
टीनेजर्स में आत्म-सम्मान को बढ़ावा देने के लिए पेरेंट्स कैसे उनकी मदद कर सकते हैं
बच्चों के साथ बेहतर कम्युनिकेशन, आपसी मनमुटाव और उन्हें अपनी राह खुद चुनने देने पर एक्सपर्ट्स के विचार
किशोरावस्था पूरी तरह से एक नई दुनिया है, इस बात से तो अलादीन भी सहमत होगा। एक ऐसी दुनिया जो शायद जादूई कालीन पर सवार सबसे अनुभवी नाविक में भी ट्रेवल सिकनेस भर दे। जितना ज़्यादा आप अपने इन दो पैरों वाले पैरासाइट्स से प्यार करते हैं, उतना ही ज़्यादा आपको इनकी आने वाले टीनेज का डर सताता है जिसके दौरान आपके मासूम से दिखने वाले ये बच्चे खूंखार टीनेजर्स में परिवर्तित हो जाएंगे। मेंटल हेल्थ कॉउंसलर उर्वशी भाटिया का कहना है कि जब टीनेजर्स में आत्म-सम्मान की बात आती है, तो देखा गया है कि वे खुद ही अपने सबसे बुरे आलोचक होते हैं और “पेरेंट्स इसमें एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।”
ये दोनों के लिए ही बेहद महत्वपूर्ण समय है, वे समझाती हैं, “पेरेंट्स के रूप में, आप घबराहट में सोचने लगते हैं, ‘अरे, मेरा बच्चा बदल गया है, अब यह पहले जैसा नहीं रहा’। आप उन्हें खुद को एक्सप्लोर करने के लिए थोड़ी स्पेस और गाइडेंस देने की बजाय, उन्हें बांधकर रखने की कोशिश करते हैं।”

उनके बचपन की मीठी यादों को पकड़ कर रखने की चाह बहुत ही स्वाभाविक है, लेकिन पानी से बाहर एक मछली की तरह, जितना जोर से आप इन्हें पकड़ने की कोशिश करते हैं, उतना ही ये आपके हाथों से फिसलने लगती हैं। जितना ज़्यादा देसी पेरेंट्स इन व्यक्तिगत सीमाओं के कंसेप्ट को अस्वीकार करते हैं, उतना ही उन्हें इससे जूझना पड़ता है।
साइकेट्रिस्ट और एमपॉवर की हेड, डॉ सपना बांगर का कहना है, “इस उम्र में जब बच्चे अपने दोस्तों के साथ ज़्यादा समय बिताने लगते हैं, पेरेंट्स को ऐसा महसूस होने लगता है कि बच्चे उन्हें रिजेक्ट कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में वे अपने बच्चों के जीवन में अभी भी बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, चाहे बच्चे इसे दिखाते हों या नहीं। आप अभी भी वही इंसान हैं जिसे वे सपोर्ट और गाइडेंस के लिए ढूंढते हैं।”
टीनेजर्स में आत्म-सम्मान का निर्माण और सेल्फ-लव को प्रोत्साहित करें
उनके संघर्ष को समझें और स्वीकार करें
जब आपका बच्चा यह कहता है कि “मैं बदसूरत हूं” या “मैं उतना पतला नहीं हूं”, तब पेरेंट्स की स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है, “बकवास मत करो, तुम बिलकुल परफेक्ट हो।”
बांगर कहती हैं कि हालांकि आपकी प्रतिक्रिया उनके हित में थी, लेकिन जब आपके बच्चे का आत्म-विश्वास कम हो और वह आपसे अपने संघर्ष के बारे में बात करना चाह रहा हो, तो ऐसी प्रतिक्रिया उसकी इस कोशिश को ख़ारिज कर देती है।
“आप समझती ही नहीं हो, मम्मा।”

