
सेक्स, ड्रग्स और रॉक-एन-रोल: अपने पेरेंट्स के साथ खुलकर बात कैसे करें
एक साइकोलोजिस्ट के अनुसार बेस्ट ‘शॉक-रेसिस्टेंट’ प्रैक्टिसेस
यदि इंडियन टीनेजर्स और युवाओं का बस चले, तो वो सात फेरे लेने तक अपने लवर्स को “जस्ट फ्रेंड्स” के टैग के पीछे छुपा कर रखें। सोशल मीडिया पर उनका रिलेशनशिप स्टेटस सिंगल बना रहे और प्यार-मोहब्बत का प्रदर्शन केवल पार्क्स, एयरबीएनबी और खाली घरों की चारदीवारी के अंदर तक ही सीमित रहे। इसका मुख्य कारण है कि या तो हमारे पेरेंट्स ‘ऑल इंडिया रेडियो’ हैं या हमारे पास एक टाइगर मॉम है।
वो एक बार, जब मां के साथ अपने रिश्ते की सच्चाई बांटी थी, तो दूर के रिश्तेदारों की पूरी बटालियन ने शादी की तारीख पूछ-पूछ कर जीना हराम कर दिया था।
और यदि आपके पास एक हेलीकॉप्टर मॉम हैं, तो बेशक, उन्होंने आपकी मैथ्स नोटबुक के आखिरी पन्ने से आपके क्लासमेट (वो भी सातवीं क्लास के) के साथ आपका फ्लेम्स कैलक्युलेशन ढूंढ निकाला होगा, और आपकी टीचर्स को आप पर नज़र रखने का काम भी सौंप दिया होगा।
ऐसे हो या वैसे, चैन की सांस लेना बहुत मुश्किल है।
उन पर भरोसा ना होने के कारण और बेवजह पूछताछ से बचने के लिए, आप अपनी लव लाइफ का हर सबूत उनसे छिपा कर रखने का फैसला कर लेते हैं, ठीक वैसे जैसे आप ऐश ट्रे, लाइटर और खाली ओल्ड मोंक की बोतलें छिपाते हैं। और आप कभी भी अपने पेरेंट्स के साथ बात नहीं कर पाते।
बड़ी संख्या में हमारे देसी टीनेजर्स और अडल्ट्स भी इस बात से सहमत होंगे कि “मम्मी-पापा को मत बताना” वाला यह स्टेटमेंट कभी भी पुराना नहीं हो सकता। चाहे आप 15 साल के हों और अपनी किराने की दूकान के पीछे वाली गली में छिप-छिपकर मार्लबरो के कश लगा रहे हों या आप 30 साल के हों और अपनी गर्लफ्रेंड के साथ वीकेंड हॉलिडे प्लान कर रहे हों।
कुछ घरों में, आमतौर पर बच्चें अपने माता-पिता के साथ कठिन विषयों जैसे सेक्स, पार्टनर्स, अल्कोहल, निकोटीन, ड्रग्स या कभी-कभी फूड को लेकर भी (जैसे किसी जैन घर में लाल-मांस ) बातचीत करने से कतराते हैं।
“क्लीनिकल प्रैक्टिस में, टीनेजर्स और युवा ज़्यादातर अपनी लव लाइफ और ड्रग्स से जुड़े अपने अनुभव बांटते हैं। पर साथ ही हमें चेतावनी भी देते हैं कि इस बारे में हम उनके पेरेंट्स को कुछ नहीं बताएं। हालांकि, यह उन्हें बहुत बड़े खतरे में डाल सकता है। जब वे अपनी जिंदगी का इतना अहम पहलू छिपाते हैं, कुछ भी गलत होने पर – जैसे, आगे जाकर यदि रिलेशनशिप अब्यूसिव हो जाए – तो उन्हें संभालने के लिए उनके पास उनकी फैमिली का मजबूत सहारा नहीं होगा,” डॉ नताशा काटे कहती हैं, जो मसीना हॉस्पिटल और नानावटी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, मुंबई में साइकेट्रिस्ट के तौर पर कार्यरत हैं।
डॉ काटे यह समझने में हमारी मदद करती हैं कि हम किस तरह बातचीत की शुरुआत कर सकते हैं और क्यों, कब और कैसे हमें अपने पेरेंट्स के साथ बात करनी चाहिए।
हमारा अपने पेरेंट्स के साथ बात करना क्यों ज़रूरी है?
