
'मैंने एक महीने तक मेडिटेशन करने की कोशिश की और खुद में ये बदलाव महसूस किए'
एक महीने में आपको आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती, लेकिन मन की शांति के बारे में आपका क्या ख्याल है?
चलिए, शुरु करते हैं। अब मैं अपने पैरों को क्रॉस करके बैठूंगी, अपनी हथेलियों को ऊपर की ओर खुला रखते हुए एक लम्बी गहरी सांस लूंगी। कुछ नहीं सोचना है, बस बिलकुल खाली दिमाग के साथ मेडिटेशन करने की कोशिश करनी है। चलो, सोचना बंद करो, बस अपनी ब्रीथिंग पर फोकस करो। हम्म, अच्छा लग रहा है, पता नहीं लोग क्यों इतनी शिकायतें करते रहते हैं, मुझे केवल ऐसे बैठना ही तो है।
क्या मैंने चिकन को डीफ़्रॉस्ट करने के लिए बाहर निकाला था? ओफ्फो, मैंने फिर से सोचना शुरू कर दिया। यह इतना आसान भी नहीं होगा…
मैं कई सालों से मेडिटेशन करने की कोशिश कर रही हूं, कभी अचानक ही चालू कर देती हूं और फिर वापिस बंद कर देती हूं, लेकिन सच कहूं तो, उन थोड़े से दिनों में भी, मैं शायद ही कभी कुछ मिनटों से ज़्यादा मेडिटेट कर पाई। मुझे पूरा यकीन है कि अब तक मैं इसे गलत तरीके से करती आ रही हूं। क्या आपको जूलिया रॉबर्ट्स की फिल्म ‘ईट, प्रे, लव’ का वो सीन याद है जिसमें वे पहली बार मेडिटेशन करने की कोशिश कर रही हैं और कर ही नहीं पातीं? बस मेरा भी हर बार वही हाल हो जाता है।
मैं मेडिटेशन के अनेक अद्भुत फायदों के बारे में सुन-सुनकर थक चुकी थी। फोकस का तीव्र होना, ब्लड प्रेशर नियंत्रित करना, तनाव में कमी लाना और हार्ट की हेल्थ में सुधार होना। एक साइकोलॉजिकल स्टडी के अनुसार, 15 मिनट के डेली मेडिटेशन के बाद “पार्टिसिपेंट्स ने बताया कि उन्हें अपनी नकारात्मक भावनाओं में कमी होती दिखी और उन्होंने काफी स्वस्थ महसूस किया। इसके साथ ही उनकी संवेदनाओं में बढ़ोतरी हुई, और उन्हें अपने विचारों और भावनाओं का वर्णन करने और उन पर नियंत्रण रखने में मदद मिली।”

लेकिन क्या मुझ जैसी एक मिलेनिअल से, जो यूट्यूब पर वायरल वीडियो और नेटफ्लिक्स मर्डर मिस्ट्री देखते हुए और दिन-रात इंस्टाग्राम पर स्क्रॉलिंग करते हुए बड़ी हुई है, बिना कुछ किए 10 मिनट तक स्थिर बैठे रहने की उम्मीद करना जायज़ है? यह असंभव है। बचपन से ही हमारे मानस में हलचल कूट-कूटकर भरी हुई है। यदि आप बर्नआउट की कगार पर नहीं हैं, तो लोग सोचने लगते हैं कि क्या आप वाकई हार्ड वर्क कर भी रहे हैं? शायद इसीलिए शुरु से ही सीधे 30-45 मिनट के लिए मेडिटेशन करने की कोशिश में मेरे प्रारंभिक प्रयास सही दिशा में नहीं थे।
हाल ही में एक थेरेपिस्ट से बातचीत के दौरान, जब वे मुझे एंग्जायटी के अलग-अलग रूपों में प्रदर्शित होने के बारे में समझाने की कोशिश कर रही थी, उन्होंने लंबे समय में इसके आसार कम करने के लिए, मुझे मेडिटेशन का सुझाव दिया। मैंने अपनी हंसी रोकने की पूरी कोशिश की। मैंने कभी नहीं सोचा था कि अपने मानसिक और शारीरिक बीमारियों के भंडार में, जिसमें एंग्जायटी डिसऑर्डर भी शामिल है, मुझे इसके इलाज के लिए मेडिटेशन करने की कोशिश करनी ही पड़ेगी।
अपनी तकलीफ जाहिर करते हुए, मैंने अपनी कच्ची नींद और मेलाटोनिन की गोली खाए बिना नींद ना आने की समस्या का भी जिक्र छेड़ा। मैंने उन्हें बताया कि इतना सब करने के बाद भी एक चैन की नींद सो पाना मेरे लिए किसी टास्क से कम नहीं है। यहां तक कि मैं अपने शरीर के अंगों पर फोकस करके और डीप ब्रीथिंग की मदद से मसल्स को रिलैक्स करते हुए जल्दी सोने की कोशिश करती हूं। इस बात पर, उन्होंने कहा, “तो, इसका मतलब तुम मेडिटेशन करती हो।” क्या? क्या मैं वास्तव में अभी तक किसी न किसी रूप में मेडिटेट करती रही हूं?
