
मैं महत्वाकांक्षी नहीं हूं और मुझे इसमें ही खुशी मिलती है
क्या होता है जब सफलता के प्रति आपका नजरिया दूसरों से अलग होता है?
मैं 30 वर्ष की हूं और मेरे अधिकांश दिन, अभी भी यही पता लगाने में गुज़र रहें हैं कि मैं बड़ी होकर क्या बनना चाहती हूं। जब मैं बच्ची थी तो मैं एक अंतरिक्ष यात्री बनना चाहती थी; फिर एक चित्रकार और एक वक़्त था, जब एक अंग्रेजी शिक्षक। वास्तव में कुछ भी नहीं हुआ। मैं बड़ी हुई तो क्लॉस्टेरोफोबिया का शिकार हो गई इसलिए एक मेटल सिलेंडर में ब्रह्मांड की यात्रा करने का तो कोई सवाल ही नहीं था। मैंने अपनी कलात्मक क्षमताओं को ज़रूरत से कुछ ज़्यादा ही आंक लिया था और एक अच्छा शिक्षक बनने के लिए धैर्य तो मेरे पास बिलकुल ही नहीं है। अच्छी बात है कि मैं बहुत महत्वाकांक्षी नहीं हूं।
कई वर्षों बाद जब मैंने एक लोकप्रिय मार्केटिंग कंपनी में वरिष्ठ कॉपीराइटर से एक मैनेजर के पद पर मिल रहे प्रमोशन को ठुकरा दिया, तो लोगों में हड़कंप मच गया। सभी ने मुझसे पूछा कि मैं क्यों मना कर रही हूं, मैं क्यों अपने करियर में आगे नहीं बढ़ना चाहती? जवाब सरल है। मैं जहां हूं वहां खुश हूं। इस प्रमोशन के साथ जुड़ी जिम्मेदारियों में वृद्धि से मेल खाने लायक वेतन में वृद्धि नहीं हो रही थी।

एक बार एक मित्र ने मुझे फेमिनिज़्म के नाम पर ‘धब्बा’ होने के लिए बहुत डांटा। “अतीत और वर्तमान में, इन सभी महिलाओं ने, तुम्हें ये अवसर देने के लिए न जाने कितनी कड़ी मेहनत की होगी और एक तुम हो जो इसे ठुकरा देती हो!” इतना प्रिविलेज्ड होना अद्भुत महसूस कराता होगा।”
यह सच है। जिन महिलाओं के साथ मैं बड़ी हुई, उन्होंने मुझे हमेशा एक इमोशनल और फाइनेंशियल सहायता के सुरक्षा जाल में रखा। लेकिन यह भी सच है कि अपनी पहली समर जॉब के बाद से ही, मैं 16 साल की उम्र से पैसों की बचत कर रही हूं। वैसे तो भारतीय माता-पिता को जन्मदिन/त्योहार/दुबई वाले चाचा से मिले पैसे सीधे फिक्स्ड डिपोसिट में डालने की आदत होती है, पर मेरे मामले में, यह बिलकुल विपरीत था। मैं अपनी माँ का पीछा तब तक नहीं छोड़ती थी, जब तक वह मेरे मुड़े-तुड़े नोटों को बैंक में जमा नहीं करवा देती थी। आज यह बढ़कर एक अच्छी खासी रकम में तब्दील हो गयी है और मैं हर बार इसमें थोड़ा और जोड़ कर, इसे फिर से इन्वेस्ट कर देती हूं, भले ही हर महीने सिर्फ 500 रुपये ही क्यों न जोड़ू। बचत के इस छोटे से तरीके ने, लंबे समय में मेरी अच्छी मदद की है।
मेरा सपना जहाज़ यात्रा द्वारा दुनिया की सैर नहीं और न ही मैं एक बड़े महल की कल्पना करती हूं (इसमें बहुत रखरखाव की ज़रूरत होगी, यहां तक कि कर्मचारियों के साथ भी)। मैं बस अपनी बिल्लियों के साथ अपने एक बेडरूम वाले घर में खुश हूं। यह भाग-दौड़ मेरे लिए नहीं है। लोग ‘महत्वाकांक्षी’ होने को एक आवश्यक पर्सनालिटी ट्रेट के रूप में देखते हैं, लेकिन क्या यह भी उतना ही ठीक नहीं होगा कि आप जैसे हैं वैसे खुश रहें?