सच कहें तो इसलिए, ताकि आगे जाकर एक दिन ऐसा न आ जाए कि आपके पास उनसे बात करने के लिए बातें ही ना बचें। अपने पेरेंट्स और अपने बीच, सीक्रेसी की हर परत के साथ, आप अपने रिश्ते में बाधाओं का एक ऐसा पहाड़ खड़ा कर रहे हैं कि आने वाले कुछ सालों में आप माउंट एवेरेस्ट की चोटी पर होंगे और वो तब भी बेस कैंप पर खड़े हालातों को नकार रहे होंगे।
28 वर्षीय समांथा नोरोन्हा* कहती हैं, “मैं हाई स्कूल में थी। जब मेरे पेरेंट्स काम पर गए थे, और पीछे से मेरा बॉयफ्रेंड घर आया। किसी वजह से, मम्मी घर वापस जल्दी आ गई। अब मैं उसे छठे माले की बालकनी से नीचे तो फेंक नहीं सकती थी। मम्मी बहुत नाराज़ हुई, उसे चले जाने को कहा और तीन दिन तक मुझसे बिलकुल बात नहीं की। आज मैं 28 साल की हूं, लेकिन हमने आज तक उस घटना पर कभी चर्चा नहीं की। शायद, इसमें मेरी गलती भी रही कि मैंने उनसे इस बारे में कोई बात नहीं की। मुझे नहीं पता कि वो मेरे बारे में क्या सोचती हैं या उन्होंने पापा से इस बारे में कोई जिक्र किया की नहीं। हमारी रिलेशनशिप ‘मां-मेरी-सबसे-अच्छी-दोस्त’ वाली नहीं है।”
कठिन विषयों पर चर्चा करने की ज़रुरत को लेकर, एक्सपर्ट्स के पास दो नज़रिये हैं। छोटी उम्र में, पेरेंट्स आपका सपोर्ट सिस्टम होते हैं जिनके पास आप कभी भी अपनी समस्याएं लेकर जा सकते हैं। उनके साथ आप सुरक्षित महसूस करते हैं और उन पर इमोशनली निर्भर कर सकते हैं, खासकर ड्रग्स और सेक्स सम्बंधित मुश्किल हालातों में। वो आपको गाइड कर सकते हैं इसलिए उन्हें लूप में रखना बहुत महत्वपूर्ण है।
डॉ काटे कहती हैं, “हालांकि, आप ये सोचते होंगे कि आप और आपके दोस्त बहुत समझदार हैं, लेकिन आपके पेरेंट्स, अपने अनुभव के आधार पर, निश्चित ही आपसे कहीं ज़्यादा जानते हैं। टीन्स और युवा लड़के-लड़कियां, ज़्यादातर अपने गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड के बारे में बात नहीं करते। हां, पेरेंट्स कभी-कभी थोड़े नासमझ हो जाते हैं और आपस में कुछ कड़वी बहस भी होती हैं, लेकिन अगर आप अपने पेरेंट्स के साथ बात ही नहीं करेंगे, तो आपके बीच कोई कनेक्शन ही नहीं रह जाएगा।”
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, यह अपनी आइडेंटिटी का सवाल बन जाता है। आपकी लाइफस्टाइल चॉइसेस आपकी आइडेंटिटी को परिभाषित करने लगता है। अपने पेरेंट्स से अपना असल व्यक्तित्व छिपाना बहुत तकलीफदेह हो सकता है और आपको उनसे दूर करता जाता है। डॉ काटे कहती हैं, “आप कितने ही बड़े क्यों ना हो जाएं, यह डर हमेशा बना रहता है कि आपके पेरेंट्स आपके बारे में क्या सोचते हैं। तो, खुद को ज़्यादा बड़ी समस्याओं से बचाने के लिए, ये रिस्क उठाना बहुत ज़रूरी है।”
पेरेंट्स के साथ बात कैसे करें
मीडिएटर की मदद लें:
अपने माता-पिता से सीखी जा सकने वाली लाखों चीज़ों में से एक है, बातचीत के लिए सही मौके की तलाश करना सीखना। हमारे पेरेंट्स इस टिंडर जनरेशन से नहीं हैं, इसलिए ये भी आवश्यक है कि उनकी रूढ़िवादी सोच को थोड़ा नज़रअंदाज़ किया जाए।
हो सकता है, वे सीधे इस जानकारी से रूबरू होने के लिए तैयार ना हों कि एक बार कंडोम फ़ैल हो गया था, लेकिन आपके लवचाइल्ड के ग्रैंडपेरेंट्स बनने से आई-पिल ने उन्हें बचा लिया।

उनके साथ बातचीत की शुरुआत, किसी भी कीमत पर, ऐसे इंट्रोडक्शन के साथ नहीं हो सकती। उन पर सीधे बम गिराने के बजाय, मीडिएटर्स जैसे किताबें, फ़िल्में या आस-पड़ोस में हुई किसी घटना के माध्यम से बातचीत की शुरुआत करें, और फिर उन्हें असली मुद्दे पर लेकर जाएं।
25 वर्षीय, वर्षा मिश्रा कहती हैं , “कुछ बच्चे पार्किंग में ड्रिंक करते पकड़े गए। मैंने अपनी मां को समझाया, ऐसा इसलिए होता है जब पेरेंट्स अपने बच्चों को एक्स्प्लोर करने से रोकते हैं और उन पर नाराज़ होते हैं। मैंने उन्हें कहा कि जब मैं ड्रिंक करना शुरू करूंगी, मैं उनको जानकारी में रख कर ऐसा करना चाहूंगी, ताकि मुझे कहीं बाहर जाकर छिपकर ऐसा न करना पड़े। उन्होंने मेरी बात को समझा, और कुछ महीनों बाद, हमने साथ में फैमिली कॉकटेल टाइम एन्जॉय करना शुरू किया। अब तो हम कभी-कभी साथ में शॉट्स भी ले लेते हैं।”
एकदम से उन्हें झटका न लगे, इसके लिए डॉ काटे “सेक्स” के बजाय “इंटिमेसी” जैसे कम-आक्रामक शब्दों का इस्तेमाल करने की सलाह देती हैं। वह कहती हैं, “जरूरत पड़ने पर, बिगड़ती बात को संभालने के लिए, आप अपने बड़े भाई या बहन को, या किसी कजिन को आसपास रहने के लिए कह सकते हैं। यह तब बहुत काम आता है, जब आप पहली बार अपने बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड को अपने पेरेंट्स से मिलाने के लिए लाते हैं।”
29 वर्षीय, देब चक्रवर्ती कहते हैं, “मेरी पहली रिलेशनशिप हाई स्कूल में शुरू हुई। मेरी गर्लफ्रेंड मेरे भाई की एक दोस्त थी। मैंने अपने पेरेंट्स के साथ बात करने का रास्ता निकालने के लिए उसे बहाने से प्रोजेक्ट वर्क के लिए घर बुलाया। मेरे भाई ने मम्मी से बात की और फिर उन्होंने मेरे पापा से। डिनर के दौरान पापा ने मजाक में कहा, ‘इस लड़की को कभी मत छोड़ना, तुम्हें दूसरी नहीं मिलेगी।’ मुझे शर्म तो आई, लेकिन बहुत शांति भी महसूस हुई।”
अपने पेरेंट्स के साथ अपने रिश्ते का आंकलन करें:
यदि आपके पिता स्नोमैन से भी ज़्यादा ठंडे हैं और आपकी मां के पेट में कोई बात नहीं पचती, तो अफसोस, आप कोई ख़ास नहीं हैं। यह हर भारतीय परिवार की कहानी है।
उनके साथ अपने ट्रैक रिकॉर्ड पर एक नज़र डालें कि वे अब तक कितने सप्पोर्टिव रहे हैं। जब आपने उनकी इच्छा (“मेरी बेटी डॉक्टर बनेगी ” ) के खिलाफ जाकर आर्ट्स लेने का फैसला किया, तब क्या उन्होंने नाराज़गी जाहिर की? जब आपने अपने आईसीएसई प्रिलिमिनरी एग्जाम में 99.9% स्कोर नहीं किया, तो उन्होंने आपके फोन जब्त कर लिया था?