मेडिटेशन अब और भी ज्यादा सशक्त रूप में उभर कर सामने आ रहा है। हर कोई इसके बारे में बात कर रहा है, मेरे ग्रैंड पेरेंट्स से लेकर आध्यात्मिक गुरुओं तक, फिटनेस और हेल्थ एक्सपर्ट्स और अमीर हिपस्टर्स भी, जो असागांव के किसी खेत में एक शांत और धीमा जीवन जीना चाहते हैं।
पिछले एक साल से मेरी एंग्जायटी चरम सीमा पर है। इसलिए मैं और ज़्यादा एक्टिव होकर मेडिटेशन करने की कोशिश कर रही हूं, और कुछ नहीं तो खुद को साबित ही कर सकूं – किसी विशेष की नजरों में नहीं, अपनी खुद की नज़रों में। अब जब मैं घर पर अकेली हूं, तो क्यों ना इसमें कामयाब हो कर दिखाऊं…
इस बार मैंने खुद के लिए एक रियलिस्टिक गोल निर्धारित किया है। ज़रुरत से ज़्यादा पाने की कोशिश ना करते हुए, मैंने फैसला किया कि मैं सप्ताह दर सप्ताह आगे बढ़ूंगी। 10 मिनट से शुरू करते हुए, हर हफ्ते पांच-पांच मिनट बढ़ाऊंगी।
जीवन में या-तो-सबकुछ-या-कुछ भी नहीं वाला दृष्टिकोण मैंने अपने पिता से अपनाया है। या तो हम किसी काम में जी-जान लगा देते हैं या उस काम को हाथ ही नहीं लगाते। अचानक स्मोकिंग छोड़ने का फैसला, या ज़रुरत से ज़्यादा करना; लगातार 10 दिनों तक हर दिन थका देने की हद तक ओवरएक्सरसाइज करना, फिर अगले 20 दिन के लिए हाइबरनेशन में चले जाना। लेकिन अपनी मेडिटेशन करने की कोशिश को सफल बनाने के लिए, (क्योंकि मेरे अंदर का नन्हा सा आशावादी इंसान इसके फायदे उठाना चाहता था), मैंने काफी सोच-समझकर इसकी शुरुआत की।
मुझे पहले दिन से ही पता था कि मॉर्निंग मेडिटेशन करना मेरे बस की बात नहीं है। मैं उन लोगों में से एक हूं जो काम के लिए लॉग-इन करने से 10 मिनट पहले उठते हैं, मुझे तो एक कप कॉफी पीने का समय मिल जाए तो भी बहुत है। मैं तो अक्सर अपनी कॉपी चीफ को सोशिओपैथ बुलाती हूं क्योंकि वह हर दिन सुबह 6 बजे ‘एनर्जी’ के लिए फुल बॉडी वर्कआउट और जॉगिंग करती हैं।
पहले हफ्ते में, मैंने तय किया कि मैं सूर्यास्त के समय लिविंग रूम में अपने सोफे पर बैठ कर मेडिटेशन करूंगी। उन 10 मिनटों में, मैं ना जाने कितनी बार कुलबुलाई हूंगी। मैं लगातार अपने आप को एडजस्ट करने की कोशिश कर रही थी, मेरा ध्यान बार-बार अपने शरीर के किसी ना किसी दर्द की ओर भटक रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे हर मसल में क्रैम्प आ रहा हो। कभी मेरा दिमाग अगली स्टोरी के इंट्रोडक्शन पर जाकर अटक जाता तो कभी अपने आप ‘लुंगी डांस’ बजने लग जाता, जो कि शायद पिछली रात को एक के बाद एक धड़ाधड़ कल्ट मूवीज़ देखने का नतीजा था। यह जानते हुए कि मेरे फोन पर टाइमर लगा है, मैं उसके किसी भी क्षण बजने की राह देखती रहती, और जब ऐसा नहीं होता तो बड़ी निराशा होती। मुझसे यह नहीं हो पा रहा था। ऐसे मेडिटेशन का कोई फायदा नहीं था।