पत्रिकाओं में छाई हुई, पावर सूट वाली उन महिलाओं के पास मानो सब कुछ है। वर्षों की उनकी कड़ी मेहनत और देर रात तक किए गए काम की सराहना की जाती है जैसा की होना भी चाहिए, लेकिन उन दूसरी महिलाओं का क्या, जो किराने का सामान खरीदने, बिलों का भुगतान करने, खाना पकाने जैसा सामान्य जीवन जी रही हैं और उसमें भी संतुष्ट हैं, मुझे आश्चर्य है?
जब मैंने प्रमोशन को ठुकरा दिया तो मेरे माता-पिता थोड़े निराश थे। उनके लिए, मेरा सुरक्षित भविष्य और स्वतंत्रता दोनों बहुत महत्वपूर्ण हैं। साथ ही, मैं मज़बूत कामकाजी महिलाओं के एक दक्षिण भारतीय घर में पली-बढ़ी हूं, जिन्होंने मुझे अपने विश्वास पर अडिग बने रहना, एक स्वतंत्र विचारक बनना और अपने खुद के बनाए रास्ते पर चलना सिखाया है। मेरी विचारधाराएँ मेरे माता-पिता की सोच से मेल नहीं खाती थी, लेकिन एक बार जब मैंने उन्हें अपनी स्थिति समझाई, तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि मैं जानती हूं कि मेरे लिए सबसे अच्छा क्या है।

देखिए, ऐसा नहीं है कि मेरी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है, पर यह सिर्फ करियर के बारे में नहीं है। मैं एक शेल्टर में स्वयंसेवा करके थोड़ा बहुत कमा लेती हूं और मुझे यह पसंद है। मुझे प्रोजेक्ट्स में जीत हासिल करके, डेडलाइन्स के पीछे भागने में और बॉस को इम्प्रेस करने में कोई खुशी नहीं मिलती। मेरी खुशी एक गटर से बचाए बिल्ली के छोटे से बच्चे को नहलाने में, या किसी शोषित कुत्ते को फिर से लोगों पर भरोसा करने के लिए प्रोत्साहित करने में है। पशु चिकित्सक और अन्य स्वयंसेवकों की उपेक्षित पशुओं के इलाज में सहायता करना, बचाव अभियान चलाना और आस-पड़ोस के बेघर जानवरों को भोजन खिलाना। इस टीम में हम सभी बराबर हैं।
हो सकता है कि आज से 5-10 साल बाद मैं अपने निर्णयों पर पछतावा करूं। मैं कभी-कभी यह ज़रूर सोचती हूं कि यदि मैंने उस प्रमोशन को स्वीकार कर लिया होता तो मेरा जीवन कैसा होता। शायद कुछ वर्षों में, मेरे जीवन में एक बड़ा बदलाव आ जाए और यह पूरी तरह से बदल जाए, लेकिन मैं तत्परता से इसकी कामना नहीं कर रही हूं।
मैं ऐसे प्रोजेक्ट चुनती हूं जिन पर मैं काम करना चाहती हूं, जिनसे मेरी उचित आय हो सके और घर से दूर रहते हुए अपने मासिक खर्चे मैं खुद उठा सकूं। मुझे अपने आस-पास की चीजों, दोस्तों और परिवार में खुशी मिलती है, और मुझे अपने अंडरपेड होने, अत्यधिक काम और उससे बर्न आउट न होने के बारे में बिलकुल बुरा महसूस नहीं होता। महत्वाकांक्षी नहीं होना, बिलकुल ठीक है और मेरी ख्वाहिश है कि लोग मुझे महत्वाकांक्षी होने की सलाह देना बंद कर दें।
स्टाइलिस्ट: दिव्या गुरसहानी; हेयर: क्रिसन फिगरेडो; मेकअप: रिद्धिमा शर्मा; मॉडल – अर्चना नायर / इनेगा; अर्चना पर – साड़ी और ब्लाउज, रॉ मैंगो