
क्या हम एक सेकेंड के लिए कॉन्स्टिपेशन के बारे में बात कर सकते हैं?
आख़िर ‘मोशन’ भी ज़रूरी है
सुबह उठकर पॉटी जाना भी उतना ही रूटीन का हिस्सा है, जितना कि फ़ोन पर नज़र डालना, दांतों को ब्रश करना और सुबह-सुबह स्टारबक्स से अपने लिए कॉफ़ी ऑर्डर करना। लेकिन बैठे-बैठे इंस्टाग्राम पर अनगिनत स्क्रॉल करने और थॉर के हथौड़े से भी ज़्यादा भारी महसूस होते व कांपते हुए पैरों के बावजूद कई लोग हल्के होने के संघर्ष से जूझते रहते हैं, पर कामयाब नहीं हो पाते। सच्चाई यह है, भारत की 22 फ़ीसदी जनसंख्या कॉन्स्टिपेशन की समस्या से प्रभावित है। इनमें से आधे से ज़्यादा के लिए यह एक गंभीर और लंबे समय से चल रहा मुद्दा है, यह बात हेल्थकेयर फ़र्म एबॉट के हाल ही में हुए गट हेल्थ सर्वे में सामने आई है।
“सामान्य शब्दों में, कॉन्स्टिपेशन नियमित रूप से पॉटी करने में असफल होना या स्टूल पास करते समय बहुत तकलीफ होने से जुड़ी एक समस्या है,” बैंगलुरु की न्यूट्रिशनिस्ट अनुपमा मेनन बताती हैं। इससे ब्लोटिंग होने लगती है, परेशानी महसूस होती है और यह एक ऐसी समस्या है जो आपके पूरे स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है।
अनुपमा समझाती हैं, “जब शरीर भोजन को मेटाबॉलाइज़ कर लेता है तो यह भोजन लार्ज इंटेस्टाइन (बॉउल/कोलन) में प्रवेश करता है, जहां से वेस्ट रेक्टम के ज़रिए शरीर से बाहर निकल जाता है। कॉन्स्टिपेशन होने पर, यह वेस्ट शरीर के भीतर ही इकठ्ठा होने लगता है और टॉक्सिन्स और इन्फ्लेम्शन बढ़ाता है, यह दूसरी कई बीमारियों का मूल कारण है।”

क्या आप अभी तक यह तकलीफ महसूस कर रहे हैं? इससे पहले की आप घबराहट में डॉक्टर का रुख़ करें, आपको अस्थाई कॉन्स्टिपेशन और क्रॉनिक कॉन्स्टिपेशन दोनों में अंतर समझना चाहिए। अनुपमा बताती हैं, “अस्थाई कॉन्स्टिपेशन, आमतौर पर कुछ ऐसा खा लेने से हो सकता है जो आपके डाईजेस्टिव सिस्टम को सूट नहीं किया हो और यह स्ट्रेस थोड़े समय के लिए ही होता है।” इसकी वजह तेल में तला हुआ वो समोसा भी हो सकता है, जो आपने शाम को खाया था, तो आप आश्वस्त रहें कि एक-दो दिन में यह आपके शरीर से बाहर निकल ही जाएगा। वहीं क्रॉनिक कॉन्स्टिपेशन बहुत ख़तरनाक होता है, जहां “स्टूल पास करने में महीनों या सालों से परेशानी हो रही हो, जिसकी वजह से आपके शरीर में टॉक्सिन्स इकट्ठे हो रहे हों।”
इसका सबसे बड़ा कारण है – इनएक्टिव लाइफस्टाइल, नींद न आना या बहुत ज़्यादा तनाव, ये तीनों चीज़ें हमारे पेट और डाईजेस्टिव सिस्टम को कमज़ोर कर देती हैं। अपने मेटाबॉलिज़्म को एक 10 साल के बच्चे की तरह समझकर कुछ भी, कभी भी और कितना भी खा लेना, इस क्रॉनिक कॉन्स्टिपेशन का एक अन्य कारण हो सकता है। मेनन कहती हैं, “कम पानी पीना, ऐसी डाइट जिसमे फ़ाइबर कम और प्रोसेस्ड फ़ूड और शक्कर ज़्यादा हो, आपकी इंटेस्टिनल वॉल में होने वाले फ़ूड अब्सॉर्ब्शन को प्रभावित करती है।”