बांगर कहती हैं कि जब टीनेजर्स में आत्म-सम्मान के निर्माण को बढ़ावा देने की बात हो, सबसे आवश्यक है कि हम उनके अनुभव को समझें और उसे स्वीकार करें।
उन्हें बताएं कि आप उनकी परिस्थिति को समझ रहे हैं। खुलकर उनकी प्रशंसा करें और उन्हें समझाएं कि यह मुश्किल समय बीत जाएगा। भाटिया कहती हैं, “खुद के प्रति उनकी आलोचनाओं को एकदम से खारिज करने के बजाय, उन्हें समझें और स्वीकार करें। फिर धीरे-धीरे बातचीत के द्वारा उनके पॉजिटिव्स को उजागर करके, उन्हें सही दिशा दिखलाएं।”
ये अनुभव हम इन्सानों के लिए बहुत आम हैं, भाटिया कहती हैं, “आपको भी अपने जीवन में, ऐसे कई अनुभव हुए होंगे। अपने अतीत और कमजोरियों को अपने बच्चों के साथ शेयर करें। यह उन्हें (और आपको) एक दूसरे के नज़रिए को बेहतर रूप से समझने में मदद करेगा।”
पॉज़िटिव बातें और अफ्फर्ममेशन करने के लिए प्रोत्साहित करें
क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट और थेरेपिस्ट, अंकिता गांधी का कहना है, “आपका सबकॉन्शियस माइंड आपके द्वारा दी गई हर जानकारी को पकड़ कर रखता है। जितना ज़्यादा आप एक नेगेटिव विचार को दोहराते हैं, आपका दिमाग उसे उतना ही मजबूत बनाने में जुट जाता है।”
आत्म-संदेह और विफलता के क्षणों में, ये विचार आप पर हावी होने लगते हैं। ये आपकी भावनाओं और आपके व्यवहार को प्रभावित करना शुरू कर देते हैं और भले ही आप एक अडल्ट ही क्यों न हों, ये बड़ी आसानी से आपके भीतर एंग्जायटी और डिप्रेशन को बढ़ावा दे सकते हैं।
छोटी उम्र से ही अपने बच्चे को खुद के बारे में अच्छी पॉज़िटिव बातें कहने के लिए प्रेरित करें, वर्तमान पर जोर देना सिखाएं। “मैं फलाना चीज़ में बेहतर हो जाऊंगा”, जैसे स्टेटमेंट जिनमें शर्तें या संदेह हों, उनकी बजाय उसे कहना सिखाएं “मैं फलाना चीज़ में बेहतर हूं”।

किसी भी सेटबैक का सामना करते समय उसे हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। अपने बच्चे को विचार-विमर्श में शामिल करें कि स्थिति को कैसे सुधारा जा सकता है।
“कोई बात नहीं कि आज टीम बास्केटबॉल मैच हार गई। हमने पूरी जान लगाकर खेला और हम आगे भी ऐसे ही प्रैक्टिस करते रहेंगे।” उनके लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है कि कभी-कभी हारना भी नार्मल है।
उन्हें गाइड करें और निर्णय लेने में शामिल करें
अपने बच्चों को टीनेज के दौर में नए पहलुओं की खोज करने की स्वतंत्रता देना और सुरक्षित सीमाएं बनाएं रखना, दोनों परिस्थितियों में संतुलन बनाना बहुत ज़रूरी है।
हम सबके अपने-अपने विद्रोही क्षण रहे हैं – कटी फटी जीन्स पहनना, घर पर लगे कर्फ्यू को तोड़कर भागना, सिगरेट और बकार्डी ब्रीज़र चुरा-चुरा कर पीना। यहां तक कि सज़ा भी हमें नहीं रोक पाती थी।

