
अपने बच्चे की बेहतरी के लिए, जो भी ज़रूरी होगा, मैं करूंगी। यही सबसे बड़ा कारण था कि मैं अलग हुई।

यहां तक कि तलाक़ के समय भी मैंने मैरिटल रेप का मामला नहीं उठाया। इसकी एकमात्र वजह मेरा बेटा था। मैं चाहती थी कि उसके पिता, उसके जीवन का हिस्सा बनें, क्योंकि मुझे पता है कि पिता का ना होना एक बच्चे के लिए कितना तकलीफ़देह होता है। मुझे एक सिंगल मदर ने पाला था।
मैं नहीं चाहती कि वह अपने पिता को बुरा मानते हुए बड़ा हो। मुझे पता है मेरा यह कहना गलत होगा कि क़ानून में बदलाव की ज़रूरत है, जबकि मैं ख़ुद ही इसके लिए कोई पहल नहीं कर रही हूं। लेकिन एक पैरेंट के लिए ऐसे मामले काफी पेचीदा हो जाते हैं। यदि मेरा बेटा मेरी प्राथमिकता नहीं होता, तो मैं इसके खिलाफ जरूर खड़ी होती। साथ ही, इस बात का भी डर रहता है कि कहीं आपकी भावनाओं और अनुभवों को यह कहकर कि – यह जबरदस्ती कैसे हुई, वो तो तुम्हारा पति है – खारिज कर दिया जाएगा। और जब आप पहले से ही दुखी और परेशान होते हैं, ऐसे में आपकी बात का निरस्त या अमान्य हो जाने का डर और भी गहरा होता है।
काश महिलाएं गुमनाम रहते हुए ऐसी बातों को रिपोर्ट करा पातीं, ताकि उनके बच्चे प्रभावित ना हों। लेकिन ऐसा नहीं है और ऐसा हो पाना भी संभव नहीं है। जो महिलाएं मैरिटल रेप का शिकार हो चुकी हैं, शायद वो ही मेरी इस स्थिति को बेहतर समझ सकेंगी।
क़ानून बनाने के साथ, और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है, मुझे लगता है कि पुरुषों को इस बारे में शिक्षा दी जानी चाहिए। यही पहला क़दम होना चाहिए। पुरुषों और महिलाओं दोनों को सहमति का महत्व समझाया जाए। मैंने यह बात बहुत देर से सीखी, लेकिन छोटी उम्र से ही बच्चों को इस बारे में सिखाना बेहद जरूरी है। गुड टच और बैड टच के साथ-साथ, मैंने अपने बेटे को अभी से कंसेंट का मतलब और उसका महत्व सिखाना शुरू कर दिया है। कुछ लोगों को लगता है कि किसी बच्चे के नितंब (बम) पर हाथ मारना मज़ाक की बात है, लेकिन यह गलत है। यदि कोई मेरे बच्चे के साथ ऐसा करेगा तो वह उसे मना कर देगा। कुछ चीज़ें, कुछ स्पर्श… यदि उचित नहीं हों तो आपका शरीर खुद-ब-खुद आपको सचेत कर देगा। लेकिन कुछ सीमाओं के बारे में सिखाना पड़ता है।
हमें अलग रहते हुए करीब तीन साल हो चुके हैं और हमारे तलाक को एक साल हो गया है। यह एक काफी लम्बा सफर था, अब दोबारा उस राह पर चलना मेरे लिए थोड़ा मुश्किल है। मेरे दोस्त बहुत कोशिश करते हैं कि मैं नए लोगों से मिलूं, यह आदमी बहुत अच्छा है, वह आदमी ये करता है, कम से कम मिल तो ले। एक तलाकशुदा औरत होने के बावजूद, लोग आपसे मिलना और बातचीत करना पसंद करते हैं। लेकिन जैसे ही उन्हें पता लगता है कि मैं एक सिंगल मदर हूं, वे ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे गधे के सर से सींग।
मैं हाल ही में किसी से मिली। हमारी मुलाक़ात एक सयोंग थी और धीरे-धीरे बातचीत शुरू हो गई। लेकिन रिलेशनशिप को आगे बढ़ाने के उस पड़ाव तक पहुंचने में हमें थोड़ा समय लगा। मैरिटल रेप के बाद किसी भी आदमी पर भरोसा करना मेरे लिए मुश्किल था, और किसी के स्पर्श से भी मुझे घिन्न आती थी। मैं एक बहुत भावुक किस्म की इंसान हूं। शारीरिक संबंध से कहीं ज्यादा डर मुझे खुद को किसी से भावनात्मक रूप से जोड़ने का था। इसके बावजूद, आज, मेरे पास कोई है जिसका स्पर्श दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है। मैरिटल रेप जैसी पीड़ा से गुजरने के बाद, किसी भी औरत के लिए फिर से नई शुरुआत करना थोड़ा मुश्किल जरूर हो सकता है, लेकिन ऐसा संभव है।
यह सारा हुसैन को बताया गया एक गुमनाम अकाउंट है
* अनुरोध पर नाम बदल दिए गए हैं
नोट: यह कहानी एक पर्सनल अकाउंट है जो कुछ रीडर्स के लिए तकलीफदेह हो सकती है। यदि आप एक मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल की तलाश कर रहे हैं, तो iCall द्वारा बनाई गई यह लिस्ट ज़रूर देखें और कानूनी सलाह के लिए, आप वकीलों की आल इंडिया डायरेक्टरी पर जा सकते हैं।