हेल्दी बॉउल मूवमेंट (अच्छे से पेट साफ़ होने) को आमतौर पर हरी सब्ज़ियों से जोड़ा जाता है, पर बहुत ज़्यादा हेल्दी खाना भी कभी-कभी उल्टा असर करता है। “बहुत ज्यादा मात्रा में रॉ फ़ूड (कच्चा या अधपका भोजन) और अत्यधिक फाइबर पचाने में बहुत मुश्किल होता है, और यह भी कॉन्स्टिपेशन और वज़न बढ़ने का एक कारण हो सकता है।” दूसरी महत्वपूर्ण बात जिस पर आपको ध्यान देना चाहिए, वो ये है कि आप कैसे सप्लिमेंट्स ले रहे हैं। विटामिन B12 की कमी या कैल्शियम व आयरन सप्लिमेंट्स की अधिकता की वजह से भी कुछ लोगों को कॉन्स्टिपेशन की समस्या होती है।
कॉन्स्टिपेशन से छुटकारा पाना
क्रॉनिक कॉन्स्टिपेशन का शरीर पर चर्नोबिल जैसा प्रभाव पड़ता है, जिससे केवल पेट में ही समस्या नहीं होती, बल्कि हर जगह परेशानी होती है। “यदि हमारे शरीर से वेस्ट प्रोडक्ट नियमित रूप से बाहर नहीं निकलेगा, तो शरीर में नमक का असंतुलन हो जाएगा और ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है,” अनुपमा समझाती हैं, “इससे एस्ट्रोजन ब्लडस्ट्रीम में बढ़ने लगता है। ब्लड में टॉक्सिन्स और ऐस्ट्रोजन का बढ़ना, दोनों ही कैंसर के ख़तरे को बढ़ाते हैं, ख़ासतौर पर ब्रेस्ट कैंसर।”
कभी-कभी क्रॉनिक कॉन्स्टिपेशन की वजह से रेक्टम सूज जाती है, जिससे फ़िशर और ब्लीडिंग जैसी समस्याएं होने लगती है। और यदि इसका इलाज न किया जाए तो रेक्टल प्रोलैप्स (रेक्टल का ऐनस से बाहर निकल जाना) हो सकता है, जिसमें रेक्टम मोशन को नियंत्रित करने की क्षमता खो देता है, अनुपमा सचेत करते हुए कहती हैं।
दवा की दुकानों पर मिलने वाले लैक्सेटिव्स, कॉन्स्टिपेशन के लक्षणों को कुछ समय के लिए कम ज़रूर कर सकते हैं, लेकिन ये इसके बुनायादी कारण का इलाज नहीं कर सकते। तो क्या डॉक्टर को दूर रखने के लिए, रोज़ एक सेब खाना चाहिए? यह बात हमेशा लागू नहीं होती।
“अपनी डाइट में सही मात्रा में फ़ाइबर्स को जगह दें, इसके लिए फलों और सब्ज़ियों को भोजन में शामिल करें। भिगोए हुए बेर, जामुन, मुनक्का, किशमिश, सेब, हरी पत्तेदार सब्ज़ियां, अंजीर, खट्टे फल, शक्करकंद, भिगोए हुए सब्ज़ा के दाने और अलसी को अपने खानपान में शामिल कर के इस समस्या को कम करते हुए इसे वापस पटरी पर लाया जा सकता है।”
आप गेहूं, ओट ब्रैन, स्टील कट ओट्स और दूसरे साबुत अनाजों को भोजन में शामिल कर के भी अपने मोशन को बेहतर बना सकते हैं।
एक अन्य उपयोगी घरेलू उपचार है, एक चम्मच नींबू के रस में एक चम्मच वर्जिन ऑलिव ऑइल मिलाएं और रोज़ाना सोने से पहले इसका सेवन करें। पर याद रखें, आपका लाइफस्टाइल भी कॉन्स्टिपेशन दूर करने में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
“इस स्थिति को कंट्रोल में रखने के लिए, रोज़ नौ घंटे की नींद लें और तनाव कम करने के लिए मेडिटेशन व एक्सरसाइज़ करें,” अनुपमा कहती हैं।
और किसी भी तरह का दबाव महसूस ना करें। क्योंकि यही तो हमारा अंतिम उद्देश्य है, है ना?
देखिए: अपने बच्चे से बीमारी के बारे में कैसे बात करें