किसी भी कठिन विषय पर बात करने से पहले उनके व्यवहार को परखना बहुत ज़रूरी है, खासकर जब बात सेक्स या ड्रग्स से जुड़ी हो।
डॉ काटे कहती हैं, “बहुत से पेरेंट्स को लगता है कि सेक्स और ड्रग्स के संपर्क में आते ही उनके बच्चें अपनी मासूमियत खो देते हैं। ऐसे में उनकी नेचुरल प्रोटेक्टिव इंस्टिंक्ट अपने आप जाग जाती है।”
लेकिन प्रोटेक्टिव व्यवहार भी अलग-अलग हो सकता है। कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों से बात करके लूप में रहना पसंद करते हैं, तो कुछ उन्हें घर में बंद कर देते हैं, और चरम परिस्थितियों में, अब्यूसिव व्यवहार देखा जाता है। इसके अनुसार, बच्चा खुद को उनके फर्स्ट रिएक्शन के लिए तैयार कर सकता है।
बात करने का सही वक़्त कब है:
क्या आप इस इंतज़ार में बैठे हैं कि एक दिन शराब के नशे में डिवाइडर पर कार चढ़ाने के बाद ही अपने पेरेंट्स के साथ अपनी ड्रिंकिंग चॉइसेस पर चर्चा करेंगे? यह उतना ही बुरा आईडिया है जितना बुरा हफ्ते के बीच में ड्रिंकिंग का प्लान बनाना है।
इस तरह के मुद्दों पर बात करने के लिए सही वक़्त का होना बहुत ज़रूरी है। यदि आपके पेरेंट्स को आपकी आदतों का पता किसी प्रॉब्लम के तहत चलेगा – आपको कुछ प्राइवेट में करते देख लें, पुलिस स्टेशन या हॉस्पिटल से फ़ोन आने के बाद, तो ये तुरंत ही उनके लिए हर तरह से ‘परेशानी’ का सबब बन जाएगा।
वे आपकी आदतों को हमेशा नेगेटिव परिणामों से जोड़ने लगते हैं। डॉ काटे सलाह देती हैं, “आपको अपने जीवन के पहलुओं पर चर्चा की शुरुआत तभी कर देनी चाहिए जब वे किसी भी तरह की परेशानी से मुक्त हों। शर्मनाक, बदतर और खतरनाक स्थितियों से बचने के लिए इसकी पहल जल्द ही कर लें।”
उन्हें वक़्त दें, खुद भी जितना चाहे उतना समय लें, लेकिन सुनिश्चित करें कि इसमें ताउम्र ना निकल जाए। 24 वर्षीय, तनीषा सिन्हा कहती हैं, “पहली बार मैंने उनसे वीड ट्राई करने के बारे में बात की, तो मैंने उन्हें सिर्फ इतना बताया कि न्यू ईयर पार्टी पर सब ले रहे थे, इसलिए मैंने भी ट्राई की। आश्चर्य की बात ये थी कि मेरे पापा ने अपने कॉलेज की कहानियां शेयर करना शुरू कर दिया, यह प्रतिक्रिया मेरी उम्मीद के परे थी। मेरी सलाह है कि हर किसी को अपने पेरेंट्स के साथ बात करने की कोशिश करनी चाहिए, और उनसे इतना डरना नहीं चाहिए।”
एक-दूसरे के नज़रिए का सम्मान करें
बेशक, आपके दोस्तों ने कहा होगा कि हर बात घर पर बताने के लिए अब तुम काफी बड़े हो गए हो, और आपने भी चाहा होगा कि एक बार वो आपकी परिस्थिति से गुजर कर देखें। कुछ ने सलाह दी होगी कि अब रोना-धोना बंद करों और आगे बढ़ो। “तो क्या हुआ अगर वे नहीं जानते कि तुम ड्रिंक करते हो, तुम्हें उन्हें बताने की ज़रुरत भी नहीं है।”
फिर भी असल ज़िन्दगी में हर फैमिली अलग होती है, सबके डायनामिक्स अलग होते हैं, कुछ दूसरों की तुलना में ज़्यादा कन्सेर्वटिव और डर कर रहते हैं।
29 वर्षीय, नेहा सिंह कहती हैं, “मेरी मम्मी जानती हैं कि मैं ड्रिंक और स्मोक करती हूं, उन्हें मेरी पास्ट रिलेशनशिप्स के बारे में भी पता है। हालांकि, वे मेरी इन आदतों को सपोर्ट नहीं करती, पर उन्होंने मुझे कभी रोका भी नहीं। हम दोनों एक दूसरे की सीमाओं का सम्मान करते हैं। 30 साल की उम्र में, आपको इससे ज़्यादा और क्या चाहिए, आप जैसे हैं वैसे आपको अपनाया जाए और सम्मान दिया जाए।”

डॉ काटे भी इस बात से सहमत हैं कि एक अडल्ट होने के बाद, आप किसी की अनुमति की तलाश नहीं कर रहे होते हैं। आप पहले से ही अपने निर्णय ले चुके होते हैं, आप बस इतना चाहते हैं कि आपके पेरेंट्स को आपके बारे में सब जानकारी रहे और वे जजमेंटल न हों।
वे कहती हैं, “आराम से टॉपिक की शुरुआत करें और सावधानी से आगे बढ़ें। अगर आपके पेरेंट्स के कुछ सख्त मूल्य और राय हैं, तो उन्हें बार-बार हिलाने की कोशिश ना करें। अडल्ट्स की तरह अपना दृष्टिकोण सामने रखकर, एक दूसरे को स्वीकार करें और आगे बढ़ जाएं।” यह बातचीत का जरिया एक दो-तरफा सड़क की तरह है, जिस पर आमने-सामने चलते हुए, कुछ कोशिशों और कुछ गलतियों के माध्यम से आप और आपके पेरेंट्स दोनों ही बहुत कुछ सीख रहे हैं।
*अनुरोध पर कुछ नाम बदल दिए गए हैं