बांगर की सलाह है कि ऐसी परिस्थितियों में अपने गुस्से को एक तरफ रखकर, खुद को उनके सामने एक गाइड के रूप में पेश करें।
घर के नियमों पर तू तू – मैं मैं करने के बजाय, उन्हें तर्क देते हुए अपना पक्ष समझाएं। “तुम्हें रात 10.30 बजे तक घर आ जाना चाहिए ताकि तुम्हारा होमवर्क समय से खत्म हो सके और कल स्कूल में तरोताज़ा महसूस करने के लिए तुम रात में अच्छे से सो सको। वरना, तुम पूरे दिन थकान महसूस करोगे।”
उनका कहना है कि टीनेजर्स के लिए यह एक महत्वपूर्ण बदलाव का दौर है। उन्हें थोड़ी बहुत जिम्मेदारियां सौंपें और साथ ही उन्हें उनके परिणामों से भी अवगत कराएं।
जैसे, अगर आप उन्हें क्रेडिट कार्ड देते हैं और उन्होंने एक महीने में बेवजह बहुत सारा पैसा खर्च कर दिया, तो अगले महीने उनसे कार्ड वापस ले लें और उन्हें समझाएं कि ऐसा क्यों किया गया है।
इस तरह उनमें आत्मविश्वास पैदा होगा और उन्हें एहसास होगा कि कार्ड देकर आपने उन पर विश्वास जताया है। उन्हें समझ आएगा कि गलती करने पर उन्हें उसकी जिम्मेदारी उठानी होगी, लेकिन साथ ही उन्हें दूसरा मौका भी मिलेगा जिस पर वे खरे उतर सकें।
उन्हें शामिल करें और उनसे पूछें, “क्या तुम फिर से कोशिश करने के लिए तैयार हो?” ऐसे कार्यों को पूरा करने से उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और टीनेजर्स में आत्म-सम्मान पैदा करने में मदद मिलती है।
अपनी आलोचना को उपहास में ना बदलने दें
आलोचनाएं कंस्ट्रक्टिव भी हो सकती हैं और अच्छे व्यवहार को सुदृढ़ करती हैं, लेकिन ये बहुत आसानी से शेमिंग की राह पकड़ सकती हैं। और ऐसे शब्द जब पेरेंट्स से सुनने को मिलते हैं, तो यह हमारी आत्म-सम्मान को ताउम्र के लिए झुका सकते हैं।
सौतेली मां के तानों और सगी मां के सिर चढ़ाने वाले लाड-प्यार, दोनों के बीच एक संतुलन बनाना बहुत आवश्यक है – हम अच्छी तरह जानते हैं कि दोनों ही मामलों में आपके बच्चें आगे जाकर खुशनुमा अडल्ट्स में तब्दील नहीं हो सकते।

भाटिया कहती हैं कि गलतियां ज़रूर निकालें, लेकिन साथ ही उन्हें ठीक करने के उपाय भी सुझाएं। उन्हें दिखाएं कि आप उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार हैं।
“केवल उन पर उंगली उठाने के बजाय, आप खुद को उस स्थिति में शामिल करते हुए बात करें। जैसे, “तुम इतने आलसी क्यों हो और अपने कमरे की सफाई क्यों नहीं कर रहें?” ऐसा कहने के बजाय, कहें “मैं चाहती हूं कि तुम अपना कमरा अच्छे से साफ़ करों और अगर ये बहुत ज़्यादा है तो मैं इसमें तुम्हारी मदद कर सकती हूं।”
समय के साथ चलें और परिवर्तन के अनुसार खुद को ढालने की कोशिश करें
ऐसे कई क्षण आएंगे जब आपमें आपसी मनमुटाव होगा और आप आपने बच्चों से जुड़ाव महसूस नहीं करेंगे।
टीनेजर्स के आत्म-सम्मान में प्रतिदिन बदलाव आता है। लेकिन एक अडल्ट होने के नाते, आपको अपनी राह खुद चुननी होगी।
डिनर टाइम को फैमिली टाइम बना लें और इस समय में एक दूसरे से खुल कर बातचीत करने का पूरा फायदा उठाएं। उनसे ऐसे सभी विषयों पर चर्चा करने का यह सबसे उपयुक्त समय हैं, जैसे – सेक्स, डेटिंग, दुःख और ऐसी हर वो बात जिसे कहने में उन्हें या आपको शर्मिंदगी महसूस हो – जिनके बारे में उन्हें आपसे पता लगना चाहिए।

उन्हें जो भी कहना है, उसे ध्यान से सुनें। उन्हें अपने लक्ष्य निर्धारित करने के लिए प्रोत्साहित करें और इस पूरी प्रक्रिया में उनके साझेदार बन कर आगे बढ़ें।
आप अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने की तैयारी में लगे हैं। इसके लिए, उन्हें आपकी ज़रुरत एक दोस्त के रूप में नहीं बल्कि एक ऐसे गुरु के रूप में है जो उन्हें समझे और सही रास्ता दिखाएं।
भाटिया कहती हैं, “इस सफर में आप दोनों एक साथ विकसित हो रहे हैं और दोनों ही सीख रहे हैं। गलतियां तो होंगी ही, एक दूसरे को थोड़ा समय दें और समय समय पर एक दूसरे का उत्साह बढ़ाते रहें।”
“अगर आपको मौन यातना मिल भी रही है, तो क्यों न कुछ ऊटपटांग हंसी मजाक कर के, उन्हें हंसा दें और माहौल को थोड़ा खुशनुमा बना लें।”