
भारतीय जेल में 9 माह: कैसे जिगना वोरा का आरोप-मुक्त पुनर्जन्म हुआ
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कुख्यात जे डे मर्डर केस में उन्हें सभी आरोपों से मुक्त किया, और अब वे इस कठिन समय से उबरने का एक लंबा सफर तय कर रही हैं
पिछले 5 वर्षों से टैरो कार्ड रीडर और हीलर जिगना वोरा लोगों की हीलिंग करने के साथ, भविष्यवाणी भी करती आ रही हैं। पर कभी-कभी वे सोचती हैं कि क्या आज से एक दशक पहले कोई यह भविष्यवाणी कर सकता था कि उनके फलते-फूलते मीडिया करियर पर 2011 में वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे (जे डे) की हत्या के आरोप में उनकी गिरफ्तारी के साथ, अचानक जैसे एक चीत्कार के साथ विराम लग जाएगा।
एक पत्रकार ने कथित तौर पर, एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार की हत्या की योजना बनाने के लिए, अंडरवर्ल्ड के साथ हाथ मिला लिए! सुनने में जैसे राम गोपाल वर्मा की अधूरी कहानी की स्क्रिप्ट लगती है। ताज़ा खबर: यह सब कुछ एकदम सत्य है!

इस साल के शुरू में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने जिगना वोरा को सभी आरोपों से बरी कर दिया। 2012 में बेल पर छूटने से पहले ही जिगना भायखला जेल में 9 महीने बिता चुकी थीं, हालांकि उनका केस अगले 6 साल तक चलता रहा। वे लोग, जो ‘ऑरेंज इज़ द न्यू ब्लैक’ देखते हैं – यह जान लें कि जिगना के जेल के दिन उससे कहीं ज़्यादा बुरे थे। पहली बात, वहाँ इतनी भी रोशनी नहीं होती कि आप अपने साथी कैदियों के चेहरे तक ठीक से देख सकें — सात सीज़न शूट करना तो बहुत दूर की बात है!
जिगना वोरा: जेल की सलाखों के पीछे का जीवन
वोरा ने अपने संस्मरण, बिहाइंड बार्स इन बायकला में अपार सूक्ष्मता के साथ जेल में बीते उनके एक-एक दिन और रात का आलेख तैयार किया है। इस संस्मरण को पढ़ने का अनुभव मानो यथार्थ से परे है। पीरियड्स के दौरान भी महिला कॉन्स्टेबलों द्वारा उन्हें निर्वस्त्र करवाए जाने के बारे में, वह उतनी ही शांति से वर्णन करती हैं, जितनी वह जेल में प्रज्ञा ठाकुर के साथ अपनी अंतरंगता के बारे में चर्चा करती हैं। वोरा का अपने जेल में बिताये दिनों में, शौचालयों की सफाई और खाने में पड़े हुए बालों का वर्णन एक दुःखद, अवसाद-पूर्ण तस्वीर हमारे सामने प्रस्तुत करता है। लेकिन वे आप से किसी तरह की सहानुभूति नहीं चाहतीं, वे केवल एक पत्रकार के रूप में अपना काम कर रही हैं।
स्वाभाविक रूप से, उनसे मिलना एक तरह से खुद को कई सीमाओं में बांध के रखने का एक कठिन अभ्यास था: क्या हमारे बीच परिहास की कोई गुंजाइश थी? क्या होगा अगर वह मेरे सामने खुलकर बात करने से मना कर दें? हैरानी की बात है, कि उन्होंने चहल-पहल भरे स्टारबक्स कैफ़े में एक शांत कोने का चयन कर लोगों की नज़रों से खुद को छुपाने का कोई प्रयास नहीं किया। ऐसे विवरण करते वक़्त, “जब मैं गिरफ्तार हुई”, “मुझे कातिल बुलाया गया”, वह अपने आसपास लोगों की घूरती नज़रों पर ध्यान दे रहीं थी।
वह कहती हैं, “पत्रकारों तथा फ़िल्म निर्माताओं को हर जगह पहुँच पाने की सुविधा नहीं होती। जेल जैसा आपको दिखता है, वह वास्तव में उसकी बहुत ही धुंधली तस्वीर है।” वे स्वीकार करती हैं कि वे निरंतर एक भय और अविश्वास की स्थिति में जी रही हैं। “कभी-कभी जब देर रात को दरवाज़े की घंटी बजती है, तो मैं डर जाती हूँ। जब मैं लोगों को अपनी ओर देखते हुए पाती हूँ, तो मुझे लगता है जैसे वे मेरे बारे में कोई राय बना रहे हों।”
लेकिन जेल में बिताए उनके सभी दिन कठिन और दुख भरे नहीं थे। वहां ऐसी कई कॉन्स्टेबल भी थीं जो स्वयं आगे बढ़कर उनकी मित्र बनीं, कुछ ऐसे बिरले लोग भी उन्हें वहाँ मिले, जिनके बारे में उन्होंने ख़ुद कभी रिपोर्टिंग की थी। लेकिन उनकी सर्वोत्तम यादें उत्सवों से जुड़ी हुई हैं। “वहाँ प्रत्येक त्योहार मनाया जाता है। कभी-कभी हम रमज़ान पर उपवास करते थे, हमने होली और क्रिसमस भी मनाया। मौसम की पहली बारिश में हम सबने मज़े से रेन-डांस भी किया। जब आप महीनों एक छोटी सी जगह में सीमित होकर रह जाते हो, तब आप जीवन और उससे जुड़ी छोटी-छोटी खुशियों की कीमत समझ पाते हो,” जिगना कहती हैं।
यह एक अनवरत चलने वाला युद्ध है लेकिन वह इसे जीतने के लिए पूर्णत: तैयार हैं। उन्होंने एक त्रिशूल के आकार की नथ और गले में रक्षा प्रदान करने वाली तिब्बती देवी के चित्र वाला टेराकोटा का पैंडैंट पहन रखा है। “एक शिकार बनने की अपेक्षा मैंने योद्धा बनना चुना है,” वे कहती हैं। ऐसे भी दिन अवश्य आते हैं जब वे न्यूज़ पेपर पढ़ते हुए, न्यूज़ रूम की चहल-पहल की कमी महसूस करती हैं। क्योंकि अब वे इन सब चीज़ों के दूसरे पहलू की ओर हैं, वे मानती हैं कि बहुत सी ऐसी क्राइम स्टोरीज़ हैं, जो अगर उन्हें अब मिलती, तो वे उन्हें कहीं बेहतर तरीके से हल कर सकती थीं। पर उस जीवन से वे अपने आप को अब जुड़ा हुआ अनुभव नहीं करतीं। यह अध्याय अब उनके लिए बंद हो चुका है और इसके लिए उन्हें किसी भी तरह की कोई शिकायत या पछतावा नहीं है। “मैंने अपनी गिरफ्तारी के ठीक 9 महीने बाद जेल छोड़ा, यह जन्माष्टमी का दिन था, और उस दिन मेरा दूसरा जन्म हुआ। अब यह जिगना वोरा 2.0 है।”
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