6वें दिन, मैंने अपने फ़ोन पर से मेडिटेशन के लिए टाइमर हटाने का फैसला लिया और बस ध्यान लगाकर बैठ गई। लेकिन उस दिन मेरी बिल्ली ने मुझ पर हमला बोल दिया – मैं उसके लिए खाना रखना भूल गई थी।
इस तरह तो अगले 26 दिन भी निकाल पाना बहुत मुश्किल लग रहा था। मैंने सोचा कि अब हार मान लेती हूं। फिर मैंने एक सहकर्मी की सलाह ली और एक मेडिटेशन ऐप डाउनलोड किया। फॉलो करने के लिए एक कोर्स के होने से, उस एक पल में बने रहना काफी आसान लगने लगा। मुंबई में रहने का मतलब है कि ध्यान भटकाने वालों की कोई कमी नहीं है। बिना किसी गाइड के अपने आप एक स्ट्रांग मेडिटटर बनने की कोशिश हम जैसे लोगों के लिए थोड़ी मुश्किल होती है, खासकर तब, जब मेरा मेडिटेशन टाइम मेरे पड़ोसी के बेटे के होमवर्क टाइम के साथ ओवरलैप करता है।
हेडस्पेस पर उपलब्ध बेसिक फ्री कोर्स की मदद से मैंने अपना मेडिटेशन का सफर शुरू किया और इससे मुझे कुछ बेहतरीन एडवाइस मिली जो बहुत मददगार साबित हुई। जैसे, जब आप मेडिटेशन करने की कोशिश कर रहे हों तो शुरुआत में यह ज़रूरी नहीं है कि आपका मन बिलकुल खाली हो, लेकिन जब आपका दिमाग भटकना शुरू करता है तो आपको अपना ध्यान वापस खींचने की कोशिश करनी है और धीरे-धीरे इस क्षमता का बढ़ाना है।
17वें दिन, मैंने अपना एक छोटा सा रूटीन बनाया। मैंने अपना मेडिटेशन स्लॉट बदलने का फैसला किया और लंच के बाद 10-15 मिनट मेडिटेट करने की ठानी ताकि खाना खाने के बाद दोबारा काम शुरू करने में जो आलस आता है, उससे पीछा छुड़ा सकूं।
इक्कीस दिनों में, आध्यात्मिक ज्ञान तो अभी भी कोसों दूर था, लेकिन मैं प्रतिदिन 15 मिनट के लिए मेडिटेट करने के अपने प्रयास में सफल होने लगी थी। हालांकि मुझे एक बात समझ में आ गई। मेरे लिए, मेडिटेशन एक मेन्टल एक्सरसाइज़ की तरह है। अब हर विचार जो मेरे मन में आता है, मैं उस पर ख़ास ध्यान देने लगी हूं जैसा मैं पहले नहीं करती थी। एक दिन, जब मेरे लंग्स में हल्का भारीपन महसूस हुआ, पहले तो मैं घबरा गई, मैंने तुरंत एक ऑक्सीमीटर खरीदने का फैसला लिया क्योंकि मेरी एंग्जायटी बढ़ने लगी थी, लेकिन अचानक ही मैं फिर से पहले जैसा बेहतर महसूस करने लगी।
पिछले दो दिनों से, मैं अत्यधिक स्ट्रेस की वजह से बहुत ज़्यादा स्मोकिंग कर रही हूं। शायद कुछ समय पहले तक मैं इस साधारण से कारण और उसके प्रभाव के बीच के संबंध को नहीं समझ पाती और नासमझी में अपनी तकलीफ और बढ़ा लेती। मेडिटेशन आपको अपने विचारों का निरीक्षण करने में सक्षम बनाता है और अस्वस्थ विचारों पर रोक लगाने में मदद भी करता है।
जितना ज़्यादा मैं मेडिटेशन करने की कोशिश कर रही थी, उतना ही मुझे एहसास हो रहा था कि अपने विचारों पर काबू पाना कितना मुश्किल होता है।

जब 30वां दिन आया, तो मैं बेहद खुश थी क्योंकि अब मैं भी 15 मिनट के लिए स्थिर बैठ सकती थी।
एक महीना कोई बहुत लंबा समय नहीं है, लेकिन मेरी फोकस करने की क्षमता में बहुत सुधार हुआ है। मैंने हाल ही में फिर से पॉडकास्ट सुनना शुरू किया। पहले तो मैं थोड़ी देर के लिए भी उनके साथ नहीं बैठ पाती थी। बस बैठे-बैठे, शून्य में घूरना मुझे बहुत अजीब लगता था। अब सामने स्क्रीन पर न देखते हुए भी, मैं अपना ध्यान फिर से उस पर खींच लाती हूं जो मैं सुन रही होती हूं, अब मुझे लगातार विशुअल स्टिम्युलेशन की आवश्यकता नहीं महसूस होती, जिस पर हमारी पीढ़ी इतनी निर्भर होती जा रही है। मैं अपने आचरण (जैसे कि चेन-स्मोकिंग) में खुद सुधार लाने की कोशिश करती हूं, जिन्हें पहले मैं बिना सोचे समझे कर बैठती थी।
मैं अभी तक उस स्तर पर नहीं पहुंची हूं जहां मैं मेडिकल जर्नल में छपे मेडिटेशन के सभी लाभों को प्राप्त कर सकूं। मेरे लिए मेडिटेशन करने की कोशिश करना बहुत कठिन काम था लेकिन यह रिलैक्स करने का एक शानदार तरीका रहा है। और अगर मैं पूरी ईमानदारी से कहूं, तो मुझे यह इतना पसंद नहीं है कि मैं रोजाना 30-45 मिनट के मेडिटेशन लेवल को हासिल करने का प्रयास करूं।
जैसे-जैसे मेरा मासिक अभ्यास समाप्त हो रहा है, मैंने महसूस किया कि मैं इसे एक नियमित टास्क की तरह करने के बजाय, इसे अपने दैनिक रूटीन से ब्रेक पाने के लिए कभी-कभी करना ज़्यादा पसंद करती हूं। इस तरह मैंने कम से कम अपने लिए तो इस मेडिटेशन रुपी ताले की चाभी खोज निकाली है। अब एक सप्ताह में 3-4 बार, 7-10 मिनट के लिए भी मेडिटेट करना एक अच्छी शुरुआत है और एक आदत में तब्दील करने के लिए पर्याप्त है। और अभी के लिए मैं इसी शेड्यूल में बने रहना चाहती हूं।
अभी मैं आत्मज्ञान के अपने सफर की प्रारंभिक स्टेज में हूं और आंतरिक शांति की मेडिटेटिव स्टेट में कदम रख रही हूं जहां मैं नकारात्मक विचारों, लोगों, यादों और भविष्य की चिंताओं से मुक्त होने की कोशिश कर रही हूं – बहुत से लोग कहते हैं कि ऐसा करना काफी आसान हो जाता है जब आप नियमित रूप से मेडिटेशन करने लगते हैं। मुझे वहां पूरी तरह से पहुंचने के लिए अभी काफी प्रैक्टिस करने की ज़रुरत है।

मुझे नहीं पता कि मैं इतनी जल्दी आत्म जागरूक होना चाहती भी हूं या नहीं। मैंने हमेशा दूसरों से (और खुद से भी) कहा है कि मुझे अपने आप में रहना पसंद है। मैं अपनी खुद की कंपनी एंजॉय करती हूं, लेकिन वास्तव में, मैं शायद ही कभी खुद तक सीमित रह पाई हूं। देखने, सुनने, आजमाने के लिए हमेशा कुछ न कुछ चाहिए ही होता है। मैं सभी डिस्ट्रैक्शंस को त्यागना भी नहीं चाहती।
जब आप खुद को आईने में थोड़े लम्बे समय तक देखते हैं, क्या आपको सब कुछ थोड़ा बेगाना और अवास्तविक सा लगने लगता है? मेरी कल्पना में वह आत्म-जागरूक होने का सही समय होना चाहिए। मैं इसके लिए अभी तैयार नहीं हूं। दुनिया में वैसे ही बहुत कुछ चल रहा है, जिससे निपटना अभी बाकी है।